मध्य प्रदेश का इतिहास(History of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश का इतिहास(History of Madhya Pradesh)


मध्यप्रदेश भारत के केंद्र में स्थित है इसलिए मध्य प्रदेश को भारत का हृदय प्रदेश भी कहा जाता है हिमालय से भी पुराना है वह किसी समय वह संरचना का हिस्सा था जिसे गोंडवानालैंड कहा गया है!

मध्यप्रदेश के इतिहास को मुख्यता 4 भागों में विभाजित किया गया है !

1. प्रागैतिहासिक काल
2. प्राचीन काल
3.मध्य काल
4.आधुनिक काल

 

 1.प्रागैतिहासिक काल :- मध्यप्रदेश के विभिन्न भागों में किए गए उत्खनन और खोजो मे प्रागैतिहासिक काल सभ्यता के चिन्ह मिले हैं! आदिम प्रजाति नदियों के किनारे और गुफाओं में रहती थी !

मध्यप्रदेश के भोपाल. रायसेन .धनेरा .नेमावर .मोजावाडी .महेश्वर .देवगांव बरखेड़ा . सिंघनपुर. आजमगढ़ .पचमढ़ी. होशंगाबाद .मंदसौर तथा सागर के अनेक स्थानों पर इनके रहने के प्रमाण मिले हैं ! इस काल के मानव ने अपनी कलात्मक अभिरुचियों की भी अभिव्यक्ति की है!

होशंगाबाद के निकट गुफाओं भोपाल के निकट भीमबेटिका की कंदराओं तथा सागर के निकट पहाड़ियों से प्राप्त शैलचित्र इसके प्रमाण हैं

 

प्रागैतिहासिक काल को दो कालों में विभाजित किया गया है !
1.पाषाण काल
2.ताम्र पाषाण काल

 

1. पाषाण काल
मध्यप्रदेश में पाषाण काल के स्थल नर्मदा घाटी चंबल घाटी बेतवा घाटी सोनार घाटी भीमबेटिका की गुफा आदमी पाए गए हैं तथा 2000 ईसवी पूर्व नर्मदा की सुरय म घाटी में सभ्यता विकसित हुई!
इस काल के औजार बनावट अथवा लकड़ी के बेत वाले हस्त कुठार के अतिरिक्त खुरचनी .मुफ्ती कुठार तथा क्रोड मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों में पाए गए हैं!
मृदभांड बनाना , झोपड़ी बनाकर रहना ,वस्त्रों का प्रयोग करना , मनुष्य ने उत्तरपाषण काल में सीख लिया था !
उत्तर पाषाण काल को लघू औजार पाषाण काल भी कहते हैं !
नवपाषाण काल में मानव ने कृषि करना सीख लिया था
मानव पशु पक्षी तथा मछली को भोजन में प्रयोग करता था !

 

पाषाण काल के प्रमुख प्रागैतिहासिक स्थल एवं विशेषताएं

चंबल :- बेतवा, चंबल नर्मदा इत्यादि घाटी उसे बहुतायात औजार प्राप्त हुए हैं !नवपाषाण युग मध्य प्रदेश में लगभग 7000 ईसवी पूर्व में प्रारंभ हुआ यहां से सेल्ट कुल्हाड़ी बसूला रजक घन जैसे औजार मिलें है ! मनुष्य ने इसी काल में कृषि पशुपालन गृह निर्माण और अग्नि  जैसे क्रांतिकारी कार्यों को आपनाया है !
ऐरण ,गढी मोरेला,जतकरा , बाहुलई, बुसिगा  मुंनई , जबलपुर , दमोह , नंदगाव , होशन्गबाद , इस युग के साथ प्राप्त करते हैं!
आजमगढ़:- यह मध्य पाषाण कालीन है यह होशंगाबाद के निकट नर्मदा तट पर स्थित है आजमगढ़ प्रागैतिहासिक मानव की क्रीड़ा स्थली रहा है गुफा शैल चित्र यहां की प्रमुख विशेषता है!
 भीमबेटका :- प्रागैतिहासिक मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति के साथ चिन्ह विंध्य पर्वतों में स्थित भीमबेटका के से प्राप्त हुए हैं भीमबेटका में ऊंचे ऊंचे पत्थर के टीले के मध्य गुफाए निर्मित है!

 

2. ताम्र पाषाण काल
मध्यप्रदेश में बालाघाट एवं जबलपुर जिले के कुछ भागों में ताम्र कालीन औजार मिले हैं ! इनके अध्ययन से ज्ञात होता है कि वह समय देश के अन्य क्षेत्रों के समीप मध्य प्रदेश के कई भागों में इस सभ्यता का विकास हुआ !
यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के समकालीन थे !
मानव ने पत्थर के साथ तांबे का प्रयोग सीखा!
नर्मदा चंबल बेतवा नदी के किनारे और जबलपुर बालाघाट में इस सभ्यता का विकास हुआ!
मालवा के कायथा एरण .आवरा . नवदाटोली. डाँगवाला. बैसनगर से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं!
 डॉक्टर बी श्री वाकण कर ने नागदा काय था की खोज की!
 इस काल में पशुओं में गाय कुत्ता बकरी पाले जाते थे!
घुमक्कड़ जीवन समाप्त. खेती, पशुपालन प्रारंभ हो गया था!

 

ताम्र पाषाण काल के प्रमुख प्रागैतिहासिक स्थल एवं उनकी विशेषताएं
कायथा :-यह पहली ताम्रपाषाण बस्ती थी जिसका अस्तित्व 1380 से पूर्व तक रहा कायदा वराह मिहिर की जन्मभूमि थी!
 एरण :- यह सागर जिले में स्थित है इसका प्राचीन नाम ऐरिकिण था इस ताम्र वस्थी का समय 2000 ईसवी पूर्व से 700 ईसवी पूर्व माना जाता है जहां से तांबे की कुल्हाड़ियां सोने के गोल टुकड़े चित्र मृदभांड ताम्र कालीन बस्ती के प्रमाण आदि प्राप्त हुए !
नवदाटोली :-  यह महेश्वर में नर्मदा तट पर स्थित है इसका ताम्रपाषाण एक अस्तित्व 1637 ई.पूर्व के मध्य माना जाता है यहां से झोपड़ीनुमा मिट्टी के घरों के साक्ष्य मिले हैं जो चौकोर या आयताकार होते थे !
आवरा:- मंदसौर जिले में स्थित आगरा ग्राम से ताम्रपाषाण से लेकर गुप्त काल तक की विभिन्न अवस्थाएं एवं संबंधित सामग्री मिली है !
डांगवाला :-  यह उज्जैन से 32 किलोमीटर दूर बस्ती में स्थित है यह गत शताब्दी के उत्खनन से अस्तित्व में आई !
?नागदा:-  यह उज्जैन जिले में चंबल नदी के तट पर है इसताम्रपाषाण बस्ती से भी मृदभांड और लघु पाषान  के अस्त्र आदि मिले हैं!
खेड़ीनामा :- यह होशंगाबाद जिले में स्थित है 1500 पूर्व पुरानी ताम्रपाषाण बस्ती

2.  मध्य प्रदेश का प्राचीन इतिहास
प्राचीन काल का इतिहास वेदिक युग  1500 से 1600 ईसवी पूर्व के आसपास से शुरू होता है मिट्टी के बर्तन चित्रित धूसर मृदभांड जो उत्तर में लौह युग के संकेत माने जाते हैं इनका मध्यप्रदेश में आभाव था इस प्रकार मध्य प्रदेश का इतिहास ताम्रपाषाण के बाद लोहयुग से शुरू होता है
दक्षिण भारत के कुछ स्थलों से प्राप्त विशाल पासवान समाज में को महापाषाण स्मारक मेघालय कहा जाता है मध्य प्रदेश के सिवनी और रीवा जिले में ऐसे स्मारक  ऊत्खनित किये गये है!

वैदिक काल
वस्तुतः ऋग्वैदिक काल 1500 -1000 ईस्वी पूर्व में आर्य संस्कृति उत्तर तक सीमित है और उत्तर तक (1000-600)ईस्वी पूर्व समय में ही उसने विंध्याचल को पार कर मध्यप्रदेश में कदम रखा ! ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार जाति का उल्लेख है वह मध्य प्रदेश के जंगल में निवास करती थी !

 आर्यो के भारत में आगमन के साथ प्रारंभ हुआ!
 आर्यों ने पंजाब में बचने के बाद अन्य स्थान पर प्रवेश किया
यादव का क्बीला इस क्षेत्र में आकर बसा !
कालांतर में अत्री पाराशर भारद्वाज भारगाव आये!

मनु के 10 पुत्रों में से एक करूष ने कारुस वंश  बघेलखंड की स्थापना की!
 चंद्रवंश  - मनु की पुत्री इला का विवाह सोम से हुआ और ऐलवंश की स्थापना हुई!
 सोम का शासन बुंदेलखंड में था !
आयु के पुत्र यदि यथार्थ हुए जिसने अपना साम्राज्य पांच पुत्रों में बांट दिया!
 पुत्र वधू को चर्मण्वती (चंबल) वेत्रवती (बेतवा ) वती नदी घाटी क्षेत्र मिला जहां यदु के नाम पर यादव वंश स्थापित हुआ !

इक्ष्वाक वंश
मनु के पुत्र  इक्ष्वाकु के नाम पर इस वंश की स्थापना हुई जिसका शासन दंडकारण्य रहा  है
इस वंश के प्रतापी राजा मांधाता ने अपने पुत्र पुरुकुत्स को मध्य भारत के नाग राजाऔ की सहायता हेतु भेजा (गंधर्व के विरुद्ध) !
 नाग कुमारी रेवा नर्मदा का विवाह पुत्र कुरुसत्स  के साथ हुआ!
 इस वंश के मुकुल चंद रिक्षी  की परिपाता पर्वतमालाओं के बीच नर्मदा नदी के तट पर पूर्वज मांधाता के नाम पर मांधाता ओंकारेश्वर नगरी  बसाई!

महाकाव्य काल
रामायण काल में प्राचीन मध्य प्रदेश के अंतर्गत दंडकारण्य महाकांतर के घने वन क्षेत्र क्षेत्र विंध्य सतपुड़ा के अलावा यमुना के कोठे का दक्षिणी भाग और गुर्जर प्रदेश के कई क्षेत्र स्थित के घर में थे यदुवंशी नरेश मधु इस क्षेत्र के सासक थे जो अयोध्या के राजा दशरथ के समकालीन थे जनश्रुतियो के अनुसार राम ने अपने वनवास के कुछ क्षण दंडकारण्य (छत्तीसगढ़ )में विताये थे!
 बाल्मीकि आश्रम में माता सीता ने लव कुश को जन्म दिया था यह आश्रम तमसा नदी के तट पर था!
रामायण कालीन त्रेता युग के बाद महाभारतकालीन द्वापर युग प्रारंभ हुआ
 महाभारत में माहिष्मती उज्जैनी कुंतलपुर विराट पुरी को मध्यप्रदेश के प्रमुख नगर बताया गया है!
 यमुना से गोदावरी तक का क्षेत्रीय राजनीतिक दृष्टि से अयोध्या का था

महाजनपद काल
 छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लगभग बहुत विभाजन ग्रंथों में वर्णित महा जनपदों की संख्या उत्तर भारत में 16 थी जिन में चेदि तथा अवंति जनपद मध्य प्रदेश के इतिहास से संबंधित थे!

अवंति जनपद काल
इस राज्य का अर्थ अवंति महाजनपद अत्यंत विशाल था यह जनपद पश्चिमी गौर मध्य मालवा के क्षेत्र में बसा हुआ था जिसके दो / उत्तरी अवंती जिसकी राजधानी उज्जैनी थी तथा दक्षिणी अवंती जिसकी राजधानी माहिष्मती थी इन दोनों क्षेत्रों के बीच नेत्रावती नदी बहती थी!

 पवन की राज्य लोहा इस्पात के अस्त्र-शस्त्र बनाने वाले श्रेष्ठ कारीगरो मे धानी था
मगध की राजधानी बैशाली और गिरीव्रज दोनों थे परंतु बाद में वैशाली को मुख्य राजधानी बनाया गया शिशुनाग के बाद पुत्र कालाशोक राजा बना और पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया!
अवंती के दो प्रसिद्ध नगर कुररधर और सुदर्शन पुर का वर्णन बौद्ध भोजपुर में भी स्तूपों का निर्माण करवाया

मोर्यकाल
चाणक्य ने चंद्रगुप्त को तक्षशिला में सैनिक शिक्षा दिलवाकर पारंगत किया !
चंद्रगुप्त ने भारत को यूनानी दासता से मुक्त कराकर सिंध पंजाब और मगध को अपने अधीन कर लिया !
चंद्रगुप्त का पुत्र बिंदुसार था जिसका पुत्र अशोक अवंतिका उप राजा था जो बाद में मगध का शासक बना व देवानामप्रिय की उपाधि धारण की !
अशोक के काल में तृतीय बौद्ध संगीति पाटलिपुत्र में हुई जिसकी अध्यक्षता में मोगलीपुत्र नामक बौद्ध भिक्षु ने की !
?अशोक  ने सांची स्तूप स्तंभलेख रायसेन के अलावा विदिशा सत्य धारा अंधेर सुनामी भोजपुर में भी स्तूपों का निर्माण करवाया!
 अशोक ने 84000 स्तूप का निर्माण करवाया था
 अशोक का विवाह विदिशा की राजकुमारी महादेवी से हुआ जिससे पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा का जन्म हुआ !
 मोर्य काल में प्रशासनिक अधिकारी प्रांत मंडल जिला ग्राम था
मौर्य युग में चार व्यापारिक मार्ग थे जिनमें से तीसरा मार्ग दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती तक था जिसमें मध्य-प्रदेश के माहिष्मती उज्जैनी और विदिशा  नगर स्थित थे
चौथा मार्ग भ्रगूकच्छ क्षेत्र मथुरा तक था जिस के मार्ग में उज्जैनी था !
अवंती के माहिष्मती महेश्वर में सूती वस्त्र बनाने  का केंद्र था !
मौर्य युग में सोने के सिक्के  चांदी तांबा छोटे सिक्के का चलन था और आहत के सिक्के भी मिले हैं !
गुर्जरा और सिहोर अभिलेख में अशोक के नाम का उल्लेख मिलता है !
मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण शिलालेख मध्यप्रदेश के करीतलाई  खरकाई .कसरावद .आरंग रामगढ़ स्थान से मिले है !
 बेसनगर विदिशा से मौर्यकालीन यक्ष की प्रतिमा हुई है.!
 अशोक नें भरहुत सतना में भी एक स्टुप बनवाया था ! 

प्राचीन जनपद के परिवर्तित नाम (नया जनपद)
1. अवंती (अवंतिका):- उज्जैन
2. वत्स :-ग्वालियर
3. चेदि :- खजुराहो
4.अनूप :- निमाड़(खंडवा)
5. दशर्ण :- विदिशा
6.तुन्डीकेर :-दमोह
7.नलपुर :- नरवर (शिवपुरी)

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