Bal Gangadhar Tilak 2/2 ( लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक )

Bal Gangadhar Tilak 2/2


लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक 


 

तिलक की समाज सुधारो की योजना

समाज सुधार उनके विशिष्ट प्रश्नों जैसे बाल विवाह का निषेध, सती प्रथा का निषेध तथा विधवा विवाह को अनुमति, अस्पृश्यता निवारण आदि के संबंध में तिलक का सुधारवादी आग्रह है उनकी गतिविधियों और विचारों में भली भांति परिलक्षित होता था 

कंसेंट बिल के संबंध में हुए विवाद में अवसर पर उन्होंने यहां तक प्रस्ताव किया कि विवाह के लिए लड़कियों की न्यूनतम आयु 15 वर्ष और लड़कों के लिए न्यूनतम आयु 20 वर्ष निश्चित किए जाने के पक्ष में थे

गणपति और शिवाजी उत्सव में उन्होंने बिना किसी भेदभाव के स्वर्णो और हरिजनों को सम्मिलित होने का अवसर दिया अस्पृश्यता के विरोध के प्रति उनका स्वर तो इतना प्ररख था कि उन्होंने यहां तक कहा कि ? यदि छुआछूत किसी ईश्वरीय आदेश का परिणाम है तो वह ईश्वर को ही नकाल देंगे

विधवाओं के पुनर्विवाह के भी समर्थक थे तिलक की मान्यता थी कि समाज में भारत में सामाजिक विकृतियों का प्रमुख कारण रूढ़िवादिता थी  उनका मत था कि स्वयं यह रूढ़िवादिता लंबी अवधि से बनी हुई विदेशी दासता का परिणाम थी उनके मत में सर्वाधिक वास्तविक और व्यापक सुधार जनता में पुनर्जागरण की भावना के द्वारा लाया जा सकते थे!!

किसी विदेशी सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के माध्यम से नहीं तिलक के अनुसार सामाजिक सुधारों का सूत्रपात जनता में अपने गौरवमय अतीत के प्रति आस्था को पुनः उत्पन्न किए जाने के माध्यम से ही हो सकता था

"वस्तुतः प्राचीन की प्रेरणा और वर्तमान की आवश्यकता की अनुभूति के मध्य समन्वयक तिलक के समाज सुधारों के आग्रह का सार था वे रूढीवादी पुराण पंथियो और पश्चिम वादी सुधारको  दोनों के दृष्टिकोण से असहमत थे

वह भारतीय सामाजिक व्यवस्था को भारतीय संस्कृति के मूल्यों के आधार पर इस प्रकार पुनर्गठित करना चाहते थे कि वह भविष्य की आवश्यकता के अनुरूप उपयुक्त सिद्ध हो सके तिलक ने तत्कालीन हिंदू समाज में सुधार के लिए अनेक प्रस्ताव किए थे उन प्रस्ताव में निम्नलिखित महत्वपूर्ण है:-

  • लड़कियों का विवाह 14 वर्ष की आयु से पूर्व नहीं किया जाए 

  • लड़कों का विवाह है 20 वर्ष की आयु से पूर्व नहीं किया जाए 

  • कोई व्यक्ति 40 वर्ष की आयु के पश्चात विवाह नहीं करें 

  • यदि कोई पुरुष पुनर्विवाह करें तो वह किसी विधवा से ही विवाह करें 

  • मद्य-निषेध किया जाए 

  • दहेज प्रथा का उन्मूलन हो 

  • विधवाओं को कुरूप नहीं किया जाए 

  • अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए 

  • जनता में शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाए 

  • शिक्षा में धार्मिक शिक्षा को सम्मिलित किया जाए 


समाज सुधार की इस योजना से सहमत होने वाले समस्त व्यक्ति समाज सुधारो और समाज सार्वजनिक कार्यों के लिए अपनी आय का बीसवां भाग प्रदान करने के लिए तत्पर हो!!

तिलक और गोखले Tilak and Gokhale )


तिलक और गोखले क्रमशः भारतीय राष्ट्रवाद की उग्रवादी और उदारवादी प्रवृतियों के तेजस्वी प्रतिनिधि थे!!
दोनों अपनी अपनी रीति से देश सेवा के प्रति पूर्ण समर्पित रहे तिलक और गोखले की पारिवारिक पृष्ठभूमि,, सार्वजनिक जीवन में प्रवेश की परिस्थितियां तथा संस्थाओं से सम्बधता एक जैसी थी!! तथापि दोनों के दृष्टिकोण,,,कार्यक्रम और विचारों में गंभीर मतभेद थे

गोखले के विचारों के प्रेरणा स्रोत पश्चिमी उदारवाद के सिद्धांतों में निहित थे गोखले पश्चिमी संस्थाओं जीवन मूल्यों और राजनीतिक दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे और भारतीय राजनीतिक प्रणाली में उन्हीं मूल्य संस्थाओं और सिद्धांतों को प्रतिष्ठित किया जाना उचित मानते थे

इसके विपरीत तिलक की प्रेरणा के मुख्य स्रोत भारतीय प्राचीन संस्कृति,, दर्शन और आध्यात्मिक आस्थाएं थी गोखले की राष्ट्रीयता का मर्म पश्चिम उदारवाद को अपनाकर, भारत की भावी आर्थिक और राजनीतिक प्रगति की आकांक्षा में निहित था 

इसके विपरीत तिलक का राष्ट्रवाद भारत के गौरव में अतीत की सुदृढ़ नींव पर,,भारत के समृद्ध भविष्य का निर्माण करने पर संकल्प में अभिव्यक्त होता था 

ब्रिटिश शासन के प्रति भी तिलक और गोखले का दृष्टिकोण बिल्कुल भिन्नता गोखले ब्रिटिश शासन को एक दिव्य वरदान मानकर यह अनुभव करते थे कि भारत ब्रिटिश संपर्क से अत्यधिक लाभान्वित हुआ है तथा ब्रिटिश संपर्क से ही उसकी भावी प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है

ब्रिटिश जाति की सदयस्ता और न्याय प्रियता में भी गोखले की गहरी आस्था थी इसके विपरीत तिलक का स्पष्ट मत था कि ब्रिटिश संपर्क के कारण भारतीय जनता का मानसिक,,, सांस्कृतिक,, आर्थिक और राजनीतिक अधोःपतन हुआ है उनकी मान्यता थी की भारतीय जनता के स्वाभिमान को सुनिश्चित करने के लिए ब्रिटिश संपर्क से उत्पन्न प्रभावो को पूर्णतः समाप्त किया जाना आवश्यक है

लक्ष्य की दृष्टि से भी तिलक और गोखले के दृष्टिकोण के मध्य-भेद स्पष्ट थे गोखले सुधारवादी थे और वे क्रमिक सुधारों के माध्यम से भारत के शासन और प्रशासन में जनता की भागीदारी को शनै शनै उस बिंदु तक पहुंचाना चाहते थे कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक ऐसै अधिराज्य का रूप प्राप्त कर ले जहां शासन भारत की जनता द्वारा ही चलाया जाए!! इसके विपरीत तिलक का लक्ष्य भारतीय जनता के लिए पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति था

स्वराज्य से तिलक का आशय भारत की पूर्ण स्वतंत्रता से था यह सत्य है कि तिलक ने अपने विचारों को यथार्थवादी दृष्टि से रुपांतरित कर लिया और 1915 के पश्चात उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासन को भारत के स्वराज्य के रूप में स्वीकार कर लिया किंतु दूरगामी लक्ष्य की दृष्टि से वे भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग के निरंतर पक्षधर बने रहे!!

तिलक और गोखले के मध्य सर्वाधिक उग्र मतभेद साधनों के प्रश्न पर थे संविधानिक साधनों के प्रति गोखले के आग्रह से तिलक की गंभीर असहमति थी गोखले द्वारा अपनाए जाने वाले संवैधानिक साधनों "अनुनय-विनय" "आग्रह" और ?"सकारात्मक आलोचना" को तिलक निष्क्रिय और निष्प्रभावी साधन मानते थे

यद्यपि तिलक ने इन संसाधनों का समर्थन नहीं किया किंतु वे राजनीतिक आंदोलन के लिए क्षेत्रीय और प्रभावशाली साधनो को अपनाए जाने के पक्ष में थे उन्होंने राजनीतिक आंदोलन में निष्क्रिय प्रतिरोध,, स्वदेशी,, बहिष्कार व राष्ट्रीय शिक्षा जैसे साधनों को अपनाने पर बल दिया!! गोखले अपने उदारवादी साधनों से शासकों के साथ विवेक को जागृत करना चाहते थे!!

यद्यपि तिलक और गोखले के दृष्टिकोण साधनो और लक्ष्यो के स्वरुप में गंभीर भेद थे तथापि दोनों की उद्दाम देश भक्ति,,देश सेवा के लिए कष्ट सहने की तत्परता और राष्ट्रहित को अन्य किसी भी बात की तुलना में सर्वोपरि मानने की प्रवृत्ति संदेश से परे थी!! दोनों के मध्य तीव्र मतभेद थे फिर भी दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति गहरे व्यक्तिगत सम्मान का भाव था

तिलक और महात्मां गांधी ( Tilak and Mahatma Gandhi )

यद्यपि तिलक और गांधी एक साथ भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर अधिक समय तक सक्रिय नहीं रहे तथापि दोनों के दृष्टिकोण की संक्षिप्त तुलना प्रांसगिक है:-

तिलक और गांधी के विचारों में अनेक समानताएं थी तिलक ने स्वदेशी,, बहिष्कार और निष्क्रिय प्रतिरोध के जिन सिद्धांतों का सूत्रपात किया गांधीजी ने इन्हीं साधनों को अपने सत्याग्रह का आधार बनाया

यद्यपि अपने सार्वजनिक जीवन के प्रारंभिक दिनों में गांधी भी गोखले की भाँति ब्रिटिश लोगों की उदारता और न्यायनिष्टठता में विश्वास रखते थे तथापि बाद में उन्होंने अपने विचारों का रूपांतरण कर लिया और वह सहयोगी से  असहयोगी हो गये

तिलक की भाँति गांधीजी भी भारत के स्वराज्य की प्राप्ति के लिए ब्रिटिश लोगों की न्याय-वृत्ति पर पूर्णतः निर्भर करने की अपेक्षा उसके लिए भारतीय जनता को जागरुक,,, संगठित और प्रशिक्षित करने पर बल देते थे 

तिलक की भाँति गांधीजी भी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जनता की निर्णायक शक्ति में अदम्य आस्था रखते थे निष्क्रिय प्रतिरोध के विषय में तिलक के विचार गांधीजी के सत्याग्रह की धारणा से पर्याप्त समानता रखते थे!!

गांधीजी और तिलक के दृष्टिकोण में समानता होते हुए भी दोनों के चिंतन और दृष्टिकोण में जो मतभेद थे वह मूलभूत और गुणात्मक थे तिलक के लिए राजनीतिक प्रश्नों में आध्यात्मिकता और नैतिकता निर्णायक कारण नहीं थी!!

राजनीतिक और सार्वजनिक विषयों में नैतिकता और आध्यात्मिकता का आग्रह गांधीजी की मूल प्रेरणा थी साधनो की दृष्टि से तिलक का बल साधनों की पवित्रता पर नहीं अपितु प्रभावशीलता पर था!!

इसके विपरीत गांधी का यह स्पष्ट आग्रह था की पवित्र साध्य की प्राप्ति पवित्र साधनों से ही की जा सकती है गांधी जी की यह आस्था थी कि साधनों की पवित्रता ही उनकी सार्थकता और प्रभावशीलता को सुनिश्चित करती है!!

अहिंसा के प्रति भी तिलक और गांधी के दृष्टिकोण में भेद स्पष्ट थे तिलक ने राजनीतिक आंदोलन में हिंसक साधनों का समर्थन नहीं किया किंतु हिंसक साधनों का उनके द्वारा किया गया विरोध हिंसक साधनों की व्यवहारिकते के प्रति संदेह का परिणाम था,,,,अहिंसा के प्रति आस्था का नहीं

सारतः तिलक हिंसा से तो संकोच करते थे किंतु वे अहिंसा के पुजारी नहीं थे इसके विपरीत गांधी अहिंसा को एक व्यावहारिक नीति मात्र ही नहीं,,,अपितु एक सक्रिय आध्यात्मिक शक्ति मानते थे गांधी की यह दृढ़ धारणा थी कि अंहिसा किसी भी हिंसक ससाधन की तुलना में अधिक प्रभावी,,,विश्वसनीय और तेजस्वी साधन है

राष्ट्रवाद के प्रति भी तिलक और गांधी के दृष्टिकोण में मूलभूत भिन्नताऐ थी तिलक का राष्ट्रवाद भारतीय राष्ट्रीय संस्कृति के प्राचीन गौरव पर आधारित था गांधी मूलतः मानवतावादी थे

उनका राष्ट्रवाद उनकी इस सहज आस्था का परिणाम था कि मानव मात्र की सेवा के प्रति समर्पित व्यक्ति देश सेवा के माध्यम से ही मानवता की सेवा के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है तिलक के राष्ट्रवाद में राष्ट्र के प्राचीन गौरव का अभिमान और राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य की आकांक्षा अभिव्यक्त होती थी

गांधी के राष्ट्रवाद में मानव मात्र की गरिमा में विश्वास तथा देश सेवा के प्रति व्यक्ति के समर्पण का भाव अन्तर्निहित था ताकि देश सेवा के इस मूल मंत्र को मानव मात्र के कल्याण के लिए विश्वसनीय आधार बनाया जा सके!!

भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों में तिलक और गांधी दोनों की गहरी आस्था थी किंतु तिलक का आग्रह है जहां भारतीय संस्कृति के गौरव को प्रतिष्ठित करने मात्र तक सीमित था,, गांधी ने पश्चिमी सभ्यता की उग्र और कठोर आलोचना की

वस्तुतः तिलक ने भारतीयों में अपनी संस्कृति के प्रति अनुराग को उत्पन्न करने और उसके आधार पर राष्ट्रीय भावनाओं का संचार करने का प्रयत्न किया दूसरी और गांधी ने लोगों को पश्चिमी सभ्यता के नैतिक दुष्परिणामों के प्रति सचेत किया और भारतीय अध्यात्मवाद का आधार बनाकर लोगों को सीधी-साधी ओर सरल जीवन पद्धति अपनाने के लिए प्रेरित किया

तिलक और गांधी की दृष्टिकोण की समानता को स्पष्ट करते हुए टी एल शै ने लिखा था कि "तिलक और गांधी दोनों का ही राजनीतिक दर्शन जीवन के दर्शन पर आधारित था आत्मनिर्भरता,,, साहस,,,त्याग वृत्ति ने दोनों को ही प्रेरित किया और यह दोनों के राजनीतिक संदेश का प्रमुख तत्व थी

दोनों ने ही जनता की शक्ति,,, बोद्धिक सामर्थ्य और संघर्ष की तत्परता पर विश्ववास किया!! दोनों ने ही ऐसी रूढ़ियों परंपराओं संस्थाओं और मान्यताओं को नकारा जो व्यक्तियों में पृथक्कता का भाव करती थी तथा दोनों ने ही जनता की अनिवार्य एकता का संदेश दिया!! दोनों ने ही घोषणा की थी जनकल्याण और आत्मनिर्भरता की भावना से उत्पन्न साहस तथा संगठित जन आंदोलन के द्वारा स्वराज्य कि प्राप्ति की जा सकती है

मूल्यांकन

भारतीय राष्ट्रवाद और स्वाधीनता आंदोलन में तिलक का योगदान अविस्मरणीय है ऐसे समय में जबकि संविधानिक साधनों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को भारतीय जन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए प्रेरित करने और भारत में राजनीतिक और आर्थिक सुधारों को क्रियान्वित करवाने के उदारवादियों के मंतव्य के पूरा नहीं होने के कारण हताशा की स्थिति विद्यमान थी

तिलक ने भारतीय राष्ट्रवाद का स्वरूप प्रस्तुत किया जिसमें जन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए विदेशी शासकों पर निर्भरता और याचना की अपेक्षा जनता को जागृत और संगठित शक्ति का उद्घोष निहित था तिलक ने विचार और आचरण दोनों ही स्तरों पर भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सक्रिय संघर्ष के लिए जागृत,,, प्रेरित और संगठित किया

राजनीतिक चिंतन को तिलक की योगदान के प्रमुख पक्षों को निम्नलिखित रुप से सूत्रबद्ध किया जा सकता है:-

1.भारतीय राष्ट्रवाद के प्रणेता - तिलक ने भारत की प्राचीन संस्कृति और जीवन मूल्यों को भारतीय राष्ट्रवाद का शुद्ध आधार बनाया!! भारत में राष्ट्रीयता के संचार के लिए उन्होंने पश्चिमी मूल्यों विचार और संस्थाओं को प्रेरक शक्ति मानना अस्वीकार किया और यह स्पष्ट किया कि जब तक भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति और जीवन मूल्यों के प्रति गौरव की अनुभूति से ओतप्रोत नहीं होंगे तब तक उन में विदेशी शासन की अधीनता के कारण आयी हीन भावना का निराकरण नहीं होगा

तिलक ने भारतीय संस्कृति को राष्ट्रवाद का आधार तो बनाया किंतु उनका राष्ट्रवाद सकीर्ण सांप्रदायिक मान्यताओं पर आधारित नहीं था तिलक ने स्वीकार किया कि भारत में राष्ट्रीयता का विकास सभी संप्रदाय के मध्य पारस्परिक सौहार्द और विश्वास पर निर्भर था 

इस कारण उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों की मध्य पारस्परिक समझ बूझ व सहअस्तित्व की भावना का समर्थन किया वही अंग्रेजों की इन दोनों समुदाय के मध्य विद्वेष और अविश्वास उत्पन्न करने की नीति का कड़ा विरोध किया!!

2. स्वराज्य की जीवंत उदाहरण - तिलक ने स्वराज जी की एक मौलिक धारण प्रस्तुत की उनके लिए स्वराज्य का अर्थ विदेशी शासन से मुक्ति मात्र नहीं था विदेशी शासन से मुक्ति उनके लिए स्वराज्य का प्रारंभिक चरण अवश्य था

उन्होंने स्वराज्य को ऐसी संकल्पना के रुप में प्रस्तुत किया जिसमें जनता का प्रशासन के निकायों पर प्रभावशाली नियंत्रण हो और राजनीतिक शक्ति व संस्थाओं का उपयोग जनता के व्यापक कल्याण के लिए किया जाता हो

तिलक के स्वराज्य की नैतिक धारणा में उदारवादियों की भाँति ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन शासन और प्रशासन में भारतीयों को अधिकतम भागीदारी का भाव निहित नहीं था वे भारत की जनता को विदेशी शासन से पूर्ण मुक्ति दिला कर स्वराज्य के नैतिक के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहते थे!!

3.राजनीतिक आंदोलन के प्रभावशाली साधनों का समर्थन

तिलक ने उदारवादियों द्वारा अपनाए जा रहे साधनों "अनुनय-विनय" "आग्रह"और "विनम्र आलोचनाओं" की प्रभावहीनता को अनुभव किया उदारवादियों के विपरीत वह भारतीय आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अंग्रेजों की सदाशयता और दया पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे

उन्होंने राजनीतिक आंदोलन में जाकर जनता की लड़ाई शक्ति के महत्व को पहचाना उन्होंने ऐसे साधनों को अपनाने पर बल दिया जिसके माध्यम से जनता शासन का चलाए जाना असंभव बना दे

स्वदेशी,, बहिष्कार और निष्क्रिय प्रतिरोध को उन्होंने सक्रिय राजनीति अस्त्रों के रूप में अपनाऐ जाने पर बल दिया उनकी दृढ धारणा थी कि इन उपायों का आश्रय लेकर जनता विदेशी शासकों के समक्ष प्रभावशाली चुनौती प्रस्तुत कर सकेगी और वह भारतीय आकांक्षाओं का सम्मान करने के लिए बाध्य हो जाएंगे

तिलक का व्यक्तित्व वैचारिक उत्कृष्टता और चारित्रिक दृढ़ता का विलक्षण उदाहरण था यद्यपि अपने समय में उदारवादियों से उनके गंभीर मतभेद थे तथापि तिलक को समान रूप से उदारवादियों,,, राष्ट्रवादियों और जनसामान्य का असीम स्नेह और सम्मान प्राप्त हुआ था!! उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी गोखले उनके प्रति गंभीर व्यक्तिगत सम्मान रखते थे

यह राष्ट्रवाद के प्रति उनकी दृढ़ आस्था और ब्रिटिश शासन के प्रति उनके प्रखर विरोध का ही परिणाम था कि ब्रिटिश शासक उन्है ब्रिटिश साम्राज्य के कट्टर शत्रु मानते थे तिलक ने अपने ग्रंथ गीता रहस्य में गीता के कर्मयोग की मौलिक और प्रमाणिक व्यक्तित्व की ही गीता के कर्मयोग को उन्होंने अपने चिंतन और आचरण में पूरी तरह ढाल लिया!! उन का संपूर्ण जीवन निष्काम कर्म का उत्कृष्ट उदाहरण था

करान्देकर तिलक को आधुनिक भारत के हरक्यूर्लिस और प्रौमिथियस की संज्ञा दी जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का जनक घोषित किया!!

जय हिन्द-जय भारत

पुस्तक संदर्भ

1. प्रमुख भारतीय राजनीतिक विचारक ( लेखक-डाॅ.मधुकर श्याम चतुर्वेदी )
2. प्रमुख भारतीय राजनीतिक विचारक ( बीए पार्ट 1 ईयर मे चलने वाले डाॅ.कालूराम शर्मा और डाॅ. प्रकाश व्यास )
3. भारतीय इतिहास ( लेखक-प्रेमप्रकाश ओला )
4. प्रतियोगिता दर्पण (अतिरिक्तांक) ( आधुनिक भारत )

 

Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )

दिनेश कुमार वर्मा (अध्यापक) कोटड़ी, भीलवाड़ा

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