गुप्त साम्राज्य(Gupta empire )

गुप्त साम्राज्य(Gupta empire )


❇  मौर्य सम्राज्य के पतन के बाद भारत की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई । इस बीच कुषाण वंश व सातवाहन वंश ने क्रमशः उत्तरी व दक्षिणी भारत में स्थिरता लाने का प्रयास किया किंतु वह अपने-अपने क्षेत्रों में ही सीमित रहे ।
❇ चौथी शताब्दी के प्रारंभ में पूरे भारत में एक नए राजवंश का उदय हुआ जो गुप्त वंश के नाम से जाना जाता था । गुप्त संभवत कुषाणों के सामंत थे ।
❇ गुप्तों की उत्पत्ति से संबंधित प्रश्न बड़ा विवादास्पद है । वज्जीका द्वारा लिखित कीर्ति कौमुदी नाटक में लिच्छवियों को मलेच्छ तथा चंद्रगुप्त प्रथम को कारस्कर कहा गया है।
❇  चंद्र गोमिन के व्याकरण में गुप्ता को जाट (जट) कहा गया है।



गुप्ता की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न विद्वानों के मत निम्न हैं
विद्वान                                                                           मत     
के पी जायसवाल -                                                                         शुद्र
एलेन , अल्तेकर, रोमिला थापर -                                             वेश्या
हेमचंद्र रायचौधरी  - ब्राह्मण रमेशचंद्र मजुमदार, ओझा - क्षत्रिय


❇ चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्ता ने अपने पूना ताम्रपत्र में धारण गोत्र का उल्लेख किया है । यह गोत्र उसके पिता का ही होगा क्योंकि उसके पिता वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय विष्णु वृर्ध्दी गोत्र के ब्राह्मण थे।
❇  गुप्तों का आदि पुरुष श्रीगुप्त था । उसका पुत्र घटोत्कच था ।
❇ स्कंदगुप्त के सुपिया (रीवा) के लेख में गुप्त वंश को घटोत्कच वंश कहा गया है।
❇ गुप्त वंशावली का परिचय देने के लिए हमारे पास अनेक अभिलेख हैं । जिनमें सबसे प्रमुख हैं समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख कुमारगुप्त का विलसडस्तम्भ लेख और स्कंद गुप्त का भीतरी स्तंभ लेख।

गुप्त शासकों के अनुसार गुप्त वंश का इतिहास

☀ चन्द्रगुप्त प्रथम (320 - 335 ई.) ☀
चंद्रगुप्त प्रथम ने गुप्त वंश को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में प्रतिष्ठित किया । इसे गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है ।  गुप्त वंशावली में चंद्रगुप्त प्रथम पहला शासक था, जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की । श्री गुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की थी।
इसने एक नए संवत गुप्त संवत 319 - 20 ईस्वी को चलाया । गुप्त संवत तथा शक संवत के बीच 241 वर्षों का अंतर था ।
इसने लिछवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। चंद्रगुप्त कुमार देवी प्रकार के सिक्कों से इस विवाह की पुष्टि होती है।


गुप्त वंश में सर्वप्रथम चंद्रगुप्त प्रथम ने ही रजत (चांदी) मुद्राओं का प्रचलन करवाया था।

☀ समुन्द्रगुप्त (335 - 375 ई.) ☀?
समुद्रगुप्त के समय गुप्त साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ । इसकी विजयों का उल्लेख हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति में मिलता है ।


उसने आर्यवर्त के प्रथम युद्ध में अच्युत,  नागसेन व कोत कुलज नामक राजाओ को हराया।


दक्षिणापथ के युद्ध में समुद्रगुप्त ने 12 राजाओं को पराजित किया । उसने दक्षिणापथ में ग्रहणमोक्षानुग्रह की नीति का पालन किया और भेंट उपाधि प्राप्त की ।


समुद्रगुप्त की दक्षिण विजय को राय चौधरी ने धर्म विजय की संज्ञा दी। समुद्रगुप्त के सिक्कों में उसे लिच्छवि दौहित्र कहा गया है ।


समुद्रगुप्त प्रसन्न होने पर कुबेर तथा रुष्ट होने पर यमराज के सम्मान था। यह जानकारी एरण लेख में मिली है। एरण लेख में समुद्रगुप्त की रानी का नाम दत्त देवी बताया गया है।

 प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त को सो युद्धों का विजेता कहा गया है । 


समुद्रगुप्त की 6 प्रकार की स्वर्ण मुद्राए प्राप्त होती है । 

गरुड प्रकार , धनुर्धारी प्रकार, परशु प्रकार , अश्वमेघ प्रकार, व्याघ्र हनन प्रकार, वीणा वादन प्रकार ।



समुद्रगुप्त के लिए सर्वराज्यइच्छेता के विरुद् का प्रयोग हुआ है।


कुछ विधान कांच नामक शासक  का समीकरण भी समुद्रगुप्त से करते हैं ।


प्रयाग प्रशस्ति की 19वी और 20वी पंक्ति में दक्षिणापथ के 12 राजाओं व राज्यों का उल्लेख मिलता है ।


आर्यवर्त के द्वितीय युद्ध में समुद्रगुप्त ने 9 राज्यों को पराजित किया । प्रयाग प्रशस्ति की 21 वी पंक्ति में इन 9 राज्यों का उल्लेख हुआ है । प्रयाग प्रशस्ति की इक्कीसवी पंक्ति मे नौ राजाओं के राज्यों की विजय का भी उल्लेख है।


शक कुषाण अधिक विदेशी शक्तियों ने समुद्रगुप्त की अधीनता निम्न तीन विधियों से मानी। जो प्रयाग प्रशस्ति की 23वी वह 24 पंक्ति में है।


आत्म निवेदन - स्वयं दरबार में उपस्थित होकर । कन्यो पायन -  अपनी पुत्रियों का गुप्त राजवंश में विवाह कर।  

गरूर मंदकसमविषममुक्तिशासनयाचना अर्थात अपने विषय या भक्ति के लिए शासनादेश प्राप्त करना


समुद्रगुप्त का समकालीन कुषाण नरेश केदार कुषाण था । जो पेशावर का राजा था । अपनी विजयों के उपलक्ष में समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ किया । यह यज्ञ प्रयाग प्रशस्ति लिखे जाने के बाद किया गया । अतः प्रयाग प्रशस्ति में इसका उल्लेख नहीं है । प्रयाग प्रशस्ति अशोक के कौशांबी अभिलेख पर उत्कीर्ण है । इसमें बौद्ध संघ में विभेद को रोकने के लिए कौशांबी के महापात्रा को आदेश दिया गया है ।


मध्य काल में अकबर ने इसे कौशांबी से मंगवा कर इलाहाबाद के किले में लगवा दिया था ।


प्रयाग प्रशस्ति ब्राह्मी लिपि एवं विशुद्ध संस्कृत में लिखी हुई है। यह गद्य एवं पद्य (चंपू शैली) दोनों में लिखा हुआ है। इसमें समुद्रगुप्त के अश्वमेघ यज्ञ का उल्लेख नहीं है । प्रयाग प्रशस्ति पर अकबर के दरबारी बीरबल का लेख व मुगल सम्राट जहांगीर का अभिलेख मिला है ।


समुद्रगुप्त की 12 विजय हैं तथा उनके राजा व राज्य का नाम ? कोशल का महेंद्र  , महा कांतार का व्यर्घ़ंर्राज , कोरल का राजा मट राज , पिष्टपुर का महेंद्रगिरि, कोतूर का स्वामी दत्त, एरंड पल का दमन , सांची का विष्णु गोप , अवमुक्त का नील राज , व्यंग्य का हस्तीवर्मा, पालक का उग्रसेन, देव राष्ट्र का कुबेर, कुंतलपुर का धनंजय - इन राज्यों के प्रति समुद्रगुप्त ने ग्रहण मोक्ष अनुग्रह की नीति अपनाई इस नीति के तहत इन राज्यों को जीतकर वापस लौटा दिया व उन से भेंट उपाधि प्राप्त किए।
समुद्रगुप्त द्वारा आर्यवर्त के प्रथम युद्ध में पराजित राजाओं के नाम ? अच्युत ,नागसेन, कोत कुलज, गणपति नाथ ।
समुद्रगुप्त द्वारा आर्यवर्त के द्वितीय युद्ध में पराजित राजा ? रुद्रदेव, मतील, नागदत्त ,चंद्र वर्मा, गणपती नाग, नागसेन, अच्युत, नंदी ,बल वर्मा । 



इन राज्यों के प्रति समुद्रगुप्त ने प्रसभोद्धरण की नीति अपनाई। इस नीति का अर्थ है जड़ मूल से उखाड़ फेंकना ।
अश्वमेघ यज्ञ का उल्लेख समुद्रगुप्त के सिक्कों पर मिलता है ।
चीनी स्रोतों के अनुसार श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने समुद्रगुप्त के पास भेज कर एक एक बौद्ध मंदिर के निर्माण की अनुमति प्राप्त की ।



समुद्रगुप्त द्वारा प्रत्यंत राज्यों की विजय। उत्तरी व उत्तरी पूर्वी सीमा पर स्थित पांच राज्य थे ?


  1. समतट -  पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) का समुद्र तटवर्ती प्रदेश। 

  2. देवास - असम स्थित डबोक स्थान या ढाका व चटगांव।  

  3. कामरूप - असम। 

  4. कीर्तपुर -  कुमायूं , गढ़वाल और रुहेलखंड के क्षेत्र । 

  5. नेपाल -  आधुनिक नेपाल राज्य।


 उनके प्रति सर्वकरदानाज्ञाकरण प्रणामागमन की नीति अपनाई गई जिसके तहत वे समुद्रगुप्त को सभी प्रकार के कर देते थे । उसकी आज्ञाओं का पालन करते थे तथा उससे प्रणाम करने के लिए राजधानी में उपस्थित होते थे 


विंसेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन भी कहा हैं।


  समुद्रगुप्त ने कविराज की उपाधि धारण की । उसके कुछ सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है ।


समुद्रगुप्त ने बुद्ध भिक्षु वसुबंधु को संरक्षण दिया। इलाहाबाद स्तंभलेख में (प्रयाग प्रशस्ति) समुद्रगुप्त की धर्मप्रचारबंधु उपाधि का उल्लेख मिलता है।


प्रयाग प्रशस्ति के रचनाकार हरिषेण थे जबकि इसे स्तम्भ पर उत्कीर्ण तिलभट्ट ने कराया।


समुद्रगुप्त की पश्चिमी व उत्तर पश्चिमी सीमा पर स्थित नौ गणराज्य


मालव ,अर्जुनायन , यौद्धेय, मंद्रक ,आभीर , प्रार्जुन , सनकानिक, काक, खारपारीक।


संभवत इन गणराज्यों ने स्वेच्छा से समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की तथा इसके प्रति भी प्रत्यंत राजाओं व राज्यों वाली नीति अपनाई।


समुद्रगुप्त द्वारा जीते गए राज्य और देशों को पांच समूह में बांटा गया ।


अपनी विजयों के उपरांत समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ किया, जिसका परिचय उसके सिक्कों तथा उत्तराधिकारियों के अभिलेखों से प्राप्त होता है।


उसके सिक्कों पर मुद्रित अप्रतिरत ,व्याघ्र पराक्रमांक, पराक्रमांक जैसे विशद उसके गौरवमय जीवन चरित्र का स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं ।
समुद्रगुप्त विजेता के साथ-साथ कवि संगीतज्ञ और विद्या का संरक्षक था । उसके सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए चित्रित किया गया है तथा कविराज की उपाधि प्रदान की गई है ।
इलाहाबाद के स्तंभ लेख में समुद्रगुप्त को धर्म प्रचार बंधु उपाधि का उल्लेख मिलता है।
समुद्रगुप्त ने महान बौद्ध भिक्षु वसुबंधु को सरंक्षण दिया था।


?? चन्द्र गुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (380 - 412 ई.) ??
❇   समुद्रगुप्त एवं चंद्रगुप्त के द्वितीय के बीच में रामगुप्त नामक निर्बल शासक का उल्लेख मिलता है । हालांकि गुप्त अभिलेखों की वंशावली में रामगुप्त का उल्लेख नहीं है। सर्व प्रथम 1924 में ईस्वी में राखल दास बनर्जी ने रामगुप्त की ऐतिहासिकता सिद्ध करने का प्रयास किया।
❇ विशाख दत्त की कृति देवीचंद्रगुप्त  में रामगुप्त की कथा का वर्णन है ।
❇ बाणभट्ट के हर्षचरित, राजशेखर काव्यमीमांसा तथा अरबी लेखक अबुल हसन अली कृत मुजमल- उल- तवारीख में भी रामगुप्त का उल्लेख है । इनके अनुसार चंद्रगुप्त द्वितीय अपने भाई राम गुप्त को हटाकर गद्दी पर बैठा तथा रामगुप्त की पत्नी ध्रुव देवी या ध्रुवस्वामिनी से विवाह किया ।
❇ चंद्रगुप्त द्वितीय का अन्य नाम देव श्री , देव गुप्त, देवराज आदि है । इसने विक्रमांग, विक्रमादित्य, नरेंद्रचंद्र ,श्री विक्रम सिंह, सिंह विक्रम, अजीत विक्रम, परम भागवत की उपाधि धारण की ।
❇ भारतीय अनुश्रुतियों में चंद्रगुप्त द्वितीय को शकारि भी कहा गया है ।
❇ उसने शक शासक रुद्र सिंह तृतीय को पराजित कर पश्चिमी भारत शकों का उन्मुलन कर दिया। शक विजय के फलस्वरुप उसने चांदी के व्याग्र शैली के सिक्के चलवाए तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की । इन चांदी के सिक्कों का भार 32 से 36 ग्रेन तक हैं।
❇ गुप्त शासकों में सर्वप्रथम चांदी के सिक्के चलाने का श्रेय चंद्रगुप्त द्वितीय को ही है । यद्यपी हाल ही में चंद्रगुप्त प्रथम का भी एक चांदी का सिक्का मिला है।
❇  उज्जैन उसके राज्य की दूसरी राजधानी थी ।
❇ गढ़वा अभिलेख में चंद्रगुप्त द्वितीय को परम भागवत का गया है । परम भागवत की उपाधि धारण करने वाला गुप्त प्रथम गुप्त सम्राट था ।
❇ चंद्रगुप्त द्वितीय ने नाग वंश की राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह किया। इस विवाह से उसे प्रभावती गुप्त नामक पुत्री हुई। उसने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय से किया । इस विवाहिक संबंध से गुप्त वाकाटक गठबंधन ने पश्चिमी भारत में शकों को उखाड़ फेंका ।
❇ चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के मुख्य अभिलेख उदयगिरि गुहालेख, गढ़वा अभिलेख, सांची अभिलेख व मथुरा शिलालेख हैं।
❇  महरोली के लौह स्तंभ से भी चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की उपाधियों की जानकारी मिलती हैं।
❇  कर्म दंडा अभिलेख से चंद्रगुप्त द्वितीय के मंत्री शिखर स्वामी का नाम मिलता है ।
❇ उसके दरबार में नौ विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी। जिसे नवरत्न कहा जाता था । इन विद्वानों के नाम है ? कालीदास, धन्वंतरी, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु , वेताल भट्ट , घटकर्पर , वराह मिहिर तथा वररुचि ।
❇ चीनी यात्री फाह्यान ( 399-414ई.) चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में भारत आया। हालांकि अपने यात्रा लेख में कहीं भी सम्राट के नाम का उल्लेख नहीं करता है।



❇  चंद्रगुप्त द्वितीय ने कालीदास को अपना दूत बना कर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा ।
❇ चंद्रगुप्त द्वितीय के मथुरा लेखमें सर्वप्रथम गुप्त संवत का उपयोग हुआ है । यह चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल का प्रथम लेख (गुप्त संवत 61 - 380 ईसवी) हैं।
❇  चंद्रगुप्त द्वितीय की दिग्विजय का उल्लेख उसके उदयगिरी ग्वालियर से होता है।
❇  चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में पाटलिपुत्र एवं उज्जैनी विद्या के प्रमुख केंद्र थे । उज्जैयनी उसकी दूसरी राजधानी भी थी।
❇  चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल का स्मरण लड़ाइयों के कारण नहीं बल्कि कला और साहित्य के प्रति उसके अघात अनुराग के कारण करते हैं।
❇  पाटलिपुत्र से ही फाह्ययान ने वापसी यात्रा आरंभ की। अपनी पूरी यात्रा विवरण में वह कई भी सम्राट का नाम उल्लेख नहीं करता है ।
❇ चंद्रगुप्त द्वितीय का काल ब्राह्मण धर्म के चरमोत्कर्ष का काल था।


?? कुमार महेन्द्रादित्य (415-455 ई.) ??
☀  कुमारगुप्त के शासन काल की प्रथम तिथि 415 इसवी उसके बिलसेड अभिलेख से ज्ञात होती है तथा बिलसेड अभिलेख से ही कुमारगुप्त तक गुप्त की वंशावली ज्ञात होती है ।
☀ वत्स भट्टी द्वारा लिखित मंदसौर प्रशस्ति से (473 ईस्वी) कुमारगुप्त प्रथम के शासन की जानकारी मिलती है। यद्यपि यह अभिलेख कुमार गुप्त द्वितीय के समय का है ।
☀ गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के मिले हैं ।
☀ मध्य भारत में चांदी के सिक्कों का प्रचलन कुमारगुप्त ने किया । पश्चिमी भारत में चंद्रगुप्त द्वितीय को यह श्रेय जाता है।
☀  कुमारगुप्त के सिक्कों पर गरुड़ के स्थान पर मयूर की आकृति उत्कीर्ण है ।
☀ कुमारगुप्त प्रथम ने अनंत देवी से विवाह किया ।
☀ स्कंद गुप्त के भीतरी अभिलेख से पता चलता है कि कुमारगुप्त के अंतिम दिनों में पुष्य मित्रों का आक्रमण हुआ। उसके पुत्र स्कंद गुप्त ने पुष्यमित्रों को पराजित किया ।
☀ कुमारगुप्त के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई ।इसे महायान बौद्ध धर्म का ऑक्सफोर्ड भी कहा जाता है।
☀  कुमार गुप्त ने महेंद्रादित्य, श्री महेंद्र , अश्वमहेंद्र आदि उपाधियां धारण की ।
☀ व्हेनसांग के विवरण के अनुसार इसका संस्थापक शक्रादित्य था जो कि कुमारगुप्त की उपाधि थी ।
☀ कुमारगुप्त के सिक्कों से पता चलता है कि उसने अश्वमेघ यज्ञ किया ।
☀ गढ़वा लेख से कुमारगुप्त को परम भागवत कहा गया है।
☀ कुमारगुप्त प्रथम के दामोदरपुर ताम्रपत्र लेख (बांग्ला देश के दिनाजपुर जिले में ) में भूमि क्रय विक्रय संबंधी विवरण दिया गया है ।इसके अतिरिक्त बांग्लादेश के धनदेह एवं वैग्राम नामक स्थानों से कुमारगुप्त के ताम्रपत्र मिलते हैं ।
☀ भीतरी अभिलेख के अनुसार स्कंद गुप्त ने क्रमाद्वित्य व विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
☀  मंदसौर प्रशस्ति के अनुसार मंदसौर मालवा का राज्यपाल बंधु वर्मा था। इसमें बंधु वर्मा द्वारा सूर्य मंदिर के निर्माण का भी उल्लेख है । मंदसौर का अन्य नाम दशपुर भी था।
☀ तुमैन अभिलेख जो 435 ईसवी का हैं, इसमें कुमारगुप्त प्रथम को शरद कालीन सूर्य की भांति बताया गया है।
☀  कुमारगुप्त प्रथम पहला गुप्त शासक है जिसके अभिलेख बंगाल से मिले हैं ।यह है ?  दामोदरपुर ताम्रपत्र , वैग्राम ताम्रपत्र , धंनदैह ताम्र पत्र।


??स्कन्दगुप्त (455-467 ई.) ??
?  जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार स्कंद गुप्त के शासक बनते ही हुणों का आक्रमण हुआ। उसने हुणों को पराजित किया। जूनागढ़ अभिलेख में हुणों को मलेच्छ कहा गया है ।
? उसने गिरनार स्थित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया । इस झील का निर्माण चंद्रगुप्त मौर्य के गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य ने किया था। अशोक के गवर्नर यवन राज तुषास्प तथा रुद्रदामन के गवर्नर सुविशाख के  ने इसकी मरम्मत करवाई।
? सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण सौराष्ट्र के गवर्नर प्रणदत्त के पुत्र चक्रपालित की देखरेख में हुआ। उसने झील के किनारे एक विष्णु मंदिर का निर्माण भी करवाया।
?  स्कंद गुप्त ने चीनी सम्राट के दरबार में राजदूत भेजा था ।
? स्कंद गुप्त ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया ।
? स्कंद गुप्त के भीतरी अभिलेख (गाजीपुर जिले के सैदपुर तहसील में )पुष्य मित्रों और उनके साथ स्कंद गुप्त के युद्ध का वर्णन है । इसके अनुसार कुमारगुप्त के शासन के अंतिम वर्षों में पुष्य मित्रों का आक्रमण हुआ। परंतु कुमारगुप्त के पुत्र स्कंद गुप्त से पुष्यमित्र पराजित हुए। भीतरी अभिलेख के आठवे श्लोक में हुणों के साथ भयंकर युद्ध व हुणों की स्कंद गुप्त से पराजय का उल्लेख है ।
? स्कंद गुप्त को कहोम स्तंभलेख में शक्रोपम तथा जूनागढ़ अभिलेख में श्रीपरीक्षितवक्षा कहा गया है ।? स्कंद गुप्त ने परम भागवत की उपाधि धारण की। स्कंद गुप्त वैष्णव था ।
? स्कंद गुप्त के काल में स्वर्ण सिक्कों का वजन बढ़कर 144 से 146 ग्रेन तक हो गया। पूर्व गुप्त सम्राटों के समय वह 118 से 123 ग्रेन होता था । स्कंद गुप्त के समय के सिक्कों में मिलावट भी सबसे ज्यादा थी ।
?स्कंद गुप्त पश्चिमी भारत में चांदी के सिक्कों को जारी रखने वाला गुप्त वंश का अंतिम शासक था।
?  स्कंद गुप्त की मृत्यु के पश्चात गुप्त साम्राज्य का पतन प्रारंभ हो गया। स्कंद गुप्त के उत्तराधिकारी निम्नलिखित थे ?  _पूरू गुप्त , कुमार गुप्त द्वितीय , बुधगुप्त , नरसिंह गुप्त बालादित्य , भानुगुप्त (इसके समय का 510 ईसवी का एरण अभिलेख है जिसमें सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय उल्लेख है )।
?  नरसिंह गुप्त बालादित्य के समय गुप्त साम्राज्य तीन भागों में बांट गया। मगध क्षेत्र में नरसिंह गुप्त शासक था । मालवा में भानुगुप्त तथा बंगाल में वैन्य गुप्त ने स्वतंत्र शासन स्थापित किया।
?  व्हेनसांग के अनुसार नरसिंह गुप्त बालादित्य ने हुण  नरेश मिहिरकुल को पराजित कर बंदी बना लिया । परंतु बालादित्य ने अपनी माता के कहने पर उस से मुक्त कर दिया।
? नरसिंह गुप्त के बाद उसके पुत्र कुमारगुप्त तृतीय शासक बना। कुमारगुप्त तृतीय गुप्त वंश का अंतिम महान शासक था। जबकि विष्णुगुप्त अंतिम गुप्त शासक था। इसने चंद्र आदित्य की उपाधि धारण।


?? गुप्त प्रशासन ??
❇  गुप्त सम्राटों ने महाराजाधिराज, परम भट्टारक जैसी बड़ी बड़ी उपाधि धारण की तथा अश्वमेघ यज्ञ के द्वारा अन्य छोटे शासकों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की ।
❇ गुप्त अभिलेखों में अप्रतिरथ की उपाधि केवल समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के लिए काम ली गई है । अप्रतिरथ का अर्थ है अद्वितीय योद्धा।
❇  इस समय राजा के देवी उत्पत्ति का सिद्धांत जो कि मनुस्मृति में हैं , अब लोकप्रिय नहीं रहे। बाणभट्ट ने  देवी उत्पत्ति के सिद्धांत का तिरस्कार किया है।
❇  राजपद वंशानुगत था पर राजगद्दी हमेशा बड़े पुत्र को नहीं मिलती थी ।
❇ राजा को धर्म के अनुसार वर्णाश्रम धर्म का रक्षक बताया गया है । राजा को विष्णु के अवतार के रूप में देखा गया है।
❇  532 ई. के यशोवर्मन के अभिलेख में शासक को चारों वर्णों के हितों का रक्षक बताया गया है ।
❇ मोर्य काल के केंद्रीय नियंत्रण के विपरीत गुप्त शासन में विकेंद्रीकरण की प्रवति बढ़ने लगी ।
❇ गुप्त शासक पराजित शासकों के साम्राज्य का अधिग्रहण करने के स्थान पर उनसे अधीनता स्वीकार करवा कर उनसे वार्षिक कर तथा उपहार लेकर ही संतुष्ट रहें । उनके आंतरिक शासन में हद से नहीं किया । अतः गुप्त राजनीतिक व्यवस्था सामंती हो गई थी। इसमें विकेंद्रीकरण की प्रगति बढ़ने लगी।


?  गुप्तकालीन अधिकारी ?
☀ प्रतिहार  ?अंतपुर का रक्षक
☀महाप्रतिहार  ? राजमहल का प्रधान सुरक्षा अधिकारी
☀  महाबला अधिकृत  ?  सेना का सर्वोच्च अधिकारी
☀ महा दंडनायक  ?मुख्य न्यायाधीश
☀महासंधिविग्रहिक  ? युद्ध व शांति का अधिकारी ,विदेशमंत्री
☀  पुस्तकाल  ?भूमि का लेखा जोखा रखने वाला अधिकारी
☀ दंडपाशिक  ? एक पुलिस अधिकारी
☀ विनयस्थितिस्थापक  ? धार्मिक मामलों का अधिकारी
☀  महाअक्षपटलिक  ? आय-व्यय का लेखा जोखा रखने वाला अधिकारी
☀ शौल्किक  ? सीमा शुल्क विभाग का प्रधान
☀  गोल्मिक   ? वन अधिकारी
☀ ध्रुवाधिकरणिक  ? राजस्व एकत्रित करने वाला अधिकारी
☀  अमात्य  ? नौकरशाह
☀ कुमार अमात्य   ? सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी
☀ पुरपाल   ? नगर का मुख्य अधिकारी
☀ महाभंडाराधिकृत   ? राजकीय कोष का प्रधान
☀अग्रहारिक    ?  दान विभाग का प्रधान
☀ रणभंडागारिक   ? सेना के सम्मान की व्यवस्था कर रखने वाला पदाधिकारी
☀ करणिक  ?   लिपिक


? गुप्तकालीन प्रसिद्ध मंत्री ?
☀  वीरसेन   ? चंद्रगुप्त द्वितीय का संधिविग्रहक
☀ पृथ्वीसेन   ? कुमारगुप्त का प्रथम का मंत्री
☀ हरिषेण   ?  समुद्रगुप्त का संधिविग्रहक
☀ शिखर स्वामि   ? चंद्रगुप्त द्वितीय मंत्री
☀ आम्रकाद्दर्व   ? चन्द्र गुप्त द्वितीय का सेनापति।


? महत्वपूर्ण तथ्य ?
⚜  गुप्त प्रशासन में मौर्य, सातवाहन, शक , कुषाण प्रशासन के अंश थे ।
⚜ गुप्त नौकरशाही मौर्य नौकरशाही जितनी व्यापक नहीं थी क्योंकि गुप्त शासकों ने मौर्य की भर्ती आर्थिक गतिविधियों का राज्य का अधिक नियंत्रण नहीं किया ।
⚜ मंत्री का तथा अमात्य राजकीय कार्य में सम्राट को सहायता देते थे ।
⚜ कामंदक नीतिसार में मंत्रियों व अमात्यों के बीच अंतर स्पष्ट किया गया है । मंत्री का मुख्य काम राजा को किसी गुढ़ विषय पर मंत्रणा देना था ।
⚜ गुप्त युग में मंत्रिपरिषद नामक संस्था मौजूद थी। कामंदक व कालिदास दोनों मंत्रिपरिषद का उल्लेख करते हैं।
⚜  अमर्त्य आधुनिक काल की ब्यूरोक्रेसी के समान थे । वे राज्य के बड़े अधिकारी थे।
⚜  कात्यायन स्मृति के अनुसार अमात्यों की नियुक्ति ब्राह्मण वर्ग से होनी चाहिए । अमात्यों की नियुक्ति सम्राट स्वयं करता था।
⚜  कभी-कभी सम्राट एक ही व्यक्ति को कई पदों पर नियुक्त कर देता था। उदाहरणार्थ हरिषेण नामक व्यक्ति को कुमारामात्य, संधिविग्रहिक और महा दंडनायक नामक तीनों पद पर था ।
⚜ गुप्तकाल में उच्च पद बाद में वंशानुगत होने लगे । हरिषेण उसका पुत्र वीरसेन समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में अमर्त्य थे । इसी तरह पर्णदत उसका पुत्र चक्र पालित स्कंद गुप्त के काल में सौराष्ट्र में अधिकारी थे ।
⚜ गुप्त साम्राज्य में कुमार आमात्य सबसे बड़ा अधिकारी होता था । उनको राजा द्वारा केंद्रीय प्रांतों में नियुक्त किया जाता था ।वह उन्हें नगद वेतन मिलता था ।
⚜ गुप्त काल में प्रारंभ में अधिकारियों को नगद वेतन मिलता था । परंतु बाद में भूमि दान की प्रथा भी प्रचलित रूप चली ।
⚜ यह महत्वपूर्ण है कि सातवाहन काल में भूमि अनुदान ब्राह्मणों व पुरोहितों को ही दिया जाता था । किंतु गुप्त काल के अंत में प्रशासनिक अधिकारियों को भी भूमि अनुदान दिया जाने लगा।
⚜  छठी शताब्दी के आते आते कुमारमा्त्य जैसे अधिकारी भी सम्राट की अनुमति के बिना भूमि दान करने लगे । भूमि पर राजस्व के साथ-साथ प्रशासनिक व न्यायिक अधिकार भी दानग्रहीता को दे दिए जाते थे । जिससे विकेंद्रीकरण व सामंतवाद को बढ़ावा मिला । सामंत अपनी भूमि के वास्तविक स्वामी बन गए।
⚜  सामंतों का सम्राट से मात्र इतना संपर्क था कि वह समय समय पर सम्राट को उपहार भेंट आदि प्रस्तुत कर सम्राट के प्रति निष्ठा व्यक्त करते रहते थे ।
⚜ गुप्त शासकों का राजचिन्ह गरुड़ था।


?? प्रान्तीय प्रशासन ??
☀  सम्राट द्वारा स्वयं शासित क्षेत्र की सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई देश थी। देश का प्रशासन गोप्ता होता था ।
☀ एक दूसरी प्रादेशिकी ईकाई भुक्ति थी । भुक्ति का शासक उपरिक होता था।ऊपरिक को भोगिक या भोगपति भी कहते थे।
☀  भुक्ति के नीचे विषय नामक प्रशासनिक इकाई होती थी। जिसे जिला का प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी विषयपति कहलाता था । विषयपति की नियुक्ति संबंधित प्रांत के ऊपरिक द्वारा की जाती थी ।
☀ विषयपति को सलाह देने के लिए विषय परिषद होती थी जो नगर सभा के समान थी। इसके सदस्य नगर श्रेष्ठी, सार्थवाह, प्रथम कुलिक व प्रथम कायस्थ होते थे ।
☀ विषय पति के प्रधान कार्यालय के अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाले अधिकारी को पुस्तपाल कहा जाता था।
☀  विषय परिषद या विषय समिति के सदस्य विषय महत्तर कहे जाते थे ।
☀ विषय पेठ या विथी में बांटा था । पेठ का उल्लेख संक्षोभ के खोह अभिलेख में है ।
☀ नगर का प्रधान अधिकारी पूरपाल या द्रांगिक कहा जाता था। वह कुमार आमात्य की श्रेणी का अधिकारी होता था।
☀ जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता है कि गिरनार नगर का पूरपाल चक्र पालित था।
☀  ग्राम का सर्वोच्च अधिकारी ग्रामीण या महतर होता था । उसकी सहायता के लिए ग्रामसभा होती थी।
☀ ग्राम समूह की छोटी इकाई को पेठ कहते थे ।
☀ प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी ।
☀ ग्रामसभा को मध्य भारत में पंच मंडली कहा जाता था।
☀  ग्रामसभा गांव की सुरक्षा, निर्माण कार्य , राजस्व वसूली कर राजकोष में जमा कराना आदि कार्य करती थी।
☀  दामोदरपुर ताम्रपत्र में ग्राम सभा के कुछ पदाधिकारियों के नाम जैसे - महत्तर, अष्टकुल अधिकारी , ग्रामीक, कुटुंबिन आदि मिलते हैं ।
☀ तुम वारक भी ग्रामसभा से जुड़ा अधिकारी था।


?? न्याय प्रशासन ??
⚜  गुप्त काल में न्याय व्यवस्था पहले की तुलना में अधिक विकसित थी।
⚜ उत्तराधिकार के बारे में व्यापक कानून बने ।
⚜ सम्राट सर्वोच्च न्यायाधीश होता था ।
⚜ व्यापारियों की श्रेणियों के अलग न्यायालय व अपने कानून होते थे । जो अपने सदस्यों के विवादों का निपटारा करते थे।
⚜ स्मृतियों में पूग व कुल नामक संस्थाओं के भी उल्लेख मिलते हैं । जो अपने सदस्यों के विवादों का फैसला करती थी।
⚜  पूग नगर में रहने वाली विभिन्न जातियों की समिति होती थी । जबकि कुल समान परिवार के सदस्यों की समिति थी।
⚜  गांवों में ग्राम पंचायत न्याय कार्य करती थी ।
⚜ गुप्त अभिलेखों में न्यायाधीशों को दंडनायक ,महा दंडनायक व सर्व दंडनायक कहते थे।
⚜  फाह्यान के विवरण के अनुसार दंड विधान कोमल था तथा शारीरिक यातना एवं अर्थदंड नहीं दिए जाते थे । बार-बार राजद्रोह करने वाले व्यक्ति का दाहिना हाथ काट लिया जाता था ।
⚜ गुप्तकाल में पहली बार दीवानी और फौजदारी कानून भली-भांति परिभाषित एवं प्रथक हुए ।
⚜ पुलिस विभाग के अधिकारियों में उपरीक,  दशापराधिक ,चोरोंद्वाराणिक, दण्डपाशिक आदि प्रमुख थे ।
⚜ सेना के चार अंग पैदल सेना, रथ सेना ,अश्व  सेना तथा गजसेना थे।
⚜ सेना का सर्वोच्च अधिकारी महाबल अधिकृत कहलाता था।
⚜ गज सेना का प्रधान महापीलुपति तथा अश्वसेना का प्रधान भट्टा पशुपति कहलाता था।
⚜  पैदल सेना की टुकड़ी को जमुय तथा साधारण सैनिक को चाट का जाता था ।
⚜ सेना के साजो सामान की देख रेख करने वाला अधिकारी रण भंडारगारिक कहलाता था।
⚜ रथों का महत्व समाप्त हो गया व घोड़ों का महत्व बढ़ा।

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