मिट्टी अपरदन (मृदा संरक्षण) को रोकने के उपाय

मिट्टी अपरदन (मृदा संरक्षण) को रोकने के उपाय


पहाड़ी ढालों, बंजर और खाली पड़ी भूमि और नदियों के किनारे वृक्षारोपण करना ( Plantation) जिससे मिट्टी का अपरदन कम किया जाए
 भेड़ बकरियों की अंधाधुंध चराई पर नियंत्रण करना और उनके लिए चारागाहों का विकास करना
 उच्च ढालू भूमि में समोच्च रेखीय पद्धति से कृषि करना
 मरुस्थलीय क्षेत्र में मिट्टी को उड़ने से रोकने के लिए वृक्षों की पट्टियां (शेल्ट बेल्ट) लगाना
 बहते हुए जल का वेग रोकने के लिए खेतो में मेड़बंदी करना
 ऊंची भूमि पर टेढी-मेढी खेती और मैदानों में पढ़ती खेती की पद्धति अपनाना
 जिससे जल प्रवाह रोक कर मिट्टी अपरदन ( Soil erosion) को रोका जा सके
 जो मिट्टी जल द्वारा कट गई है उसे रोकने के लिए खेतों के ढाल की ओर आड़ी खाईया बनाना
 जोते हुए रक्षात्मक आवरण ( Protective cover) को बनाए रखने के लिए फसलों का हेर-फेर करना
 भूमि को कुछ समय के लिए पड़ती और खुली रखना
 खेतों की मेढ़ और ढालू भूमि की ओर समोच्च बनाते समय उस और जल प्राप्ति के अनुसार वृक्ष या झाड़ियों की कतार लगाना
 बहते हुए जल की मात्रा और भारीपन में कमी करना 

  1. इसके लिए पहाड़ीयो के ढाल पर अथवा ऊंचे-नीचे क्षेत्र में बहते हुए जल का संग्रहण करने के लिए छोटे छोटे तालाब बनवाना

  2. बाढ़ के समय नदियों का अतिरिक्त जल को रोके रखने के लिए विशाल जलाशय तैयार करना

  3. खेतों पर थोड़ी थोड़ी दूर पर ऐसे मेड़/बांध बनाना जो एकत्र जल को अनेक भागों में बांटकर जल का वेग कम कर सके 


 जल द्वारा होने वाली मिट्टी के कारण को रोकने के उपाय 


 भूमि को जोतने के बाद उसे वनस्पति से ढककर तेज बूंदों के आधात से बचाना
 भूमि पर ही पड़ी रहने वाली वनस्पति को स्वत:सडने दिया जाना
 जिससे भूमि की जल ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होकर मिट्टी का कटाव रोकने
 खेतों में लगातार पौधे या दाले बोने से मिट्टी का कटाव रोकना

राजस्थान भूमि विकास निगम 


 राजस्थान भूमि विकास निगम 1975 के अनुसार राजस्थान राज्य में भूमि के नुकसान और कृषि के उत्पादन में होने वाली क्षति को रोकने के लिए
 भूमि और जल संसाधनों ( Water resources) के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित करने की दृष्टि से
 भूमि विकास से संबंधित परियोजनाओं के निष्पादन हेतु
 राजस्थान भूमि विकास निगम ( Land development corporation) का गठन किया गया था
 वर्तमान में राज्य सरकार के निर्देशानुसार राजस्थान भूमि विकास निगम द्वारा वर्ष 1997-98 से राजस्थान राज्य में कृषकों को कृषि उपयोग हेतु कृषि निदेशालय द्वारा निर्धारित दरों पर जिप्सम वितरण का कार्य संपादित किया गया था  


 भूमि सुधार कानून


  राजस्थान राज्य में हरित क्रांति की नीति एवं व्यूह रचना से किसानों में कृषि के प्रति लाभ की प्रवृत्ति बढ़ी और कृषि कार्य को किसान एक उपयोगी धंधा मानने लगा
किसानों को खातेदारी अधिकार मिलने से जागीरदार -जमींदारों के शोषण से मुक्ति मिलने और उचित तथा तर्कसंगत lagaan निर्धारण जोतो कि सीमा निर्धारण आदि से किसानों का कृषि के प्रति रुझान बढ़ा
कृषक भूमि सुधार कानून से पूरी तन्मयता से कृषि कर राज्य के आर्थिक विकास (Economic Development) में सहयोगी बनने लगा
 सन 1949 में राज्य के गठन के समय 34648 गांव में से 60% जागीरदार प्रथा, 20% जमीदारी और विश्वेदारी प्रथा,20% क्षेत्र में ही मात्र रैयतवाडी प्रथा थी
इस कारण किसान का शोषण होता था, बेगार प्रथा प्रचलित थी मनमाने ढंग से लगान वसूला जाता था, बेदखली की प्रथा मौजूद थी,  लाटा प्रणाली प्रचलित थी
इस कारण से भूमि सुधार कानून बनाया गया
राजस्थान में शासन की भूमि सुधार नीति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य शोषण व सामाजिक अन्याय के समस्त तत्वों का विलोपन करना था 

इसके लिए निम्न नियम बनाए गए
 बेदखली से रक्षा ➖ राजस्थान (काश्तकार संरक्षण) अध्यादेश 1949 बना और काश्तकारों को भूमि का मालिकाना हक दिया
Lagaan नियंत्रण

  • सन 1951 में मनमाने ढंग से वसूल किए जाने वाले लगान में समानता लाने के लिए  राजस्थान उपज लगान अधिनियम 1951 लागू किया 

  • इस अधिनियम के अनुसार कुल उपज का अधिकतम छठा हिस्सा लगान के रूप में लिया जा सकता था

  • राजस्थानी काश्तकारी अधिनियम 1955 पास कर  सरकार ने कृषको को लगान की वसूली में शोषण के प्रति संरक्षण प्रधान किया गया था


जागीरदारी प्रथा का अंत

  • 1952 में राजस्थान भूमि सुधार व जागीर पूनर्ग्रहण अधिनियम 1952 लागू किया गया

  • जागीरदारों को मुआवजा व पुनर्वास अनुदान दिया गया

  • इस प्रकार जागीरदारों से कृषि योग्य जमीन को ले कर कास्तकारों में बांटी गई


जमीदारी एवं विश्वेदारी प्रथा का अंत ➖ राजस्थान में 1 नवंबर 1959 से भूमि मध्यस्थो की भूमिका को समाप्त करने के लिए राज्य सरकार ने राजस्थान जमीदारी एवं विश्वेदारी उन्मूलन अधिनियम 1959 लागू किया 

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम1955

  •  राजस्थान राज्य मे काश्तकारो को भूमि के स्वामित्व के अधिकार देने के लिए  

  •  भू-निर्धारण की सुरक्षा प्रदान करने

  •  बेदखली पर नियंत्रण करने

  •  लगान के न्यायोचित निर्धारण करने

  •  भूमि हस्तांतरण के अधिकार किसानों को देने 

  •  भूमि की रहन की अवधि 5 वर्ष से अधिक नहीं होने

  •  खातेदारी काश्तकारों को भूमि को किराए पर देने

  •  काश्कतारों से नजराना एवं बेगार लेने पर रोक लगाने

  •  कृषि भूमि पर काश्तकारों को आंशिक रूप से मकान बनाने की छूट देने आदि सुधार   हेतु  राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 लागू किया गया

  •  जिससे काश्तकारों की माली हालत में सुधार हुआ

  •  काश्तकार अपनी भूमि समझकर कृषि कार्य करने लगे



 भू-जोतों की अधिकतम सीमा निर्धारण 



  •  सन 1953 से प्रारंभ किया गया संशोधन 27 फरवरी 1973 को नए विधायक के रुप में सामने आया

  •  इसके तहत सिंचित क्षेत्र में भूमि की सीमा 18 एकड़ रेगिस्तानी क्षेत्र में 175 एकड़ निर्धारित की गई

  •  अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भूमि सीमाएं निर्धारित की गई

  •  वर्तमान सिंचित क्षेत्र में जोतो की अधिकतम सीमा 7.28 हेक्टेयर से 10.93 हैक्टेयर के बीच

  •  असिंचित क्षेत्र में 21.85 से 70.82हैकेटेयर के बीच निर्धारित की गई है​


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