मिट्टी की समस्याएं

मिट्टी की समस्याएं


 राजस्थान एक कृषि प्रधान राज्य है
 राजस्थान की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधानता मिट्टी पर ही निर्भर है
 मिट्टी में रासायनिक खादों ( Chemical fertilizers) के बढ़ते प्रयोग मिट्टी के कटाव सेम समस्या आदि के कारण राज्य की  मिट्टियां निरंतर अपने मौलिक गुण खोती जा रही है
 राज्य में खरपतवार (Weed) के कारण ही मृदा के जैविक तत्व निरंतर कम होते जा रहे हैं
 इन सभी कारणों से राजस्थान में मिटटी की प्रमुख समस्याएं उत्पन्न हो रही है 

1. मिट्टी अपरदन की समस्या 
 राजस्थान में मिट्टी अपरदन की समस्या प्रमुख है
 राजस्थान में लगातार मिट्टी का अपरदन हो रहा है
 मिट्टियों के अपरदन व अपक्षरण की समस्या को रेंगती हुई मृत्यु कहा गया है 
 प्राकृतिक और मानव शक्ति द्वारा किसी प्रदेश के मिट्टी आवरण को नष्ट करने की प्रक्रिया को  मृदा अपरदन कहते हैं
 इस प्रक्रिया मे प्रवाहित जल और हवा की मुख्य भूमिका होती है 

2. लवणीय व क्षारीय भूमी की समस्या 
 यह समस्या शुष्क तथा अर्ध शुष्क प्रदेशों के किसानों के सामने होती है
 लवणीय व क्षारीय भूमि की समस्या अधिकतर राजस्थान के पश्चिमी जिले में पाई जाती है
 इस कारण यह किसान अपनी भूमि से अनुमानित उपज नहीं प्राप्त कर पाते हैं कम वर्षा कम आर्द्रता  उच्च तापक्रम उच्च वाष्पीकरण व वाष्पोत्सर्जन इन प्रदान की विशेषता है
 उपयुक्त जलवायवीय कारक ही इन प्रदेशों मे लवणीय व क्षारीय भूमी व कुओं में खारा पानी बनाने हेतु उत्तरदायी होता है
 इस खारे पानी ( Salt water) को ही प्रदेश में खेती करने के काम में लिया जाता है
 इस कारण यहा लवणीयता व क्षारीयता की समस्या बढ जाती है
 लवणो की अधिकता से भूमि में पानी होते हुए भी पौधे पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं ले पाते हैं
 इसका कारण मृदा के घोल का रसाकर्षण दबाव बढ़ जाता है
 इस कारण पौधों की वृद्धि पर लवणो का विपरीत प्रभाव पड़ता है
 क्षारीय भूमि में सोडियम की अधिकता के कारण मिट्टी की संरचना बिगड़ जाती है
 जिससे भूमि में हवा व पानी का संचार सही रुप से नहीं हो पाता है
 परिणाम स्वरुप पौधों की उपज व वृद्धि कम हो जाती है
 सोडियम की अधिकता से भूमि का पी एच मान भी बढ़ जाता है
 जिसके कारण भूमि का पोषक संतुलन बिगड़ जाता है
 जिस कारण पौधे उचित मात्रा व अनुपात में भोजन प्राप्त नहीं कर पाते हैं 

3. राजस्थान में भू-अवक्रमण 
 मिट्टी अवक्रमण ( Soil degradation) से तात्पर्य है मिट्टी द्वारा अपने जैविक तत्व भौतिक बनावट और रासायनिक संरचना ( Chemical composition) को खो देने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी आने की प्रक्रिया को मिट्टी अवक्रमण कहते हैं
 राज्य में मिट्टी अवक्रमण की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है
 राजस्थान में  भू अवक्रमण निम्न कारणों से बढ़ रहा है
 भू-क्षरण द्वारा मिट्टी की ऊपरी सतह का नष्ट होना
 वन विनाश व अतिवृष्टि तेज अंधड से भू अपरदन
 भूमि में रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों और दवाई के लगातार प्रयोग से
 रंगाई छपाई उद्योग के रासायनिक तत्वो के बहाव से
 रासायनिक आणविक और उच्च क्षमता वाले विस्फोटकों के प्रयोग से
 महानगरों का कूड़ा करकट अपशिष्ट पदार्थ और मल मूत्रों का एक स्थान पर जमा होना
 ईंटों व चूने के भट्टो,उद्योगों व ताप बिजली संयंत्र से निकले हुए धुएँ व राख आदि से
 लवणीय क्षारीय समस्या भी भू-अवक्रमण का कारण है
 इन सभी कारणों से मिट्टी की गुणवत्ता में ह्यस होने से धीरे-धीरे मिट्टी अनुपजाऊ होती जाती है
 जिससे कृषि उत्पादन में भारी कमी हो जाती है
 भूमि से उत्पन्न होने वाले खाद्यान्नों फलों सब्जियों और अन्य कृषि जन्य पदार्थों में जहरीले तत्व उत्पन्न हो जाते हैं
 इन कारकों से पेड़-पौधे व वनस्पति नष्ट हो जाती है
 इस प्रकार भूमि में भूमि अवतरण के इन कारणों से जहरीले तत्व उत्पन्न होकर मानव के स्वास्थ्य और वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है

4. मिट्टी की जैविक शक्ति ( Biological power) में गिरावट 
 खनिज उर्वरकों की अधिक मात्रा तथा कीटनाशी रसायनों ( Insecticides) के निरंतर बढ़ते बोझ से मिट्टी की जैविक शक्ति का ह्वास हो रहा है
 मिट्टी की जैविक शक्ति के रूप में फफूंदी और शैवाल आदि सुक्ष्म वनस्पतियां Actinomycetes सूक्ष्म जीवाणु तथा केंचुए मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये हुए है
 यह सब मिलकर मिट्टी के पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण करते रहते हैं और मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखते हैं
 मिट्टी और पानी की जांच किए बिना अंधाधुन तरीके से उर्वरक और कीटनाशक रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है
 जिस कारण मिट्टी निरंतर खराब हो रही है
 रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी के लाभदायक जीवो का ह्वास हो रहा है

5. खरपतवार की समस्या 
 मिट्टी के पोषक तत्वों का शोषण अवांछित रुप से उगी हुई घास करती रहती है
 फसलो के साथ उग जाने वाले अनावश्यक पौधों और घास को खरपतवार कहते हैं
 इस समस्या का निदान खरपतवार को समय रहते उखाड़ना और फसलों में हेर-फेर करना है 

6. मरुस्थलीय प्रसार  
थार का मरुस्थल उत्तर पूर्व की ओर राजस्थान पंजाब हरियाणा और उत्तरप्रदेश में फेल रहा है
वनस्पति के अभाव व पवनों की गति के कारण यहां की मिट्टी उडकर उत्तर पूर्व की ओर बढ़ रही है
 मरुस्थलीय प्रसार एक गंभीर समस्या बन गई है
 मरूस्थल का फैलाव नहीं होकर मरुस्थलीकरण (Desertification)की प्रवृति बन रही है
 इसके दो कारण है पहला प्राकृतिक कारण और दूसरा मानवीय  कारण है
 इस समस्या के निवारण हेतु 1959 मेंCentral Arid Zone Research Institute (CAZRI ) की स्थापना जोधपुर में की गई थी
 यह संस्थान निरंतर मरुस्थलीय प्रसार को रोकने के लिए कार्य कर रही है
 अनेक शुष्क जलवायु के वृक्षों की खोज की गई है जैसे➖ होहोबा (जोजोबा) जैतून 

7. जलाधिक्य की समस्या 
 यह समस्या राजस्थान के उत्तर पश्चिमी और दक्षिण पूर्वी नहरी क्षेत्र में सबसे अधिक है
 जब किसी क्षेत्र में जल का स्तर फसल के जल क्षेत्र में स्थित मिट्टी की आर्द्रता को रोक देता है
 इस कारण मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी और Carbon dioxide की अधिकता हो  जाती है
 इससे भूमि सेम समस्याग्रस्त हो जाती है
 इस समस्या के निवारण हेतु ,जल निकासी की आवश्यकता है
 इस कारण खेतों में नालियां बनाई जानी चाहिए 

8. कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति का कम होना 
 विभिन्न प्रकार का अपरदन ,वर्षा की कमी और पोषक तत्वों की आपूर्ति नहीं होने से राज्य की  मिट्टी ऊसर एंव अनुपजाऊ होती जा रही है 

9. जलमग्नता/सेम की समस्या 
 राज्य में सेम की समस्या नहरी क्षेत्रों में जल के रिसाव जल का आवश्यकता से अधिक उपयोग जल निकास के अपर्याप्त प्रबंधन के कारण सेम की समस्या उत्पन्न होती है
 धरातलीय भाग पर जल प्लावन(जल भरा होने)से दलदलीय स्थितियां उत्पन्न हो जाती है यह  परिवर्तन की सेम की समस्या कहलाता है
 इंदिरा गांधी नहर गंगनहर चंबल नहर और अन्य नहरो से हो रही लगातार  जल रिसाव के कारण सेम की समस्या उत्पन्न हो रही है
 सेम की समस्या सर्वाधिक Hanumangarh जिले में घग्गर के मैदान में होती है
 इस प्रदेश में सेम की समस्या का कारण धरातल केे 8-10 फिट नीचे एक कठोर चट्टान के रूप में जिप्सम की परत का बिछा होना है
 सूरतगढ़ क्षेत्र में घग्घर नदी की बाढ के जल को रोकने के लिए जगह जगह पर  तालाब बनाए गए थे
 लेकिन इन तालाबो में लवणता की मात्रा ज्यादा होने से सेम की समस्या उत्पन्न हो गई और यहां पर हजारों हैक्टेयर भूमि बंजर बन गई ह

 चंबल सिंचित विकास क्षेत्र में 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1-1.5 मीटर की गहराई तक pvc पाइप लाईन डालकर अतिरिक्त जल की निकासी की जा रही है 

 सेम की समस्या को रोकने के निम्न उपाय हैं  

  • जिप्सम का उपयोग (Use of gypsum) करना 

  • यूकेलिप्टस के वृक्ष (Eucalyptus tree) लगाना 

  • भूमीगत नालियों (Ground drains) का निर्माण करना

  • किसानों को कम पानी में पकने वाली फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करना

  • जलमग्न क्षेत्र में वन और चारागाह उगाने के प्रयास करना


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