श्री अरविंद घोष(Sri Arvind Ghosh)

श्री अरविंद घोष(Sri Arvind Ghosh)


एक भारतीय राष्ट्रवादी सेनानी, दर्शनशास्त्री, गुरु और एक महान कवि वे ब्रिटिश राज को खत्म करने के लिए भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन में शामिल हुए और अन्तंत कम उम्र में ही एक ज्वलनशील और उर्जावान समाज सुधारक श्री अरबिंदो की  प्रेरणात्मक जीवनी

श्री अरविंद घोष  जीवन परिचय
पूरा नाम  ~अरविंद कृष्णघन घोष
जन्म       – 15 अगस्त 1872
जन्मस्थान – कोलकता (पं. बंगाल)

पिता =   डॉ. के.डी. घोष
माता =  स्वर्णलतादेवी
विवाह =   मृणालिनी के साथ (1901 में)।

शिक्षा 

प्राथमिक शिक्षा लॉरेंट कान्वेंट स्कूल में हुई तथा 7 वर्ष की अवस्था में इंग्लैंड भेजा गया उच्च शिक्षा के लिए जहा उन्हें एक पादरी के निर्देशन में शिक्षा दी गयी।उन्होंने अरविंद को लैटिन ओर ग्रीक भाषा का ज्ञान करवाया फिर उन्हें वहां सेंट पाल स्कूल में प्रवेश मिल गया। वहां उन्हें वटरवर्त प्राइज इतिहास का बेडफोर्ड प्राइज मिला अध्ययन के बाद श्री अरविंद 1893 में भारत वापस लौट आये।

श्री अरविंद की शिक्षा
श्री अरविंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, श्री अरविंद 14 बर्ष इंग्लैंड में रहकर 21 वर्ष की अवस्था मे वापस भारत आये और यहां आकर I.C.S की परीक्षा पास की फिर उन्होंने बरोदा राज्य की सेवा में प्रवेश किया और वे बड़ोदा महाविद्यालय के उपप्राचार्य बने लेकिन 1906 में कलकत्ता बंगाल नेशनल महाविद्यालय के प्राचार्य बनकर बने इसी समय इन्होंने एक अंग्रेजी दैनिक बंदे मातरम का संपादन किया । इन्होंने अंग्रेजी साप्ताहिक  कर्म- योगी तथा बंगला साप्ताहिक धर्म का संपादन किया।

राजनीतिक गतिविधिया
अरबिंदो के लिए 1902 से 1910 के वर्ष हलचल भरे थे, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया था। सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल के रूप में बंगाल के दो टुकड़े कर दिए ताकि हिन्दू और मुसलमानों में फूट पड़ सके। इस बंग-भंग के कारण बंगाल में जन जन में असंतोष फैल गया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर और अरबिंदो घोष ने इस जन आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के विषय में लोकमान्य तिलक ने कहा -बंगाल पर किया गया अंग्रेज़ों का प्रहार सम्पूर्ण राष्ट्र पर प्रहार है।अरबिंदो घोष ने राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत करने तथा अंग्रेज़ों का विरोध प्रदर्शित करने के लिए पत्र - पत्रिकाओं में विचारोत्तेजक और प्रभावशाली लेख लिखे। उनके लेखों से जन जन में जागृति आ गयी।ब्रिटिश सरकार उनके इस क्रिया कलापों से चिंतित हो गई। सरकार ने"अलीपुर बम कांड" के अंतर्गत उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्हें योग पर चिंतन करने का समय मिला। उन्होंने सन् 1907 में राष्ट्रीयता के साथ भारत को "भारत माता" के रूप में वर्णित और प्रतिष्ठित किया। उन्होंने बंगाल में "क्रांतिकारी दल" का संगठन किया और उसका प्रचार और प्रसार करने को अनेक शाखाएं खोली और वे स्वयं उसके प्रधान संचालक बने रहे। खुदीराम बोस और कनाईलाल दत्त, यह क्रांतिकारी उनके संगठन के ही क्रांतिकारी थे। इन गतिविधियों के कारण अरबिंदो घोष अधिक दिनों तक सरकार की नज़रों से छिपे नहीं रह पाये और उन्हें फिर से जेल जाना पड़ा। वह अपनी राजनीतिक गतिविधियों और क्रान्तिकारी साहित्यिक प्रयासों के लिए 1908 में बन्दी बना लिए गए।1906 से 1909 तक सिर्फ़ तीन वर्ष प्रत्यक्ष राजनीति में रहे। इसी में देश भर के लोगों के प्रिय बन गए।

आध्यात्मिक
सन 1910 में राजनीति से अलग होने पर श्री अरविंद ने अपना जीवन योग और आध्यात्मिक जीवन के प्रति समर्पित कर दिया उसी समय वे पांडिचेरी चले गए  वहां एक फ्रांसीसी महिला मादाम मीरा आफसा रिचर्ड भी उनके साथ काम करने लगी  जिसको श्री अरविंदो ने "माँ" का नाम दिया इन दोनों ने मिलकर श्री अरविंदो आश्रम की नींव डाली और अंत तक इसी आश्रम में रहे। श्री अरविंद ने कहा कि उन्हें उनकी योग साधना में श्री विवेकानंद ने दर्शन दिए।

लेखन गतिविधियां
श्री अरविंदो को अंग्रेजी ,हिंदी और बंगला भाषा पूर्ण अधिकार था उन्होंने कही रचनाये लिखी तीनो भाषाओं में।इन्होंने अपनी मूल रचनाये बंगला और अंग्रेजी भाषा मे लिखी इस प्रकार श्री अरविंदो indo-Anglian लेखकों में अग्रणी है। कवि के रूप में उनकी रचनाये छंदात्मक है ये अतुकांत कविता लिखने में सिद्धहस्त थे। ये आधुनिक अंग्रेजी गद्य साहित्य के मूर्धन्य लेखकों में से एक थे।

 

रचनाये

  1. "दी लाइफ डिवाइन" एक गद्य में रचित रागिनी है।

  2. ऐसेंज ऑन दी गीता

  3. ए डिफेंस ऑफ इंडियन कल्चर,

  4. दी सीक्रेट ऑफ दी वेदाज

  5. दी आइडील ऑफ ह्यूमन यूनिटी

  6. दी साइकोलॉजी ऑफ सोशल डेवलपमेंट

  7. दी सिंथेसिस ऑफ योग

  8. दी फ्यूचर पोएट्री

  9. दी ह्यूमन सायकिल

  10. प्लेज एंड शार्ट स्टोरीज

  11. कलेक्टेड पोयम्स

  12. सावित्री नामक महाकाव्य

  13. पिलग्रिम ऑफ द नाईट नामक एक सोंनेट


उपयुक्त रचनाये श्री अरविंदो के द्वारा लिखी गयी जो उनकी प्रतिभा को दर्शाती है।
श्री अरविंदो की मृत्यु पांडिचेरी आने के बाद वे सांसारिक कार्यों से अलग होकरआत्मा की खोज में लग गए। पांडिचेरी आने के बाद अरबिंदो घोष अंत तक योगाभ्यास करते रहे और उन्हें परमात्मा से साक्षात्कार की अनुभूति हुई। उनके आध्यात्मिक अनुभवों से असंख्य लोग प्रभावित हुए। उनका दृढ़ विश्वास था कि संसार के दु:ख का निवारण केवल आत्मा के विकास से ही हो सकता है जिसकी प्राप्ति केवल योग द्वारा ही संभव है। वे मानते थे कि योग से ही नई चेतना आ सकती है। अरबिंदो घोष की मृत्यु 5 दिसम्बर,1950 में पाण्डिचेरी में हुई थी।

सिद्धान्त
अरबिंदो घोष के सार्वभौमिक मोक्ष के सिद्धान्त के अनुसार, ब्रह्म के साथ एकाकार होने के दो मुखी रास्ते हैं- बोधत्व ऊपर से आता है (प्रमेय), जबकि आध्यात्मिक मस्तिष्क यौगिक प्रकाश के माध्यम से नीचे से ऊपर पहुँचने की कोशिश करता है (अप्रमेय)। जब ये दोनों शक्तियाँ एक–दूसरे में मिलती हैं, तबसंशय से भरे व्यक्ति का सृजन होता है (संश्लेषण)। यह यौगिक प्रकाश, तर्क व अंतर्बोध से परे अंततः व्यक्ति को वैयक्तिकता के बंधन से मुक्त करता है। इस प्रकार, अरबिंदो ने न केवल व्यक्ति के लिए, बल्कि समूची मानवता के लिए मुक्ति की तार्किक पद्धति का सृजन किया।

श्री अरविंदो एक महान भारतीय व्यक्तित्व थे जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे औऱ आज के प्रेरणास्रोत है श्री अरविंदो ने भारतीय शिक्षा पद्धति पर विशेष ध्यान दिया नैतिक आध्यात्मिक शिक्षा पर जोर दिया।

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