मुस्लिम लीग की स्थापना 1906(Muslim League Established 1906)

मुस्लिम लीग की स्थापना 1906


(Muslim League Established 1906)


बंगाल के विभाजन ने सांप्रदायिक फुट को जन्म दिया था भारतीय राष्ट्रवाद पर लार्ड कर्जन का सबसे बड़ा हमला था बंगाल का विभाजन करना बंग-भंग राष्ट्रवाद पर हमला होने के साथ ही हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की कुटिल नीति का हिस्सा था इस कारण 1904 में बंग भंग की योजना का औचित्य मुस्लिम जनता को समझाते हुए कर्जन ने दावा किया था बंगाली मुसलमानों को एकता का ऐसा अवसर प्रदान किया जा रहा है जो मुसलमान सूबेदारों और बादशाहों के समय से उन्हे नसीब नहीं हुआ था ब्रिटीश सरकार द्वारा मुसलमानों को यह अवसर क्यों प्रदान किया गया इसे पूर्वी बंगाल के नए प्रांत के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर ब्लामफील्ड फूलर ने अपने भाषणों मे स्पष्ट किया कि अंग्रेज सरकार की दो पत्नियां हैं हिंदू और मुसलमान इनमें वह मुसलमान को अधिक चाहती है सरकार की यह विभाजनकारी नीति एक बड़ी सीमा तक सफल रही 1906मे पूर्वी बंगाल में हुए दंगे इस नीति का ही नतीजा थे बंगाल विभाजन के विरोध में जो स्वदेशी आंदोलन चलाया उस में मुसलमान बड़ी संख्या में अलग रहे इसका प्रमुख कारण था कि अंग्रेज द्वारा मुसलमानों को समुचित सुविधाएं देकर राष्ट्रीय आंदोलन से अलग हो सरकार के पक्ष में रखा जा सकता है इस प्रकार बंगाल विभाजन में से सांप्रदायिकता का उदय हुआ               

  •  बंगाल विभाजन की घोषणा और दोनों समूह में उत्पन्न इस एहसास का नतीजा था कि 1906 का शिमला प्रतिनिधिमंडल 1 अक्टूबर 1906 को आगा खा के नेतृत्व में 35 सदस्य का एक मुस्लिम शिष्टमंडल गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो से मिला था

  • मुस्लिम शिष्टमंडल ने लार्ड मिंटो को एक स्मृति पत्र दिया और मांग रखी की भावी संवैधानिक सुधारों में मुस्लिम रितुओं का समुचित ध्यान रखा जाए

  • चुनाव में पृथक निर्वाचन क्षेत्रों और आरक्षण की मांग करते हुए कहा गया कि मुसलमानों के संबंध में निर्णय उनकी संख्या के अनुपात में नहीं अपितु उनके महत्व के आधार पर लिया जाए

  • लार्ड मिंटो ने शिष्टमंडल को वचन दिया कि नए सुधारों में उनकी मांगों को का पूरा ध्यान रखा जाएगा वह एक संप्रदाय के रूप में मुसलमानों के राजनीत अधिकारों और हितों की रक्षा की जाएगी मौलाना महमूद अली ने कांग्रेस के काकीनाडा अधिवेशन में आरोप लगाया कि शिमला में जो कुछ भी हुआ वह राजाज्ञा से खेला गया नाटक था यह तथ्य मुस्लिम नेता मोहिसुन-उल- मुल्क व अन्य अलीगढ़ कॉलेज के प्राचार्य आर्कबोल्ड के माध्यम से वायसराय के निजी सचिव डनलप स्मिथ और और लखनऊ के कमिश्नर हारकोर्ट बटलर के साथ घनिष्ठ संपर्क रखते थे इस आरोप को बल प्रदान करता है जहां तक इस कार्य के प्रभाव परिणाम का संबंध है वह दिसंबर 1906 में लीग की स्थापना के रूप में सामने आया


लार्ड कर्जन की प्रेरणा से ढाका के नवाब सलीमुल्ला अथवा हबीबुल्ला ने बंगाल विभाजन समर्थक आंदोलन का नेतृत्व किया था इन गतिविधियों की पृष्ठभूमि में 30 दिसंबर 1906मे ढाका में एक बैठक आयोजित की गई थी जिसमें अखिल भारतीय मुस्लिम लीग नामक राजनीतिक संगठन की स्थापना करने का निर्णय लिया गया 30 दिसंबर 1906 को ढाका में मोहम्मडन एजुकेशनल कॉन्फ्रेंस के अधिवेशन में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई ढाका के नवाब सलीम उल्ला खां इस लीग के अध्यक्ष बने थे मुस्लिम लीग मुस्लिम समुदाय के सामंती तत्व के नेतृत्व में काम करने वाला संगठन था इस संगठन के तीन मुख्य उद्देश्य थे ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों में निष्ठा बढ़ाना मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा और उनका विस्तार करना लीग के अन्य उद्देश्यों को बिना दुष्प्रभावित किए हुए अन्य संप्रदाय के प्रति कटुता की भावना को बनने से रोकना सहयोग वंश लीग में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव को खंडित करने के संबंध में प्रस्ताव पारित किया था मुस्लिम लीग की पहली बैठक  और उसी महीने में 1906 में कलकत्ता आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव की तुलना करने से स्पष्ट हो जाता है कि मुस्लिम लीग कीस सीमा तक अपने पूर्वोक्त लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है कांग्रेस द्वारा पारित प्रस्ताव में स्वशासन की मांग की गई थी बंगाल विभाजन की निंदा और बहिष्कार का समर्थन किया गया था जबकि इसके विपरीत मुस्लिम संगठन के प्रस्तावों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा व्यक्त की गई थी विभाजन का समर्थन किया गया और बहिष्कार की निंदा की गई मुस्लिम संगठन और कांग्रेस के बीच आने वाले वर्षों में विरोध बढ़ता गया और इसके फलस्वरुप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन प्रयाप्त कमजोर हुआ मुस्लिम संगठन द्वारा प्रारंभिक वर्षों 1907 से 1909 के मध्य कांग्रेस के नेतृत्व में चलने वाले आंदोलन का विरोध करना पृथक निर्वाचन प्रणाली की स्थापना करना और अपनी स्थिति मजबूत करना था 1908 में मुस्लिम लीग ने अपने अमृतसर अधिवेशन में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की यह मांग 1909 के मार्ले मिंटो सुधार के द्वारा स्वीकार कर दी गई थी इंग्लिश में नामक समाचार पत्र को पूर्ण विश्वास था कि यह संस्था कांग्रेस का प्रभावशाली विकल्प साबित होगी              

1909 के मार्ले मिंटो सुधारों में साम्राज्यवाद को एक और अवसर प्राप्त हुआ और इस सुधार के द्वारा सांप्रदायिकता में और बढ़ावा हुआ लेकिन मुस्लिम समुदाय में एक ऐसा वर्ग भी मौजूद था जो अलगाववाद के रास्ते को अस्वीकार करता था इस वर्ग में मुस्लिम संगठन के गठन का स्वागत नहीं किया था दिसंबर 1911 में दिल्ली दरबार में घोषणा करके बंगाल विभाजन रद्द कर दिया गया ब्रिटिश शासन द्वारा बंगाल में अभूतपूर्व एकता स्थापित करने वाले तोहफे वापस ले लिए गए ब्रिटिश शासन के इस कार्य से मुस्लिम अभिजन को बहुत बड़ा धक्का लगा और उन्हें एहसास हुआ की सरकार के लिए मुस्लिम नहीं साम्राज्यवादी हित सर्वोपरि है
इसके अतिरिक्त अगस्त 1912 में अलीगढ़ कॉलेज को एक विश्वविद्यालय बनाने का प्रस्ताव मुस्लिम समुदाय द्वारा रखा गया इस प्रस्ताव को तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग ने अस्वीकार कर दिया इससे भी मुस्लिम क्षेत्रों में असंतोष उत्पन्न हुआ इस कारण अबुल कलाम आजाद ने जून 1912 में आरंभ किए गए साप्ताहिक अल हिलाल में ब्रिटीश नीति की कटु आलोचना की गई मोहम्मद अली द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी कामरेड और उर्दू में प्रकाशित हमदर्द ने भी मुसलमानों में साम्राज्यवाद विरोधी भावनाओं को जगाना प्रारंभ कर दिया इन सभी से पुराने नेतृत्व की पकड़ संगठन पर कमजोर हो गई लीग की स्थापना में मुख्य भूमिका अदा करने वाले आगा खॉ व नवाब सलीमुल्ला खां ने संगठन को छोड दिया अब इस लीग का नेतृत्व मोहम्मद अली और जिन्ना जैसों के हाथों में पहुंच गया था संगठन के नेतृत्व परिवर्तन का एक परिणाम यह निकला की लीग के संविधान में संसोधन कर उसके उद्देश्य को बदला गया  राज भक्ति के स्थान पर अब लीग का उद्देश्य ब्रिटिश राज के तत्वाधान में भारत के लिए  उपयुक्त स्वशासन की उपलब्धि था इस संशोधन ने कांग्रेस लीग संबंधों में नई दिशा का सूत्रपात किया संसोधन से अब दोनों ही दल एक सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आपस में सहयोग कर सकते थे अतः सहयोग की स्थापना के लिए प्रयास प्रारंभ हो गए 1915 में मुस्लिम लीग और कांग्रेस की बैठक एक ही समय पर मुंबई में हुई जिसके तहत कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं ने आपस में विचार विमर्श किया 1916 में पुनः जिन्ना की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग और अंबिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन एक ही समय पर लखनऊ में हुआ और लखनऊ अधिवेशन में इन दोनों दलों में एक समझौता हो गया जिसे लखनऊ पैक्ट कहा जाता है 

लखनऊ पैक्ट समझौता

लखनऊ पैक्ट के अनुसार सांप्रदायिक निर्वाचन मंडल को कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया मुस्लिम लिंग ने प्रतिनिधित्व के आधिक्य की शर्तों को उदार बनाकर उसमें कमी कर दी लखनऊ पैक्ट जहां एक और ब्रिटीश सरकार की फुट डालो और राज करो की नीति के लिए बडा धक्का था वहीं दूसरी ओर इसनें ना तो पूर्ण हिंदू मुस्लिम एकता को स्थापित किया और ना ही सांप्रदायिक विचारधारा और शक्तियो पर कोई निर्णायक चोट की 1916 का लखनऊ समझौता कांग्रेस लीग की मित्रता स्थापित करके भारत में साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष के लिए जमीन तैयार करता था युद्ध काल में होमरूल आंदोलन को नि:संदेह रूप से बल प्राप्त हुआ है लेकिन यह एक सम्झौता था जिसे एकता की कीमत सांप्रदायिक प्रतिनिधीत्व के गैरलोकतांत्रिक सिद्धांत को शिकार करके दी गई थी
लेकिन मुस्लिम समुदाय में एक ऐसा वर्ग भी मौजूद था जो अलगाववाद के रास्ते को अस्वीकार करता था इस वर्ग में मुस्लिम संगठन के गठन का स्वागत नहीं किया था दिसंबर 1911 में दिल्ली दरबार में घोषणा करके बंगाल विभाजन रद्द कर दिया गया ब्रिटिश शासन द्वारा बंगाल में अभूतपूर्व एकता स्थापित करने वाले तोहफे वापस ले लिए गए ब्रिटिश शासन के इस कार्य से मुस्लिम अभिजन को बहुत बड़ा धक्का लगा और उन्हें एहसास हुआ पी सरकार के लिए मुस्लिम नहीं साम्राज्यवादी हित सर्वोपरि है

अहरार आन्दोलन-1906

बंगाल के राष्ट्रवादी मुसलमानों ने 1906 में अहरार आंदोलन शुरु किया इस आंदोलन के नेताओं में मौलाना मोहम्मद अली हकीम अजमल खां हसन इमाम नजरूल हक मौलाना जफर अली का आदि सम्मिलित है इन नेताओं ने बड़े जोरदार ढंग से यह प्रस्तावित किया कि मुसलमानों को अब ब्रिटिश सरकार की बिल्कुल ही चाटुकारी नहीं करनी चाहिए उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेना चाहिए  

मार्ले मिंटो सुधार 1909

तत्कालीन भारत सचिव मार्ले और वायसराय लार्ड मिंटो ने सुधारों का भारतीय परिषद अधिनियम 1909 पारित किया जिसे मार्ले मिंटो सुधार के नाम से जाना जाता है इस अधिनियम का मूल उद्देश्य नरम दल को अपनी ओर आकर्षित करना था लेकिन इस अधिनियम का गहरा उद्देश्य मुस्लिमों को प्रथक निर्वाचन पद्धति प्रदान कर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना था अंग्रेजों की यह नीति कालांतर में में भारत के विभाजन के कारण बनी थी अधिनियम के द्वारा केंद्रीय और प्रांतीय विधान मंडलों के आकार एवं उनकी शक्ति में वृद्धि की गई कांग्रेस ने इन सुधारों का लाहौर अधिवेशन में कड़ा विरोध किया था जबकी कट्टरपंथी मुसलमानों ने इसका समर्थन किया था प्रारंभ में भारत सचिव मार्ले मिश्रित निर्वाचक मंडल के समर्थक थे लेकिन मुस्लिम संगठन ब्रिटिश नौकरशाही और लार्ड मिंटो के सहित दबाव के सामने इन्हें झुकना पड़ा और पृथक निर्वाचक मंडल की योजना स्वीकार  करनी पड़ी सांप्रदायिक निर्वाचन मंडल की स्थापना का स्वयं इंग्लैंड में विरोध हुआ था प्रधानमंत्री एसक्विथ का मानना था कि वह लोगों के प्रति भेदभाव पर आधारित है उन्हें ऐसे वर्गों में बांटनी है जिनका आधार धार्मिक विश्वास है

राजद्रोह सभा अधिनियम 1911

मार्ले मिंटो सुधारों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उग्रवादी राष्ट्रवादियों ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को काफी तेज कर दिया परिणाम स्वरूप सरकार ने इनके दमन के लिए 1911 में राजद्रोह सभा अधिनियम पारित किया इस अधिनियम के द्वारा सरकार के विरूद्ध सभाऐ करने पर कठोर दंड की व्यवस्था की गई अधिनियम के आधार पर नेता लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को गिरफ्तार कर आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया गया उग्रवादी आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने भारतीय प्रेस एक्ट पारित कर समाचार पत्रों की स्वतंत्रता भी छीन ली थी इसी क्रम में 1913 में फौजदारी संशोधन अधिनियम पारित किया गया जिसका उद्देश्य राष्ट्रवादी आंदोलन का दमन करना था              

दिल्ली दरबार 1911

*12 दिसंबर 1911 को दिल्ली में एक भव्य दरबार का आयोजन इंग्लैंड के सम्राट जार्ज पंचम और महारानी मेरी के स्वागत में किया गया इस समय भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग थे इस दरबार में सम्राट और साम्राज्ञी का भारत आगमन हुआ इसी दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा की गई और बंगाल के एक नए प्रांत का गठन किया गया जिसमे सिलहट के अतिरिक्त समस्त बंगाली भाषा जिले शामिल थे उडीसा ओर बिहार को बंगाल से पृथक कर दिया गया असम का एक पृथक प्रांत के रूप में गठन किया गया जैसे कि उसकी 1874 में स्थिति थी असम के इस नवगठित प्रांत में सिलहट को भी शामिल किया गया इसी दरबार में भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थांतरित करने की घोषणा की भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरण 23 दिसंबर 1912 को संपन्न हुई

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