डॉ. भीमराव अंबेडकर | आधुनिक भारत का मनु | Dr. Bhimrao Ambedkar

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म -  14 अप्रैल 1891डॉ. भीमराव अंबेडकर | आधुनिक भारत का मनु
महापरिनिर्वाण दिवस (मृत्यु) - 6 दिसंबर 1956
लोकप्रिय नाम - बाबा साहेब

पुरूस्कार
भारत रत्‍न
बोधिसत्व

डॉ. भीमराव अंबेडकर की तीन मंत्र - 1. शिक्षित बनो, 2. संगठित रहो, 3. संघर्ष करो

शिक्षा
बीए., एमए., पीएच.डी., एम.एससी., डी. एससी., एलएल.डी., डी.लिट., बार-एट-लॉ
मुंबई विश्वविद्यालय, भारत
कोलंबिया विश्वविद्यालय, अमेरिका
लंदन विश्वविघालय

डॉ. भीमराव अंबेडकर का संक्षिप्त परिचय


इनको आधुनिक भारत का मनु कहा जाता है और भारतीय सविधान की निर्मात्री भी है, उन्होंने भारत के सविधान की रचना की श्री टी टी कृष्णमाचारी के शब्दों में अकेले ही सविधान का प्रारूप बनाना एक सराहनीय कार्य था, अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत का प्रथम विधि मंत्री बन यह सिद्ध कर दिया कि कोई ठान ले तो असंभव कार्य को भी संभव बनाया जा सकता है अंबेडकर समानता, न्याय और मानवता के लिए आजन्म जूझते रहे लेकिन प्रत्येक कदम पर उन्होंने इस बात को सामने रखा कि भारत की अखंडता पर किसी प्रकार की कोई आंच ना आए

बाबा साहेब का जन्म व शिक्षा


डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 को इंदौर के निकट (मध्यप्रदेश) में एक महार परिवार में हुआ उनके पिता जी रामजी राव मालोजी और माताजी भीमा बाई की 14वीं संतान थे, इनका जन्म का नाम भीमाथा, उनकी 6 वर्ष की आयु में ही उनकी माता जी का देहांत हो गया, उनके पिताजी अपने बच्चों को दोहे और भजन का पाठ कराते थे, उससे धार्मिक शिक्षा का भीम राव जी के मस्तिष्क एवं विचारों पर प्रभाव पड़ा | इनका बचपन दफौली और सतोरा में व्यतीत हुआ और अपनी प्रारंभिक शिक्षा इन्ही स्थानों पर प्राप्त की

भीमराव जी महार जाती के पहले बालक थे जिन्होंने मेट्रिक (1907) की परीक्षा पास की इसी उपलक्ष में उनके गुरुजी ने स्वरचित भगवान बुद्ध की आत्म चरित्र की पुस्तक उन्हें भेंट की, डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने सन् 1908 में कॉलेज में प्रवेश लिया शिक्षा के लिए बड़ौदा नरेश ने छात्रवृति स्वीकृति की,  2 फरवरी 1913 को उनके पिता जी का स्वर्गवास हो गया 1915 में उन्होंने अमेरिका में रहकर एम. ए. की परीक्षा पास की फिर पीएचडी की उपाधि प्रदान की उसके बाद वह 21 अगस्त 1917 को वापस मुंबई आ कर अपने सामाजिक जीवन का आरंभ करने लगे

लौहपुरूष डॉ. भीमराव अंबेडकर


बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर अक्सर पाश्चात्य वेशभूषा पहनते थे, लेकिन उनका हृदय विशुद्ध रूप से भारतीय था उनकी बुद्धि तीक्ष्ण थी, ह्रदय सागर की तरह गहरा और विशाल था। की राजनीति कॉलेज कल डॉक्टर अंबेडकर के विरोधी थी लेकिन उस विरोध के बावजूद भी डॉक्टर अंबेडकर जी के स्वभाव में  शालीनता दिखाई पड़ती थी और सारे लोगों की तारीफ किया करते थे, जिस प्रकाश में भारत के सम्पूर्ण इतिहास का मंथन किया गया वह प्रकाश स्वतंत्रता का प्रकाश था, उस मंथन से नई चेतना और जातीय प्रतिष्ठा को बल मिला जिसका सारा श्रेय अंबेडकर जी को जाता है

Also Read more - डॉ बाबा साह्ब भीमराव अंबेडकर(Dr. Baba Sahab Bhimrao Ambedkar)

अछूत कहे जाने वाले भारत की करोड़ों लाल अपनी टूटी फूटी छोपडियों में गुजर कर रहे थे, वे अपने जीवन में दुखों का भार उठाते चलें आए थे, उनके उन्हें अथक परिश्रम के बदले में प्रताड़ना दी जातीं थीं, सवर्ण लोग उन्हें दुत्कारते रहते थे ऐसे लोगों की लिए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मसीहा साबित हुई उन्होंने सभी अछूतों का कल्याण कर बेशुमार लोकप्रियता प्राप्त की, आंबेडकर जी ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण दिनों को अछूतों के कल्याण कार्यों में बिताया उन्होंने सारी परिस्थिति का गहन अध्ययन करने के बाद अछूतों के कल्याण का बीडा उठाया था

छुआछूत का पहला प्रसार व विद्रोह


समय तेज रफ्तार से गुजरता रहा था,अंबेडकर जी 5 वर्ष के हो चुके थे, एक दिन में अपने बड़े भाई के साथ बैलगाड़ी में बैठकर कहीं जा रहे थे, तभी गाड़ी वन को पता चला कि दोनों बालक महार जाति के हैं, उसने उन्हें बीच रास्ते में ही गाड़ी से उतार दिया और दोनों बालकों को पैदल ही अपने गंतव्य की ओर जाना पड़ा | शाम को वह घर वापस आए और रोने लगे और अपने पिताजी को बताया कि गाड़ी वाला हमें अछूत कह रहा था और उसने हमें बीच रास्ते में ही छोड़ दिया |

तभी उनके पिताजी ने कहा अछूत कह कर उसने तुम्हारा अपमान किया है तुम्हें उस अपमान का बदला उच्च शिक्षा साथ करके उच्च वर्ग में बैठ कर लेना है और पिता ने सजल नेत्रों से अपने पुत्रों को गले से लगा लिया इस पर दोनों बालकों दृढ़ निश्चय किया कि वे उच्च शिक्षा का करेंगे और उच्च वर्ग में बैठकर मान-सम्मान भी अर्जित करेंगे और यही से उनका छुआछूत के विरुद्ध सफर शुरु हो गया, डॉ. भीमराव अंबेडकर कठिन परिश्रम और कठोर संघर्ष के बल पर धीरे-धीरे प्रगति करते गए परंतु वह एक सत्य जानते थे कि जब तक वह अछूत समझे जाते रहेंगे समाज में उन्है स्थान नहीं मिलेगा, उन्होंने देश के सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास पर अध्ययन किया, उन्होंने दलित वर्ग की लोगों में जागृति लाने का प्रयास किया और उन्होंने आंदोलन चलाया, उनका विरोध छुआछूत से नहीं बल्कि जातिवाद वर्ण भेद के खिलाफ था

Important Notes and Test Series 



अंबेडकर जी ऐसे एकमात्र व्यक्ति थे, जिन्होंने अस्पृश्यता से उत्पन्न होने वाली न्रियोग्ताअो को सहन किया और योद्धा बनकर समस्या पर विचार करके उनका निराकरण करने का संकल्प लिया उन्होंने सभी में आत्मसम्मान स्वावलंबन की लौ जगाने के लिए | तीन सूत्री मंत्र दिया और अस्पृश्य जातियों में आंतरिक संयोग और एकता की भावना पैदा करने के लिए और हीन भावनाओं को नष्ट करने का प्रयास किया

"हम आदि से अंत तक भारतीय है" - डॉ. भीमराव अंबेडकर



डॉ. भीमराव अंबेडकर का राजनीतिक चिंतन


अंबेडकर जी एक राजनीतिक दार्शनिक नहीं थी वे योद्धा थे जो अपने अस्पर्श समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे, डॉक्टर अंबेडकर के राजनीतिक विचार -

1. राज्य का स्वरुप


अंबेडकर राज्य के स्वरूप बारे में लोक कल्याणकारी व राज्य के समर्थकों से मिलते रहते थे उन्होंने समाज के दलित शोषित और असहाय वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए सकारात्मक कदम उठाएं जिससे ऐसे सामाजिक प्रणाली स्थापित हो जो स्वतंत्रता, समानता, भ्रात्तव के सिद्धांत पर आधारित हो

2 शासन प्रणाली का स्वरुप


डॉ. अम्बेडकर जी ने संसदीय शासन प्रणाली का समर्थन किया उनके अनुसार इस ऐसी खुली प्रणाली हो कि निर्णयों पर जनमत का सीधा का प्रभाव पड़े जिससे ऐसी संस्थागत और प्रक्रियागत व्यवस्थाएं हो कि शक्तियों का दुरूपयोग ना हो, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने ग्रंथ "स्टेटस एंड माइनॉरिटी" में अल्पसंख्यको के हितो की रक्षा के लिए निम्न व्यवस्थाओं का उल्लेख किया

बहुमत को सरकार निर्माण का अधिकार तो हो परंतु उसे अल्पमत के हितों की अपेक्षा करने का अधिकार ना हो, अल्पसंख्यक के विश्वास पात्र प्रतिनिधियो को बहुमत की कार्यपालिका में प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था हो, कार्यपालिका की स्थिरता को सुनिश्चित किया जाए ताकि कुशलता बनी रहे, कार्यपालिका व व्यवस्थापिका का नियंत्रण सैद्धांतिक व वास्तविक दोनों प्रकार का हो
 

मेरे नाम की जय-जयकार करने से अच्‍छा है, मेरे बताए हुए रास्‍ते पर चलें।" - डॉ. भीम राव अम्बेडकर
जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती वह कौम कभी भी इतिहास नहीं बना सकती  - डॉ भीम राव अम्बेडकर



3. बालिग (वयस्क) मताधिकार


अम्बेडकर जी का कहना कि इंसान भले ही अनपढ़ हो फिर भी वह समझदार होता है केवल गरीबी की वजह से कोई अपने राज्य का प्रतिनिधि ना चुन सके यह उसके साथ बड़ी बेइंसाफी हो,

4. प्रजातंत्र एवं उसे यथार्थ बनाने हेतु शर्तें


वे प्रजातंत्र का समर्थन करते थे शासन का स्वरुप नहीं समझते पर थे, बल्कि इसे परंपरा आदर भाव, सम्मानपूर्वक जीने का ढंग भी समझते थे उन के अनुसार शासन प्रणाली ऐसी हो कि जिसमें समाज की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था को जाती, रंग, संपति,लिंग, व धर्म के भेदभाव के बिना शांतिपूर्ण ढंग से क्रांतिकारी परिवर्तन लाये जा सकते हो

5. राष्ट्रभाषा व भाषायी राज्य

अंबेडकर जी क्षेत्रीय भाषाओं के पक्ष में थे परंतु उन्होंने राष्ट्रभाषा के रुप में हिंदी का ही समर्थन किया उनका मानना था कि यदि हम अपनी सांस्कृति को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो सभी का कर्तव्य है कि अपने राष्ट्र की एक मात्र भाषा हिंदी माने
गया

6. पाकिस्तान का प्रश्न


अंबेडकर जी की रचना "थॉट्स ऑन पाकिस्तान 1940" में प्रकाशित हुई, उन्होंने अपनी इस बुक में बताया कि भारत के हिन्दूओं को शांति से जीने के लिए भारत के हिंदुस्तान व पाकिस्तान के भाग कर देने चाहिए और उनका यह मानना था कि केंद्रीय शासन सशक्त करने के लिए भारत का विभाजन आवश्यक है और उनकी यह दूर की सोच सही साबित हुई 1947 में भारत का विभाजन हो गया

"मनुष्य एवम उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिये | अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा तो किन्ही और मानको का कोई मूल्य नहीं रह जायेगा" - डॉ. भीम राव अम्बेडकर

महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर जी


महात्मा गांधी व अंबेडकर जी दोनों में समान बाते थी, वे दोनों ही अस्पृश्य जातियों की सेवा करना चाहते थे, दोनों का प्रयास उनका उत्थान व सामाजिक न्याय दिलाना था डॉक्टर आंबेडकर ने अस्पर्शयो को एक 3 सूत्री मंत्र दिया था - शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो । यदि गांधी जी ने देश वासियों की विदेश शासन की परतंत्रता से मुक्ति का मार्ग दिखाया तो अंबेडकर ने अस्पर्श जातियों को उच्च वर्ग की पराधीनता से मुक्त होने के लिए संघर्ष का मार्ग दिखाया दोनों के विचार और कार्य कुछ भाग में दूसरे के पूरक थे

बाल गंगाधर तिलक व डॉ अम्बेडकर(Bal Gangadhar Tilak and Dr. Ambedkar)



बौद्ध धर्म की दीक्षा


कांग्रेस का रूख और हिंदुओं का आचरण देखकर डॉक्टर अंबेडकर का मन टूटता जा रहा था अछूत होकर भी हिंदू बने रहने की, उनकी विचारधारा अंदर ही अंदर सूखने लगी थी । डॉक्टर अंबेडकर ने ईसाई और मुस्लिम धर्म की बजाय बौद्ध धर्म को स्वीकार किया, इसका कारण था कि बौद्ध धर्म में वे बुनियादी बातें पायी गयी थी जो उनके विचारों के अनुकूल थी उनका मानना था यदि किसी समाज में मनुष्य की इच्छा पूर्ति के साधन नहीं है, उनको जीवन में दुख और पीड़ा से राहत नहीं मिल रही है तो उसके लिए सब कुछ बेकार है, ऐसे में बौद्ध धर्म ही उन कमियों को पूरा कर सकता था, चरित्र सबसे ऊंचा होता है यह स्वस्थ समाज की बुनियाद है, इन्हीं बातों को आधार मानते हुए डॉक्टर अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया।

मूर्ति पूजा के विरोधी


डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को मिथ्याचार आडंबर और भ्रष्टाचार से सख्त नफरत थी, वे धर्म के नाम पर किसी प्रकार के ढोंग -ढपोसले को कतई पसंद नहीं करते थे, उनके दिल में धर्म को लेकर एक साफ तस्वीर थी, उनका मानना था कि धर्म को व्यक्तिगत जीवन तक सीमित रखना ही श्रेष्ठकर होता है यह जरुरी नहीं है कि कोई व्यक्ति धर्म को जनसाधारण के जीवन का अंग बनाएं, जीवन के क्षेत्रों में प्रत्येक मनुष्य के साथ अच्छे संबंधों को स्थापित करना ही धर्म का सदाचरण कहलाता है

अच्छे संबंधों की हमेशा जरुरत होती है बिना इनके समाज का विकास नहीं हो सकता, डॉक्टर अंबेडकर राजनीतिक चेतना के प्रतीक माने जाते थे वे राजनीति को जन जागरण की हथियार समझते थे उनका कहना था कि राजनीति को ऐसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए जिससे कि समाज के दलित वर्ग और शोषित वर्ग का कल्याण हो सके दलितों को उनके अधिकार दिलाने जा सके

अम्बेडकर जी के अनमोल वचन


मनुष्य एवम उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिये, अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा तो किन्ही और मानको का रस मूल्य नहीं रह जायेगा | जिस तरह हर एक व्यक्ति यह सिधांत दोहराता हैं, कि एक देश दुसरे देश पर शासन नहीं कर सकता, उसी प्रकार उसे यह भी मानना होगा कि एक वर्ग दुसरे पर शासन नहीं कर सकता।

  • भारतीयों पर दो भिन्न विचारधाराये शासन कर रही हैं एक तरफ राजनैतिक अर्थात देश जो उन्हें संविधान के तहत स्वतंत्रता, समानता और आदर्श की तरफ प्रेरित करती हैं और दूसरी तरफ धर्म जो इसके विरुद्ध इन सबका तिरस्कार करता हैं, 

  • ज्ञान का विकास ही मनुष्य का अंतिम लक्ष्य होना चाहिये

  • राजनैतिक शरीर के लिए कानून और व्यवस्था ही दवा हैं और जब भी राजनैतिक शरीर बीमार होता हैं उसे क़ानून और व्यवस्था की दवा ही लगती हैं

  • किसी भी क्रांति की सफलता के लिए गुस्सा या जोश ही पर्याप्त नहीं हैं, जो जरुरी हैं वो हैं न्याय एवम राजनैतिक, सामाजिक अधिकारों में सच्ची आस्था

  • मैं उस धर्म को पसंद करता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का भाव सिखाता हैं
    एक महान व्यक्ति एक प्रख्यात व्यक्ति से एक ही बिंदु पर भिन्न हैं कि महान व्यक्ति समाज का सेवक बनने के लिए तत्पर रहता हैं |

  • जीवन महान होना चाहिये ना कि लम्बा

  • "किसी भी कौम का विकास उस कौम की महिलाओं के विकास से मापा जाता हैं" ~ डॉ. भीमराव अम्बेडकर


महाराणा कुम्भा की जीवनी | चित्तौड़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता

डॉ. भीमराव अंबेडकर का साहित्य एवं लेखन


वे प्रतिभाशाली व्यक्ति व झुझारू लेखक थे, अंबेडकर जी को 9 भाषाओं का ज्ञान था । उन्होंने उनके समकालीन राजनेताओं की तुलना में सबसे अधिक लिखा, वह हमेशा बहुत व्यस्त रहते थे फिर भी उनकी इतनी किताबें निबंध लेख व भाषाओं का संग्रह वाकई अद्भुत है, उनके ग्रंथ भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है, उनके द्वारा लिखित संविधान को "भारत का एक राष्ट्र ग्रंथ" माना जाता है भारतीय संविधान किसी भी धर्म ग्रंथ से कम नहीं है, भगवान बुद्ध और उनका धर्म यह उनका ग्रंथ भारतीय बौद्धों का धर्म ग्रंथ है

"जो धर्म जन्‍म से एक को श्रेष्‍ठ और दूसरे को नीच बनाए रखे, वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड़यंत्र है।" - डॉ. भीमराव अम्बेडकर



अंबेडकर जी की लिखी कुछ किताबें - 



  • हु वेर शुद्रा

  • द बुद्धा एंड हिज धम्मा

  • थॉट्स ऑन पाकिस्तान

  • आईडिया ऑफ़ ए नेशन

  • फिलॉसफी ऑफ़ हिंदूइस्म

  • गांधी एंड गांधीज्म

  • बुद्धिस्ट रिवोल्यूशन एंड काउंटर रेवोलुशन एंड एंशिएंट इंडिया


डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की कुछ विशेषताएं



  • पाणी के लिए आंदोलन करने वाले विश्व के महापुरुष

  • लंदन विश्वविद्यालय के 200 छात्रों में से नंबर वन का सम्मान पाने वाले पहले भारतीय

  • विश्व के 6 विद्वानों में से एक

  • लंदन विश्वविद्यालय में डी. एस. सी. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले व आखिरी भारतीय

  • अंबेडकर जी की वजह से ही भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना हुई

  • बाबा साहब ने अपने डॉक्टर ऑफ साइंस के लिए प्रॉब्लम ऑफ रूपीयह शोध भी लिखा था


जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है।" ~ डॉ. भीमराव अम्बेडकर

संविधान निर्माण


यह स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं में से एक है, इन्होंने अपना कार्य श्रेष्ठता, पांडित्य, विद्वता कल्पना शक्ति तर्क व अनुभव के आधार पर किया यह संविधान के जनक ही नहीं जननी है, ए.सहाय जी का कहना था कि स्वाधीनता का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है लेकिन इसे संहिता बद्ध करने का सेहरा जिन्हें बनेगा वह है कटु आलोचक के सिर, जो संविधान के महान शिल्पकार है, वह है डॉक्टर आंबेडकर

स्वतंत्रता के बाद अंबेडकर जी को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए अध्यक्ष बनाया गया, 26 नवंबर 1949 को राष्ट्रपति को उन्होंने लिखित संविधान सौंपा, इनके द्वारा तैयार किया गया संविधान नागरिकों को स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करने, जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभाव को गैरकानूनी करार दिया गया, महिलाओं के लिए सामाजिक अधिकार दिए गए, अनुसूचित जाति जनजाति को आरक्षित प्रणाली शुरू की गई

उन्होंने कहा कि मैं महसूस करता हूं कि संविधान साध्य है, यह लचीला है, पर साथ में इतना मजबूत भी है कि देश को शांति व युद्ध दोनों समय में जोड़ कर रख सके ।

राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy)

डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का योगदान


डॉक्टर अंबेडकर जी के विचार बहुआयामी थे, वह जाति से अछूत परंतु उनका जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं था जो उनके चिंतन से अछूता रहा हो उनके विचारों की छाप प्रत्येक क्षेत्र में हमें नजर आती है, चाहे संस्कृति, धर्म, समाज, राजनीति, कानून, संविधान, सभी में उनकी पेठ थी डॉक्टर अंबेडकर अदम्य साहस और उत्साह के धनी थे, वह लोगों के सामने हमेशा कुछ न कुछ नए विचार रखते थे, इस बात से भली भांति परिचित थे कि संसार परिवर्तनशील है प्रकृति का चक्र चलता रहेगा

उसे किसी को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए । जो धारणाए मानव के लिए हानिकारक कि उन्हें डॉक्टर अंबेडकर ने कभी नहीं अपनाया वह हमेशा उसी राह पर चलते रहे जो मनुष्य को विकास की ओर ले जाती है वे इस बात का निश्चय कर चुके थे की जाति ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाना है मनुष्य पर किए गए अत्याचार को रोकना है और इसी सोच के साथ उन्होंने अस्पृश्यता और जाति के ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाने की पूरी कोशिश की

"अपने भाग्य के बजाय अपनी मजबूती पर विश्वास करो"  
"मनुवाद को जड़ से समाप्‍त करना मेरे जीवन का प्रथम लक्ष्‍य है"  



डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु 


सन 1948 से अंबेडकर जी मधुमेह रोग से पीड़ित थे और उनका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन बहुत खराब होता चला गया अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धर्म को पूरा करने के 3 दिन बाद 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण नींद में दिल्ली में उनके घर पर ही हो गया और 7 दिसंबर को उनका मुंबई में बौद्ध शैली में अंतिम संस्कार किया गया, अंतिम संस्कार में उन्हें साक्षी मानकर करीब 10,00,000 अनुयायियों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली जो इतिहास में पहली बार हुआ

उनका स्मारक दिल्ली स्थित उनके घर पर स्थापित है।

1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया

भारतीय राजनीतिक चिंतन के इतिहास में उनका नाम अछूतों का मसीहा, देवदूत, समता पर आधारित भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता या आधुनिक मनु के रुप में हमें सदा स्मरणीय रहेंगे "आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता, समानता, और भाई -चारे को स्थापित करते हैं और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।" ~ डॉ. भीमराव अंबेडकर

नीचे दी गई अन्य महापुरुषों की जीवनी भी पढ़ें-



आपको हमारा यह प्रयास कैसा लगा, हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं। पोस्ट पढ़ने के लिए – धन्यवाद

2 Comments

Leave a Reply Cancel

Add Comment *

Name*

Email*

Website