राजा राममोहन राय(Raja Ram Mohan Roy)

राजा राममोहन राय(Raja Ram Mohan Roy)


 राजा राममोहन राय का संक्षिप्त परिचय 
 ⚜जन्म-22 मई 1774 ईस्वी को 
⚜जन्म स्थान-हुगली जिले के राधा नगर गांव बंगाल
⚜पिता का नाम-राम कांत राय
⚜पिता-वैष्णव ब्राह्मण
⚜माता का नाम-तारिणी देवी ⚜माता-शाक्त परंपरा से संबंधित
⚜पत्नी का नाम-उमा देवी
⚜कर्म-क्षेत्र-समाज सुधारक
⚜भाषा का ज्ञान-अरबी, फारसी ,अंग्रेजी ,ग्रीक, हिब्रू, संस्कृत ,हिंदी ,अंग्रेजी ,
*⚜मूर्ति पूजा का विरोध-*15 वर्ष की आयु में
*⚜प्रारंभिक शिक्षा-बंगला भाषा में
⚜तिब्बत-बौद्ध धर्म का अध्ययन
⚜परिवार-बंगाली ब्राह्मण
⚜उपाधि-राजा(अकबर द्वितीय द्वारा)
⚜पूरा नाम-राजा राममोहन राय

⚜विशेष योगदान-सती प्रथा का निवारण, भारतीय समाज की कट्टरता, रूढ़िवादिता और अंधविश्वास को दूर करने व समाज सुधार हेतु प्रयास
⚜उपनाम-ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय प्रेस के जनक, भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत, आधुनिक भारत के जनक, प्रभात का तारा ,बंगाल में नवजागरण युग के पितामह ,भारतीय भाषाई प्रेस के प्रवर्तक ,
⚜1822 ईस्वी में-हिंदू कॉलेज की स्थापना(कोलकाता)
⚜1830ईस्वी में-इंग्लैंड यात्रा
*⚜मृत्यु-27 सितंबर 1833 में
⚜मृत्यु स्थान-इंग्लैंड के ब्रिस्टल शहर में
⚜राजा राममोहन राय की प्रतिमा-ब्रिस्टल,ब्रिटेन,ग्रीन कॉलेज
⚜राजा राममोहन राय की समाधि-आरनोस वेल कब्रिस्तान ब्रिस्टल नगर
⚜ब्रिटेन 27 सितंबर 2013- राजा राममोहन राय की 180 वीं पुंयतिथि
⚜मृत्यु का कारण-यात्रा के दौरान मेनिनजाइटिस हो जाने के कारण
⚜दाह संस्कार-शव को भूमि में समाहित अथवा दबा दिया गया था
⚜राजा राममोहन राय की समाधि का जीर्णोद्वार-अंग्रेज महिला काला कॉन्ट्रैक्टर द्वारा
⚜राजा राममोहन राय की दुर्लभ मूर्ति-हाथीदह से निर्मित
⚜राजा राममोहन राय के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि- सती प्रथा का निवारण

 राम मोहन राय(1774-1833)
⚜ राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है वह आने वाली संस्कृति और सभ्यता के विराट रूप में एक शिखर के सामान थे
⚜मानववाद के दूत और आधुनिक भारत के पुरखा और पिताथे
⚜राजा राममोहन राय द्वारा आरंभ किए गए हुए भारत में पुनर्जागरण पर टिप्पणी करते हुए 

""प्रोफेसर जे.एन. सरकार ने कहा था--यह एक गौरवमयी उषा का आरंभ था ऐसी जैसी संसार में कहीं और देखने को नहीं मिली एक वास्तविक पुनर्जागरण जो कुस्तुनतुनिया के पतन के पश्चात आया उससे कहीं अधिक विस्तृत था अधिक गहरा और अधिक क्रांतिकारी था""

   उपनाम
⚜बंगाल में प्रारंभ हुए सुधार आंदोलन का नेतृत्व राजा राममोहन राय ने किया
⚜इसीलिए इन्हें नवजागरण का अग्रदूत,सुधार आंदोलनों का प्रवर्तक,आधुनिक भारत का पिता, और नवप्रभात का तारा कहा जाता है

जन्म-प्रारम्भिक जीवन
⚜राममोहन राय का जन्म बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में 1774 हुआथा
⚜उनके पूर्वज जागीरदार थे और बंगाल के नवाब के यहां सेवा करते थे और उन्हें उपाधीया मिली हुई थी
⚜राजा राममोहन राय बचपन से ही तेज बुद्धि और स्वभाव से विद्रोही थे
⚜राजा राममोहन ने आरंभिक शिक्षा अपने ही नगर में प्राप्त की और बंगाल ,फारसी और संस्कृत में कौशल प्राप्त किया
⚜राजा राममोहन राय बहुभाषावाद थे इन्होंने अंग्रेजी ,फ्रेंच, ग्रीक, लैटिन ,जर्मन, और हिब्रू भाषाऐ सीखी थी
⚜ इन्होंने कुरान, बाइबल, हिंदी, और अन्य भारतीय धार्मिक मतों के धर्म शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था
⚜15 वर्ष की अवस्था में इनका एक लेख प्रकाशित हुआ था जिस में मूर्ति पूजा की आलोचना कीगई थी इस बात से इनके पिता से इनका मतभेद हो गया और इन्हें घर से निकाल दिया गया
⚜इस कारण 1790 में यह उत्तरी भारत के भ्रमण पर गए और उन्होंने बोध सिद्धांतों का परिचय प्राप्त किया उत्तरी भारत में इन्होंने नेपाल की यात्राकी थी
⚜अपनी उदारवादी शिक्षा से राममोहन हिंदू धर्म बौद्ध धर्म और इस्लाम धर्म के सिद्धांतों से परिचित हो गए
⚜1803 में राममोहन के पिता की मृत्यु के बाद यह कंपनी की सेवा में नियुक्त किए गए और जॉन दिग्बी(डिग्बी) के साथ दीवान के रुप में काम करने लगे
⚜जॉन दिग्बी ने इंहें अपना दीवान नियुक्तकिया दिग्बी के साथ उन्होंने 1814 तक कार्य किया इस दौरान जॉन दिग्बी ने राजा राममोहन राय को अंग्रेजी सिखाई और उनका परिचय उदारवादी और युक्तियुक्त विचारधारा से करवाया
?इन्होने एक ऐसी लेखन शैली विकसित की जिसकी प्रशंसा करते हुए ""बेंथम ने कहा था कि-इस शैली के साथ एक हिंदू का नाम न जुड़ा होता तो हम यह  समझते कि यह बहुत ही उच्च शिक्षित अंग्रेजी कलम से निकली है
⚜1814 में राममोहन कोलकाता में बस गए और लोक सेवा और सुधार के एक गौरवमय जीवन का आरंभ किया

राजा राममोहन राय की भारत के आधुनिकरण में भूमिका
⚜इनका हृदय पूर्व और पश्चिम के उत्तम तत्वों के संबंधमें लगा था जिसे वह समकालीन भारतीय स्थितियों में स्थापितकरना चाहते थे
⚜उन्हें सत्य ही भारत के आधुनिकरण के रूप में स्मरण किया जाता है क्योंकि उनके अत्यधिक और भिन्न भिन्न कार्यों से विशेषकर सामाजिक और धार्मिक सुधारों के कारण ,पश्चिमी शिक्षा पद्धति के प्रसार के लिए किए गए कार्य के कारण ,नागरिक अधिकारों के समर्थन के कारण, समाचार पत्र की स्वतंत्रता के समर्थन ,संसार में संवैधानिक आंदोलन के समर्थन के कारण, इस सभी के फलस्वरुप भारत में एक उदारवादी और विश्वमित्रता की भावना और आधुनिक विचारधारा का सूत्रपात हुआ

समाज सुधार के क्षेत्र में कार्य
⚜समाज सुधार के क्षेत्र में तो यह सत्य है राम मोहन राय प्रभात का तारा थे उनका उनका मुख्य उद्देश्य स्त्रियों के प्रति अधिक उत्तम व्यवहार प्राप्त करना था
⚜अमानुषी सती प्रथा को समाप्त करवाने के लिए जो प्रयत्न उन्होंने किए थे इतने विश्वविख्यात है कि उनका विवरण यहां देने की आवश्यकता नहीं है
⚜सती प्रथा इन के समय की सबसे ज्वलंत समस्या थी इसकी विरोध के लिए इन्होंने अपनी पत्रिका संवाद कौमुदी का उपयोग किया
⚜सरकार द्वारा 1829ई. में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाए जाने का स्वागतकिया और इस प्रक्रिया में रूढ़िवादियों द्वारा दायर याचिका का इंग्लैंड में भी विरोध किया गया था
⚜वह समकालीन लोगों से बहुत आगे थे जब उन्होंने स्त्रियों के लिए पुनर्विवाह का अधिकार मांगा तो उनके पक्ष में उत्तराधिकार के अधिकारों में भी परिवर्तन की मांग की
⚜वे बाल विवाह और बहुपत्नी विवाह को बंद करवाना चाहते थे इससे अधिक वह उनकी शिक्षा के पक्ष में थे क्योंकि उसके बिना उनके समाज में अच्छा स्थान प्राप्त करने की बात नहीं सोची जा सकती थी
⚜उन्होंने जातिवाद पर भी प्रत्यक्ष प्रहार किया उनके अनुसार जाति-पाति के कारण भारतीय समाज जड़ हो गया था और इससे लोगों की एकता और घनिष्टता में बाधापड़ती थी
⚜इन अनगिनत विभाजनों के कारण देश प्रेम की भावना उत्पन्न ही नहीं होती थी
⚜ राजा साहिब ने यह सुझाव दिया कि जाति पाति के बंधनों को हटाने के लिए शैव विवाहिक पद्धति अपनानी चाहिए

धर्म के क्षेत्र में राम मोहन राय के विचार
⚜राममोहन राय के विचार धर्म के मामले में उपयोगितावादी थे लोग ने धार्मिक बेंथम अनुयाई कहते थे
⚜वह धर्मों को भिन्न भिन्न आधारभूत सत्य से परखना नहीं चाहते थे बल्कि उनके सामाजिक लाभको देखते थे
⚜उनका बल नैतिक और सामाजिक तत्वों पर था जो सभी धर्मों में एक है इसीलिए वह सभी धर्मों की एकता पर बल देते थे
⚜धर्म से संबंधित इनका पहला ग्रंथ फारसी भाषा में तोहफत-उल-मुहदीन (एकेश्वरवादियों को उपहार) 1809ई. में प्रकाशित हुआ
⚜जिसमें उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया और एकेश्वरवाद को सब धर्मों का मूलबताया
⚜उनके विचारों ने ब्रह्म समाज के रुप में अपने आप को प्रकट किया ब्रह्म समाज का उद्देश्य उस शाश्वत,अप्राप्य और अचल ईश्वर की पूजाथा जो सभी धर्म कर सकते थे
⚜जैसा कि ब्रह्म समाज के प्रयास पत्र में स्पष्ट था उनका उद्देश्य संसार के सभी धर्मों की जाति,मत,देश इत्यादि के बंधनों से दूर एक ईश्वर के चरणों में लाना था
⚜ईसाई धर्म का भी इन पर प्रभाव था 1821 में इन्होंने कोलकाता यूनिटेरियन कमेटी स्थापित की
⚜1820 मे इन्होंने प्रीसेप्ट्स ऑफ जीसस लिखी जो 1823ई. में जॉन डिग्वी के प्रयत्नों से लंदन में प्रकाशित हुई
⚜इसमें इन्होंने ईसाईत्रयी (पिता-पुत्र-परमात्मा)अथार्थ चमत्कारित कहानियों का विरोध कर मात्र न्यू टेस्टामेंट के नैतिक तत्वोंकी प्रशंसा की
⚜इन्होंने उपनिषदों में व्यक्त आत्मा की अमरता के सिद्धांत को स्वीकार किया कंपनी की सेवा से त्यागपत्र देकर उन्होंने 1814-15 में आत्मीय सभा गठित की और 1816 में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की
⚜धर्म के क्षेत्र में ही इन्होंने 1827ई.के जूरी एक्ट का विरोध किया
⚜इस एक्ट में धार्मिक आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों में विभेद कियागया था

शिक्षा के क्षेत्र में राममोहन राय के विचार
⚜ राजा राममोहन राय शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी शिक्षा के पक्ष में थे उनके अनुसार एक उदारवादी पाश्चात्य शिक्षा ही अज्ञान के अंधकार से हमें निकाल सकती है और भारतीयों को देश के प्रशासन में भाग दिला सकती है
 इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने ""लार्ड एमहर्स्ट"" को दिसंबर 1823 को एक पत्र लिखा था
यदि अंग्रेजी संसद की इच्छा है कि भारत अंधकार में रहे तो संस्कृत शिक्षा से उत्तम कुछ नहीं हो सकता
लेकिन सरकार का उद्देश्य भारतीय लोगों को अच्छा बनाना है
⚜अतः सरकार को एक उदारवादी शिक्षा का प्रसार करना चाहिए जिसमें गणित, सामान्य दर्शन ,रसायन शास्त्र ,शरीर रचना और अन्य लाभदायक विज्ञान इत्यादि सम्मिलित हो
⚜निश्चित धनराशि से विदेशों से कुछ विद्वान भारत मे भर्ती किए जाएं और यहां कॉलेज खोलेजाएं
⚜राजा राममोहन राय स्त्री पुरुष दोनों के लिए आधुनिक शिक्षा पर जोर देते थे
⚜इसके लिए उन्होंने डच घड़ीसाज डेविड हेयर के सहयोग से 1817 में कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की और 1825 में वेदांत कॉलेज की स्थापना की थी

राजनीतिक क्षेत्र में राजा राममोहन राय के विचार
⚜राजनीतिक क्षेत्र में राजा राममोहन राय का विचार था कि अंग्रेजी साम्राज्य एक वास्तविकता है और वह समझते थे कि यह भारत के विकास में एक पुनर्जन्म देने वाली शक्तिके रूप में कार्य करेगा
⚜वास्तव में वह 19वीं शताब्दी के उदारवादी विचारको के अग्रदूत थे
⚜उनके अनुसार भारत को अंग्रेजी राज्य की कई वर्षों तक आवश्यकता रहेगी ताकि जिन  दिनों वह अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए प्रयत्नशील हो देश की अत्यधिक हानि न हो अथार्थ
⚜उनके अनुसार अंग्रेजों के अधीन ही भारत नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है और सभ्य संसार में अपना स्थानप्राप्त कर सकता है
⚜ राजा राममोहन राय ने उत्तरदायी सरकार की मांग नहीं की बल्की प्रशासन में बहुत से सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया
⚜जैसे की अधिक अच्छी न्यायपालिका ,कार्यकारिणी का न्यायपालिका से पृथकीकरण, भारतीयों की सेवाओं में  भर्ती और समाचार पत्रों की स्वतंत्रता इत्यादि पर जोऱ दिया

राजा राममोहन राय का भारतीय पत्रिका पत्रकारिता में योगदान
⚜ राजा राममोहन राय भारतीय पत्रकारिता के भी अग्रदूत थे इन्होंने बंगला भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदानदिया
⚜स्वयं बंगला व्याकरण का संकलन किया उन्होंने 1821 ईसवी में बंगाली पत्रिका संवाद कौमुदी का प्रकाशनकिया
⚜1822 ई. में फारसी भाषा में मिरात-उल- अखबार प्रकाशित किया और अंग्रेजी में ब्रह्मनिकल मैग्जीनभी निकाली थी
⚜1823 में ऐडम्स के प्रेस अध्यादेश से प्रेस की स्वतंत्रता का हनन हुआ
⚜इसके विरोध में राममोहन राय, द्वारिका नाथ टैगोर और अन्य लोगों ने एक वाद उच्चतम न्यायालय में दायर किया
⚜वाद खारिज हो जाने पर इन्होने प्रिवी कौंसिल में अपील की थी

भारत की स्वतंत्रता में राजा राममोहन राय का योगदान
⚜ राजा राममोहन राय स्वतंत्रता के उग्र प्रेमी और राष्ट्रीयता के कट्टर समर्थक  थे और यह प्रेम देश की सीमाओं से दूरतक फैला था
⚜1821 में नेपल्ज( इटली)में लोकप्रिय आंदोलन को दबा दिया तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने इस संध्या की नियुक्ति रद्द कर दी
⚜इसी प्रकार 1823 में स्पेनिश क्रांति अमेरिका में सफल रही तो उन्होंने इसकी खुशी में भोज देकर जश्न मनाया अथार्थ स्पेन में संवैधानिक सरकार स्थापित हुई तो इन्होंने कलकत्ता में इस अवसर पर समारोह किया था
बृजेंद्र नाथ  सील ने ठीक ही कहा है कि राजा साहिब ने अंतरराष्ट्रीय संस्कृति के और मानव इतिहास की सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रश्नों के समाधान करने की सोची.....वह आने वाली मानवता के भविष्यवक्ताबन गए थे

अकबर द्वितीय द्वारा राजा राममोहन राय को उपाधी 
⚜मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने 1830 में इन्हें राजा की पदवी से विभूषित किया था
⚜मुगल दरबार की ओर से उन्हें इंग्लैंडभेजा गया
⚜यह प्रथम भारतीय थे जो समुद्री मार्ग से इंग्लैंड पहुंचे और भारतीयों की मांगे ब्रिटिश सरकार के समक्ष रखी
⚜प्रिवी काउंसिल द्वारा सती प्रथा को अवैध घोषित करवाने में इनका महत्व पूर्ण योगदान था
⚜1833 में ब्रिस्टल (इंगलैंड) नामक स्थान पर उनकी मृत्युहो गई थी

राजा राममोहन राय के भारतीय सभ्यता से संबंधित विचार
⚜ भारतीय समाज में पाश्चात्य सभ्यता के प्रति अपनी प्रतिक्रिया भिन्न रूप से व्यक्त की थी
⚜एक और पुरानी परंपरा के लोग थे जिनमें राजे-रजवाड़े धार्मिक कट्टरपंथी थे, जो पाश्चात्य विचारधारा की सभी बातों में और अंग्रेजी नीतियों में केवल अनिष्ठ ही अनिष्ठदेखते थे
⚜दूसरी और बंगाली अतिवादी थे जिन्हें लोग प्राय: तरुण बंगाल दलभी कहते थे,जो अंग्रेजी पढ़ी लिखी पढ़ी थी जो पाश्चात्य विचार, सामाजिक मूल्य, ईसाईयत इत्यादि के प्रति बहुत श्रद्धा रखती थी और भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रति बहुत  घृणारखने लगी थी
⚜राममोहन राय ने दोनों के बीच का मार्ग चुना व  पाश्चात्य युक्तियुक्त विचार ,वैज्ञानिक विचारधारा ,मानव सेवा के प्रति बहुत श्रद्धा रखते थे
⚜लेकिन भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रति भी अनदेखीकरने को उद्यत नहीं थे
⚜पादरी प्रचारकों के प्रचार और दूर्वचन पूर्ण भाषा के प्रति उनकी प्रतिक्रिया बहुत कड़ी थी
⚜उन्होंने "बंगाल हरकारू"नामक मासिक पत्रिका में लिखा यदि "प्रज्ञा की किरण जिसके लिए हम अंग्रेजों के आभारी हैं से उसका तात्पर्य यांत्रिक कलाओं से है तो मैं सत्य ही उनके प्रति अपनी कृतज्ञता"" प्रकट करने को तैयार हूं
⚜लेकिन यदि वें विज्ञान ,साहित्य, धर्म के क्षेत्र की बात करते हैं तो मैं किसी प्रकार ऋणीनहीं हूं
⚜क्योंकि इतिहास को देखने से हम सिद्ध कर सकते हैं कि संसार मेरे पूर्वजों के प्रति अधिक ऋणी है
⚜ज्ञान के लिए जो पूर्व में आरंभ हुआ और बुद्धि की देवी की कृपा से हमारे पास एक दार्शनिक और विपुल भाषा है
⚜जो हमें उन देशों से भिन्न बना देती है जो वैज्ञानिक और भाव वाची विचारों को प्रकटकरने के लिए विदेशी भाषा की सहायता के बिना काम नहीं कर सकते हैं

 ब्रम्ह समाज की स्थापना
⚜ हिंदू धर्म के प्रति उनके आलोचनात्मक दृष्टिकोण को देखते हुए इनके ईसाई मित्रों ने उम्मीद की थी कि अंतत: ये इसाई धर्म स्वीकार कर लेंगे
⚜लेकिन ऐसा हुआ नहीं एक बार जब ये यूनीटेरियन चर्च से प्रार्थना करके लौट रहे थे उस समय ताराचंद चक्रवर्ती और चंद्रशेखर देव ने एक पृथक पूजा स्थल की स्थापना का जिक्र किया
⚜अतः 20 अगस्त 1828 को ब्रह्म सभा के नाम से एक नए समाज की स्थापना की जिसे बाद में ब्रह्म समाजकहा गया
⚜ब्रह्म समाज का उद्देश्य था राममोहन राय की मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में सुधार लाना
⚜इस समाज में प्रत्येक शनिवार को सायंकाल को सभी सदस्य एकत्रितहोते थे
⚜ब्रह्म समाज की अवधारणा एकेश्वरवाद ,आस्तिकता और आचार संबंधीबातों पर आधारित थी
⚜इसमें धार्मिक गुरु की आवश्यकता नहीं मानी गई
⚜ब्रह्म समाज द्वारा समाज सुधार का कार्य भी किया गया उन्होंने जाति व्यवस्था, बाल विवाह का विरोध किया
⚜राजा राममोहन राय स्त्रीयों की स्थिति को सुधारने के कट्टर समर्थक थे इन्होंने इसी समाज के द्वारा सती प्रथा का विरोध किया था

ब्रह्म समाज का विकास
⚜ राममोहन राय के 1830 में इंग्लैंड जाने पर उनकी अनुपस्थिति में ब्रह्म समाज का संचालन संचालन आचार्य रामचंद्र विद्या बागीशकरते रहे
⚜1833 में आचार्य रामचंद्र विद्या बागीश की मृत्यु के बाद इस समाज का नियंत्रण द्वारिका नाथ टैगोरके हाथ में आया था
⚜1846 में देवेंद्र नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज का नेतृत्व संभाला
⚜इसके पहले देवेंद्र नाथ टैगोर ने 1839 में तत्वबोधिनी सभा की स्थापना की थी साथ ही एक मासिक पत्रिका तत्वबोधिनी का भी प्रकाशनशुरू किया था
⚜उस समय राजेन्द्र लाल मिश्र, अक्षय कुमार दत्त और ईश्वर चंद विद्यासागर जैसे समाज सुधारक तत्वबोधिनीके सदस्य थे
⚜ ब्रह्म समाज का नेतृत्व संभालने के बाद उनका उद्देश्य ब्रह्म समाज को ईसाई और कर्मकांड वाद के प्रभावसे बचाना था
⚜इन्होंने अपने एकेश्वरवाद संबंधी विचारों को 2 जिल्दो में प्रकाशित करवाया
⚜1856 में यह पहाड़ी क्षेत्र में चले गए और ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशवचंद्र सेन के हाथ में आ गया था

केशव चंद्र सेन
⚜केशवचंद्र सेन ने अपने उदारवादी विचारों से इस आंदोलन को लोकप्रिय बना दिया
⚜इसकी शाखाएं शीघ्र ही इनके समय बंगाल के बाहर उत्तर प्रदेश, पंजाब और मद्रास में खोली गई
⚜1865 में बंगाल में ही इसकी 65 शाखाएं थी उनके उदारवाद के कारण ही शीघ्र ही ब्रह्म समाज में फूट पड़ गई
⚜क्योंकि ईसाई ,मुस्लिम, पारसी और चीनी धर्म पुस्तकों का पाठ इन सभाओं में किया जाने लगा
⚜देवेंद्र नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज के न्यासी की हैसियत से 1865 में केशव चंद्र सेन को आचार्य की पदवी से अपदस्थ कर दिया
⚜अब केशव चंद्र सेन ने एक नवीन ब्रह्म समाज का गठन कर लिया ,
⚜यही आदि ब्रह्म समाज बाद में भारतीय ब्रह्म समाज कहलाया
⚜जबकि देवेंद्र नाथ टैगोर का ब्रह्म समाज "ब्रह्म समाज" कहलाया
⚜इसमें सामाजिक सुधारों के अतिरिक्त स्त्रियों की मुक्ति ,मद्य निषेध  और दान देने पर अधिक बलदिया गया
⚜1870 इसी में केशव चंद्र सेन इंग्लैंड गए वहां से लौटने के बाद 1872 में उन्होंने सरकार को समझा-बुझाकर ब्रह्म विवाह एक्ट पारित करवाया
⚜जिसके द्वारा ब्रह्मा पद्धति से हुए विवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गई
⚜1878 में भारतीय ब्रह्म समाज में एक और फूट पड़ गए जब केशव चंद्र सेन ने अपनी 12 वर्षीय पुत्री का विवाह बिहार के राजा के साथ वेदिक रीति-रिवाज से कर दिया
⚜शिवनाथ शास्त्री और आनंद मोहन बोस 1878 ई. साधारण ब्रह्म समाजकी स्थापना की
⚜आधुनिक भारत में ब्रम्ह समाज पहली मिशनरी आंदोलन था और केशव चंद्र सेन प्रथम मिशनरी थे
⚜जो इस धर्म का प्रचार करने के लिए भ्रमण करते रहे तीनों ही समाजों में उनकी तरह कोई प्रमुख नेता उत्पन्ननहीं हुआ

  वेद समाज
वेद समाज की स्थापना 1864 ई. में मद्रास में की गई थी इसके संस्थापक के.श्री धरालु नायडूथे
⚜इस समाज की स्थापना की प्रेरणा केशवचंद्र सेन से मिली थी
⚜केशव चंद्र सेन 1864 में मद्रास गए और वहां के लोगों को वेद समाज स्थापितकरने को प्रेरित किया
⚜इसके प्रारंभिक नेताओं में वी.राजगोपाल चारलु,सुब्रयल चेट्टी और विश्वनाथ मुदालियरप्रमुख थे
⚜इन संगठन के वास्तविक संस्थापक के.श्री धरालु नायडूथे
⚜उन्होंने कलकत्ता की यात्रा की वहा ब्रह्म आंदोलन का अध्ययन किया और मद्रास लौटकर 1871ई. में वेद समाज को दक्षिण भारत का ब्रह्म समाजकहा
⚜उन्होंने ब्रह्म समाज की पुस्तकों का तमिल और तेलुगु भाषा में अनुवादकिया था

राजा राममोहन राय के कार्यों का मूल्यांकन
⚜आलोचकों ने कहा है कि उनके समाज और धर्म के कार्य की सफलता सीमित थी
?प्रोफ़ेसर हीरेन मुखर्जी ने 19वीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण और 16 शताब्दी के यूरोपीय पुनर्जागरण की तुलना को मूलभूत रूप में अशुद्ध बतलाया है
⚜क्योंकि उस पुनर्जागरण से संसार का रुप ही बदल गया, राम मोहन ने पूर्व और पाश्चात्य का समन्वय बनाने का प्रयत्न तो अवश्य किया लेकिन यह समन्वय निम्न स्तर का था
⚜ जैसा की प्रोफेसर सुशोभन सरकार ने दिखलाया है कि सच्चा समन्वय  दोनों विरोधियों को मिलाकर एक तीसरे लेकिन अधिक अच्छे समन्वयमें होना चाहिए
⚜जो कि दोनों संस्कृतियों से अधिक अच्छा हो हमारे पुनर्जागरण में वह तीसरा और अधिक ऊँचा समन्वय कहां है
⚜यह स्वीकार करना पड़ेगा कि जैसा प्रत्येक युग के महापुरुषों के विषय में होता है कि वह अपनी सफलताओं से कहीं अधिक बड़े होते हैं
⚜समकालीन परिस्थितियों की सीमाओं को देखते हुए हम कह सकते हैं कि राजाराममोहनराय वास्तव में ही एक महान दृष्टि वाले व्यक्ति थे और समकालीन लोगों से बहुत ऊंचे और आगे थे

 राजा राममोहन राय के लिए कुछ चुने हुऐ विचार 
 रवींद्रनाथ टैगोर 
⚜अपने समय में राममोहन राय ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने आधुनिक युग के महत्व को समझा
⚜वह जानते थे कि मानव सभ्यता का आदर्श स्वतंत्रता के पृथकीकरण में नहीं बल्कि मनुष्य और राष्ट्र के अंतरनिर्भरता के भ्रातृत्व में है
⚜उनका यह प्रयत्न था कि हम अपने सांस्कृतिक व्यक्तित्व को पूर्ण रूपेण समझें और इस सभ्यता के अनूठेपन के अस्तित्व को जाने
⚜साथ-साथ यह भी प्रयत्न करें कि हम अन्य सभ्यताओं की ओर सहानुभूतिपूर्ण सहकारिता की भावना से बढ़े 

 सुमित सरकार 
⚜राममोहन की उपलब्धिया एक आधुनिकरण के रूप में सीमित और असंयूज़भी थी
⚜इस मूल्यांकन में उसके निजी व्यक्तित्व का मूल्य नहीं वह तो निसंदेह ही बहुत ऊँचा था
⚜अपितु काल की सीमाओं का जो आधारभूत थी,जिन्होंने एक संक्रमण को आरंभ किया
⚜जिसमें पूर्व पूजीवाद समाज पूर्ण रुप से बुर्जवा  आधुनिकरणमें नहीं बदला
⚜केवल उस दिशा में उसका एक नि:शक्त सा विकृत रूप वाला हास्यप्रद चित्रबन सका
जो की विदेशी दास्तां में संभव हो सका

 बरुण डे 
⚜राममोहन के राजनीतिक और आर्थिक विचारों की वही लोग सराहना करते हैं जो भारतीय उदारवाद के इतिहास की पूजाकरते थे
⚜लेकिन फिर भी यह संभव है कि हम उनके (विचारों क्) यथार्थ स्वरूप को भी देखने का प्रयत्न करें
⚜कि भारतीय उदारवादी बुर्जवा वाले लोगों ने उस बहुसंख्यक निर्धनता के प्रश्न को हल करने का कोई प्रयत्ननहीं किया
⚜जो साम्राज्यवाद ने उत्पन्न की थी जिससे राममोहन राय दूर नहीं हट सके
⚜यह उतना ही काला हे जितना की 18वीं शताब्दी का भारतजिसकी तुलना में राजा राममोहन राय की ब्रजेन्द्र नाथ सील, रविंद्र नाथ टैगोर ,सुशोभन चंद्र सरकार और अन्य लोगों ने उनकी सराहना की है
⚜अन्त मे यह कह सकते हैं की हरकारू के पास भी 1832 में कुछ सत्य था
⚜जब उसने हाउस ऑफ कॉमंस की समिति के सामने उनकी दी हुई गवाही के विषय में कहा था "जैसा कि एक स्पेन की लोकोक्ति में कहा है कि हमें इस संसार में हथोड़ा अथवा एरण बनना पड़ता है और राममोहन राय से स्पष्ट है कि वह हथौड़े की श्रेणी से थे लेकिन उन्हें एरण की श्रेणीमें माना जाता है

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