वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और वाद भाग-12 (part 02)

289. राज्यों की संपत्ति और आय को संघ के कराधान से छूट--

(1) किसी राज्य की संपत्ति और आय को संघ के करों से छूट होगी।
(2) खंड (1) की कोई बात संघ को किसी राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार या कारबार के संबंध में अथवा उससे संबंधित किन्हीं क्रियाओं के संबंध में अथवा ऐसे व्यापार या कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त या ओंधभुक्त किसी संपत्ति के संबंध में अथवा उसके संबंध में प्रोद्‌भूत या उद्‌भूत किसी आय के बारे में, किसी कर को ऐसी मात्रा तक, यदि कोई हो, जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे, अधिरोपित करने या कर का अधिरोपण प्राधिकृत करने से नहीं रोकेगी।
(3) खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के किसी ऐसे वर्ग को लागू नहीं होगी जिसके बारे में संसद विधि द्वारा घोषणा करे कि वह सरकार के मामूली कृत्यों का आनुषंगिक है।


290. कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन--

जहाँ इस संविधान के उपबंधों के अधीन किसी न्यायालय या आयोग के व्यय अथवा किसी व्यक्ति को या उसके संबंध में, जिसने इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत में क्राउन के अधीन अथवा ऐसे प्रारंभ के पश्चात्‌ संघ के या किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा की है, संदेय पेंशन भारत की संचित निधि या किसी राज्य की संचित निधि पर भारित है वहाँ, यदि --
(क) भारत की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग किसी राज्य की पृथक्‌ आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागतः सेवा की है, या
(ख) किसी राज्य की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग संघ की या अन्य राज्य की पृथक्‌ आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने संघ या अन्य राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागतः सेवा की है,

तो, यथास्थिति, उस राज्य की संचित निधि पर अथवा, भारत की संचित निधि अथवा अन्य राज्य की संचित निधि पर, व्यय या पेंशन के संबंध में उतना अंशदान, जितना करार पाया जाए या करार के अभाव में, जितना भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, भारित किया जाएगा और उसका उस निधि में से संदाय किया जाएगा।

290क. कुछ देवस्वम्‌ निधियों को वार्षिक संदाय--[18]

प्रत्येक वर्ष छियालीस लाख पचास हजार रुपए की राशि केरल राज्य की संचित निधि पर भारित की जाएगी और उस निधि में से तिरूवाँकुर देवस्वम्‌ निधि को संदत्त की जाएगी और प्रत्येक वर्ष तेरह लाख पचास हजार रुपए की राशि [19][तमिलनाडु] राज्य की संचित निधि पर भारित की जाएगी और उस निधि में से 1 नवंबर, 1956 को उस राज्य को तिरुवाँकुर-कोचीन राज्य से अंतरित राज्यक्षेत्रों के हिंदू मंदिरों और पवित्र स्थानों के अनुरक्षण के लिए उस राज्य में स्थापित देवस्वम्‌ निधि को संदत्त की जाएगी।

291. [शासकों की निजी थैली की राशि।]--

संविधान (छब्बीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 2 निरसित


अध्याय II.- उधार लेना

292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना--

संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें संसद समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।

293. राज्यों द्वारा उधार लेना--

(1) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उस राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें ऐसे राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।
(2) भारत सरकार, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अधिकथित की जाएँ, किसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहाँ तक अनुच्छेद 292 के अधीन नियत किन्हीं सीमाओं का उल्लंघन नहीं होता है वहाँ तक किसी ऐसे राज्य द्वारा लिए गए उधारों के संबंध में प्रत्याभूति दे सकेगी और ऐसे उधार देने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित की जाएँगी।
(3) यदि किसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके संबंध में भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना कोई उधार नहीं ले सकेगा।
(4) खंड (3) के अधीन सहमति उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हो, दी जा सकेगी जिन्हें भारत सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे


294. कुछ दशाओं में संपत्ति, आस्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार—

इस संविधान के प्रारंभ से ही--
(क) जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं और जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं, वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रांतों के सृजन के कारण किए गए या किए जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः संघ और तत्स्थानी राज्य में निहित होंगी; और
(ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ भारत डोमिनियन की सरकार की और प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भूत हुई हों, वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रांतों के सृजन के कारण किए गए या किए जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः भारत सरकार और प्रत्येक तत्स्थानी राज्य की सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ होंगी।


295. अन्य दशाओं में संपत्ति, आस्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार--

(1) इस संविधान के प्रारंभ से ही --
(क) जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य में निहित थीं, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, संघ में निहित होंगी यदि वे प्रयोजन जिनके लिए ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसी संपत्ति और आस्तियाँ धारित थीं, तत्पश्चात्‌ संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित संघ के प्रयोजन हों, और
(ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्‍भूत हुई हों, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, भारत सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ होंगी यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसे अधिकार अर्जित किए गए थे अथवा ऐसे दायित्व या बाध्यताएँ उपगत की गई थीं, तत्पश्चात्‌ संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित भारत सरकार के प्रयोजन हों।
(2) जैसा।पर कहा गया है उसके अधीन रहते हुए, पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट प्रत्येक राज्य की सरकार, उन सभी संपत्ति और आस्तियों तथा उन सभी अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं के संबंध में, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्‌भूत हुई हों, जो खंड (1) में निर्दिष्ट से भिन्न हैं, इस संविधान के प्रारंभ से ही तत्स्थानी देशी राज्य की सरकार की उत्तराधिकारी होगी।


296. राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोद्‌भूत संपत्ति--

इसमें इसके पश्चात्‌ यथा उपबंधित के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्रों में कोई संपत्ति जो यदि यह संविधान प्रवर्तन में नहीं आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अधिकारवान्‌ स्वामी के अभाव में स्वामीविहीन होने से, यथास्थिति, हिज मजेस्टी को या किसी देशी राज्य के शासक को प्रोद्‌भूत हुई होती, यदि वह संपत्ति किसी राज्य में स्थित है तो ऐसे राज्य में और किसी अन्य दशा में संघ में निहित होगी :

परंतु कोई संपत्ति, जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार हिज मजेस्टी को या देशी राज्य के शासक को प्रोद्‌भूत हुई होती, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी तब, यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए वह उस समय प्रयुक्त या धारित थीं, संघ के थे तो वह संघ में या किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी।

स्पष्टीकरण --

इस अनुच्छेद में, शासक और देशी राज्य पदों के वही अर्थ हैं जो अनुच्छेद 363 में हैं।

297. राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मषनतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र के संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना--[1]

(1) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मषनतट भूमि या अनन्य आर्थिक क्षेत्र में समुद्र के नीचे की सभी भूमि, खनिज और अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण की जाएँगी।
(2) भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अन्य सभी संपत्ति स्रोत भी संघ में निहित होंगे और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण किए जाएँगे।[2]
(3) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मषनतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्रों की सीमाएँ वे होंगी जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएँ।


298. व्यापार करने आदि की शक्ति-- [3]

संघ की और प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, व्यापार या कारबार करने और किसी प्रयोजन के लिए संपत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन तथा संविदा करने पर, भी होगा:

परंतु --
(क) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में संसद विधि बना सकती है वहाँ तक संघ की उक्त कार्यपालिका शक्ति प्रत्येक राज्य में उस राज्य के विधान के अधीन होगी ; और
(ख) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में राज्य का विधान-मंडल विधि बना सकता है वहाँ तक प्रत्येक राज्य की उक्त कार्यपालिका शक्ति संसद के विधान के अधीन होगी।


299. संविदाएँ--

(1) संघ की या राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हुए की गई सभी संविदाएँ, यथास्थिति, राष्ट्रपति द्वारा या उस राज्य के राज्यपाल[4] द्वारा की गई कही जाएँगी और वे सभी संविदाएँ और संपत्ति संबंधी हस्तांतरण-पत्र, जो उस शक्ति का प्रयोग करते हुए किए जाएँ, राष्ट्रपति या राज्यपाल[5] की ओर से ऐसे व्यक्तियों द्वारा और रीति से नि-पादित किए जाएँगे जिसे वह निर्दिष्ट या प्राधिकृत करे।
(2) राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल[6] इस संविधान के प्रयोजनों के लिए या भारत सरकार के संबंध में इससे पूर्व प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के प्रयोजनों के लिए की गई या नि-पादित की गई किसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र के संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा या उनमें से किसी की ओर से ऐसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र करने या नि-पादित करने वाला व्यक्ति उसके संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा।

300. वाद और कार्यवाहियाँ--

(1) भारत सरकार भारत संघ के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और किसी राज्य की सरकार उस राज्य के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और ऐसे उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो इस संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर अधिनियमित संसद के या ऐसे राज्य के विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा किए जाएँ, वे अपने-अपने कार्यकलाप के संबंध में उसी प्रकार वाद ला सकेंगे या उन पर उसी प्रकार वाद लाया जा सकेगा जिस प्रकार, यदि यह संविधान अधिनियमित नहीं किया गया होता तो, भारत डोमिनियन और तत्स्थानी प्रांत या तत्स्थानी देशी राज्य वाद ला सकते थे या उन पर वाद लाया जा सकता था।
(2) यदि इस संविधान के प्रारंभ पर--
(क) कोई ऐसी विधिक कार्यवाहियाँ लंबित हैं जिनमें भारत डोमिनियन एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस डोमिनियन के स्थान पर भारत संघ प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा; और
(ख) कोई ऐसी विधिक कार्यवाहियाँ लंबित हैं जिनमें कोई प्रांत या कोई देशी राज्य एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस प्रांत या देशी राज्य के स्थान पर तत्स्थानी राज्य प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा।


संपत्ति का अधिकार

300क. विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना--[1]

किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

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