अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व वसूली

राजस्व व्यवस्था(वसूली)


अलाउद्दीन खिलजी ने राजस्व वसूली के लिए स्थानीय व्यक्ति, चौधरी, मुकद्दम और खुत को नियुक्त किया


इसके अतिरिक्त मुतसर्रिफ, कारकुन और आमिल होते थे जो सरकारी कर्मचारी थे यह सभी अधिकारी दीवान ए विजारत के अधीन थे


राजस्व वसूली के लिए अलाउद्दीन ने एक पृथक विभाग दीवान ए मुस्तखराज की स्थापना की इसमें अधिक संख्या में आमिल, मुंशरिफ, मुहस्सिल, गुमाश्ता,नवसिन्दा और सरहंग नामक अधिकारी नियुक्त किए गए


गांव स्तर पर गांव का प्रधान जिसे मुख्यतः चौधरी अथवा मुकद्दम कहा जाता था राजस्व वसूलता था मुकद्दम अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है अग्रगण्य व्यक्ति या प्रथम व्यक्ति। चौधरी हिंदी भाषा का एक सामान्य रूप से प्रयोग में आने वाला शब्द है


परगना या जिला (शिक)स्तर पर जो मध्यस्थ कार्य कर रहे थे उन्हें बरनी ने खुत कहा ,खुत के लिए ही (Amir Khusro) ने सर्वप्रथम जमीदार शब्द का प्रयोग किया खुत अहिंदी शब्द है


अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व व्यवस्था का उद्देश्य शक्तिशाली और निरकुंश राज्य की स्थापना करना था


अलाउद्दीन खिलजी ने अधिकतम भूमि को खालसा में लाने का प्रयास किया इक्तादारी व्यवस्था बंद कर दी और नगद वेतन देना शुरू किया


प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन


केंद्रीय प्रशासन की भातिं अलाउद्दीन खिलजी ने प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन पर भी ध्यान दिया


बरनी के अनुसार-- अलाउद्दीन के समय में 11 प्रांत थे
गुजरात ,मुल्तान और सीबिस्तान दीपालपुर और लाहौर,समाना और सूनम ,धार और उज्जैन झायन-मेरठ चित्तौड़गढ़ चंदेरी बदायूं, कोईल और कर्क ,अवध, कड़ा प्रांतों का सर्वोच्च अधिकारी वली या मुक्ता (प्रांत पति )होता था


उसकी स्थिति लगभग सुल्तान के अधीनस्थ शासक के समान थी ।मुक्ता प्रांतीय राजस्व के लिए दीवाने वजारत के प्रति उत्तरदाई होता था


खालसा क्षेत्र का प्रशासन सीधे केंद्र द्वारा निर्धारित होता था इसके अंतर्गत आने वाले नगरों और जिलों पर अमीर और शहना शासन करते थे ।


हवाली-ए-दिल्ली (दिल्ली के समीपवर्ती क्षेत्र )खालसा पद्धति के अंतर्गत थी प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी जिसका प्रधान मुखिया होता था


कर प्रणाली 


अलाउद्दीन के काल में भू राजस्व की दर सर्वाधिक थी एक अध्यादेश द्वारा उसने उपज का 50% भूमि कर (खराज) के रूप में निश्चित किया।


करो की अधिकता के कारण अलाउद्दीन के काल में कृषि कार्य प्रभावित हुआ वह प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया


इसके लिए उसने बिस्वॉ को इकाई माना ।बिस्वा भूमि पैमाइश की मानक इकाई थी यह एक बीघा का बीसवां हिस्सा थी


अलाउद्दीन खिलजी मुसलमानों से उपज का एक चौथाई भूमि कर के रूप में लेता था जबकि अन्य प्रजा से उपज का आधा हिस्सा भूमि कर लेता था


सल्तनत काल में मसाहत भू मापन प्रणाली को पुनर्जीवित करने का श्रेय अलाउद्दीन खिलजी को प्राप्त है


मसाहत--मापन पद्धति के अनुसार समस्त भूमि पर 50% की दर से लगान वसूल किया जाता था यह पहले एक तिहाई होता था


वह Lagaan को गल्ले के रूप में लेना पसंद करता था उसके कर प्रणाली का आधारभूत सिद्धांत यह था कि सबल वर्ग का बोझ निर्बल वर्ग पे ना पड़ने पाए।


खिराज के संदर्भ में सबल और निर्बल दोनों एक समान नियम द्वारा शासित होने चाहिए सरकारी कर्मचारियों द्वारा लगान वसूल करने की प्रथा भी अलाउद्दीन खिलजी ने शुरू की थी


राजस्व के अतिरिक्त अलाउद्दीन नैं दो नवीन कर
1-गढी़कर( मकान पर कर) और
2-चरी कर( जानवरों की चराई पर कर )लगाया


चरी कर दूध देने वाले पशुओं पर लगाया गया था और उन सभी के लिए चारागाह निश्चित किए गए थे


मुसलमान व्यापारियों पर वस्तु के मूल्य का 5% और हिंदुओं पर 10% कर लिया जाता था


जजिया गैर-मुस्लिमों से लिया जाने वाला कर था।ज़कात केवल मुसलमानों से लिया जाने वाला एक धार्मिक कर था जो संपत्ति का 40 वां भाग थ।


खुम्स( लूट का माल) से राज्य का पांचवा भाग मिलता था शेष 4/5 भाग सैनिकों में बांट दिया जाता था लेकिन अलाउद्दीन खिलजी ने इस नियम का उल्लंघन करते हुए खूम्स का 4/5 राज्य के रूप में लिया अर्थात उसने लूट का 80% भाग लिया


बाद में मुहम्मद तुगलक ने भी इस प्रथा को कायम रखा


अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व नीति की सफलता कर निर्धारण और कर वसूली का श्रेय नायब वजीर शर्फ कायिनी को प्राप्त है


उसने साम्राज्य के अधिकांश भागों में सुल्तान के अध्यादेश को लागू करने का अथक प्रयत्न किया


0 Comments

Leave a Reply Cancel

Add Comment *

Name*

Email*

Website