राजस्थान में ऐतिहासिक स्त्रोत
(Historical sources in Rajasthan)
हमारा राजस्थान प्रदेश इसी विशाल भारत का एक प्रमुख अंग है
अन्य क्षेत्रों में चाहे राजस्थान एक पिछड़ा प्रदेश माना जा सकता है लेकिन इतिहास की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रदेश माना जाता है
कई इतिहासकार तो यहां तक कहते हैं कि राजस्थान के अभाव में भारत का कोई इतिहास ही नहीं है
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भारत के गौरवपूर्ण इतिहास के निर्माण में राजस्थान के रणबांकुरों ने विशेष भूमिका निभाई है
राजस्थान प्राचीन काल से ही देश के गौरवपूर्ण इतिहास के सर्जन में महान सहयोगी रहता आया है
स्वतंत्रता प्राप्ति पर राजस्थान 19 रियासतों में विभक्त था
इससे पूर्व प्राचीन व मध्यकाल में इन देसी रियासतों की संख्या परिवर्तित होती रही
यह रियासतें विभिन्न वंशीय राजपूत नरेशों से शासित होती थी
प्रत्येक राजा दूसरे राजा से स्वतंत्र होता था
राजपूत प्रकृति से ही स्वाभिमानी और आत्म प्रतिष्ठा प्रिय होता है
अतः राजस्थान की प्रत्येक रियासत अपना अलग ही इतिहास रखती है
वह इतिहास उस रियासत के संस्थापक के वंश व गौरव के अनुकूल होता था
लेकिन राजस्थान की उन रियासतों का इतिहास अधिकांश रुप में उसकी राजनीतिक घटना तक ही सीमित रहा
यह प्रदेश अस्तित्व में राजपूत काल के उपरांत और पूर्व मध्यकाल में आया था
यहां के राजपूत नरेशों को अपने अस्तित्व के लिए प्रथम दिल्ली के सुल्तानों से निरंतर संघर्ष करना पड़ा और बाद में मुगल सम्राटों से करना पड़ा था
दिल्ली के सुल्तान का राजपूत नरेशों पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा इसीलिए उन्होंने मुस्लिम सुल्तानों की भांति अपने जीवनकाल की घटनाओं को लिपिबद्ध करने का प्रयास नहीं किया
इसके अतिरिक्त दूसरा कारण राज्य में अशिक्षा के परिणाम स्वरुप दुर्भाग्यवश देशी रियासतों के राजाओं ने मुगल शासकों की भांति अपने अपने काल की घटनाओं को लिपिबद्ध करने का प्रयास भी नहीं किया था
सोलवीं शताब्दी में जब मुगलों का भारत पर प्रभुत्व स्थापित हो गया तो राजस्थान के नरेशों को उनसे युद्ध भी करने पड़े तो उनके साथ रहने का भी उन्हें अवसर मिला
इस कारण मुगल प्रशासन का प्रभाव राजपूत नरेशों पर अत्याधिक पड़ा
मुगल दरबार का अनुकरण करते हुए उन्होंने भी अपने यहां ऐसे अधिकारी रखना प्रारंभ किए जो नरेशों के शाही खर्चों का हिसाब रखने लगे
इसी दिशा में आगे प्रगति की राह पर राजस्थान के राजाओं ने अपने-अपने दरबारों में कवियों, इतिहासकारो ,साहित्यकारों और कला मर्मज्ञ को प्रश्रय दिया
जिसके कारण वर्तमान में प्रत्येक रियासत के क्रियाकलापों का लेखा-जोखा जो उपलब्ध हुआ
वह राजस्थान के इतिहास को जानने के लिए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत के रूप में सिद्ध हुआ
इसके साथ पोती खाना नाम का विभाग कार्य करने लगा ,
ब्राह्मणों को दान व जागीर में जो जमीने दी जाने लगी उनका ब्योरा रखा जाने लगा
राजा व रानिओं द्वारा देवालय व तालाब आदी बनाए जाने लगे
उनके इन दान के कार्यों को प्रशस्ति के रूप में अंकित किया जाने लगा
इस प्रकार के विभिन्न विवरणों ने ख्यात को जन्म दिया
इस प्रकार की प्रथम ख्यात 1670 में जोधपुर के दीवान मुहणोत नैंसी ने लिखी
इस ख्यात में जोधपुर राज्य के इतिहास के अलावा अन्य पड़ोसी राजवंशो का विवरण भी दिया गया था
हालांकि यह पुस्तक अव्यवस्थित ढंग से लिखी गई है तथापि राजस्थान के इतिहास के संबंध में ऐतिहासिक सामग्री प्रस्तुत करने के कारण इस ख्यात को अपना महत्व है
मुहणोत नैंसी ने ही “मारवाड़ की विगत”नामक एक अन्य पुस्तक लिखी है जिससे मारवाड़ की तत्कालीन सामाजिक और आर्थिक अवस्था का पता चलता है
यह सब होते हुए भी राजस्थान को ऐतिहासिक दृष्टि से खोजने का श्रेय मूलतः कर्नल जेम्स टॉड को ही दिया जाता है
जिसने जैन यति ज्ञानचंद्र की सहायता से 1829 में एनाल्स एंड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान नामक विशाल ग्रंथ की रचना की थी
इस विशाल ग्रंथ के आधार पर बाबू ज्वाला प्रसाद माथुर ने 1848 में वाकये राजस्थान और मुंशी देवी प्रसाद कायस्थ ने 1893 में राजाओं के जीवन चरित्र लिखे
बूंदी के राज्य कवि सूर्यमल मिश्रण द्वारा रचित सुप्रसिद्ध ग्रंथ वंश भास्कर 1898 में प्रकाशित हुआ इसमें बूंदी राज्य का इतिहास वर्णित है
बूंदी की घटनाओं पर प्रकाश डालने के अलावा कवि ने अन्य राज्य के इतिहास पर भी बखूबी प्रकाश डाला है
कविराज श्यामलदास ने 12 वर्ष के अथक परिश्रम के उपरांत “वीर विनोद”की रचना की थी
इन अमूल्य ग्रंथों ने राजस्थान को ऐतिहासिक अंधकार से प्रकाश में ला दिया
गोरीशंकर हीराचंद ओझा के ऐतिहासिक लेखो ने इस दिशा में नवीन प्रकाश दर्शाया और इतिहास प्रेमियों को राजस्थान के पुरातन गौरव को उजागर करने हेतु प्रेरित किया
यदि श्यामलदास व जगदीश सिंह गहलोत ने राजघराने पर प्रकाश डाला तो डॉ. दर्शथ शर्मा व डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा ने सच्चे रूप में राजस्थान का इतिहास लिखने का प्रशसनीय प्रयास किया
उन्होंने अपने अथक प्रयासों से राजस्थान के ढेरों ऐतिहासिक स्त्रोत इतिहास के समक्ष प्रस्तुत कर दिए