कलात्मक प्रतीक (इमारतें, मूर्तिकला,चित्रकला)

?स्थापत्य व चित्र कला से इतिहास के सांस्कृतिक पक्ष की जानकारी मिलती है
?स्थापत्य के साधनों में महल, दुर्ग ,मस्जिद ,मंदिर ,मूर्तियां, जलाशय आदि शामिल हैं
?उनकी सहायता से तत्कालीन राजनीतिक स्थिति धार्मिक व सामाजिक जीवन और मूर्तियां इत्यादि शामिल है
?वेशभूषा व आभूषणों से तत्कालीन व आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलती है
?राजस्थान में स्थापत्य कला का विकास महाराणा कुंभा के काल में सर्वाधिक हुआ था
? चित्रकला शैली पर मुगलों का प्रभाव पड़ने से उसके विषय व वेशभूषा में परिवर्तन दिखाई देता है
?साथ ही हिंदू ,मुस्लिम चित्रकला के संबंध में की स्पष्ट झलक मिलती है

??इमारते??
?राजस्थान की मध्ययुगीन इमारतें जिनमे दुर्ग राजप्रासाद देवालय आदि सम्मिलित है-इतिहास के निर्माण में महत्वपूर्ण प्रमाणित हुई है
?इन इमारतों से चाहै प्रत्यक्ष राजनीतिक घटनाओं की जानकारी न मिले लेकिन तत्कालीन धार्मिक और वास्तु कला का बोध तो हो ही जाता है
?चित्तौड़गढ, कुंभल गढ़, गागरोन, रणथंबोर,आमेर, जालौर, आदि स्थानों के दुर्ग केवल तत्कालीन सुरक्षा व्यवस्था पर ही प्रकाश नहीं डालते हैं
?बल्कि राजपरिवारों व तत्कालीन जनसाधारण के जीवन स्तर को भी बताते हैं
?नाथद्वारा का देवालय मुगलकालीन स्थापत्य कला के साथ-साथ मेवाड़ में महाराणाओं की धार्मिक प्रवृत्ति का भी द्योतक है
?नाथद्वारा एक तीर्थ स्थान बनने के उपरांत ही एक व्यापारिक कस्बा बन सका है
?तीर्थ स्थान होने के कारण यहां दूर-दूर से धनी पुरुष आते हैं और वे कलाकारों की अमूल्य कृतियां खरीद कर उन्हें प्रोत्साहन देते हैं
?यह आज भी रंगाई छपाई मीना कार्य व चित्रकला के लिए नाथद्वारा विख्यात है
?दिलवाड़ा के मंदिर ओसियां,नागदे के मंदिर धर्म के साथ-साथ तत्कालीन स्थापत्य कला के भी अच्छे नमूने हैं
?आमेर का जगत शिरोमणि का मंदिर भी इसी श्रेणी के मंदिर में आता है
?प्राचीन मंदिरों से तिथि कम का भी ज्ञान होता है,
?तिथि क्रम के अलावा इनसे किसी विशेष युग की धार्मिक भावना व देवालय निर्माण की स्थापत्य कला का पता लगाया जा सकता है
?पुरातत्ववेत्ताओं की दृष्टि में इन इमारतों के भग्नावेशों के विविध स्तर विभिन्न और विविध ऐतिहासिक निष्कर्ष निकालने में सहायक होते हैं          


??मूर्तिकला??
?मूर्ति कला का विकास भी राजस्थान में अति प्राचीन है इस कला के क्षेत्र में भी राजस्थान एक समृद्ध प्रदेश रहा है
?अमझेरा(डूंगरपुर)कल्याणपुर और जगत (उदयपुर) आम्बामेरी (जयपुर)मंडोर,ओसिया(जोधपुर) बांडोली(कोटा) बसेडी(धौलपुर) और सेंचुली(अलवर)स्थानों पर प्राचीन मूर्तियां प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुई है
?रंगमहल मुंडा पीर सुल्तान-री थडी(बीकानेर) में जो मूर्तिकला के अवशेष मिले हैं
?उनमें अपनी सजीवता, सादगी गति और तक्षण कला की विशेषताओं का स्पष्ट दर्शन है
?देवालयो के बाहरी और भीतरी भागों में अनन्त मूर्तियां निर्मित हैं
?यदि इनका सूक्ष्म रूप से अवलोकन किया जाए तो तत्कालीन धार्मिक और सामाजिक इतिहास के अनुसंधान में उनसे पर्याप्त सहायता मिल सकती है
?बारहवीं से चोदहवी सदी की जो मूर्तियां प्राप्त हुई है उनमें भय और विषाद स्पष्ट रूप से दृष्टव्य है
?अतः यह मूर्तियां तत्कालीन मुस्लिम आक्रमणकारियों के अत्याचारों और धार्मिक दमन को स्पष्ट करती है
?उदयपुर के जगदीश मंदिर की बाहरी दीवारों पर जो मूर्तियां देखने को उपलब्ध हैं वे राजस्थान की 15 वीं से 17वीं सदी के मध्य की जन-झाकीं को प्रस्तुत करती है
?16वी सदी की मूर्तियों के अंतःकरण इस बात को स्पष्ट दर्शाते हैं कि उच्च वर्गीय समाज मुगल सभ्यता से प्रभावित था
?इसीलिए कहा जाता है कि जिस प्रकार लेखनसामग्री इतिहास के शोध कलेवर को विस्तृत और समृद्ध करने में सफल रही है
?उसी प्रकार सर्जनात्मक मूर्तिकला भी उसका कलवेर को समृद्ध बनाने में सहायक सिद्ध हुई है.  




 ??चित्रकला??
?निसंदेह राजपूत चित्रकला मुगल चित्रकला से बहुत प्रभावित हुई है
?प्राचीन समय की चंचलता पूर्ण गतिशीलता का स्थान प्रोढ,गांभीर्यपूर्ण,मर्यादा प्रधान स्वरुप नें ले लिया
?तथापि राजपूत नरेशों के प्रासादों मे निखरी चित्रकला तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक प्रवृतियों को स्पष्ट रुप से प्रतिबिंबित करती है
?औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता से उत्पीडित हो मुगल दरबार के चित्रकार राजपूत नरेशों के संरक्षण में ही आ गए थे
?कोटा  न जोधपुर के भागवत चित्रों से सोलहवीं और सत्रहवीं सदी के मनोरंजन के साधन, वेशभूषा आदि पर अच्छा प्रकाश पड़ता है
?अतः स्पष्ट है कि राजस्थान की स्थापत्य व मूर्ति कलाएं यहां के सांस्कृतिक विकास पर स्पष्ट प्रकाश डालती है

इस प्रकार उपर्युक्त अवतरणों में राजस्थान के कतिपय परंतु प्रमुख ऐतिहासिक स्त्रोतों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है  इतिहासकारों ने इन साधनों का आश्रय लेकर ही राजस्थान के विस्मृत और धुंधला इतिहास को उजागर करने का प्रयत्न किया है इस क्षेत्र में हमें गौरीशंकर हीराचंद ओझा,कर्नल जेम्स टॉड, डॉक्टर दर्शथ शर्मा, डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए
जिनके शोधपूर्ण ग्रंथों और लेखों से ही राजस्थान के लुप्त ऐतिहासिक तत्व जनसाधारण के समक्ष प्रस्तुत होने लगे हैं तत्वों की प्रस्तुतिकरण का ही यह फल है कि आज राजस्थान के इतिहास के संदर्भ में अनेक शोध ग्रंथ प्रकाशित हो गए हैं और शोधकर्ताओं की रुचि इस दिशा में उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है

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