विदेशों में क्रांतिकारी आंदोलन(Revolutionary movement in abroad)

विदेशों में क्रांतिकारी आंदोलन


(Revolutionary movement in abroad)


भारत के राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों ने विदेशों में काम करने,अन्य देशों के क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित करने,भारत की स्वतंत्रता के बारे में वैध प्रचार करने और विदेशों से सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से विदेशों में आंदोलन के केंद्र स्थापित किए
?इनमें आंदोलन का केंद्र विदेशों में विशेषकर ब्रिटेन संयुक्त राज्य अमेरिका अफगानिस्तान जर्मनी और पेरिसआदि स्थलों को बनाया

लंदन➖इंडिया होमरूल सोसायटी
भारत के बाहर सबसे पुरानी क्रांतिकारी समिति इंडिया होमरूल सोसायटीथी
इसकी स्थापना श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 में लंदन में की थी
इंडिया होमरूल सोसायटी के संस्थापक श्याम जी कृष्ण वर्मा और उपाध्यक्ष अब्दुल्लाह सुहरावर्दी बने थे
श्याम कृष्ण वर्मा पश्चिमी भारत के काठियावाप्रदेश के वासी थे
उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी और बैरिस्टर बने
इन्होंने भारत लौट कर कई रियासतों में काम किया,लेकिन यहां पर अंग्रेज पॉलिटिकल रेजिडेंटो के आचरण से दुखी होकर
इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए कार्य करने का दृढ़ निश्चय लिया
उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र लंदन को चुना ,इस कारण श्यामजी कृष्ण वर्मा 1897 में लंदन में बस गए थे
श्याम जी कृष्ण वर्मा के पास भारतीय क्रांतिकारियों का एक समूह था
इस क्रांतिकारी समूह में वी डी सावरकर ,लाला हरदयाल और मदन लाल धींगराप्रमुख थे
श्याम जी कृष्ण वर्मा ने भारत के लिए स्वशासन की प्राप्ति के उद्देश्य से 1905 में इंडिया होमरूल सोसायटी (स्वशासन समिति) की स्थापना की गयी थी
इसकी स्थापना ब्रिटेन के समाजवादी नेता हिटमैन के सुझाव परकी गई थी
इस सोसाइटी को इंडिया हाउस की संज्ञा दी जाती थी

उन्होंने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक मासिक पत्रिका इंडियन सोशियोलॉजिस्ट निकालना प्रारंभ किया
इसमें इन्होंने स्पष्ट कहा है कि इन का उद्देश्य भारत के लिए स्वराज प्राप्त करना और ब्रिटेन में अपने पक्ष का प्रचार करना है

श्याम जी कृष्ण वर्मा ने लंदन में भारतीयों के लिए इंडिया हाउस नाम से हॉस्टल की स्थापना की बाद में यही इंडिया हाउस क्रांतिकारियो का केन्द्रबन गया था
उन्होंने विदेश आने वाले योग्यता प्राप्त भारतीयों के लिए एक 1000रु की 6 फेलोशिप भी आरंभ की थी
श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनके सहयोगीयों की बढ़ती हुई क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित हुआ
लंदन के द टाइम और अन्य समाचार पत्रों ने श्याम जी और उनके साथियों की आलोचना प्रारंभ कर दी
उसके बाद श्यामजी लंदन छोड़कर पेरिस में बस गए और इंडिया हाउस का राजनीतिक नेतृत्व वी०डी०सावरकरने संभाला
वी० डी० सावरकर जो पुणे के फर्गुसन कॉलेज के एक तरुण स्नातक थे
श्याम कृष्ण वर्मा की फेलोशिप का लाभ उठाकर यह भी जून 1906 लंदन चले गए थे

इन तरुण और उत्तेजित युवकों ने इंडिया हाउस को अंग्रेजी विरोधी और भारत समर्थक प्रचार का केंद्रबना लिया था
10 मई 1908 को इंडिया हाउस में 1857 के विद्रोह की स्वर्ण जयंती अथवा gadar दिवस मनाने का निश्चय किया था
सावरकर ने इस विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी
उन्होंने अपने यह विचार अपनी पुस्तक इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस 1857 में लिखी थी

कर्जन वायली की हत्या 1909
लंदन में 1 जुलाई 1949 को मदन लाल धींगरा ने इंडिया ऑफिस के राजनीतिक सलाहकार कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी थी
इस कारण अंग्रेजी सरकार ने कड़ा रुख अपनाया मदन लाल धींगरा को गिरफ्तारकर लिया और फांसी की सजा दे दी गई थी
इसके बाद  सावरकर को गिरफ्तार कर लिया और नासिर षड्यंत्र कांड और अन्य अन्य लोगों के मामले में मुकदमा चलाने के लिए उन्हें भारत भेज दिया गया और आजन्म निष्कासन का  दंड सुनाया गया इस कारण बंद करनी पड़ी

मैडम भीकाजी कामा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं में सबसे अग्रणी नाम मैडम भीकाजी कामाका आता है
भीकाजी कामा जो मैडम कामा के नाम से विख्यात है
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक ऐसा नाम है जिन्होंने भारत को परतंत्रता से मुक्त कराने के साथ साथ विदेशों में कांतिकारी आंदोलन में अहम योगदान दिया
इनका पूरा नाम मैडम भीकाजी रूस्तम कामा था
मैडम भीकाजी रुस्तम कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को मुंबई में हुआ था
यह भारतीय मूल की पारसी नागरिक थी
इन्होने लंदन जर्मनी और अमेरिका का भ्रमण करके भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया था .
यह जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का पहला तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए सुविख्यातहै
इनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित वंदे मातरम पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ था
1907 में जर्मनी के स्टर्टगाट में हुई अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेसमें मैडम भीकाजी कामा ने कहा था➖कि भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है
हमारे महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है
उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारत वासियों का आह्वानकिया कि➖ आगे बढ़ो हम हिंदुस्तानी हैं और हिंदुस्तान हिंदुस्तानियों का है
यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कॉन्फ्रेंस में वंदे मातरम अंकित भारत का पहला तिरंगा राष्ट्रध्वज पहली बार फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौतीदी थी

मैडम भीकाजी कामा लंदन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी और सहयोगी रही है

पारिवारिक स्थिति बहुत अच्छी थी,फिर भी इस साहसी महिला ने आदर्श और दृढ़ संकल्प के बल पर निरापद तथा सुखी जीवन वाले वातावरण को तिलांजलिदे दी
श्रीमती भिकाजी कामा का बहुत बड़ा योगदान साम्राज्यवाद के विरुद्ध विश्व जनमत जागृत करना और विदेशी शासन से मुक्ति के लिए भारत की इच्छा पूर्ण दावे के साथ प्रस्तुत करना था
भारत स्वाधीनता की लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने लंबी अवधि तक निर्वासित जीवन बिताया था
भिकाजी कामा हालाकि अहिंसा में विश्वास रखती थी लेकिन उन्होंने अन्याय पूर्ण हिंसा के विरोध का आह्वान भी किया

उन्होंने स्वराज के लिए आवाज उठाई और नारा दिया आगे बढ़ो हम भारत के लिए है और भारत भारतीयोंके लिए है

भीकाजी कामा में लोगों की मदद और सेवा करने की भावना भरपूर थी
1896में मुंबई में फ्लैग फेलने के बाद भीकाजी ने इसकी मरीजों की सेवा की थी
लेकिन बाद में यह खुद भी प्लेग की चपेट में आ गई थी

इलाज के बाद यह ठीक हो गई थी लेकिन इन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई
इस कारण भीखाजी कामा 1902 में लंदनगयी
लंदन में भी इन्होंने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिए काम किया
1907 में उन्होंने अपने सहयोगी सरदार सिंह राणा की मदद से भारत का पहला तिरंगा राष्ट्रध्वज का पहला डिजाइनतैयार किया था
जिस झंडे को मैडम भीकाजी कामा ने लहराया  यह भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वजआज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदारसिह के राणा के पुत्र और भाजपा नेता राजू भाई राणा के घर सुरक्षित रखा गया है
भीकाजी कामा अपने क्रांतिकारी विचार अपने समाचार पत्र वंदे मातरम और तलवारमें प्रकट करती थी
श्रीमती भिकाजी कामा की लड़ाई दुनियाभर के साम्राज्यवाद के विरोध थी
उन के सहयोगियो ने भीकाजी कामा को भारतीय क्रांति की माता मानते थे
जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात महिला ,खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी ,क्रांतिकारी ब्रिटीश विरोधी और असंगतकहते थे
यूरोप के समाजवादी समुदाय मे श्रीमती भिकाजी कामा का प्रयाप्त प्रभाव था
यह उस समय स्पष्ट हुआ जब उन्होंने यूरोपीय पत्रकारों के अपने देश भक्तों के बचाव के लिए आमंत्रित किया था
वह भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन के नाम से विख्यात थी
उनका चित्र  जॉन ऑफ आर्क के साथ आया यह इस तथ्य की भावपूर्ण अभिव्यक्तिथी
श्रीमती कामा का यूरोप के राष्ट्रीय और लोकतांत्रिक समाज में विशिष्ट स्थान था
भीकाजी द्वारा लहराए गए झंडे में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति के समेटने की कोशिश की गई थी

उसमें इस्लाम हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था और साथ ही इसमें बीच में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था

भीकाजी कामा अपनी निर्भरता के लिए पहचानी जाती है 

एक पारसी टिप्पणीकार ने उनके बारे में कहा था कि➖ उनका मन अपने आप में एक बालक की तरह अबोध है लेकिन एक महिला स्त्री के रूप में वह एक स्वतंत्र विचारों वाली गर्म मिजाज महिला है 

मैडम कामा को भारत की वीर पुत्री भी कहा जाता था
उनकी मृत्यु 13 अगस्त 1936 को हुई थी

अमेरिका में आंदोलन
19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में बहुत से भारतीय सयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में जाकर बस गए थे
1906 के आसपास इन भारतीयों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रवादी गतिविधियांशुरू कर दी थी
यह सभी ब्रिटिश शासन विरोधी सामग्री प्रकाशितकरने लगे थे
संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रमुख भारतीयों में द्वारका नाथ दास थे
उन्होंने 1907 में कैलिफोर्निया में भारतीय स्वतंत्रता लीग का गठन किया था
अगले वर्ष सै इन्होने स्वतंत्र हिंदुस्तान नामक समाचार पत्र प्रकाशित करने लगे
इसका उद्देश्य सयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले भारतीयों में क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करना था
इन सब गतिविधियों का परिणाम यह हुआ कि विभिन्न समय पर विभिन्न नेताओं के अधीन कई राजनीतिक संगठनों का उदय हुआ
नवंबर 1913 में सोहन सिंह भकना ने हिंदू असोसिएशन ऑफ अमेरिका की स्थापन की
उन्होंने 18 57 के विद्रोह की स्मृति में गदर नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया था
इसी कारण इस संगठन का नाम गदर पार्टीपड़ गया
इस संगठन ने सैन फ्रांसिस्को के युगांतर आश्रम से कार्य करना प्रारंभ किया
इसका नाम कलकत्ता से प्रकाशित सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी पत्रिका युगांतर के नामपर रखा गया था

गदर पार्टी आंदोलन अमेरिका
लाला ह्रदयलाल पंजाब के एक महान बुद्धिजीवी और प्रचंड अधिकारथे और gadar दल के प्राणथे
इन्होंने 1 नवंबर 1913 को संयुक्त राज्य अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को नगर में गदर पार्टी का गठनकिया था
गदर पार्टी के संस्थापक लाला ह्रदयलाल थे और इस पार्टी के उपाध्यक्ष सोहन सिंह बने थे
गदर पार्टी के प्रचार विभाग के सचिव लाला हरदयाल थे
इस दल के अन्य प्रमुख नेता रामचंद्र, बरकतुल्लाह ,रास बिहारी बोस, राजा महेंद्रप्रताप, अब्दुल रहमान और मैडम भीकाजी कामा थे
गदर पार्टी ने युगांतर प्रेस की स्थापना कर एक साप्ताहिक पत्रिका gadar नाम से प्रकाशित की
इस पत्रिका को 1857 के गदर की स्मृति में स्थापितकिया गया था
gadar ने अपने प्रथम अंक का प्रारम्भइस प्रकार किया➖ हमारा नाम क्या है gadar अथवा विद्रोह हमारा काम क्या है विद्रोह यह विद्रोह कहां होगा  भारत में
 यह पत्रिका उर्दू ,पंजाबी, मराठी,अंग्रेजी,हिंदी,गुजरातीमें थी
इसका एक अंक पख्तुनी भाषा में भी निकाला गया था
 इस पत्र का उद्देश्य भारतीय सेना में विशेषकर सिक्खों में विद्रोह की भावना पैदा करना और उन्हें भावी क्रांति के लिए तैयार करना था
?इस दल ने यह तथ्य सामने लाने का प्रयत्न किया की विदेश में भारतीय का सम्मान इसलिए नहीं होता क्योंकि हम परतंत्रहैं
अंग्रेजो के कहने पर अमरिका  प्रशासन ने लाला हरदयाल के विरुद्ध मुकदमाबना दिया और 1914 में लाला हरदयाल को अमेरिका छोड़ने के लिए बाध्यहोना पड़ा
लाला ह्रदयलाल के अमेरिका छोड़ने के बाद दल का कार्यभार उनके साथी रामचंद्रने संभाला था
इस दल का प्रभाव उस समय समाप्त हो गया है जब अमेरिका ब्रिटेन की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में सम्मिलित हुआ और इस दल को गैरकानूनी घोषितकर दिया

 स्वदेश सेवक गृह
स्वदेश सेवक गृह की स्थापना कनाडा में जी०डी० कुमार द्वारा की गई थी
जी०डी० कुमार ने गुरूमुखी में स्वदेश सेवक नामक अखबार भी निकाला था

यूनाइटेड इंडिया हाउस
यूनाइटेड इंडिया हाउस की स्थापना 1908 में सीएटल अमेरिका में तारक नाथ दास और जी०डी०कुमाके द्वारा की गई थी
तारक नाथ ने 1908 में कनाडा के बेकुवर में फ्री हिंदुस्तान नामक पत्र निकाला था 

हिंदी एसोसिएशन
हिंदी एसोसिएशन की स्थापना 1913 में पोर्टलैंड अमेरिकामे की गई थी
इसके संस्थापक लाला हरदयाल, सोहन सिंह भकना ,हरि नाम सिह, तुंडिलाट थे
रामनाथ पुरी ने कनाडा में इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता का प्रचार प्रसार किया
1907 में सर्क्युलर-ए- आजादी नामक पत्रिकाभी निकाली थी

जर्मनी मे आंदोलन

  • जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता की मशाल को जलाने का श्रैय मैडम भीकाजी कामा और लाला हरदयाल को जाता है 

  • लाला हरदयाल गदर आंदोलन पर प्रतिबंध लगने के बाद और प्रथम महा युद्ध के आरंभ होने पर अमेरिका से जर्मनी चले आए और यहां भारतीय स्वतंत्रता समिति की स्थापना की थी

  • जर्मन सरकार और क्रांतिकारियों के विचार विमर्श के ऊपर स्वरूप जिमर मेन योजना तैयार की गई थी इस योजना के तहत भारतीय स्वतंत्रता समिति का गठन किया गया था लाला ह्रदयलाल ने 1916 में बर्लिन में भारतीय स्वतंत्रता समिति की स्थापना की थी

  •  एस०एस०राणा के०आर०बनेतवाल और एम०पी०टी०आचार्य इस समिति के सहयोगी सदस्य थे.

  •  उनका उद्देश्य था कि विदेश में रहने वाले भारतीयों को भारत की स्वतंत्रता के लिए सभी प्रकार के प्रयत्न करने चाहिए .

  • जैसे भारत में स्वयंसेवकों को भेजकर भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार करना

  • भारतीय क्रांतिकारियों के लिए विस्फोटक पदार्थ भेजना

  • यदि संभव हो तो भारत का सैनिक आक्रमण करना इत्यादि भारतीय स्वतंत्रता समिति के प्रथम अध्यक्ष मंसूर अहमद थे


 अफगानिस्तान में आन्दोलन 

  • अफगानिस्तान में क्रांतिकारियों के काम को आगे बढ़ाने के लिए एक भारत जर्मन मिशन जिसमें राजा महेंद्र प्रताप बरकतउल्लाह और फॉन हैटिंग थे

  • 2 अक्टूबर 1915 को काबुल पहुंचा और अमीर हबीबुल्ला से मिला था

  • उनसे मिलने के बाद अफगानिस्तान में एक अस्थाई भारत सरकार की स्थापना हुई

  • राजा महेंद्र प्रताप ने अपने सहयोगी बरकतुल्लाह के साथ दिसम्बर 1915 में काबुल में भारत की प्रथम अस्थाई सरकार का गठन किया था

  • इसमें राजा महेंद्र प्रताप स्वयं राष्ट्रपति और बरकतुल्लाह प्रधानमंत्री थे इस जर्मनी और रूस ने मानयता दी  थी


कामागाटामारू प्रकरण 1914

  • पंजाब में प्रसिद्ध कामागाटामारू कांड में एक विस्फोटक स्थिति उत्पन्न कर दी थी

  • कामागाटामारू एक जापानी जहाज का जिसे पंजाब के गुरु दत्त सिह ने 1914 में हांगकांग के एक जर्मन शिपिंग एजेंट मिस्टर बूने के जरिए किराए पर लिया था

  • यह  1911 में हांगकांग पहुंचे

  • हांगकांग में उस समय 150 सिख थे जो कनाडा जाना चाहते थे

  • लेकिन कनाडा सरकार ने उन भारतीयों पर कनाडा में घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया जो भारत से सीधे कनाडा नहीं आए थे

  • 1913 में कनाडा के उच्चतम न्यायलय ने अपने एक निर्णय के तहत ऐसे 35 भारतीयों को देश के भीतर घुसने का आदेश दे दिया जो सीधे भारत से नहीं आए थे

  • इस निर्णय से उत्साहित होकर गुरुदत्त सिह ने कामागाटामारू नामक जहाज किराए पर ले कर उस पर 376 यात्रियों को बिठाकर जिसमें 25 मुसलमान और बाकी के सिक्ख है

  • हांगकांग से बेकूबर कनाडा के लिए रवाना हुए थे

  •  इस जहाज पर उपस्थित दो भारतीय क्रांतिकारियों भगवान शिव और बरकतुल्लाह ने जहाज में जोशीला भाषण देकर यात्रियों को भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत करने को कहा 23 मई 1914 को जहाज बैंकूवर पहुंचा लेकिन कनाडा के अधिकारियों ने जहाज उतरने की इजाजत नहीं दी इस कारण 27 सितंबर 1914 को जहाज पुनः कलकत्ता बंदरगाह लौट आया इन यात्रियों को विश्वास था कि अंग्रेज सरकार के दबाव के कारण ही कनाडा सरकार ने उन्हें वापस लौटाया है कनाडा में यात्रियों के अधिकारों से लड़ने हेतु हुसैन रहीम सोहन लाल पाठक और बलवंत सिंह के नेतृत्व मे एक शोर कमेटी या तटीय कमेटी गठित की गई थी अमेरिका में भगवान सिब बरकतुल्लाह रामचंद्र सोहन सिंह के नेतृत्व में यह आंदोलन चलाया गया इन का उद्देश्य केवल यही था कि यह लोग वहां जाकर एक स्वतंत्र जीवन का रसास्वादन करके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले लेकिन यात्रियों से भरे जहाज को कनाडा सरकार ने अपनी सीमा से बाहर कर दिया भारत की ब्रिटीश सरकार ने जहाज को सीधे कलकत्ता लाने का आदेश दिया जहाज के बज बज में पहुंचने पर यात्रियों और पुलिस के मध्य झड़ते हैं इस झड़प में 18 यात्री मारे गए और शेष को जेल में भेज दिया गया बाबा गुरुदत्त सिंह को भी गिरफ्तार करने का प्रयास किया गया लेकिन वह भाग गए थे असंतुष्ट व्यक्तियों और अन्य लोगों ने लुधियाना जालंधर और अमृतसर में बहुत से डाके डालें जो कि राजनीतिक प्रकृति के थे कालांतर में लाहौर षड्यंत्र मुकदमों से स्पष्ट हो गया था कि पंजाब में रक्त पात होते होते बचा                  


तोषामारू काण्ड-1914

  • तोषामारु एक जहाज था जिस पर गदर पार्टी के कुछ सदस्य लौट रहे थे यह जहाज सिंगापुर रूका था वहां पर क्रांतिकारी परमानंद के भाषण से अनेक भारतीय सेनिको में क्रांतिकारी भावना जागृत हुई सिंगापुर लाइट इन्फेंट्री के जवानों ने जमादार चिश्ती खाँ और डूंडे खाँ नेतृत्व में विद्रोह कर दिया इनके द्वारा अंग्रेजी सैनिक अड्डों पर कब्जा कर तिरंगा झंडा लहराया गया इसे सिंगापुर क्रांति के नाम से जाना जाता है 15 फरवरी 1915 को सिंगापुर में तैनात भारतीय बटालियन का विद्रोही क्रांतिकारक आर्य आंदोलन की मुख्य घटना थी भूपेंद्र नाथ दत्त के अनुसार पांचवी लाइट इन्फेंट्री का यह विद्रोह गदर पार्टी के प्रयासों का नतीजा था इसमें मूलचंद की मुख्य भूमिका थी 18 फरवरी को विद्रोह का दमन कर दिया गया गदर पार्टी ने अंग्रेजों पर आक्रमण करने के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई थी

  • श्याम योजना अंडमान पर अधिकार योजना बर्मा पर अधिकार योजना

  • लेकिन यह योजनाएं क्रियांवित हो उससे पहले ही इनका पता चल गया था

  •  उनसे संबंधित व्यक्तियों को पकड़कर दंडित किया गया

  •  बर्मा योजना से जुड़े लोगों पर मार्च जुलाई 1916मे मांडले षड्यंत्र केस चलाकर 17अभियुक्तो में से सात को मृत्यु दंड व पांच को आजीवन कारावास का दंड दिया गया

  • बर्मा में मृत्युदंड पाने वाले क्रांतिकारियों में सोहनलाल नारायण सिह हरनाम सिह सहरी और चालियाराम थे


सिल्क रेशमी पेपर षड्यंत्र 1915

क्रांतिकारी आंदोलन में देशभक्त मुस्लिम क्रांतिकारी भी शांत नहीं बैठे थे उन्होंने भारत से बाहर जाकर इस्लामिक राज्यों की मदद अपने देश की आजादी के लिए प्राप्त करने की कोशिश की थी मौलवी ओबेदुल्ला मौलवी मोहम्मद मियां अंसारी और मौलवी महमूद हसन इन क्रांतिकारियों में मुख्य थे मोहम्मद हसन ने हेजाज के तुर्की गवर्नर गालीवपाशा से अंग्रेजो के खिलाफ जिहाद की घोषणा करवाने में सफलता पाई इसे गालीवनामा के नाम से जाना जाता है मौलवी अब्दुल्ला सिंधी द्वारा कुछ पत्र लिखकर भावी योजना अफगानिस्तान से मोहम्मद हसन को पीली सिल्की पर फारसी भाषा में लिखकर भेजा गया मक्का के शरीफ और तुर्की के सुल्तान से मदद करने को कहा लेकिन इन पत्रों के पकड़े जाने पर इसे सिल्क या रेशमी पेपर षड्यंत्र के नाम से जाना गया प्रथम चरण का यह क्रांतिकारी आंदोलन असफल रहा क्योंकि अंग्रेजों द्वारा इनका शस्त्र दमन कर दिया गया इनके संगठन भी छिन्न-भिन्न और दुर्बल थे भारतीय जन समूह का भी इन्हे समर्थन प्राप्त नहीं हुआ था

अंग्रेजी सरकार के अधिनियम

अंग्रेजी सरकार ने देश में संचालित क्रांतिकारी गतिविधियों से निपटने के लिए कुछ अधिनियम लागू किए 1907 का राजद्रोही सभाओं को रोकने का अधिनियम 1908 का विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908 का ही भारतीय फौजदारी कानून संसोधन अधिनियम 1910 का समाचार पत्र अधिनियम और सबसे घिनौना अधिनियम 1915 का भारतीय सुरक्षा अधिनियम बना दिया गया प्रथम विश्व युद्ध के अंत में क्रांतिकारी गतिविधियों में कुछ समय के लिए विराम आया जब सरकार ने रक्षा अधिनियम के अधीन पकड़े गए राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया दूसरा भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा दिए गए सुधार लागू किए हैं 1919के अधिनियम द्वारा जो सुधार लागू किए गए थे उससे एक अनुरंजन का वातावरण बन गया था इस समय महात्मा गांधी एक राष्ट्रीय नेता के रूप में आगे आए थे उन्होंने अहिंसावाद से भारत को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया था इन सभी कारणों से देश में क्रांतिकारी गतिविधियों में कुछ धीमापन आया था

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