मध्यप्रदेश में गोंड जनजाति

मध्यप्रदेश में गोंड जनजाति


Gond tribe in Madhya Pradesh


गोंड जनजाति भारत की सबसे बड़ी जनजाति है गोंड की उत्पत्ति कोड शब्द से हुई है जिसका अर्थ है- पर्वत गोंड स्वयं को कोयतोर कहते हैं, इसका मतलब है - पर्वत वासी मनुष्य ! यह मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है इस जनजाति की संख्या जनगणना 2011 के अनुसार 4357918 हैं और यह प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है !

भौगोलिक वितरण- गोंड मध्यप्रदेश के अधिकांश भागों में निवास करते हैं जिनमें बेतूल छिंदवाड़ा होशंगाबाद बालाघाट शहडोल मंडला सागर जिले प्रमुख है !

शारीरिक विशेषताएं- गोंड द्रविडियन मूल के हैं सामान्यतः गोंड छोटे कद,गहरे काले रंग, मोटे होंठ ,बड़ी व चपटी नाक, चौड़े मुंह और सीधे बालों वाले होते हैं !

निवास- गोंड अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में निवास करते आए हैं पहाड़ी क्षेत्रों और घने जंगलों में इनके निवासी पाए जाते हैं मैदानी क्षेत्रों में इनके गांव कृषि योग्य भूमि जल प्राप्ति और सुरक्षा को ध्यान मे रख कर बनाए जाते हैं उनके घर घास फूस बा मिट्टी के बने होते हैं ! निवास के आधार पर गोंड जनजाति के 2 वर्ग हैं

  • राजगोंड- यह लोग भूस्वामी होते हैं

  • धुर गोंड- यह गोंड जनजाति का साधारण वर्ग है


रहन सहन- गोंड ज्यादातर कमर के नीचे वस्त्र पहनते हैं अब वे आधुनिक वस्त्रों का भी प्रयोग करने लगे हैं स्त्रियों में आभूषण एवं गोदना का प्रचलन अत्यधिक प्रचलित है पीतल मोती और मूंगा आदि के आभूषण अधिक प्रचलित होते हैं गोंड शाकाहारी व मांसाहारी दोनों होते हैं उनके भोजन में सामान्यता मोटे अनाज एवं कंदमूल शामिल होते हैं मोटे अनाज में बन्ना पेय पदार्थ अत्यधिक प्रिय होता है गोंड में अतिथि सत्कार का विशेष महत्व होता है प्रत्येक मकान में अतिथि के लिए साफ-सुथरा और छोटा कमरा बनाया जाता है !

सामाजिक व्यवस्था- गोंड जनजाति गणचिन्हो होती है गोंड समाज पितृवंशीय, पितृसत्तामत्क एवं पितृस्थानीय होता है परिवार का वृद्ध पुरुष मुखिया होता है गोंड सामान्यता एक विवाही होते हैं किंतु बहु विवाह को भी मान्यता प्राप्त है ममेरे - फुफेरे भाई बहनों में विवाह अधिमान्य होता है जिसे दूध लोटावा कहते हैं विधवा विवाह एवं वधू मुर्ली भी प्रचलित है

मृतक संस्कार के लिए अग्नि दाह और दफनाना दोनों प्रकार की प्रथा प्रचलित है गोंड कला संस्कृति संपन्न जनजाति है इन के अनेक परंपरागत पर्व है यथा बिदरी, हरदिली, नवाखानी, मेघनाथ, जावरा मड़ई आदि त्योहार और फसल कटाई के अवसर पर मनाया जाने वाले आनंद उत्सव में अनेक प्रकार के नृत्य करते हैं जिनमें कर्मा,सेला, सुआ, दिवारी गेंडी, रीना, कहरवा एवं बिरसा आदि प्रमुख है !

अर्थव्यवस्था- वर्तमान में गोंड स्थाई कृषि करने लगे इसके अतिरिक्त लघु वनोपज संग्रह, पशुपालन ,मुर्गी पालन मजदूरी भी इनके आजीविका के साधन है !

धार्मिक जीवन- गोंड जनजाति के धार्मिक विश्वास में टोटम का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्षेत्र अपने विशेष टोटम की पूजा करता है इसके अलावा प्राचीन देवी-देवताओं और आत्मा की पूजा का भी प्रचलन इस प्रकार की है आत्मावाद को मानने वाली जनजाति बूढ़ादेव इन के प्रमुख देवता हैं इसके अतिरिक्त दूल्हादेव,सूरजदेव नारायणदेव आदि भी हैं इनमें जादू टोना एवं टोटके का भी प्रचलन देखा गया है !

गोंड जनजाति की प्रमुख जातियां 

  1. अगरिया ➖ यह जनजाति लोहे का काम करना बाला वर्ग हैं

  2. परधान➖ परधान जनजाति मंदिरों पूजा पाठ तथा पुजारी का काम करने वाले गोंड होते हैं !

  3. कोइलाभूतिस➖ सी जनजाति नाचने गाने वाले गोंड होते हैं !

  4. ओझा➖ ओझा जनजाति पंडितताई तथा तांत्रिक क्रिया करने वाले होते हैं !

  5. सोलाहस➖ ये बढ़ई गिरी का काम करने वाले लोग हैं !


गोंडा में प्रचलित विवाह➖ गोंडा में मुख्यतः तीन प्रकार के विवाह प्रचलित है जो पठोनी विवाह,चढ़ विवाह लमसेना विवाह हैं !

गोंड जनजाति के प्रमुख नृत्य➖ सैला नृत्य, करमा नृत्य, दीवानी नृत्य, सजनी नृत्य, विरसा नृत्य, सुआ नृत्य, बड़ौनी नृत्य ,कहरवा नृत्य प्रमुख हैं 

Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )

विष्णु गौर सीहोर, मध्यप्रदेश


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