?हमारा भारत विश्व के प्राचीनतम और महानतम देशों में अग्रगण्य रहा है
?इस देश की पवित्रता और रमणनीयता पर रीड कर ही देवता यहा अवतीर्ण होने की प्रबल लालसा करते हैं
?इसके ही मंगलमय प्रभात में अन्य देशवासी अपनी अलसाई आंखों को खोलते थे
?बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से यह देश सर्वोच्च था
?भारतवासी लेखन कला से भलीभांति परिचित हैं और अनेक विषय पर उन्होंने उत्तम कोटि के ग्रंथ रचे
?किंतु विश्व को सर्वप्रथम मानवता का पाठ पढ़ाने वाला यह भारत एक दिन विधि के क्रूर अट्टाहास का लक्ष्य बना
?इंग्लैंड वासियों ने यहां अपनी प्रभु सत्ता स्थापित कर यहां की संस्कृति को प्रतिबिंबित करने वाले साहित्य और इतिहास को श्री हीन कर दिया
?उसकी जगह मनगढ़ंत पिछड़ेपन का तथाकथित इतिहास रच-रचा कर कहा की वास्तविक गोरवपूर्ण स्थिति पर पर्दा डाल दिया
?यह प्रबाध भी फैलाया गया कि भारत का कोई इतिहास ही नहीं है अगर कहीं कुछ है भी तो उसमें तिथि और घटनाओं का क्रमिक और प्रमाणिक उल्लेख नहीं है
?मध्यकाल के प्रारंभ में आने वाले अलबरूनी ने लिखा है भारतीय ऐतिहासिक तिथि क्रम के प्रति उदासीन है जब उनसे कोई ऐतिहासिक तत्व पूछा जाता है तो वह जवाब नहीं दे पाते और कहानियां गढने लगते हैं
?पाश्चात्य विद्वानों का सदैव ही यह अापेक्ष रहा है की प्राचीन भारत का इतिहास जानने का कोई मूल स्त्रोत नहीं है
?एलफिस्टन का कथन है कि भारतीय इतिहास में सिकंदर के आक्रमण से पूर्व किसी महत्वपूर्ण घटना की तिथि निश्चित नहीं की जा सकती
?डॉक्टर कीथ इसी प्रकार के विचार रखते थे उनका कहना है कि नि:संदेश प्राचीन भारत में संस्कृत भाषा में अतुल्य अमूल्य साहित्य रचा गया है लेकिन संस्कृत विशाल साहित्य में इतिहास का प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता
?उस काल में एक भी लेखक ऐसा अभिभूत नहीं हुआ जिससे कि विश्लेषणात्मक इतिहासकार कहा जा सकता है
?इतिहास मानव समाज के अतीत जीवन का दर्पण होता है वह हमारे अतीत की घटनाओं का वर्तमान में सामंजस्य करता है
? इस दृष्टि से हमारा वैदिक साहित्य इतिहास के स्त्रोत रूप में खरा उतरता है
?डॉक्टर विमल चंद्र पांडे के अनुसार महाभारत, रामायण उपनिषद्, पुराण, बोद्ध धर्म ग्रंथ, जैन धर्म ग्रंथ और अनेकानेक ऐतिहासिक घटनाओं के कारण जानने में भारतीय उदासीन नहीं थे
?डॉक्टर आर पी त्रिपाठी के अनुसार प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के लिए भारतीयों का आध्यात्मिक ज्ञान प्रधान रहा है
?यदि तिथि क्रम के प्रश्न को उठा दिया जाए और धर्म का पूर्ण अध्ययन किया जाए तो भारतीय इतिहास जानने में कोई कठिनाई नहीं होती है
?विचार करने पर स्थूल रूप से इतिहास के दो पक्ष होते हैं
1⃣ पहला पक्ष बाह्या पक्ष है जिससे हमारा तात्पर्य किसी देश विशेष की भौगोलिक स्थिति से है
2⃣ इतिहास का दूसरा पक्ष आंतरिक पक्ष होता है जो राजवंश शासन प्रबंध ,सामाजिक ,धार्मिक, आर्थिक और साहित्यिक स्थिति से है
?अब जो पाश्चात्य इतिहासकार केवल तथ्यों को क्रमानुसार न प्रस्तुत करने के कारण ही हमारे प्राचीन ग्रंथों को इतिहास की श्रेणी में नहीं गिनते हैं
?उनसे हमारा केवल यही करना है कि भारतीय आदर्श के अनुसार इतिहास का उद्देश्य तिथियों और घटना चक्र का उल्लेख मात्र नहीं है
?बल्कि मानव जीवन के शाश्वत सिद्धांतों को महापुरुषों के जीवन में घटाते हुए राष्ट्र के सांस्कृतिक अवधि में पूर्ण योगदान देना भी है
?हमारे यहां इस उद्देश्य की पूर्ति स्वरूप पुराण ,रामायण और महाभारत सच्चे इतिहास का प्रतिनिधित्व करते हैं