खुरासान अभियान

खुरासान अभियान


 खुरासान की सही भौगोलिक (Geographical) स्थिति के संदर्भ में मतभेद है

 बरनी ने इरान और फरिश्ता ने इरान तुरान के रूप में की है

 कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान मध्य एशिया ( Central Asia) का ट्रांस आक्सियाना क्षेत्र था।

 यह अभियान तरमाशरीन और सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ( Muhammad bin Tughluq) के मैत्री का परिणाम था

 मध्य एशिया की राजनीति में एक शून्यता आ गई थी जिसका लाभ मोहम्मद बिन तुगलक उठाना चाहता था

 इस योजना की पूर्ति के लिए सुल्तान ने एक विशाल सेना संगठित की ,जिसमें लगभग 370000 सैनिक थे इस सेना में दोआब के राजपूत और कुछ मंगोलों (Mongols) को सम्मिलित किया गया

 सेना को 1 वर्ष की अग्रिम वेतन दिए गए लेकिन सेना के कुच करने से पहले ही मध्य एशिया की राजनीति में परिवर्तन हो गया

 तरमाशरीन अब ध्वस्त कर दिया गया और मिश्र और इरान ( Iran) में संधि हो गई, फलस्वरुप मुहम्मद बिन तुगलक को अपनी योजना त्यागनी पड़ी

 अधिकांश सेना भंग कर दी गई सेना के कुछ भाग को उत्तरी भारत की पर्वतीय श्रृंखला (Mountain chain) में सीमाओं को दृढ़ करने के लिए भेजा गया

 इस विशाल सेना पर काफी धन व्यय किया गया, इससे सेना की आर्थिक स्थिति (Economic condition) दुर्बल हो गई सेना से निकाले गए सैनिकों ने भी असंतोष का वातावरण उत्पन्न किया

 अतः सुल्तान की योजना भी असफल रही इससे उसके प्रसिद्धि में कमी हुई

 

 कराचिल अभियान

कराचिल का क्षेत्र हिमाचल की तराई में स्थित आधुनिक कुमायूं जिले में था

कराचिल अभियान का लक्ष्य सीमित था,सुल्तान सीमावर्ती क्षेत्रों पर अपना प्रभाव सुदृढ़ करना चाहता था

 कराचिल का यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था क्योंकि यह सल्तनत और चीनी साम्राज्य( Chinese Empire ) के बीच का क्षेत्र था

 अकाल संहिता 

 मुहम्मद बिन तुगलक पहला शासक था जिसने अकाल पीड़ितों की सहायता की और उनसे   निपटने के लिए Delhi में राहत शिविर खोले गए

 अवध जहां अकाल का प्रभाव नहीं था खाद्यान्न मंगाए वहां से

 अकाल से राहत के लिए उसने अकाल संहिता तैयार करवाई

 कुआं खोदने और बीज और फल ख़रीदने के लिए कृषकों को को कृषि ऋण(सोंधर) भी प्रदान किया

 महामारी 

 दोआब क्षेत्र में अकाल के दौरान ही दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में प्लेग महामारी फैल गई

 इसीलिए मोहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली छोड़कर शाही शिविर से 80 किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित एक स्थान स्वर्गद्वारी (कन्नौज के निकट) में स्थापित किया और यहां 2 साल तक रहा

 कृषि के विस्तार की योजना 

 स्वर्गद्वारी से लौटने के पश्चात मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विस्तार और सुधार के लिए एक वृहत योजना बनाई

 उसने कृषि से संबंधित एक नया विभाग दीवान ए अमीर कोही की स्थापना की,इसका प्रधान अमीर ए कोही था

 इसके अंतर्गत 75 किलोमीटर × 75 किलोमीटर की विकास योजना तैयार की गई, इसके अंतर्गत किसानों को अच्छी फसल उगाने पर जोर डाला गया

 बरनी ने लिखा है की- इस प्रकार जौ के बदले गेहूं लगाया जाता एवं गेहूं के बदले गन्ना तथा गन्ना के बदले अंगूर और खजूर लगाया जाता

 इस योजना के तहत 3 वर्ष में सोंधर के प्रयोजन से 70लाख से अधिक टंके मंजूर किए गए लेकिन यह योजना भी सफल नहीं हो सकी

 मोहम्मद बिन तुगलक ने फसलों में चक्रवर्तिन पद्धति को अपनाया था

 मंगोल आक्रमण मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में मंगोलों का मात्र एक मात्र आक्रमण हुआ

 1326-27 ईसवी में ट्रांस आक्सियाना का चुगताई मंगोल शासक अलाउद्दीन तरमाशीरी ने भारत पर आक्रमण किया

 इस आक्रमण के विषय में विद्वानों में अनेक मत है

 अधिकांश विद्वानों का मानना है कि अलाउद्दीन तरमाशिरी एक शरणार्थी के रूप में भारत आया था ,जिसकी सहायता कर मुहम्मद बिन तुगलक ने मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए

 इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मानना है कि मंगोल आक्रमणकारी ( Mongol invader) के रूप में आए और मुल्तान और लाहौर से लेकर बदायूं तथा मेरठ तक लूटपाट की

 मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे रिश्वत देकर वापस कर दिया

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