अलाउद्दीन खिलजी के भाई-अलमास बैग ,कुतुलुग तिगीन और मुहम्मद
1290 ईसवी में बना- अमीर ए तुजुक
स्वयं को सुल्तान घोषित किया-कड़ा में (कड़ा का सूबेदार था)
राज्याभिषेक हुआ- बलबन के लाल महल में
दिल्ली की गद्दी प्राप्त हुई- 20 जुलाई 1296 में
अलाउद्दीन खिलजी के काल में सर्वाधिक आक्रमण हुए- मंगोल आक्रमण
सुल्तान बनने के बाद अलाउद्दीन का प्रथम अभियान- गुजरात आक्रमण 1299
राजस्थान का प्रथम जौहर हुआ-अलाउद्दीन के काल में (जल जौहर -रणथंभोर)
उपाधि-अबुल मुजफ्फर सुल्तान अलदुनिया वा दीन मुहम्मद शाह खिलजी ,यामनी उल खिलाफत नासिरी अमीर मुमनिन (खलीफा का नायब), द्वितीय सिकंदर, सिकंदर ए सानी ,खजाइनुल फूतुह में अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन को विश्व का सुल्तान, पृथ्वी के शासकों का सुल्तान, युग का विजेता और जनता का चरवाहा जैसी पदवी से विभूषित किया
अलाउद्दीन का शासन काल-1296 से 1316 ईसवी
भिलसा अभियान के बाद पद दिया गया-आरिज मुमालिक का पद
अलाउद्दीन की सबसे पहली आवश्यकता और कठिनाई-दिल्ली सिंहासन पर अपनी स्थिति को दृढ़ करना था
अलाउद्दीन ने प्रथम कार्य किया था- प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारना
अलाउद्दीन का राजत्व सिद्धांत मुख्य रूप से तीन बातों पर आधारित था-
1-शासक की निरंकुशता 2-धर्म और राजनीति का पृथक्करण और 3-साम्राज्यवाद
अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था-जिसने धर्म को राजनीति से पृथक किया
एकमात्र व्यक्ति जो अलाउद्दीन को शासन के विषय में सलाह देता था- अलाउल मुल्क( दिल्ली का कोतवाल और अलाउद्दीन का मित्र )
अलाउद्दीन के शासनकाल में विद्रोह-चार प्रमुख विद्रोह थे
1- नव मुस्लिमों का विद्रोह
2- अकत खा का विद्रोह 3- मंगू खां का विद्रोह 4- हाजी मौला का विद्रोह
अलाउद्दीन ने विद्रोह उन्मूलन के लिए जारी किए अध्यादेश--- 1- धनी व्यक्ति की संपत्ति छीनना 2- गुप्तचर विभाग का गठन 3- मद्य निषेध को लागू करना 4- अमीरों के मेल-मिलाप और वैवाहिक संबंधों पर प्रतिबंध
सीरी नगर की स्थापना और सीरी दुर्ग का निर्माण का उद्देश्य-मंगोल आक्रमण से दिल्ली की रक्षा के लिए
अलाउद्दीन ने मंगोल आक्रमण से निपटने के लिए नीति बनाई-रक्त और तलवार की नीति
मंगोलों द्वारा अलाउद्दीन पर किए गए मुख्य आक्रमण-- कुल छ:आक्रमण
प्रथम तुर्क विजेता अलाउद्दीन खिलजी था- विंध्याचल पर्वत को पार करने वाला
अमीर खुसरो ने चित्तौड़गढ़ किले के बारे में कहा--हिंदुओं का स्वर्ग सातवें स्वर्ग से भी ऊंचा है
अलाउद्दीन खिलजी का अंतिम अभियान-उत्तर भारत मे (जालौर अभियान)
दक्षिण भारत को जीतने वाला भारत का पहला शासक- अलाउद्दीन खिलजी (देवगिरी पर)
कोहिनूर हीरा निकाला गया-गोलू कुंडा की खान से
कोहिनूर हीरे का उल्लेख मिलता--सर्वप्रथम अलाउद्दीन के समय
खालसा भूमि के अतिरिक्त अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य विभाजित था-11 प्रांतों में विभाजित था गुजरात ,मुल्तान और सिबिस्तान ,दीपालपुर, समाना और सुनम ,धार और उज्जैन ,झायन, चित्तौड़ ,चंदेरी और इराज ,बदायूं कोइल और कर्क, अवध, कड़।
अलाउद्दीन ने अपने प्रशासनिक कार्य को निम्न विभाग द्वारा संचालित किया-- 1- दीवान ए विजारत 2- दीवान ए आरिज 3- दीवान ए इंशा 4- दीवान ए रसालत
अलाउद्दीन ने सेना की स्थापना की-शक्तिशाली स्थाई केंद्रीय सेना की स्थापना (ऐसा कार्य करने वाला अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का प्रथम सुल्तान था)
अलाउद्दीन खिलजी की सेना में अश्वारोही थे-475000 अश्वारोही
अलाउद्दीन खिलजी के समय "तुमन" थी-10000 की sainik टुकड़ियों को तुमन कहा जाता था
अलाउद्दीन ने सैनिकों की प्रथा प्रारंभ की-हुलिया लिखने की प्रथा
अलाउद्दीन खिलजी के काल में सैनिकों को वेतन दिया जाता था-नगद वेतन दिया जाता था (वेतन देने की प्रथा की शुरुआत करने वाला पहला सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी था )
अलाउद्दीन खिलजी की गहरी रुचि थी- वित्तीय और राजस्व सुधारों में (दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन प्रथम शासक था जिसने यह रुचि दिखाई )
अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार के प्रकार थे-दो प्रकार थे 1- बाजार व्यवस्था( Market system) 2- भू राजस्व व्यवस्था( Land revenue system)
अमीर खुसरो ( Amir Khusro)नियुक्त हुआ था--अलाउद्दीन के काल में (दरबारी कवि के पद पर प्रथम बार )
अलाउद्दीन ने साहित्यकारों को आश्रय दिया- कुल 46 साहित्यकारों को
अमीर हसन को कहा जाता है-भारत का सादी
अलाउद्दीन ने निर्माण कार्य कराए-अलाई दुर्ग, जमैयत खाना मस्जिद, हजार स्तंभ वाला तिमंजिला राजभवन (जिसे हजार सितुन कहा जाता है) सीरी नगर का निर्माण (दूसरी दिल्ली ),हॉज- ए- खास ,शमशी तालाब
अलाउद्दीन की मृत्यु का कारण- एक असाध्य रोग (विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार अलग-अलग)
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु-4 जनवरी 1316 ईस्वी को
अलाउद्दीन खिलजी ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया-खिज्र खां को (चित्तौड़ विजय के पश्चात)
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद सुल्तान बना- शिहाबुद्दीन उमर-झत्यापाली माता (,रामदेव की पुत्री का पुत्र था)
शिहाबुद्दीन उमर के बाद शासक बना-मुबारक शाह
मुबारक शाह ने उपाधि धारण की-कुतुबुद्दीन मुबारक शाह की
अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक जीवन
अलाउद्दीन खिलजी जलालुद्दीन के भाई शहाबुद्दीन मसूद खिलजी का पुत्र था शहाबुद्दीन मसूद खिलजी बलबन की सेना में एक सैनिक पदाधिकारी था
उसकी आकस्मिक मृत्यु के पश्चात अलाउद्दीन की परवरिश उसके चाचा जलालुद्दीन खिलजी ने की थी
अलाउद्दीन के तीन छोटे भाई थे अलमास बैग,कुतुलुग तिगीन, मुहम्मद ।किन्तु इतिहास में केवल अल्मास बैग ही नाम मिलता है,अल्मास बैग की उपाधि उलूग खॉ थी।
बचपन से अलाउद्दीन की अभिरुचि शिक्षा प्राप्त करने से अधिक सैनिक कार्यों में थी उसने घुड़सवारी और तलवारबाजी में निपुणता प्राप्त कर ली थी
कुछ समय पश्चात जलालुद्दीन ने अपनी एक पुत्री का विवाह अलाउद्दीन के साथ और दूसरी पुत्री का विवाह अलमास बैग से कर दिया था
1290 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी सुल्तान बना था इसी के साथ ही अलाउद्दीन का राजनीतिक उत्कर्ष आरंभ हुआ
जलालुद्दीन ने अपने शासन के प्रारंभ में अलाउद्दीन को अमीर ए तुजुक और उसके छोटे भाई अलमास बैग को अखूर बैग का पद दिया।
मलिक छज्जू के विद्रोह का दमन करने के फल स्वरुप अलाउद्दीन को कड़ा -मानिकपुर का सूबेदार बनाया गया
1292 ईस्वी में भिलसा अभियान में सफलता के बाद उसे आरिज- ए-मुमालिक के पद के साथ ही अवध की सूबेदारी प्रदान की गई
धन लूटने के उद्देश्य से अलाउद्दीन का दूसरा अभियान देवगिरी पर हुआ वहां से अतुल संपत्ति लूटकर अलाउद्दीन खिलजी लाया
देवगिरी से प्राप्त धन अलाउद्दीन की स्थिति सुदृढ़ करने के लिए काफी था अब उसके अंदर दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने की लालसा जागृत हुई
फलस्वरुप उसने अपने चाचा जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का तख्ता पलटने का मंसूबा बना लिया
धोखे से उसने अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी मानिकपुर बुलवा कर कत्ल कर दिया और 20 जुलाई 1296 में ईस्वी को अपने आपको सुल्तान घोषित किया
प्रारंभिक कठिनाइयां
सुल्तान बनने के पश्चात अलाउद्दीन खिलजी के समक्ष अनेक कठिनाइया थी, जलालुद्दीन का वध करने के कारण प्रजा उस से घृणा करती थी
अनेक जलाली सरदार भी अलाउद्दीन से असंतुष्ट थे
दिवंगत जलालुद्दीन सुल्तान के पुत्र अभी जीवित है इसमें अर्कली खां मुल्तान का प्रांतपति था
उसने अपने संबंधियों और समर्थकों को शरण दे रखी थी जलालुद्दीन के पुत्रों की उपस्थिति में गद्दी पर अलाउद्दीन का अधिकार सुरक्षित नहीं था
इसके अतिरिक्त दूसरी समस्या मंगोलों के आक्रमण थे जो सीमावर्ती क्षेत्रों में हो रहे थे पंजाब में खोखरो के विद्रोह जारी थे।
इसके अतिरिक्त अनेक स्वतंत्र पड़ोसी राज्य सल्तनत की सत्ता को चुनौती दे रहे थे जिसमें गुजरात, चित्तौड़, रणथंबोर और मध्य भारत के अनेक राज्य थे
इसके अतिरिक्त पूर्वी भारत में लखनौती का राज्य था जो बलबन की मृत्यु उपरांत स्वतंत्र हो गया था
ऐसी स्थिति में शासन को व्यवस्थित करना और सल्तनत के प्रति सम्मान और भय उत्पन्न करना अलाउद्दीन के लिए आवश्यक था
दिल्ली पर अधिकार
अलाउद्दीन की सबसे पहली आवश्यकता और कठिनाई सिन्हासन पर अपनी स्थिति को दृढ़ करना था
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी की हत्या से अनेक खिलजी अमीर अप्रसन्न और क्षुब्ध थे।
अर्कली खां जो जलालुद्दीन का दूसरा पुत्र और उत्तराधिकारी भी था उस समय मुल्तान में था उसका भाई खानेखाना सीदी मौला के वध के बाद ही मर गया था
ऐसी स्थिति में जलालुद्दीन की विधवा मलिक जहां ने दिल्ली के खाली सिंहासन पर अपने पुत्र कद्र खां को रुकनुद्दीन इब्राहिम के नाम से बैठाया और स्वयं उसकी संरक्षक बन गई
उसने जलाली अमीरों में इक्ता का वितरण आरंभ किया और सरकारी पत्रों पर हस्ताक्षर करने लगी
अर्कली खां को जब यह समाचार मिला तो वह बहुत क्रोधित हुआ उसने दिल्ली की रक्षा के लिए प्रस्थान करने का विचार त्याग कर मुल्तान में ही रहने का निर्णय किया
अलाउद्दीन ने इस अवसर का लाभ उठाया और दिल्ली पर अधिकार करने की योजना बनाई
सर्वप्रथम उसने धन और प्रश्रय देकर विरोधियों को अपने में मिला लिया तत्पश्चात एक विशाल सेना के साथ बदायूं और बरन होते हुए वह दिल्ली पहुंचा
रुकनुद्दीन विरोध करने के लिए आगे आया लेकिन उसकी सेना के बाएं भाग ने साथ नहीं दिया और वह अलाउद्दीन की सेना से जा मिले सेना द्वारा धोखा दिए जाने के कारण रुकनुद्दीन शीघ्र ही पराजित हो गया
इस पराजय के बाद वह अपनी मां और जलाली परिवार के कुछ सदस्यों के साथ मुल्तान भाग गया
अलाउद्दीन विजयी हो कर बलबन के लाल महल में सिंहासन पर बैठा प्रारंभ में, सीरी में हजार सितुन (1000 खंबों वाला) के निर्मित होने तक लाल महल ही उस का निवास स्थान रहा
प्रारंभिक कार्य दिल्ली की राजगद्दी संभालने के पश्चात अलाउद्दीन ने सबसे पहले प्रशासनिक व्यवस्था की ओर ध्यान दिया उसने एक मिली जुली सरकार का गठन किया जिसमें 3 वर्ग सम्मिलित थे 1. प्रथम--विगत दास वंश के अमीर जो अभी उच्च पदों पर नियुक्ति थे 2. द्वितीय--जलालुद्दीन के वे अधिकारी जो उससे मिल गए थे 3. तृतीय-- वह अधिकारी थी जिन्हें स्वयं अलाउद्दीन खिलजी ने नियुक्त किया था
ख्वाजा खातिर को वजीर नियुक्त किया गया जो वजीरों में सर्वोत्तम था
काजी सद्रुद्दीन आरिफ को सद्रे जहां और साम्राज्य का मुख्य काजी पद पर नियुक्त किया गया।
दीवान ए इंशा का पद उम्दतुलमुल्क आला दवीर को दिया गया,फखरुद्दीन कूची को दिल्ली का दादबक नियुक्त किया गया
नुसरत खा को शासन के प्रथम वर्ष दिल्ली का कोतवाल नियुक्त किया गया और जफर खां को सुरक्षा मंत्री नियुक्त किया गया ।
अलाउलमुल्क को कड़ा और अवध प्रदेश दिए गए सभी सैनिकों को 6 माह का वेतन पुरस्कार स्वरूप दिया गया
उलेमा, शेख, और अन्य सरदारों को भूमि और पद देकर खुश किया गया
जलाली परिवार
सत्ता पर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने और शासन व्यवस्था को संगठित करने के पश्चात अलाउद्दीन ने जलाली परिवार की ओर ध्यान दिया।
अर्कली खॉ उस समय मुल्तान और सिंध का गवर्नर था ।
उलूग खॉ और जफर खां को 40000 की सेना लेकर मुल्तान भेजा गया उन्होंने मुल्तान के दुर्ग का घेरा डाला दो माह के प्रतिरोध के बाद शत्रु ने समर्पण कर दिया
सेना ने मुल्तान पर अधिकार कर अर्कली खां और परिवार के अंय सदस्यों को बंदी बना लिया बाद मे अर्कली खां, कद्र खॉ और मलिक अहमद को अंधा कर दिया गया
राजत्व का सिद्धांत अलाउद्दीन खिलजी एक निरंकुश शासक था वह पूर्ण निरंकुशता में विश्वास करता था उस का राजत्व सिद्धांत मुख्य रूप से तीन बातों पर आधारित था 1- शासक की निरकुंशता,
2- धर्म और राजनीति का पृथकीकरण और 3- साम्राज्यवाद
अमीर खुसरो जिसने अलाउद्दीन के राजत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है अलाउद्दीन को न्याय संगत बनाने और ऊंचा उठाने का प्रयत्न किया है उसने शासन की सर्वोच्च उपलब्धि उसकी विजय को मानते हुए लिखा है- कि सूर्य पूर्व से पश्चिम तक धरती को अपनी तलवार की किरणों से आलोकित करता है उसी प्रकार शासक को भी विजय हासिल करनी चाहिए और उन विजय को सुरक्षित रखना चाहिए
अलाउद्दीन ने बलबन द्वारा प्रस्तुत निर्कुश सत्ता के सिद्धांत को और प्रबल बनाया बलबन ने शासक को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया था
लेकिन अलाउद्दीन खिलजी के अनुसार सत्ता का स्त्रोत शक्ति में नहीं था। शासक ना तो ईश्वर की अनुकंपा से सिंहासन प्राप्त करता है और ना जनता की इच्छा से और नहीं उलेमा अथवा सामंतों के सहयोग से
वह अपने बहूलता से सत्ता पर अधिकार करता है और जब तक वह शक्तिशाली रहता है तब तक उसकी सत्ता भी बनी रहती है
अपने व्यवहार से अलाउद्दीन ने शासक की निरकुंशता को चरमोत्कर्ष तक पहुंचाया।
अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने धर्म को राजनीति से पृथक किया
उसने उलेमाओं के इच्छाओं का पालन नहीं किया और उनके विरुद्ध प्रशासन की नीति अपनाई ,अलाउद्दीन ने यामनी उल खिलाफत (खलीफा का नायब )की उपाधि ग्रहण की थी जिसका आशय होता है नाममात्र के लिए खलीफा की परंपरा को स्थापित करना
उसने खलीफा से अपने सुल्तान पद की स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं समझी ना हीं कभी उसके लिए प्रयत्न किया
इस संबंध में ए एल श्रीवास्तव ने लिखा है कि- इस प्रकार अलाउद्दीन दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया और ऐसे तत्व को जन्म दिया जिसमें कम से कम सिद्धांत रूप में राज्य और असांप्रदायिक आधार पर खड़ा हो सकता था
इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी ने धर्म के प्रभाव से राजनीति को मुक्त रखने में सफल प्राप्त की
उस ने शरीयत के संबंध में काजी मुगीस से कहा था कि मौलाना मूगीस ना मुझे कुछ ज्ञान है ,और ना मेने कोई पुस्तक पढ़ी है ,तब भी मैं मुसलमान पैदा हुआ हूं ,और मेरे पूर्वज पीढियो से मुसलमान रहे हैं
उन विद्रोह को रोकने के लिए जिन में हजारों जीवन नष्ट हो जाते हैं ,मैं अपनी प्रजा को ऐसे आदेश देता हूं ,जो उनकी और राज्य की भलाई के लिए लाभप्रद समझता हूं ,मैं ऐसे आदेश देता हूं ,जिन्हें राज्य के लिए लाभदायक और परिस्थितियों के लिए अनुकूल समझता हूं ।मैं नहीं जानता कि शरा उनकी आज्ञा प्रदान करता है कि नहीं ,मैं नहीं जानता कि अंतिम निर्णय के दिन खुदा मेरे साथ क्या व्यवहार करेगा
साम्राज्यवाद भी अलाउद्दीन के राजत्व के सिद्धांत का एक आधार था
बरनी के अनुसार-- अलाउद्दीन ने एक नए धर्म की स्थापना और विश्व विजय की योजना बनाई और सिकंदर द्वितीय की उपाधि धारण कि
यहां तक कि उसने अपने सिक्कों और सार्वजनिक प्रार्थनाओं में भी स्वयं को द्वितीय सिकंदर घोषित किया
लेकिन अपने परामर्शदाता काजी अलाउलमुल्क के सुझाव पर अपनी दोनों योजना त्याग दी
दिल्ली का कोतवाल और अलाउद्दीन का मित्र अलाउल मुल्क ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जिसने अलाउद्दीन शासन के विषय में सलाह लेता था अथवा जो उसे सलाह देने का साहस कर सकता था
अलाउद्दीन यह समझता था कि उसका राज्य तो जनता के स्नेह और भक्ति के बिना संभव नहीं है
उसे अपने राजत्व को जनता की दृष्टि में पवित्र और न्याय संगत बनाना था और जनता द्वारा राज्य की वैधानिकता को मान्यता दिलाना भी आवश्यक था
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