भारत की खनिज सम्पदा ( Part 03 )

भारत की खनिज सम्पदा ( Part 03 )


कपड़ा उद्योग (Textile Industry)


 कपड़ा उद्योग का महत्त्वः
 भारत का सूती वस्त्र उद्योग देश का सबसे बड़ा ‘संगठित उद्योग’ है अतः संगठित उद्योगों में इसका प्रथम स्थान है।
 कपड़ा उद्योग भारत का कृषि के बाद सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला उद्योग है।
 यही एकमात्र ऐसा उद्योग है जो कच्चे माल से लेकर तैयार माल के उत्पादन (जैसे सिले सिलाए वस्त्र) तक पूरी तरह आत्मनिर्भर है। कपड़ा उद्योग का महत्त्व निम्न आंकड़ों से समझा जा सकता हैः
देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में कपड़ा उद्योग का अंशदान — 14%
सकल घरेलू उत्पादन में — 4%
कुल विनिर्मित औद्योगिक उत्पादन — 20%
कुल निर्यात में — 24.6%
कुल आयात खर्च में अंशदान — 3%
रोजाना सृजन की दृष्टि से इसका योगदान — 3.5 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
प्रो- बुकानन के अनुसार, ‘सूती वस्त्र उद्योग भारत के प्राचीन युग का गौरव है तथा भविष्य की आशा है। जिस समय, वर्तमान में विकसित देशों में सभ्यता की शुरूआत हो रही थी उस समय भारत का वस्त्र उद्योग अपनी कला, सुन्दरता एवं उपयोगिता के लिए प्रसिद्ध था।’

कपड़ा उद्योग की प्रारंभ से अब तक की स्थितिः
भारत में प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में फोर्ट ग्लोस्टर (कलकत्ता) में स्थापित की गई परंतु यह मिल अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर सकी।
भारत की दूसरी मिल ‘बंबई स्पिनिंग एंड वीविंग कम्पनी’ (Bombay Spinning and Weaving Company) बंबई में KGN Daber द्वारा सन् 1854 में स्थापित की गई। इसके बाद यह उद्योग लगातार विकसित होता रहा।
स्वतंत्रता के समय (13 अगस्त, 1947) भारत में कुल 394 सूती वस्त्र मिलें थी।
विभाजन के समय (14 अगस्त, 1947) 14 सूती वस्त्र मिलें पाकिस्तान वाले क्षेत्र में चली गई साथ ही कपास का उत्पादन करने वाले कुल क्षेत्र का 40% क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया। यही कारण है कि भारत को कपास के आयात के क्षेत्र में कदम रखना पड़ा।
भारत सरकार ने कपड़ा विकास और विनियमन आदेश (Textiles Development and Regulation Order, 1993) के माध्यम से इस उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया है।
देश का सूती कपड़ा उद्योग मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं गुजरात में केन्द्रित है।
नोटः भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन व सूती वस्त्र उद्योग के विकास के बीच बड़ा ही घनिष्ठ संबंध रहा है। बंगाल विभाजन (16 अक्टूबर, 1905) के विरुद्ध चले स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन (1920–22), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930–31), भारत छोड़ो आंदोलन (1942), आदि ने विदेशी वस्त्रें के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्त्रें का प्रचार करके सूती वस्त्र उद्योग के विकास में भरपूर सहयोग दिया।
कपड़ा मंत्रलय एवं कृषि मंत्रलय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ‘कपास प्रौद्योगिकी मिशन’ (Technology Mission of Cotton) का शुभारंभ 21 फरवरी, 2000 को किया गया। जिसके अन्तर्गत कपास अनुसंधान एवं विकास, विपणन तथा प्रसंस्करण से संबंधित 4 लघु मिशन शामिल है।
नोटः देश में सिले सिलाए वस्त्रें के निर्यात सवंर्द्धन के लिए एक वस्त्र पार्क (Apparel Park) की स्थापना तमिलनाडु में तिरूवर एट्टीवरम्पलायम गांव में की गई है। ₹ 300 करोड़ की अनुमानित लागत वाले देश के इस पहले वस्त्र पार्क का शिलान्यास 4 जुलाई, 2003 को किया गया। साथ ही इस गांव का नामकरण न्यू तिरूपुर किया गया है।

वस्त्र उद्योग के विकास के लिए सरकार ने निम्नलिखित योजनाएं प्रारंभ की हैं:
1 अप्रैल, 1999 को कपड़ा मंत्रलय द्वारा प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (Technology Upgradation Fund Scheme—TUFS) की शुरूआत।
नोटः यह योजना 11 FYP के दौरान भी जारी रखने की स्वीकृति दी गई है।
हथकरघा गतिविधियों के विस्तार हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए अप्रैल, 2000 से ‘दीनदयाल हथकरघा प्रोत्साहन योजना’ प्रारंभ की गई।
सरकार ने कपड़ा उद्योग की बुनियादी संभावनाओं के क्षेत्र के विकास के लिए अगस्त, 2005 में एकीकृत कपड़ा पार्क के लिए योजना (Scheme for Integrated Textile Parks—STIP) योजना लागू की गई है जिसके अन्तर्गत वर्ष 2007 तक 25SITP स्थापना प्रस्तावित है तथा जिसमें ₹ 18,550 करोड़ का निवेश किया जाएगा।

चीनी उद्योग (Sugar Industry)


चीनी उद्योग का महत्त्वः
 भारत में सूती वस्त्र के बाद ‘चीनी’ ही दूसरा सबसे बड़ा देश का कृषि आधारित उद्योग है। यह उद्योग अपने साथ कई सह उत्पादों (by products) से संबंधित उद्योगों को विकसित करने की क्षमता रखता है।

चीनी उद्योग का प्रारंभ से अब तक की स्थितिः
वर्ष 1950–51 में देश में कुल चीनी मिलों की संख्या 138 थी।
31 मार्च, 2008 के अंत में भारत में कुल चीनी मिलों को संख्या 615 थी जो 31 मार्च, 2009 के अंत तक बढ़कर 624 हो गई।
चीनी का उत्पादन वर्ष 2010–11 में रिकार्ड स्तर पर रहा। सरकार ने इस वर्ष के लिए 23 मिलियन टन उत्पादन रहने का अनुमान लगाया था जबकि ताजा आंकलन में यह उत्पादन 24.35 मिलियन टन रहने का अनुमान है। यह देश का अब तक का सर्वश्रेष्ठ उत्पादन है।
भारत में चीनी की वार्षिक खपत लगभग 23 मिलियन टन है। इस वर्ष उत्पादन 24–25 मिलियन टन के आस-पास रहने से इस वर्ष चीनी के निर्यात की भी संभावना है।
भारत में चीनी उत्पादन में महाराष्ट्र का प्रथम स्थान है साथ ही चीनी मिलों की सर्वाधिक संख्या महाराष्ट्र (134) में ही है।
विश्व रैकिंग में चीनी के उत्पादन में ब्राजील का प्रथम और भारत का द्वितीय स्थान है परंतु चीनी के उपभोग में भारत विश्व में शीर्ष स्थान पर है।
भारत में गन्ने की प्रति एकड़ उपज लगभग 15 टन है जो अन्य उत्पादक राष्ट्रों की तुलना में बहुत कम है।
भारत में उत्पादित गन्ने में चीनी का प्रतिशत 9% से 10% है जबकि अन्य राष्ट्रों में यह 13% से 14% तक है।

चीनी उद्योग की समस्याएं:
चीनी मिलों द्वारा कुल गन्ना उत्पादन का एक छोटा सा भाग ही प्रयुक्त कर पाना।
प्रति हेक्टेयर गन्ने की निम्न उत्पादकता।
उत्तम किस्म के गन्ने की कमी।
उत्पादन लागतों में वृद्धि।
मिलों के आधुनिकीकरण की समस्या।
मौसमी उद्योग।
अनुसंधान की कमी।
चीनी मिलों द्वारा कृषकों को गन्ने के मूल्य का पूरा-पूरा भुगतान न कर पाना।

महत्त्वपूर्ण सरकारी प्रयासः
20 अगस्त, 1998 से सरकार ने चीनी मिलों की स्थापना को लाइसेन्स मुक्त कर दिया।
केंद्र सरकार द्वारा गन्ने के मूल्य का निर्धारण करने के लिए सांविधिक न्यूनतम कीमत (Statutory Minimum Price—SMP) के स्थान पर उचित एवं लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price—FRP) को अपनाया गया।
चीनी उद्योग के विकास के लिए धन एकत्र करने हेतु 1982 में चीनी विकास निधि (Sugar Development Fund) की स्थापना की गई। यह कोष मिलों के आधुनिकीकरण एवं मिल क्षेत्रें में गन्ने के विकास के लिए आसान शर्तों पर ऋण प्रदान करने का कार्य करता है।
सरकार द्वारा चीनी के निर्यात को डिकनालीस (Decanalise) करने का निर्णय लिया गया है। जिसके अन्तर्गत चीनी मिलें सीधे ही चीनी का निर्यात कर सकेंगी।
नोटः इससे पहले चीनी के निर्यात का कार्य केवल भारतीय चीनी उद्योग और सामान्य निर्यात-आयात निगम (Indian Sugar and General Industry Export-Import Corporation—ISGIEIC) द्वारा संभव था।

महत्त्वपूर्ण संस्थानः
चीनी प्रौद्योगिकी के भारतीय संस्थान — कानपुर (उत्तर प्रदेश)
भारतीय चीनी अनुसंधान संस्थान — लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान — कोयम्बटूर (तमिलनाडु)

रत्न एवं आभूषण उद्योग (Gems and Jewellery Industry)


रत्न एवं आभूषण उद्योग का महत्त्वः
 वर्तमान में भारत द्वारा प्रमुख निर्यातित वस्तुओं में शीर्ष स्थान ‘रत्न एवं आभूषण उद्योग’ का ही है। इस क्षेत्र में भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन शृंखलाओं से जुड़ा हुआ है। जहां एक ओर भारत इन उद्योगों में प्रयोग होने वाले कच्चे माल का आयात, विदेशों से करता है तो दूसरी ओर तैयार रत्न एवं आभूषणों को निर्यात कर, विदेशी मुद्रा के अर्जन का कार्य कर रहा है।

वर्तमान स्थितिः
केंद्र सरकार द्वारा कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा, आदि राज्यों में बहुमूल्य रत्नों के खनन (Mining) में तेजी लाने की योजना बनाई गई है।
केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश में हीरों एवं अन्य बहुमूल्य खनिजों के अन्वेषण (Mining and Quarring) के लिए अनेक कम्पनियों को अनुमति प्रदान की है।
सरकार ने 1 अप्रैल, 2002 से अपरिष्कृत हीरों (Rough Diamonds) के आयात (Import) को लाइसेन्स मुक्त कर दिया है।
नोटः रत्न और आभूषण के मुख्य निर्यातक देश हैं—यू-एस-ए, हांगकांग, यूएई, बेल्जियम, इजरायल, जापान, थाइलैण्ड और यू-के
रत्न और आभूषण निर्यात के लिए मुख्य बाजार हैं—यू-एस-ए, हांगकांग, यूएई, बेल्जियम, इजरायल, जापान, थाइलैण्ड और यू-के

नोटः रत्नों व आभूषणों के निर्यात में सर्वाधिक भाग हैं:
तराशे हुए हीरो का।
स्वर्ण आभूषण का।
रंगीन नगीनों का।
भारत रत्न एवं आभूषणों का सर्वाधिक निर्यात अमेरिका को करता है।
भारत द्वारा कुल रत्न एवं आभूषणों का 70% भाग अमेरिका व यूरोपीय संघ को निर्यात किया जाता है।
विदेश व्यापार नीति (Foreign Trade Policy, 2009–14) के अनुसार, ‘भारत को हीरे का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बनाने के लक्ष्य से हीरा विनिमय (Diamond Exchange) को स्थापित करने की योजना है।

 

////// विजय कुमार महला झुन्झुनू//////

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