गयासुद्दीन तुगलक के सैन्य अभियान

गयासुद्दीन तुगलक के सैन्य अभियान


गयासुद्दीन तुगलक (Ghiyasud-din Tughlaq) एक साम्राज्यवादी शासक था,जिस समय वह गद्दी पर बैठा सल्तनत के अनेक अधीनस्थ राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी

उसने विद्रोही और अधीनस्थ राज्यों को अपने राज्य में सम्मिलित करने की नीति अपनाई

गयासुद्दीन तुगलक का प्रथम सैन्य अभियान तेलंगाना (Telangana) प्रांत के लिए था

तेलंगाना अभियान 1321 ईसवी) 

तेलंगाना की राजधानी वारंगल (Warangal) थी यहां का शासक राय प्रताप रुद्रदेव था

जिसने अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर खराज देना बंद कर दिया था और दिल्ली सल्तनत से अपने को अलग कर स्वतंत्र घोषित कर लिया था

गयासुद्दीन तुगलक ने 1321 में अपने पुत्र जूना खां (उलूग खां )को एक विशाल सेना के साथ तेलंगाना अभियान के लिए भेजा

शीघ्रता के साथ जूना खां ने तेलंगाना की राजधानी वारंगल पहुंचकर दुर्ग का घेरा डाल दिया 6 महीने तक दुर्ग का घेरा डाले रखा

दुर्ग के रक्षक सेना ने दृढ़तापूर्वक दूर्ग की रक्षा की लेकिन समय व्यतीत होते-होते खाद्यानों के अभाव में उनके कमर तोड़ने का भय उत्पन्न कर दिया

दूसरी और दिल्ली की सेना ने दुर्ग की सेनाओं की आवश्यकता पूर्ण करने वाले सभी साधन रोकने की नीति अपनाई

ऐसी कठिन परिस्थिति में राय प्रताप रुद्रदेव ने वार्ता करने का प्रयास किया ,लेकिन जूना खां ने अस्वीकार कर दिया

इसी बीच गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु की अफवाह फैल गई परिणाम स्वरुप जूना खां विजय प्राप्त करने से पहले ही वापस देवगिरी लौट आया,लेकिन गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु की बात केवल अफवाह ही निकली

इसामी ने--इस अफवाह को फैलाने के लिए उबेद नामक एक ज्योतिषी को उत्तरदाई माना है*

इस अपराध के लिए दोषियों को सजा दी गई

1323 ईस्वी में ग्यासुद्दीन के आदेशानुसार जूना खां पुन: वारंगल की और कुच करने लगा इस बार वह पहले से अधिक सावधान था

अपने संचार व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उसने उचित उपाय किया। शीघ्र ही वारंगल पहुंचकर दुर्ग घेरा डाल दिया,5 माह तक के घेरे के बाद राय प्रताप रुद्रदेव ने आत्मसमर्पण कर दिया

शाही सेना का दुर्ग पर अधिकार हो गया ,राय प्रताप रुद्रदेव अपने संबंधियों सहित पकड़कर दिल्ली लाया गया

उसकी मृत्यु के संबंध में विद्वानों में मतभेद है

डॉक्टर बनारसी प्रसाद सक्सेना के अनुसार-- या तो प्रताप रुद्रदेव की मृत्यु कारागार में हुई अथवा उसने आत्महत्या कर ली

डॉक्टर आर सी मजूमदार के अनुसार-- प्रताप रुद्रदेव को छोड़ दिया गया ,उसने या तो एक साधारण अधीनस्थ शासक के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया या एक स्वतंत्र शासक के रूप में उसकी मृत्यु हो गई थी

तेलंगाना को दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate)का भाग बनाया गया और उसके शासन का स्थाई प्रबंध किया गया

सर्वप्रथम गयासुद्दीन तुगलक के समय में ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया,जिसमें प्रथम वारंगल था

तेलंगाना का नाम बदलकर सुल्तानपुर (Sultanpur) रखा गया और उसे कई प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया

पुराने हिंदू अधिकारियों को उनके पदों पर रहने दिया गया ,जनता के साथ उदारता पूर्ण व्यवहार किया गया

वारंगल अभियान के दौरान ही गुट्टी,कुंत और माबर पर भी दिल्ली सेना का अधिकार हो गया

गुट्टी उस समय जगपाली गंदी देव नामक तेलुगू शासक के अधिकार में था

 

जाजनगर( उड़ीसा) अभियान

गयासुद्दीन का दूसरा अभियान 1324 ईस्वी में जाज नगर उड़ीसा के विरुद्ध था

जिसका उद्देश्य वहां के शासक भानु देव द्वितीय (1306 से 28 ईसवी) को दंडित करना था, क्योंकि गियासुद्दीन तुगलक के तेलंगाना अभियान के दौरान भानु देव ने प्रताप रुद्रदेव की सहायता की थी और गोंडवाना के शासकों से भी संधि कर ली थी

जूना खां (मोहम्मद बिन तुगलक)एक विशाल सेना के साथ जाजनगर पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया

राजमुंदरी (Rajahmundry) से प्राप्त 1324ईस्वी के एक अभिलेख से इस विजय की पुष्टि होती है

राजमुंदरी अभिलेख में जूना खां (उलूग खां )को दुनिया का खान कहा गया है

 

मंगोल आक्रमण
ग्यासुद्दीन के दक्षिण अभियान के तत्काल बाद शेर मुगल के नेतृत्व में मंगोलों ने दिल्ली पर आक्रमण के उद्देश्य से सिंध नदी पार करते हुए आगे की ओर बढ़े

उस समय समाना का राज्यपाल को गुरशास्प था उसने अपनी सहायता के लिए गयासुद्दीन तुगलक के पास संदेश भेजा

सुल्तान ने नायब वजीर मलिक शादी के नेतृत्व में एक सेना गुरशास्प की सहायता के लिए भेजी

सल्तनत की सेना ने मंगोलों की सेना को दो स्थानों पर पराजित किया,बहुत से मंगोल बंदी भी बना लिए गए

 

गुजरात (Gujarat) अभियान

अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद गुजरात नाम मात्र के लिए साम्राज्य का भाग था

इसामी के अनुसार-- जूना खॉ जब दक्षिण में था उसी समय गुजरात में विद्रोह हुआ

विद्रोह को दबाने के लिए सुल्तान गयासुद्दीन ने मलिक शादी को गुजरात भेजा, लेकिन एक षड्यंत्र द्वारा मलिक शादी की हत्या कर दी गई

फलस्वरुप गुजरात अभियान समाप्त हो गया

 

बंगाल (Bengal) अभियान

सुल्तान गयासुद्दीन का अंतिम सैन्य अभियान बंगाल में फैली अव्यवस्था को समाप्त करना था

बलबन के पुत्र बुगरा खां के समय से बंगाल स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था

यहाँ भ्रातघातक कलक और पारस्परिक युद्धों ने सुल्तान का ध्यान आकर्षित किया

1322 ईस्वी में बुगरा खॉ (बलबन के पुत्र )के वंशज शमशुद्दीन फिरोज शाह की मृत्यु हो गई

उसके चार पुत्रों शहाबुद्दीन फिरोज शाह ,नासिरुद्दीन, ग्यासुद्दीन बहादुर और कुतलु खां में सत्ता के लिए संघर्ष प्रारंभ हो गया था

ग्यासुद्दीन बहादुर ने अपने भाइयों को पराजित कर बंगाल को अपने अधीन कर लिया, नासिरुद्दीन भागकर सुल्तान ग्यासुद्दीन तुगलक से सहायता मांगने गया

सुल्तान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर स्वयं बंगाल की ओर कुच करने का निश्चय किया

बंगाल अभियान के प्रस्थान से पूर्व सुल्तान ने अपनी अनुपस्थिति में दिल्ली का शासन प्रबंध एक राजसी परिषद को सौंपा जिसमें युवराज जूना खॉ शाहिन( अखुर बेक) और अहमद अयाज थे ।

ग्यासुद्दीन बहादुर और सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ जिसमें गयासुद्दीन बहादुर पराजित हुआ

वह जान बचाकर भाग निकला लेकिन एक नदी के पास दलदल में फंस गया और बंदी बना लिया गया

नासिरुद्दीन को लखनौती का पेशकर्ता (भेंटकर्ता)शासक बनाया गया

सतगांव व सुनार गांव अमीर तातार खां के नियंत्रण में रखे गए

लखनौती से जारी एक सिक्के पर सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक और नासिरुद्दीन का नाम अंकित मिलता है जो उनके संयुक्त शासन का संकेत करता है

 

तिरहुत पर आक्रमण(1324-25) 

बंगाल से वापस आते समय सुल्तान ने तिरहुत(मिथिला)पर आक्रमण किया

यहां का शासक हरि सिंह देव नेपाल के जंगलों में भाग गया, शाही सेना का तिरहुत पर अधिकार हो गया

गयासुद्दीन ने तिरहुत का शासन अहमद खां को सौंप कर राजधानी दिल्ली वापस लौट आया

यह पहला अवसर था जब तुर्की सत्ता उतरी बिहार तक विस्तृत हुई थी

अफगानपुर की दुर्घटना और सुल्तान गयासुद्दीन की मृत्यु

बंगाल और तिरहुत के सफल अभियान के बाद सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक शीघ्रतापूर्वक तुगलकाबाद की ओर आ रहा था

मार्ग में दिल्ली से 6 किलोमीटर दूर अफगानपुर( तुगलकाबाद के पास) में लकड़ी के बने एक भवन में सुल्तान के स्वागत की व्यवस्था की गई

फरवरी-मार्च 1325 ईस्वी में अपने स्वागत समारोह के दौरान हाथियों का प्रदर्शन देखते समय लकड़ी का भवन गिरने से सुल्तान गयासुद्दीन की मृत्यु हो गई

एक षड्यंत्र के तहत राजकुमार जूना खॉ (मोहम्मद बिन तुगलक )ने उस भवन का निर्माण कराया था जिसका निर्माणकर्ता अहमद अयाज था

जिसे मुहम्मद बिन तुगलक ने सुल्तान बनने पर अहमद अयाज को ख्वाजा जहां की उपाधि और वजीर का पद दिया

इब्नबतुता के अनुसार-- गयासुद्दीन तुगलक की हत्या का कारण जूना खां( मुहम्मद बिन तुगलक )का षड्यंत्र था

बदायूनी ने इब्नबतूता (Ibn Batuta) के विचारों का समर्थन किया है

जबकि फरिश्ता ,इसामी और बरनी ने इसे--एक अप्रत्याधित दुर्घटना माना है,षड़यंत्र नहीं*

बरनी के अनुसार--इस भवन के गिरने का कारण बिजली का गिरना बताते हैं

जबकि यहया बिन अहमद सर हिंदी में लिखा है कि--भवन देवीय प्रकोप से गिरा है

मल्फूजात (सूफी साहित्य) के अनुसार--गयासुद्दीन की मृत्यु का कारण सुल्तान द्वारा शेख निजामुद्दीन औलिया को परेशान करना था

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