खिलजी वंश की स्थापना जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी ने की थी इस वंश के कुल 4 शासक थे 1-जलालुद्दीन फिरोज खिलजी 2-अलाउद्दीन खिलजी 3-कुतुबुद्दीन मुबारक शाह और 4-नसीरुद्दीन खुसरो शाह
इन चारों शासकों ने 1290 से 1320 ईस्वी तक तथा 30 वर्षों तक शासन किया था
दिल्ली सल्तनत के वंशो में खिलजी वंश के शासकों ने सबसे कम समय तक शासन किया
खिलजी वंश की स्थापना से दिल्ली सल्तनत में अनेक सामाजिक और आर्थिक बदलाव के साथ साथ भारत के तत्कालीन राज्य और राजनीति के स्वरुप में भी परिवर्तन हुआ है
खिलजी क्रांति
खिलजी क्रांति से तात्पर्य है--सत्ता पर तुर्की अमीर वर्ग के एकाधिकार की समाप्ति
अब श्रेष्ठ पद जातिय और नस्लीय आधार पर नहीं बल्की योग्यता के आधार पर प्राप्त किए जा सकते थे
बलबन का राजत्व सिद्धांत जो की रक्त की शुद्धता और उच्च कुलीनता पर आधारित था खिलजी काल में समाप्त हो गया
खिलजी वंश के शासकों को सर्वमान्य रूप से स्वीकृति नहीं मिली थी क्योंकि तुर्की अमीर उन्हें निम्न मानते थे और उनसे घृणा करते थे
वह खिलजियों को अफगान मानते थे लेकिन खिलजी तुर्क थ।, ""फकरूद्दीन रावर्टी,बार्थोल्ड"" विद्वानों ने उन्हें तुर्की माना है
खिलजी अफगानिस्तान के खल्ज क्षेत्र में रहते थे जो हेलमंद नदी के दोनों ओर स्थित गर्म क्षेत्र या गर्मसीर कहलाता था
बहुत समय तक अफगानिस्तान में रहने के कारण उन्होंने अफगानी परंपराएं अपना ली थी।इस कारण वह अफगान समझे जाते थे
खिलजी क्रांति भारत में मुस्लिम राज्य के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इसका महत्व केवल एक वंश परिवर्तन तक ही सीमित नहीं था
बलबन द्वारा स्थापित राज व्यवस्था के विपरीत यह एक नए युग का आरंभ था।बलवन के काल में विरोधी तत्वो के दमन के लिए हिंसात्मक तरीके अपनाए गए थे
लेकिन खिलजी क्रांति ने शाही रक्त की तुलना में सर्व साधारण के जनमत को आधिपत्य स्थापित कर यह सिद्ध कर दिया की गद्दी पर कोई भी ऐसा व्यक्ति एकाधिकार कर सकता था जिसमें उसे अपने हाथ में रखने की शक्ति और योग्यता हो
इसके अतिरिक्त खिलजी ने भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त करने की परंपरा आरंभ कि इसमें भी कुलीनता के सिद्धांत के स्थान पर प्रतिभा को अधिक महत्व दिया गया
खिलजी वंश के शासकों ने विशेषकर अलाउद्दीन खिलजी ने राजनीति को धर्म से पृथक करने का प्रयास किया
सल्तनत के इतिहास में यह एक नया अध्याय था, खिलजी क्रांति प्रशासन में व्यापक स्थानीय भागीदारी की दिशा में महत्वपूर्ण थे
यद्यपि खिलजी सुल्तान भी तुर्क थे पर उन्होंने गैर तुर्कों को भी प्रशासन में शामिल कियासाम्राज्यवादी और आर्थिक नीतियों में उग्र और प्रबल परिवर्तन भी हुए
इन सभी कारणों से खिलजी द्वारा सत्ता पर अधिकार केवल वंश के स्थान पर दूसरे वंश की स्थापना के रूप में नहीं देखा जा सकता है
बल्कि यह एक व्यवस्था की समाप्ति और एक भिन्न व्यवस्था के आरंभ होने का सूचक था।
इन्ही परिवर्तन के कारण प्रोफेसर मोहम्मद हबीब ने-- खिलजी वंश की स्थापना को एक क्रांति की संज्ञा दी है
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