मध्यप्रदेश में सहरिया जनजाति

मध्यप्रदेश में सहरिया जनजाति


Saharia tribe in Madhya Pradesh


सहरिया कोलेरियन परिवार एक अत्यंत पिछड़ी जनजाति है तुम मध्य प्रदेश के गुना ग्वालियर शिवपुरी मुरैना विदिशा गौर बुंदेलखंड में निवास करती है शासन द्वारा उन्हें अत्यंत पिछड़ी जनजाति घोषित किया है इनके उत्थान के लिए अभिकरण का गठन किया

भौगोलिक वितरण ➖ सहरिया आपने आपको भीलो का छोटा भाई कहलाने में गोरा गौरव का अनुभव करते हैं एक अन्य प्रचलित धारणा के अनुसार सहरिया शब्द की उत्पत्ति सह+हरिया से हुई है जिसका अर्थ है शेर के साथ होना !

निवास ➖ सहरिया अपनी अलग कतार बद्ध मकानों की समूह में रहते हैं जिसे सहाराना कहते हैं फारसी भाषा में शहर का आशय जंगल होता है यह लोग जंगल में निवास करते हैं अतः इन्हें सहरिया कहा जाता है

सामाजिक व्यवस्था ➖ इनमें विवाह संबंधी नियम कठोर नहीं है तलाक विधवा विवाह को मान्यता प्राप्त इनमें परिवारिक इकाई कुटुंब कहलाती है सहरिया जंगली जड़ी बूटियों की विशिष्ट पहचान रखते हैं हर मौसम में सहरिया लोग जड़ी बूटियों का संग्रह करते हैं बे इन से दवाई बनाने में मोहे होते हैं यह प्रायः भूमिहीन है उनकी आर्थिक स्थिति दानिया यह हाला बाटा के रूप में रोजगार करते हैं अधिकांश परिवार ऋण ग्रस्त है

सांस्कृतिक विशेषता ➖ सहरिया कला और संस्कृति संपूर्ण जनजाति है यह हिंदू देवी देवताओं को मानते हैं हिंदू पर्व त्यौहार दशहरा दिवाली होली देवउठनी ग्यारस आदि शायरियां लोगों द्वारा मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार है

मध्यप्रदेश की अन्य प्रमुख जनजाति

पारधी जनजाति➖ पारदी मराठी भाषा के शब्द पारध का एक तत्सम रूप है जिसका अर्थ होता है आंखेंट ! मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में यह जनजाति पाई जाती है पिंटू इन की सर्वाधिक मात्रा सीहोर और रायसेन जिलों में मिलती है पारधी वन्य पशुओं का शिकार करने और उन्हें पकड़ने में बहुत सिद्ध अस्त होते हैं पारधी जनजाति के कोई उपविभाग हैं जैसे गोसाई पारधी,चीता पारधी,बेलपरधी, शीशी का तेल पारधी,फ़ॉस पारदी तथा बहेलियां को भी इसमें शामिल कर लिया गया है

चीता पारधी चीता पकड़ने में बहुत माहिर होते है शैशव अवस्था में चीता पकड़कर उसे प्रशिक्षण देते हैं फ़ांस पारधी फंदे की सहायता शेर शिकार करते हैं सीसी का तेल पारधी मगर का शिकार कर उस की चर्बी का तेल प्रयुक्त करते हैं और शीशी में रख कर भेजते हैं

अगरिया जनजाति ➖ अगरिया गोंडो की उपजाति है यह जनजाति मध्यप्रदेश के मंडला जिला शहडोल जिलों में पाई जाती है अगरिया जनजाति के लोग लोह अयस्क साफ करने बा धातु निष्कर्षण का कार्य करते हैं यह लोग लोगों अयस्क का अपनी भाषा में नामकरण करते हैं मंडला जिले में लौह अयस्क को छाबड़िया पौड़ी कतर्रा चरकी और जाक कहा जाता है इन के प्रमुख देवता लोहा सुर है जिन का निवास स्थान धधकती भटटी माना जाता है अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए काली मुर्गी की भेंट चढ़ाते हैं विवाह में बहुमूल्य चुकाने की परंपरा है

 

Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )

विष्णु गौर सीहोर, मध्यप्रदेश


0 Comments

Leave a Reply Cancel

Add Comment *

Name*

Email*

Website