तृतीय गोलमेज सम्मेलन
(Third round table conference)
समय- 17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932
स्थान-लंदन
तृतीय गोलमेज सम्मेलन के विरोधी-भारत सचिव सर सेमुअल हॉक
प्रतिनिधियों की संख्या-46
तृतीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल नहीं किया गया-सरकार विरोधी लोगों को
अधिकांश प्रतिनिधित्व-उदारवादी और सांप्रदायिक
भारत शासन अधिनियम 1935-3 अगस्त 1935
- भारतीय राजनीतिक परिदृश्य की गतिविधियों से अबाधित ब्रिटिश सरकार ने अपना संवैधानिक सुधारों का कार्य जारी रखा
- 17 नवंबर 1932 को तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लंदन में किया गया
- भारत सचिव सर सेमुअल हॉक(होर) गोलमेज सम्मेलन के विरोधी थे
- इस सम्मेलन में केवल 46 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था
- सम्मेलन में ऐसे लोगों को शामिल नहीं किया गया जिनसे सरकार के विरोध की संभावना थी
- अधिकांश प्रतिनिधित्व उदारवादी और सांप्रदायिक थे दर्ज लैंसवरी के नेतृत्व में इंग्लैंड की लेवल पार्टी भी सम्मेलन में सम्मिलित हुई थी
- 24 दिसंबर 1932 को तृतीय सम्मेलन की समाप्ति पर एक श्वेत पत्र जारी किया गया था
- तीनो गोलमेज सम्मेलनों की समाप्ति पर ब्रिटिश सरकार द्वारा जो श्वेत पत्र जारी किया गया था इसमें तीनों गोलमेज सम्मेलनों के निर्माण को प्रकाशित किया गया था इसे वाइट पेपर भी कहा जाता है
- श्वेत पत्र पर विचार करने के लिए लॉर्ड लिनलिथगो की अध्यक्षता में ब्रिटिश संसद की संयुक्त समिति गठित की गई थी
- इस संयुक्त समिति ने 22 नवंबर 1934 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी
- संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर सेमुअल हॉक द्वारा 19 दिसंबर 1934 को भारत शासन विधेयक ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया
- 3 अगस्त 1935 को ब्रिटिश सम्राट ने भारत को अपनी सम्मति दे दी यह विधेयक भारत शासन अधिनियम 1935 के नाम से प्रसिद्ध हुआ
- इस सम्मेलन में कांग्रेस से भाग नहीं लिया था भारत में कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया था तृतीय गोलमेज सम्मेलन में विंस्टन चर्चिल ने गांधीजी को देशद्रोही फकीर कहा था
- तीनों गोलमेज सम्मेलन में भारत से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के द्वारा भाग लिया गया था
- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा गोलमेज सम्मेलन में दलित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयास किया गया था
भारत सरकार अधिनियम 1935
श्वेत पत्र के आधार पर 3 अगस्त 1935 को ब्रिटिश सम्राट द्वारा जो विधेयक पारित किया उसे भारत शासन अधिनियम 1935 के नाम से जाना जाता है
भारत शासन अधिनियम में निम्न बातें इस प्रकार थी
1. 1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतों में लागू द्वैध शासन (1919 के अनुसार) केंद्र में लागू कर दिया गया
2. 1935 के अधिनियम में केंद्रीय प्रशासनिक क क्षेत्र को आरक्षित व हस्तांतरित दो भागों में विभाजित किया गया है
?आरक्षित विषय-प्रतिरक्षा, वैदेशिक मामलों ,धार्मिक मामलों पर गवर्नर जनरल कार्यकारी पार्षदों की सहायता से शासन करता था
?हस्तांतरित विषय- हस्तांतरित विषय का शासन गवर्नर जनरल को मंत्रियों की सहायता से करना था
3. 1935 के अधिनियम द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया और अदन को ब्रिटिश भारत के नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया
4. बरार मध्य प्रांत में शामिल कर दिया गया और तो नये प्रांत उड़ीसा और बिहार का निर्माण हुआ
5. 1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतीय स्वायत्तता की सुविधा मिली
6. 1935 के अधिनियम द्वारा संघ की इकाइयों के आपसी विवाद केंद्र क्रांतिकारियों के विवाद को सुलझाने के लिए एक संघीय न्यायालय के स्थापना का प्रावधान किया गया लेकिन यह न्यायालय अपील का अंतिम न्यायालय नहीं था अंतिम न्यायालय प्रिवी काउंसिल था
7. 1935 के अधिनियम की व्यवस्था के आधार पर भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण किया गया था