सीता माता अभ्यारण्य - प्रतापगढ़

सीता माता अभ्यारण्य - प्रतापगढ़


 स्थापना 1979 में
 क्षेत्रफल 422.95 वर्ग किलोमीटर 
 उपनाम उड़न गिलहरियों का स्वर्ग 
 चितल की मातृभूमि

 यह अभ्यारण्य राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में Pratapgarh जिले में स्थित है

जहां भारत की तीन पर्वत मालाएं अरावली विंध्याचल और मालवा का पठार 

आपस में मिलकर ऊंचे सागवान वनों ( Green forests) की उत्तर पश्चिमी सीमा बनाते है
Rajasthan के एकमात्र इसी अभयारण्य में सागवान वनस्पति पाई जाती है
 कर्ममोई (कर्म मोचनी) नदी का उद्गम स्थल सीता माता अभ्यारण्य है 

इसके अलावा जाखम टांकिया भूदो तथा नालेश्वर नमक नदियां इसी 

अभयारण्य से होकर बहती है

 ऐसा माना जाता है कि  त्रेता युग में सीता जी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया था उनके दो पुत्रों लव और कुश के नाम पर सदाबहार जल स्रोत स्थित है जिनमें गर्म और ठंडा जल पाया जाता है
 यहां सीता माता का मंदिर है जिसमें प्रतिवर्ष ज्येष्ट अमावस्या को मेला भरता है

 यह पाई जाने वाली उड़न गिलहरियों को स्थानीय भाषा ( Local language) में आशोवा

नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम रेड  फ्लाइंग स्किवरल 

पेटोरिस्टा  एल्बी वेंटर है

 यह अभयारण्य चौसिंगा के प्रमुख राष्ट्रीय स्थलों में से एक है यह

 चौसिंगा की जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है चौसिंगा एंटी लॉप प्रजाति 

का दुर्लभतम वन्य जीव हैं  जिसे स्थानीय भाषा में भेडल भी कहा जाता है

 यह जंगली मुर्गों के अलावा पेंगोलिन (आडाहुला) जैसा दुर्लभ वन्य जीव भी पाया जाता है
 इस अभयारण्य में आर्किड एवं विशाल वृक्षीय मकड़ीयां भी दर्शनीय है
 यह स्तनधारी (Mammal) जीवों की 50 उभयचरो की चालीस और पक्षियों की 300 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है
 भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां आते है

वृक्षों घासों लताओ और झाड़ियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की प्रमुख विशेषता है वही अनेकानेक दुर्लभ औषधीय वृक्ष अनगिनत जड़ी बूटियां अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय है

 सागवान वनों की नायाब संपदा से धनी इस अभयारण्य में ऐसे स्थान भी है जहां सूरज की किरण आज तक जमीन पर नहीं पड़ी

 प्रकृति प्रेमियों के बीच वनस्पतियों और पशु पक्षियों की विविधता के लिहाज से उत्तर भारत के अनोखे अभयारण्य के रूप में लोकप्रिय हो सकने की अनगिनत संभावनाओं से भरपूर किंतु अपेक्षित पर्यटक सुविधाओं के सर्जन और विस्तार के लिए यह सघन वन क्षेत्र अब भी पर्यटन और वन विभाग (Forest department) के पहल की बाट जोह रहा ह

 प्रकृति की इस अमूल्य धरोहर को क्षरण और मानवीय हस्तक्षेप (Humanitarian intervention) से बचाने के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान बनाने के लिए वर्तमान जिला प्रशासन (District administration) और वन विभाग के संयुक्त प्रयासों में तेजी आ रही है


Specially thanks to Post and Quiz Creator ( With Regards )


 शानू सीकर 


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