भारत के इतिहास व संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण शब्द और उनका अभिप्राय
हमारे द्वारा प्राचीन भारत के इतिहास की इस कड़ी में भारत के इतिहास व संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण शब्द जैसे राज्यभिषेक, राजसूय, वाजपेय, चरक, पांचरात्र आदि को बहूत ही सरल भाषा मे वर्णित किया गया है जिसे पढ़कर आप अपनी परीक्षा तैयारी बेहतर बना सकते है
राज्यभिषेक – राजपद से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण संस्कार था ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार इस अनुष्ठान का उद्देश्य प्रमोच्च शक्ति प्रदान करना था
राजसूय यज्ञ- सर्वोच्चता के अभिलाषी शासक यह यज्ञ करते थे जो लगभग 1 वर्षों तक चलता था और इसके साथ कई अन्य यज्ञ चलते रहते थे इसका वर्णन शतपथ ब्राह्मण में ह
वाजपेय यज्ञ- वाजपेय का अर्थ शक्ति का पान इसका उद्देश्य शासन को नव योवन प्रदान करना था तथा शासक की शारीरिक और आत्मिक शक्ति को बढ़ाना था
अश्वमेघ यज्ञ- यह यज्ञ और भी वितरित समारोह था इसका उद्देश्य राजा के राज्य का विस्तार करना और राज्य के लोगों को सुख तथा समृद्धि प्राप्त करना था
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चरक- चरक का अर्थ भ्रमणशील गुरु होता है इनका काम देश के विभिन्न भागों में घूमना और जनता के ज्ञान को बढ़ाना था यह जहां भी जाते लोग ज्ञान प्राप्ति की आशा में इनको घेर लेते थे उद्दालक आरूणि इसी प्रकार का चरक था कुषाणकालीन चरक ने चरक संहिता लिखी
ब्रह्मावादिनी – कुछ सुयोग्य और विदुषी स्त्रियों को ब्रह्मवादिनी कहा जाता था
लिपिशाला या लेखशाला- का अर्थ वह विद्यालय होते हैं जहां पर छात्र केवल दिन में पढ़ने आते हैं ऐसे विद्यालयो को लिपिशाला या लेखशाला कहते हैं
माणवक- वे छात्र जो आचार्य से धर्म ग्रंथ पढ़ते थे माणवक कहलाते थे
शतपति- सौ ग्राम वाले क्षेत्र का प्रशासक को शतपति कहा जाता था
रत्नी/रत्निन- मंत्री परिषद के सदस्य या राज्य अधिकारियों को रत्निन कहा जाता था शतपथ ब्राह्मण में इनकी संख्या 11 बताई गई है
स्थितप्रज्ञ- ऐसा व्क्ति जो सुख-दुख लाभ-हानि जय-पराजय आदि प्रत्येक स्थिति में दृढ़ता से कार्य करता है और प्रत्येक स्थिति में अविचलित रहता है ऐसे व्यक्ति को स्थितप्रज्ञ कहा जाता है
स्वधर्म – जिस वर्ण का जो स्वाभाविक कर्म है या स्वभाव के अनुसार जो विशेष कर्म निश्चित है वही स्वधर्म है
गीता में योग- गीता में योग का आशय से आत्मा का परमात्मा से मिलन बताया गया है
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चतुर्विंशति सगस्त्र संहिता – रामायण के 24000 श्लोको को चतुर्विंशति सहस्त्र संहिता कहा गया है
शतसहस्त्र संहिता – महाभारत में श्लोकों की संख्या 1 लाख है श्लोकों की इस संख्या को ही शतसहस्त्र संहिता कहा गया है
भोजक – किसानों के प्रतिनिधि को भोजक कहा जाता था
कहपण – एक तांबे का सिक्का था जिसका वजन 140 ग्रेन था
सार्थवाह – व्यापारी के काफिले के प्रमुख को सार्थवाह कहा जाता था
पांचरात्र – यह वैष्णव धर्म का प्रधान मत है इसका विकास तीसरी सदी ईसा पूर्व में हुआ था पांचरात्र के मुख्य उपासक विष्णु थे परम तत्व,युक्ति,मुक्ति, योग और विषय जैसे 5 पदार्थों के कारण इसे पांचरात्र कहा गया था
पिपहराव – सबसे प्राचीन स्तूप जो आज भी मौजूद है यह नेपाल की सीमा पर है यह संभवत 450 ईसापूर्व में निर्मित हुआ था इसमें बुद्ध के अवशेष रखे हुए हैं भाजा (महाराष्ट्र) का चैत्य भी उत्कृष्ट है
उपसंपदा – संघ परिवेश को बौद्ध धर्म में उपसंपदा कहा गया ह
उपोसथ – कुछ पवित्र दिवस पूर्णिमा अमावस्या अष्टमी पर सारे भिक्षुगण एकत्रित होकर धर्म चर्चा करते हैं इसे उपोसथ कहा गया है
चैत्य ग्रह (बुद्धायतन) – चिता से चैत्य बना है चिता के अवशिष्ट अंश को भूमि गर्भ में रखकर वहां जो स्मारक तैयार किया जाता है उसे चैत्य गृह कहा जाता था
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जातक ग्रंथ – सुत्त पिटक के पांचवें भाग खुद्दक निकाय में बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं संकलित हैं इन्हें जातक ग्रंथ कहते हैं लक्खण जातक ,बट्टक जातक ,तेल पंत जातक, गोध जातक, मंगल जातक बावेरू जातक आदि प्रसिद्ध हैं
पांचरात्र व्यूह – वासुदेव, लक्ष्मी, संकर्षण,प्रद्युम्न और अनिरुद्ध के समूह को पांचरात्र व्यूह कहते हैं
रमञ्ज देश – मीन लोग जो हिंदू बना लिए गए निचले बर्मा में बसे हुए थे इनके प्रदेश रमञ्ज देश कहलाता है
रमल – ज्योतिष की प्राचीन विद्या इसका उद्गम अरब में हुआ मुगल काल में रमन का विस्तार अधिक हुआ इसमें पासों के आधार पर परफल निकाला जाता है
नमभूमि- वह क्षेत्र है जो शुष्क और जलीय इलाके से लेकर कटिबंधीय मानसूनी इलाके में फैली होती है और यह वह क्षेत्र होता है जहां उथले पानी की सतह से भूमि ढकी रहती है। ये क्षेत्र बाढ़ नियंत्रण में प्रभावी हैं और तलछट कम करते हैं। भारत में ये कश्मीर से लेकर प्रायद्वीपीय भारत तक फैले हैं। अधिकांश नमभूमि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नदियों के संजाल से जुड़ी हुई हैं। भारत सरकार ने देश में संरक्षण के लिए कुल 71 नमभूमियों का चुनाव किया है। ये राष्ट्रीय पार्र्कों व विहारों के हिस्से हैं। कच्छ वन समूचे भारतीय समुद्री तट पर परिरक्षित मुहानों, ज्वारीय खाडिय़ों, पश्च जल क्षार दलदलों और दलदली मैदानों में पाई जाती हैं।
देश में कच्छ क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल 4461 वर्ग किमी. है जो विश्व के कुल का 7 फीसदी है। भारत में मुख्य रूप से कच्छ वन अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह, सुंदरबन डेल्टा, कच्छ की खाड़ी और महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टा पर स्थित हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के कुछ क्षेत्रों में भी कच्छ वन स्थित हैं। सुंदरबन डेल्टा दुनिया का सबसे बड़ा कच्छ वन है। यह गंगा के मुहाने पर स्थित है और पं. बंगाल और बांग्लादेश में फैला हुआ है। यहां के रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त यहां विशिष्ट प्राणि जात पाये जाते हैं।
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