अलाउद्दीन खिलजी की सांस्कृतिक उपलब्धियां

अलाउद्दीन खिलजी की सांस्कृतिक उपलब्धियां


शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में

साम्राज्यवादी होने के साथ-साथ अलाउद्दीन खिलजी को शिक्षा और कला में भी अभी रुचि थी

उसके दरबार में धर्म शास्त्री (शेष-उल-इस्लाम) रुकनुद्दीन, इतिहासकार अर्सलान कुवाही व कबीरूद्दीन, उलेम- काजी अलाउलमुल्क मुगीसुद्दीन और साहित्यकार अमीर हसन देहलवी और अमीर खुसरो आदि को संरक्षण प्राप्त था

अलाउद्दीन ने 46 साहित्यकारों को आश्रय दिया था, अमीर हसन को भारत का सादी कहा जाता है

अमीर खुसरो (Amir Khusro) दरबारी कवि के पद पर प्रथम बार अलाउद्दीन के काल में नियुक्त हुआ था।, अमीर खुसरो ने बलबन से लेकर गयासुद्दीन तुगलक तक आठ सुल्तानों का काल देखा था

अमीर खुसरो ने कहा कि-- शाही मुकुट का प्रत्येक मोती निर्धन किसानों की आंखों से बहा जमा हुआ रक्त है

निर्माण कार्य-

निर्माण कार्य में भी अलाउद्दीन का योगदान महत्वपूर्ण है

उसने 1311 ईस्वी में दिल्ली में कुतुब मीनार (Qutub Minar) के पास अलाई दुर्ग अथवा कुश्क ए सिरी का निर्माण करवाया ।इसका गुंबद प्रारंभिक तुर्की कला का श्रेष्ठ नमूना है इस में हिंदू अलंकरण शैली के अनुकरण पर नक्काशी की गई

मार्शल के अनुसार- अलाई दरवाजा (Alai Darwaza) इस्लामी स्थापत्य कला के खजाने का सबसे सुंदर हीरा है

1311 में ही उसने क़ुतुब मीनार (Qutub Minar) का विस्तार कार्य प्रारंभ किया लेकिन उसे पूर्ण नहीं कर सका निजामुद्दीन औलिया के मकबरे के परिसर में जमैयत खाना मस्जिद का निर्माण कराया जिसे हजार सितुन (हजार खंभा वाले महल) कहते हैं

1303 में ही सीरी नगर (दूसरी दिल्ली) का निर्माण करवाया बरनी ने इसे नया नगर कहा है उसने दिल्ली में होज-ए-खास या हौज- ए-अलाई (तालाब) बनवाया

शम्शी तालाब के निर्माण का श्रेय भी अलाउद्दीन खिलजी को ही प्राप्त है

संगीत

साहित्य और कला की भातिं अलाउद्दीन को संगीत में रुचि थी

उस के दरबार में तुरमति खातून भारतीय और ईरानी स्त्री संगीतज्ञो की प्रधान थी

 

अलाउद्दीन के अंतिम दिन और मृत्यु

अलाउद्दीन अपने जीवन के अंतिम समय में एक असाध्य रोग से पीड़ित हो गया उसके रोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है

बरनी के अनुसार- अलाउद्दीन की मृत्यु का कारण इस्तिस्का (जलोदर रोग )था

अमीर खुसरो के अनुसार- यकृत रोग था और

इसामी के अनुसार- दारुड़ पीड़ा थी

चित्तौड़ विजय के पश्चात अलाउद्दीन अपने सबसे बड़े पुत्र खिज्र खां को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुका था लेकिन वह भोग विलासी व्यक्ति निकला

उसकी पत्नी मलिक ए जहां अपनी विलास में मस्त थी और अपने भाई अलप खां से मिलकर मलिक काफूर की शक्ति को तोड़ने में लगी हुई थी

अलप खां के दो पुत्रियों का विवाह खिज्र खां और उसके छोटे भाई सादी खॉ से हुआ था इस बीच अलाउद्दीन का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता गया

अपनी पत्नी और पुत्रों से उपेक्षापूर्ण व्यवहार को देखकर उसने विश्वासपात्र मलिक काफूर को 1315 ईस्वी में दक्षिण देवगिरी से वापस बुलाया

लेकिन सुल्तान की मृत्यु को निकट जानकर उसकी महत्वकांक्षा जागृत हो गई थी और वह स्वयं अपनी सत्ता स्थापित करने का प्रयत्न करने लगा

उसने सुल्तान को विश्वास दिलाया कि अलप खां , खिज्र खां और मलिक ए जहां उसके शत्रु हैं मलिक काफूर का सुल्तान पर इतना प्रभाव था कि वह उसके षड्यंत्र को नहीं समझ सका

इस बीच खिज्र खां ने अपने पिता अलाउद्दीन के रोग मुक्त होने की आशा में हस्तिनापुर के संतों के कब्र पर जाने का निश्चय किया और उसके लिए प्रस्थान किया

उसकी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर मलिक काफूर में अलप खां की हत्या कर दी खिज्र खां से समस्त शाही प्रतीक वापस ले लिया और उसे अमरोहा में ही रहने का आदेश दिया

कुछ समय पश्चात मलिक काफूर ने खिज्र खां और सादी खॉ को ग्वालियर के किले में कैद कर दिया और मलिक ए जहां को दिल्ली के पुराने किले में बंद करवा दिया

इस घटना के बाद अलाउद्दीन का स्वास्थ्य और खराब हो गया मलिक काफूर के आदेश से सिवाना के राज्यपाल कमालुद्दीन गुर्ग द्वारा अलप खां के छोटे भाई निजामुद्दीन की हत्या कर दी गई

निजामुद्दीन की हत्या के बाद उसके निष्ठावान सैनिकों ने हैदर और जीरक के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया

कमालुद्दीन ने विद्रोहियों को बंदी बनाने के बाद उनकी हत्या कर दी लगभग उसी समय चित्तौड़ के महाराणा और दक्षिण में हरपाल देव ने विद्रोह किया और अपने को स्वतंत्र घोषित किया

4 जनवरी 1316 ईसवी को अलाउद्दीन का निधन हो गया उसे दिल्ली में जामा मस्जिद के बाहर उस के मकबरे में दफनाया गया

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