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मध्यप्रदेश के प्रमुख साहित्यकार


राज्य में साहित्य सृजन की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है प्राचीन काल में साहित्य सृजन की मुख्य भाषा संस्कृति संस्कृत के महान साहित्यकार कवि वाल्मीकि महाकवि कालिदास बाणभट्ट और भ्रतहरि मध्य प्रदेश के ही निवासी थे !

राज्य के लोगों द्वारा संपर्क भाषा के तौर पर मुख्यता हिंदी का प्रयोग किया जाता है मध्य काल एवं आधुनिक काल में हिंदी का विकास हुआ वह राज्य में सर साहित्य अधिकतर हिंदी और उसकी बोलियों में लिखा जाने लगा !

1. प्राचीन काल के साहित्यकार

कालिदास


कालिदास (संभवता उज्जैन के निवासी) कालिदास उज्जैन के नरेश विक्रमादित्य के नवरत्नों में शामिल थे इन्हें भारत का शेक्सपियर कहा जाता है


काल- कालिदास के काल के विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं है कुछ लोगों ने ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी का मानते हैं तो कुछ लोगों ने चौथी शताब्दी का मानते हैं !


रचनाएं- अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्रम् ,मेघदूत. कुमारसंभव ,रघुवंशम, ऋतुसंहार !
भाषा शैली-कालिदास की भाषा परिष्कृत सरल एवं भावों के अनुकूल हैं इन्होंने संस्कृत भाषा में अलंकार शैली का सहज प्रयोग किया है !


विशेषता- अलंकृत पदों में भी मानवीय भावनाओं की सहज और प्रभावपूर्ण प्रस्तुति तथा उनके वर्णन कि सरलता हैं कालिदास के ज्ञान की विपुलता और जीवन तथा प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण की गंभीरता उनकी रचनाओं में प्रकट होती है !

भर्तृहरि


काल- भर्तहरि के काल को कुछ विद्वान ईसा पूर्व 72 तो कुछ विद्वान 7 वी शताब्दी मानते हैं !


रचनाएं- श्रंगार शतक. नीतिशतक, वैराग्य शतक


भाषा शैली- भर्तहरि संस्कृत भाषा में एक श्लोकी कविता शैली का प्रयोग किया गया है वह एक श्लोकी कविता के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं


विशेषता- बहुआयामी व्यक्तित्व मूलतः संत कवि के रूप में जाने जाते हैं

भवभूति


काल- 8 वीं सदी
रचनाएं- उत्तररामचरित ,मालतीमाधव, महावीरचरित
भाषा शैली- भवभूति ने अपने काव्य में संस्कृत भाषा का प्रयोग गंभीर नाट्य शैली में किया है !
विशेषता- इनके नाटकों में गांभीर्य ज्ञान और बुद्धि का अद्भुत प्रदर्शन है इन्हें प्रकृति के विचार और आलोकिक पक्षियों से अधिक लगाव है !

बाणभट्ट


कॉल- आरंभिक सातवीं शताब्दी
रचनाएं- हर्षचरित कादंबरी
भाषा शैली- बाणभट्ट ने संस्कृत भाषा में गद्य शैली के लिए पांचाली रीति का प्रयोग किया है साथ ही उन्होंने निरीक्षण शैली एवं अत्यंत अलंकारिक शैली का प्रयोग विधि किया है
विशेषता- लंबे-लंबे वाक्य शब्दों एवं कथा के भीतर कथा और उप कथाओं के प्रयोग में बाणभट्ट की क्षमता अद्भुत है !

2. मध्य काल के साहित्यकार


जगनिक


कॉल- 1230 ईसवी के समकक्ष


रचना- आल्हा(खंड महुआ के आल्हा एवम ऊदल की वीरगाथा)
भाषाशैली- जगनिक ने बुंदेली भाषा की उपबोली बनाफरी का प्रयोग करते हुए शैली में गीतात्मक काव्य की रचना की है !


केशवदास


कॉल- 1555 से 1617 ई.


रचनाएं- रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, वीरसिंह ,चरित्र, कविप्रिया विज्ञान गीता ,रतन बावनी ,जहांगीर जस चंद्रिका,नखसिख, छन्दमाला !


भाषा शैली- केशवदास ने बुंदेली मिश्रित ब्रज भाषा का प्रयोग किया है संवाद शैली छंदों की अधिकता और मजबूत कला पक्ष उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएं

सिंगाजी


कॉल- 1576 से 1616 ईस्वी के मध्य


रचनाएं- हरिद्वार, संकलित परचरी , पन्द्राह तिथि .बारहमासी


भाषा शैली- सिंगाजी के निमाड़ी भाषा में गीत काव्य शैली का प्रयोग करते हुए वाचिक परंपरा में रचनाएं की है !

भूषण


कॉल- 1613 से 1715 ईस्वी
रचनाएं- शिवा बावनी, छत्रसाल दशक, भूषण हजारा, भूषण उल्लास शिवराज भूषण .भूषण उल्लास
भाषाशैली- भूषण ने ब्रज भाषा का प्रयोग अरबी फारसी शब्दों के साथ किया है उन्होंने मिश्रित भाषा में भाव व्यंजना शैली का प्रयोग किया है

पद्माकर


काल- 1753 से 1833 ईस्वी
रचनाएं- अलीजा प्रकाश ,जगत विनोद, राम रसायन. गंगालहरी. प्रबोध पचासा. कलिपच्चीसी आदि !
भाषा शैली- पद्माकर ने बुंदेली मिश्रित ब्रज भाषा का प्रयोग किया है इन्होंने अलंकार एवं रस निरूपण संयुक्त लक्षण शैली का भी प्रयोग किया है !

घाघ


कॉल- 1753 से 1845 ईसवी के मध्य
रचनाएं- घाघ भड्डरी की कहावतें
विषय वस्तु- घाघ की कहावतें कृषि एवं मौसम की जानकारी से परिपूर्ण है
भाषा शैली - घाघ हिंदी की खड़ी बोली का प्रयोग करते हुए सूक्ति शैली में कहावतें कही हैं !

ईसुरी


कॉल- 1898 से 1966 ईस्वी के मध्य
रचनाएं- ईसुरी कि भागों को ईसुरी प्रकाश एवं ईसुरी सतसंई में संकलित किया गया है
भाषा शैली- ईसुरी ने बुंदेली भाषा व ब्रजभाषा में गायन शैली संयुक्त चोकड़िया छंदों का प्रयोग किया है !

मुल्ला रमूजी


कॉल- 1896 से 1952 ईस्वी के मध्य
रचनाएं- लाठी और भैंस,शादी, औरत जात, अंगूरा. मुसाफिरखाना. तारीख. जिंदगी, शिफा खाना आदि विषय वस्तु अंग्रेजी शासन के विरुद्ध तथा व्यवस्था पर हास्य व्यंग !


बालकृष्ण शर्मा नवीन


कॉल- 1897 से 1960 के बीच
रचनाएं- कुमकुम, रशिम रेखा, स्तवन ,उर्मिला अपलक.हम विषपायी जनम के आदि !
विषय वस्तु- प्रकृति के सौंदर्य का छायावादी वर्णन
भाषा शैली- उन्होंने खड़ी बोली में ब्रज अवधि बुंदेली उर्दू आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है नवीन जी ने अपने काव्य में गीति शैली तथा संबोधन शैली को अपनाया है !

सुभद्रा कुमारी चौहान


कॉल- वर्ष 1904 से 1948 के मध्य
रचनाएं- झांसी की रानी. राखी की चुनौती .वीरों का कैसा हो बसंत. बचपन. मुकुल .त्रिधारा .बिखरे मोती. उन्मादिनी .सभा के खेल. सीधे-साधे चित्र आदि !
विषय वस्तु- इन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई स्वतंत्रता संग्राम तथा ग्रहस्थ जीवन के अनुभव के बारे में लिखा है
भाषा शैली- इन्होंने हिंदी भाषा में सरल पद्धति का प्रयोग किया है इनकी भाषा और शैली में भावों के अनुरूप सरलता और प्रभाव मिलता है !

3. आधुनिक काल के साहित्यकार


माखनलाल चतुर्वेदी


कॉल- 1889 से 1968 ईस्वी
रचनाएं- पुष्प की अभिलाषा ,हिमकिरीटनी, हिम तरंगिनी. युग चरण, मरणज्वार .विजुरी. समर्पण बनवासी .समय के पांव चिंतक की लाचारी. रंगों की बोली आदि !
विषय वस्तु- राज्य प्रेम से संबंधित कविता
भाषा शैली- इन्होंने हिंदी ब्रजभाषा में तत्सम तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू एवं फारसी शब्दों का प्रयोग बखूबी किया है उन्होंने गद्य शैली एवं पद्य शैली दोनों का प्रयोग किया है

भवानी प्रसाद मिश्र


कॉल- वर्ष 1914 से 1985 के मध्य
रचनाएं- गांधी पंचशती .गीत फरोश. चकित है दुख .अंधेरी कविताएं .खुशबू के शिलालेख .बुनी हुई रस्सी आदि
विषय वस्तु-गांधी जी के जीवन से संबंधित, प्रकृति चित्रण, व्यंगात्मक आदि !


गजानंद माधव मुक्तिबोध


कॉल- वर्ष 1917 से 1964 के मध्य


रचनाएं- चांद का मुंह टेढ़ा है .नए निबंध, भूरी भूरी खाक. धूल एक साहित्यिक की डायरी .कमायनी एक पुनर्विचार आदि !


विषय बस्तु- जीवन की कटू सच्चाइयों गरीबी व्यवस्था एवं विसंगतियों का मार्मिक चित्रण lमध्यवर्गीय जीवन का मानसिक द्वंद विषय)
भाषा शैली- हिंदी भाषा में सेट एन सी शैली का प्रयोग किया है !


रिशंकर परसाई


कॉल- वर्ष 1924 से 1995 के मध्य
रचनाएं- जैसे उनके दिन फिरे .हंसते हैं रोते हैं, रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज ,भूत के पांव पीछे ,बेईमानी की परत, सरदार का ताबीज ,शिकायत मुझे भी है ,पगडंडियों का जमाना आदि


विषयवस्तु- परसाई जी के काव्य की विषय वस्तु सामाजिक मूल्य गत विसंगतियां हैं
भाषा शैली- इनकी भाषा सर अलवर सरस है जिनमें हिंदी उर्दू अंग्रेज भारत दीदी शब्दों का कहावत वह कब प्रयोग किया है इंकी शैली व्यंगात्मक हसोड़ शैली है !


शरद जोशी


काल- वर्ष 1931 से 1994 के मध्य
रचनाएं- पिछले दिनों रहा किनारे बैठा, जीप पर सवार इल्लियां ,फिर किसी बहाने ,अंधों का हाथी, एकता गधा तिलिस्म, मैं.मैं और केवल में .आदि !


विषय वस्तु- जोशी ने सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों पर व्यंग किया है
भाषा शैली- जोशी जी ने हिंदी के तत्सम देशराज तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया है जोशी जी की शैली मुख्य रूप से व्यंगात्मक है लेकिन वह सीधी एवं सरल होने के कारण मर्मस्पर्शी है


आचार्य नंददुलारे वाजपेयी


कॉल- मध्य 20 वी शताब्दी


रचनाए- हिंदी साहित्य बीसवीं शताब्दी ,नए प्रश्न ,आधुनिक साहित्य. राष्ट्रभाषा की कुछ समस्याएं. रीति और शैली ,हिंदी साहित्य का इतिहास आदि


विषय वस्तु- हिंदी साहित्य की समीक्षा की है
भाषा शैली- हिंदी भाषा में रस छंद अलंकार का सुंदर समन्वय किया है उन्होंने आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया है !


डॉक्टर शिवमंगल सिंह सुमन


काल- 20 वी  शताब्दी
रचानऐ- जीवन के गान. हेल्लोल.प्रलय सजन. विश्वास बढ़ता ही गया. पर आंखें नहीं भरीं .विंध्य हिमालय. मिट्टी की बारात. युगों का मोल .आदि


विषय वस्तु- प्रकृति एवं मानव जीवन का छायावादी वर्णन
भाषा शैली- सुमन जी ने खड़ी बोली में संस्कृत एवं उर्दू शब्दों का प्रयोग किया है इनकी भाषा सैली बातचीत की पद्धति शैली है  !

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