अलाउद्दीन के शासनकाल में अनेक विद्रोह हुए, लेकिन चार विद्रोह प्रमुख थे 1- नव मुस्लिमों का विद्रोह 2- अकत खां का विद्रोह 3- मंगू खा का विद्रोह 4- हाजी मौला का विद्रोह
1. नव मुस्लिमों का विद्रोह 1299 ई. में अलाउद्दीन ने गुजरात पर आक्रमण किया इस सफल अभियान के बाद शाही सेना जब वापस लौट रही थी ,तब जालौर के निकट उलूग खां और नुसरत खां ने लूट के सामान में 4/5 भाग मांगा इससे सेना में शामिल नव मुस्लिमों ने विद्रोह कर दिया, इस विद्रोह में नुसरत खां का एक भाई और अलाउद्दीन का भतीजा मारा गया नुसरत खां ने विद्रोह को दबा दिया,बहुत से विद्रोही मारे गए और कुछ भागकर हम्मीर देव अथवा कुछ अन्य राय कर्ण की शरण में चले गए दिल्ली में विद्रोहियों की पत्नियों और बच्चों के प्रति अत्यंत क्रूर और अमानवीय व्यवहार किया गया
इसामी और बरनी ने-- अलाउद्दीन खिलजी द्वारा एक ही दिन में बड़ी संख्या में नवीन मुसलमानों का कत्लेआम करने की कार्यवाही का विवरण दिया है
2. अकत खां का विद्रोह अकत खां अलाउद्दीन के मृतक भाई मुहम्मद का पुत्र था और राज्य का वकील दार था उसने कुछ नव मुसलमानों के साथ मिलकर विद्रोह किया जब अलाउद्दीन रणथंबोर अभियान पर जा रहा था तब वह तिलपत में शिकार करने के लिए रूका शिकार खेलते खेलते हुए अपनी सेना से दूर हो गया, उधर अकत खां कुछ नव मुस्लिमों (मंगोल जो इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गए थे )के साथ अलाउद्दीन को ढूंढ रहा था उसने अलाउद्दीन पर आक्रमण कर दिया सुल्तान ने मोढे को ढाल बनाकर अपनी रक्षा की मानिक नामक एक दास ने सुल्तान के सामने आकर बाणों की वर्षा से उसे बचाया तत्पश्चात अलाउद्दीन के पायक (व्यक्तिगत अंगरक्षक) आगे आकर अपनी ढालो से उसकी रक्षा करने लगे अलाउद्दीन घायल हो गया उसके पैदल सैनिक उसके चारों और घेरा बना कर खड़े हो गए और यह कह दिया कि सुल्तान मर गया अकत खां सुल्तान को मृत मानकर खेमे में पहुंचा और अपने को सुल्तान घोषित कर दिया जब वह सुल्तान के हरम में प्रवेश करने का प्रयत्न किया तो हरम के रक्षक मलिक दिनार और उसके सैनिकों ने उसे रोक दिया इसी बीच अलाउद्दीन होश में आया वह अपने सैनिकों के साथ खेमे में पहुंचा, सुल्तान को जीवित देखकर अकत खां अफगानपुर भाग गया ,सैनिकों ने उसका पीछा किया और सिर काटकर सुल्तान के सम्मुख प्रस्तुत किया अकत खां के छोटे भाई कुतलूग खां की भी हत्या कर दी गई,शेष षड्यंत्रकारियों को कठोर दंड दिया गया
3. मंगू खा का विद्रोह अलाउद्दीन के समय का तीसरा विद्रोह अमर उमर और मंगू खां का विद्रोह था,यह अलाउद्दीन के भांजे (बहिन के पुत्र )थे इनमें मलिक उमर बदायूं का और मंगू खां अवध का सूबेदार था अलाउद्दीन के रणथंबोर घेरे में व्यस्तता का लाभ उठाकर इन्होने विद्रोह किया अलाउद्दीन द्वारा भेजे गए अधिकारियों ने उन्हें बंदी बनाकर रणथंबोर में लाया गया जहां उनका वध कर दिया गया
4. हाजी मौला का विद्रोह हाजी मौला का विद्रोह अलाउद्दीन के समय में राजधानी में हुए सभी विद्रोह में सबसे अधिक गंभीर था हाजी मौला पुराने कोतवाल फखरुद्दीन का मुक्ति प्राप्त दास और दोआब में बरतोल नामक कस्बे का शहना था काजी अलाउलमुल्क की मृत्यु के बाद वह दिल्ली के कोतवाल का पद चाहता था लेकिन सुल्तान ने बयाद तिर्मिजी को दिल्ली का और अयाज को सीरी का कोतवाल नियुक्त किया जब अलाउद्दीन रणथंबोर के किले के घेरे में व्यस्त था तभी हाजी मौला को दिल्ली में विद्रोह करने का अवसर मिल गया उसने कोतवाल तिर्मिजी का धोखे से वध कर दिया और कोतवाल अयाज का वध करने का असफल प्रयास किया तत्पश्चात लाल किले के कोषागार,शस्त्रागार,अश्वशाला और बंदी ग्रह पर अधिकार कर लिया उसने बंदियों को मुक्त कर अपना अनुगामी बना लिया तत्पश्चात अलवी नामक एक व्यक्ति के पास गया जो शाही-शाह कहलाता था और इल्तुतमिश की एक पुत्री का वंशज था उसे सुल्तान घोषित कर सिंहासन पर बैठा दिया इस प्रकार 1 सप्ताह तक हाजी मौला दिल्ली पर कब्जा बनाए रखा और जनता को पीड़ित करने लगा लेकिन अलाउद्दीन का एक वफादार सरदार हमीमुद्दीन इस विद्रोह को समाप्त करने में सफल रहा हाजी मौला शाही-शाह और उनके समर्थक पकड़े गए और उनका वध कर दिया गया इस प्रकार अलाउद्दीन के समय में उत्पन्न सभी विद्रोहों का सफलतापूर्वक दमन किया गया लेकिन इन विद्रोह से शासक के प्रति निष्ठा का भाव स्पष्ट प्रकट हो रहा था अतः विद्रोहों पर नियंत्रण पाने के लिए अलाउद्दीन ने उसके कारणों को जानने और उनके समाधान करने के उपाय किए
विद्रोह के कारण विचार विमर्श के बाद अलाउद्दीन इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इन विद्रोह के लिए चार कारण उत्तरदाई हैं
राज्य में होने वाली गतिविधियों से सुल्तान का अनभिज्ञ रहना
राजधानी में त्यौहारों, उत्सवों और भोज के अवसरों पर मद्यपान की सभाओं में षड्यंत्रों का रचा जाना
सामंत वर्ग में शक्तिशाली परिवारों के बीच वैवाहिक संबंध से उनकी शक्ति में वृद्धि होती है अतः सुल्तान को चुनौती देने और विद्रोह करने के लिए प्रेरित होते हैं
प्रजा के बीच में एक धनी और उदंड वर्ग प्रस्तुत हुआ जो बराबर सुल्तान की सत्ता को चुनौती देने लगा था इस वर्ग के रूप में अलाउद्दीन ने मध्यस्थ भू पतियों को दोषी ठहराया
विद्रोह उन्मूलन के चार उपाय विद्रोहों के लिए उत्तरदाई कारणों को जानने के बाद उनके उन्मूलन के लिए अलाउद्दीन ने चार अध्यादेश जारी किए 1- धनी व्यक्ति की संपत्ति छीनना 2- गुप्तचर विभाग का गठन 3- मध्य निषेध को लागू करना 4- अमीरों के मेल मिलाप और वैवाहिक संबंधों का प्रतिबंध
1. धनी व्यक्तियों की संपत्ति छीनना सबसे पहले सुल्तान ने धन पर प्रहार किया।अमीरों और अन्य व्यक्तियों की संपत्ति, उपहार ,पेंशन आदि छीन ली गई और सरकारी व्यक्तियों से अधिकाधिक धन लेने के आदेश दिए गए बरनी के अनुसार- दिल्ली में केवल मलिक अमीर, राज्य कर्मचारी ,हिंदू -मुल्तानी और सेठों के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति के पास सोना न रहा
2. गुप्तचर विभाग का गठन दूसरे अध्यादेश के अनुसार एक सुसंगठित गुप्तचर विभाग की स्थापना की गई जिससे राज्य की सभी गतिविधियों और क्रिया कलापों की जानकारी होती रही इसके अंतर्गत बरीद (गुप्तचर अफसर) और मुनहिस (गुप्तचर) अमीरों के घरों ,दफ्तर, प्रांतीय राजधानियों और बाजारों में नियुक्त किए गए
3. मद्य निषेध को लागू करना तीसरे अध्यादेश के अनुसार अलाउद्दीन ने शराब और भांग जैसे द्रव्यों का प्रयोग और जुआ खेलना बंद करा दिया अलाउद्दीन खिलजी मद्यपान निषेध करने वाला दिल्ली का प्रथम सुल्तान था" उसके द्वारा दिल्ली में मद्य निषेध के आदेश का प्रमुख कारण राजनीतिक था सुल्तान ने स्वयं शराब पीना छोड़ दिया और राजमहल के सारे मद्य-पात्र तोड़ डाले दिल्ली में शराब पीना और लाना वर्जित कर दिया गया और इसके उल्लंघन करने वाले को कठोर दंड का प्रावधान रखा गया अमीरों की मद्यपान गोष्ठिया बंद करा दी गई
4. अमीरों के मेल मिलाप और वैवाहिक संबंधों पर प्रतिबंध अपने चौथे अध्यादेश के अनुसार अलाउद्दीन ने अमीरों के परस्पर मेल मिलाप, उनकी सामाजिक गोष्ठियों और समारोह पर प्रतिबंध लगा दिया अमीरों पर कठोर पाबंदी लगा दी गई ,सुल्तान की आज्ञा के बिना वे आपस में वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं कर सकते थे,ना ही वह आपस में मिल जुल सकते थे और ना ही वह एक दूसरे को दावत कर सकते थे इस प्रकार इन अध्यादेशों द्वारा सुल्तान ने अपनी स्थिति सुदृढ़ की ओर विद्रोही प्रवृतियों पर अंकुश लगाया
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