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Master शहीद केप्टन विक्रम बत्रा(Shaheed Captain Vikram Batra)

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शहीद केप्टन विक्रम बत्रा


(Shaheed Captain Vikram Batra)

मंदिर के भगवान भी पूजे हैं हमने , हर सुबह जोत जलाई है!!
पर सजदा करते हैं आज उनका, राष्ट्र को समर्पित जो तरुणाई है !!


हमारे इस महान देश के अनेक महापुरुषों से सभी परिचित होंगे ! 

स्वामी विवेकानंद , गुरु नानक जी , महात्मा गाँधी , सरदार वल्लभ भाई 

पटेल...आदि कई महापुरुषों ने देश के लिये अपना "आरम्भिक से अंतिम

समय" समर्पित किया है!! वर्षों से हमारा देश इनकी गरिमामयी अमर 

गाथाओं को कंठस्वर रूपी मोतियों से बिखेर रहा है!

आज हम आपके सामने एक ऐसे ही महापुरुष (केप्टन विक्रम बत्रा जी) की जीवनी प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं , जिनके ऊपर ना सिर्फ हमें आज नाज़ है ,बल्कि आने वाली कई पीढियां उनके जज्वे को सलाम करेगी !

ये बो हस्ती है ,जो मोहताज नहीँ शब्दों की !
बुलंदी को छूना ,तकदीर ने इनसे सीखा है !

26 जुलाई 1999 भारत के इतिहास का बो स्वर्णिम दिन जिस दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था ! इसी की याद में ‘26 जुलाई’ अब हर वर्ष कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है !

देश के गौरव , महान आत्मा ,महान पुरुष केप्टन विक्रम बत्रा जी के बारे में कुछ लिखना खुश्नसीबी ही नहीँ बल्कि सम्मान है देश की हस्ती का , मान है भारत माता का !! हमारे द्वारा इन महापुरुष के जीवन के कुछ मुख्य पल और यादें लिखने की कोशिश की जा रही है , सभी पाठकों से अग्रिम निवेदन है , इसमें हुई भूल को क्षमा करें !

 हमारे इस लेख की , बस इतनी ही परिभाषा है !
 प्रेम सुधा के बोल नहीँ , यह वीरों की गाथा है !!

इन महान पुरुष के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण क्षण आप सबके सामने प्रस्तुत करने से पहले हम दो लाइन उनके सम्मान में कहना चाहते हैं-
पूजा की थाली तुम्हारे लिए है, आज वतन पर तुम फ़ना हो गए!
 श्रद्धा के अश्रु तुम्हारे लिए हैं, सबकी नज़रों में तुम खुदा हो गए !

“या तो मैं तिरंगे को लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर। लेकिन मुझे यकीन हैं, मैं आऊंगा ज़रूर।”
(Either i will come back after hoisting the TRICOLOR, Or i will come back wrapped in it , but i will be back for sure.)

ये दिल को छूने वाले शब्द थे भारतीय सेना के शेरशाह शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के !! आपने यह नाम कारगिल युद्ध के समय ज़रूर सुना होगा हम चाहेंगे कि देश के प्रत्येक नागरिक को भारत के इस लाल का सिर्फ़ नाम ही नही, बल्कि उनके परमशौर्य और अमर शहादत की कहानी पता हो।

कैप्टन विक्रम बत्रा भी उन बहादुरों में से एक हैं, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी !!
बत्रा भारतीय सेना के जवान थे, जो कारगिल युद्ध में दुश्मन के जवाबी हमले में घायल हुए, एक अन्य जवान को बचाने में शहीद हो गए !!

 प्रारम्भिक जीवन 
पालमपुर भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का पहाड़ी शहर, जिसके घुग्‍गर गांव में जन्‍मा एक योद्धा!! जो देश का गर्व कहा जाता है ! 9 सितंबर सन् 1974 को आपका (केप्टन बत्रा जी ) का जन्म हुआ ! आपके पिता का शुभ नाम जी.एल. बत्रा और माता का नाम कमलकांता बत्रा है !

दो पुत्रियों के बाद जब इस परिवार में दो जुड़वां लड़कों का जन्म हुआ तो श्रीरामचरित मानस में गहरी श्रद्धा रखने वाली आपकी माता ने दोनों का नाम लव-कुश रखा !! लव - केप्टन विक्रम और कुश-भाई विशाल !

 कैप्टन विक्रम बत्रा का बचपन का नाम लव होने से कॉलेज समय में वह लवली के नाम से प्रसिद्ध रहे !

डिंपल चीमा उन जागरूक महिला का नाम जिनके साथ इस अमर शहीद का वैवाहिक जीवन शुरू होने वाला था, परंतु इस सपूत को भारत माँ की गोद मन भाई !!

शिक्षा 
देश के सपूत शहीद ""बत्रा"" की माता कमलकाँता बत्रा एक प्राइमरी स्‍कूल में बतौर शिक्षिका पद पर कार्यरत थीं !! जिसके चलते इनकी प्राइमरी शिक्षा घर पर ही हुई थी!! पहले डीएवी स्कूल में शिक्षा ग्रहण की , इसके बाद सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया! सेना छावनी में स्कूल होने से भारतीय सेना के अनुशासन ,साहस को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनकर केप्टन के दिल में स्कूल के दिनों से ही देश प्रेम प्रबल हो गया था! शुरुआती शिक्षा पालमपुर में हासिल करने के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ चले गए थे और डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी!

स्कूल के दिनों में केप्टन सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही आगे नहीं थे, बल्कि खेल में भी उनकी रुचि थी ! टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ -साथ उनमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी हुनर देखा जाता था !!

बचपन से ही शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस.....आदि देशभक्तों की वीरगाथाएं इनके दिल में बसी हुई थी !

सेना में जाने का निश्चय कर लेने के बाद उन्होंने सीडीएस की भी तैयारी शुरू कर दी !

 देश-प्रेम 
देश से अतिशय प्रेम करने वाले अमर शहीद विक्रम को हांगकांग में मर्चेन्ट नेवी में नौकरी का अवसर मिला, लेकिन देश सेवा का सपना केप्टन की आँखो में बसा हुआ था, जिसके चलते उन्होने इस नौकरी को ठुकरा दिया ! और सेना में भर्ती होने का सपना साकार करने को प्रयत्नशील हो गये ! बीएससी के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया !! जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया ! दिसंबर 1997 में शिक्षा समाप्त होने के बाद उनका सैनिक जीवन आरम्भ हुआ !!

सेना मे चयनित जीवन  
6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 JAK जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली ! उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए !इसी के साथ उन्हें भारतीय सेना मे अपना सपना साकार करने का गौरव मिला !! 1 जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया! दो साल के अंदर ही वो कैप्टन बन गए ! हम्प व राकी नाब स्थानों की जीत पर उन्हें कैप्टन बना दिया गया !

कैप्टन विक्रम बत्रा की लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से प्वांइट 5140 छीन लिया था ! ये बड़ा ही इंपॉर्टेंट और स्ट्रेटेजिक प्वांइट था, क्योंकि ये एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था, और वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे !!

श्रीनगर-लेह मार्ग के बिल्कुल ऊपर की सबसे महत्त्वपूर्ण चोटी (5140 चोटी) को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी भी कैप्टन को दी गयी !! 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम के नेतृत्व वाली भारतीय सेना 5140 प्वाइंट पर क़ब्ज़ा कायम करने में सफल हुई थी ! विक्रम ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह (3.30 मिनट) पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया !

कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल (वाय.के.जोशी) द्वारा पॉइंट 5140 की जीत के बाद कैप्टन की रैंक पर विक्रम का प्रमोशन किया गया था !
इस सफल मिशन की शुरुआत 7 जुलाई 1999 को हुई थी ! जिसे शहीद विक्रम ने हमेशा के लिये देश को सौंप दिया !
5140 प्वाइंट पर क़ब्ज़ा करने के बाद कैप्टन ने बिना किसी आदेश के स्वेच्छा से अगला मिशन तैयार किया और उसे मूर्त रुप देने ,खुद को बुलंद कर आगे बढ़े !! उनके इस स्वेच्छिक मिशन में 4875 प्वाइंट पर भी क़ब्ज़ा करने निर्णय लिया था ! यह प्वाइंट समुद्र स्तर से 17,000 फुट की उँचाई पर और 80 डिग्री सीधी खड़ी चोटी पर है!! उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए इस अभियान को शुरू किया !

इस मिशन में उनका सहयोग लेफ्टिनेंट अनुज नैयर ने किया ! अदम्य साहस का परिचय देते हुए उन्होंने कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया !

 कारगिल का शेर शेरशाह 
केप्टन विक्रम को कारगिल का शेर कहा जाता है !! कारगिल युध्द के समय जब चोटी से रेडियो के माध्यम से विक्रम ने कहा ""दिल मांगे मोर"" तो पूरे भारत में उनका नाम और छवि बुलंद हो गई !!
कोल्ड ड्रिंक कम्पनी की एक लाइन ये दिल माँगे मोर से प्रभावित केप्टन ने सही मायनों में इसे सार्थक कर दिखाया
शहीद कैप्टन बत्रा को अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए तो जाना ही जाता है , साथ ही युद्ध के दौरान उनके द्वारा दिया गया ये नारा लोगों के दिलों को छू गया !

'ये दिल मांगे more' उन्होंने पहली बार तब कहा था जब उनके साक्षात्कार के वक़्त बरखा दत्त ने पूछा था कि 'ऑपरेशन सफल रहा अब आगे क्या?' बत्रा जी का ये नारा देश को नयी उम्मीद दे गया !

यही बो समय था जब विक्रम को शेरशाह की संज्ञा दी गयी !

 स्नेही बुलंद ह्रदय 
युध्द के समय जब सूबेदार ने केप्टन को कहा कि आप नहीं, मैं जाता हूं ,दुश्मन का सीना चीरने, यह सुनकर वीर सपूत ने जो कर्मठता दिखायी उसे जानकर हर देशवासी का ह्रदय श्रध्दा से भर उठा, उन्होंने कहा - ""नहीँ तुम बाल -बच्चों वाले हो , पीछे हटो ,मुझे जाने दो !!""

16 जून को कैप्टन ने अपने जुड़वां भाई विशाल को द्रास सेक्टर से चिट्ठी लिखी जिसमें लिखा – “प्रिय कुशु, मां और पिताजी का ख्याल रखना … यहाँ कुछ भी हो सकता है !!

विक्रम ने 18 साल की उम्र में ही अपने नेत्र दान करने का निर्णय ले लिया था ! वह नेत्र बैंक के कार्ड को हमेशा अपने पास रखते थे !!

ये वह वीर है जिनके बारे में खुद इंडियन आर्मी चीफ (स्टाफ वेद प्रकाश मलिक) ने कहा था कि ""अगर जिंदा वापस आता तो 15 साल में इंडियन आर्मी का हेड बन गया होता !""
विक्रम का जिक्र आते ही उनके ये कथन (जुमले) लोगों की जुबान पर आ जाते है और भर देते है एक जुनून –

‘या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा, पर मैं आऊंगा जरूर !
 ‘ये दिल मांगे मोर.....(मुझे अभी और पाकिस्तानी सैनिकों को मारना है)
‘हमारी चिंता मत करो, अपने लिए प्रार्थना करो'!

 यादें 
पिता द्वारा पुस्तक में सवारा और सजाया गया अपने "कारगिल युद्ध के हीरो की" शहादत और वीरता के गरिमामयी पलों को !

कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी पर पिता जीएल बत्रा द्वारा ""( परमवीर विक्रम बत्रा शेरशाह ऑफ कारगिल )"" नामक किताब लिखी है !! 150 पन्नों की इस पुस्तक का दिल्ली में (सेना प्रमुख जनरल दलवीर सिंह सुहाग की पत्नी नमिता सुहाग) द्वारा विमोचन किया गया!

2003 में कारगिल के ऊपर बनी फिल्म LOC कारगिल में कैप्टन विक्रम बत्रा का रोल अभिषेक बच्चन ने किया और देश को दिखाया इस वीर सपूत का देशप्रेम !

 अंतिम क्षण 
इस मिशन के दौरान 7 जुलाई उनके जीवन की अंतिम तारीख साबित हुई !! इतिहास में अमर हो गया ये दुलारा !

यही बो व्क्त था , यही बो मिशन था, जिसकी सफलता के अहम क्षणों में एक विस्फोट में लेफ्टिनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए!! उन्हें बचाने के लिए विक्रम बंकर से बाहर आये और जब कैप्टन बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे तभी उनकी छाती में दुश्मन की गोली लगी और कुछ देर बाद विक्रम ने जय माता की कहकर अंतिम सांस ली।

 7 जुलाई, 1999 को जब विक्रम वीरगति को प्राप्त हुए थे, तब वो मात्र 24 साल के थे !!
""जय माता की"" ये शब्द इस महान आत्मा,  (धर्मशाला कारगिल युद्ध के नायक ) के अंतिम शब्द थे !

 सम्मान 
परमवीर चक्र सम्मान वीर सपूत केप्टन विक्रम बत्रा को (मरणोपरान्त) उनके अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त, 1999 को परमवीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया !! जो बाद में उनके पिता जी.एल. बत्रा जी द्वारा प्राप्त किया गया !!

 बो बिछड़ा कुछ इस अदा से , कि रुत ही बदल गई !
इक शख़्स सारे शहर को , वीरान कर गया !

ये थे अहम और खास पल केप्टन  विक्रम बत्रा की जिंदगी के , जिन्होने देश में उन्हें एक पहचान दी और अमर कर दिया इतिहास में !! पुरुष को बना दिया महापुरुष

इन शब्दों के साथ हमारी तरफ से इस शहीद और उन तमाम शहीदों को जिन्होंने इस देश के लिए अपनी जान दे दी ,शत शत नमन..

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