कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियां और मूल्यांकन

कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियां और मूल्यांकन


दिल्ली सल्तनत ( Delhi Sultanate) का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था यद्यपि वह छोटी अवधि के लिए मात्र 4 वर्ष तक ही शासन रहा
इस बीच उसने भारत में तुर्की राज्य ( Turkish state) की नींव डाली
मोहम्मद गोरी के (Muhammad ghori) गुलाम के रूप में अपना जीवन आरंभ कर अपनी योग्यता के बल पर धीरे-धीरे उन्नति करते हुए सुल्तान के पद तक पहुंचा और एक ऐसे राज्य का संस्थापक बना जो भारत में स्थाई रहा

 विभिन्न इतिहासकारों की दृष्टि से कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धिया

एक शासक के रूप में कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियों को सभी इतिहासकारों ( Historians) ने सराहा  है

डॉक्टर हबीबुल्लाह(Habibullah)
 1-डॉक्टर हबीबुल्लाह के अनुसार उस में तुर्कों की निर्मलता और फारसियों ( Persian) की परिष्कृत अभिरुचि और शालीनता पाई जाती थी

अबुल फजल(Abul fazal)
1- अबुल फजल जिसने महमूद गजनवी ( Mahmoud Ghaznavi) पर निर्दोष व्यक्तियों का खून बहाने का आरोप लगाया है कुतुबुद्दीन ऐबक की प्रशंसा में लिखा है कि उसने बड़े और महान कार्य किए
2- प्रशासनिक क्षेत्र में उसने किसी नवीन संस्था का निर्माण नहीं किया लेकिन जिन अब्बासी गजनबी और भारतीय परंपराओं ( Indian traditions) का उसने अनुपालन किया वही परवर्ती शासकों द्वारा भी किया गया
3-4 वर्ष की अल्प अवधि के शासनकाल में उसने शांति और व्यवस्था स्थापित कि
4- उसकी सेना में तुर्क गोरी ,खुरासानी खलजी और हिंदुस्तानी सैनिक थे
5- उसने अपनी प्रजा पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं किया

 हसन निजामी 
1- हसन निजामी ने लिखा है कि कुतुबुद्दीन एबक अपनी प्रजा को समान रुप से न्याय प्रदान करता था
2- वह अपने राज्य की शक्ति और समृद्धि के लिए प्रयत्नशील था

 इतिहासकार मिनहाज 
1-इतिहासकार मिनहाज ने लिखा है की कुतुबुद्दीन ऐबक  श्रेष्ठ भावनाओं से युक्त विशाल हृदयी बादशाह था
2-वह बहुत दानशील था  अपनी उदारता के कारण वह इतना दान करता था कि समकालीन लेखकों ने उसे लाख बख्श (लाखों का दान देने वाला )और पील बख्श( हाथियों का दान देने वाला )की उपाधि से विभूषित किया

 इतिहासकार फरिश्ता 
1- फरिश्ता ने लिखा है कि यदि व्यक्ति किसी की दानशीलता की प्रशंसा करते थे तो उसे अपने युग का  कुतुबुद्दीन ऐबक पुकारते थे

 साहित्य क्षेत्र में उपलब्धियां 
 कुतुबुद्दीन ऐबक साहित्य और कला ( Literature and art) का संरक्षक था
 तत्कालीन विद्वान हसन निजामी और फक्र- ए-मुदब्बिर को उसका संरक्षण प्राप्त था उन्होंने उसे अपने ग्रंथ समर्पित किए थे
 हसन निजामी ने ""ताजुल मासिर"" और फक्र- ए-मुदब्बिर ने अदाब- उल हर्ब और अलशुजाता नामक ग्रंथ की रचना की थी
 

 स्थापत्य कला में उपलब्धियां 
 कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजधानी के रूप में दिल्ली नगर का विकास भी किया
 उसने दिल्ली और अजमेर में दो मस्जिद बनवाई 1195 से 1199 ईस्वी के बीच दिल्ली में ""कुवत-उल-इस्लाम"" मस्जिद का निर्माण करवाया
 यह मस्जिद भारत में इस्लामी पद्धति पर निर्मित प्रथम मस्जिद मानी जाती है जो पृथ्वीराज तृतीय के किले राय पिथौरागढ़ के स्थान पर निर्मित की गई है
 कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 27 जैन मंदिरों के  ध्वंशावशेषों पर किया गया है
 दूसरी मस्जिद अड़ाई दिन का झोपड़ा है जो अजमेर में स्थित है इसका निर्माण भी कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था
 इस स्थान पर अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी जहां आज भी हरिकेलि नाटक के कुछ अंश लिखे हुए हैं
 कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में 1199 ईस्वी  में सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुब मीनार (Qutub Minar) का निर्माण कार्य शुरू करवाया था लेकिन अकस्मात मृत्यु के कारण इस इमारत को पूरा नहीं कर सका
 जिसे 1230-31 ईस्वी में इल्तुतमिश ( Iltutmish) ने पूरा करवाया था
 कुतुब मीनार के निर्माण से उतरी भारत में एक नई स्थापत्य शैली का विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ
 कुतुबुद्दीन ऐबक के पास समय का अभाव रहा वह अपने जीवन में दिल्ली सल्तनत को पूर्ण स्थायित्व प्रदान नहीं कर सका
 उसके कार्य अधूरे रहे इस कारण उसके पश्चात इल्तुतमिश को अधूरे कार्य की पूर्ति के लिए प्रयास करना पड़ा
 कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद अगला शासक आरामशाह हुआ था

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