Master राजस्थान की लोक गायन शैलियाँ
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राजस्थान की लोक गायक शैलियां पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और रंग बिरंगे वेशभूषा के साथ-साथ बहुत ही सुंदर तरीके से गीतों की प्रस्तुति देते हैं इसी को ध्यान में रखते हुए हमने कुछ महत्वपूर्ण गायन शैलियों को इस लेख में सम्मिलित किया है इनमें से पिछली परीक्षाओं में बहुत बार प्रश्न पूछे जा चुके हैं और भविष्य में भी यहां से प्रश्न आने की संभावना रखते हैं
10 वीं 11 वीं शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र माण्ड क्षेत्र कहलाता था। अतः यहां विकसित गायन शैली माण्ड गायन शैली कहलाई। एक श्रृंगार प्रधान गायन शैली है।
प्रमुख गायिकाएं
राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर जैसलमेर तथा बाड़मेर की प्रमुख जाति मांगणियार जिसका मुख्य पैसा गायन तथा वादन है।
मांगणियार जाति मूलतः सिन्ध प्रान्त की है तथा यह मुस्लिम जाति है। प्रमुख वाद्य यंत्र कमायचा तथा खड़ताल है। कमायचा तत् वाद्य है। इस गायन शैली में 6 रंग व 36 रागिनियों का प्रयोग होता है।
प्रमुख गायक
लंगा जाति का निवास स्थान जैसलमेर-बाडमेर जिलों में है। बडवणा गांव (बाड़मेर) " लंगों का गांव" कहलाता है। यह जाति मुख्यतः राजपूतों के यहां वंशावलियों का बखान करती है। प्रमुख वाद्य यत्र कमायचा तथा सारंगी है।
प्रसिद्ध गायकार
औरंगजेब के समय विस्थापित किए गए कलाकारों के द्वारा राज्य के सवाईमाधोपुर जिले में विकसित शैली है। इस गायन शैली के अन्तर्गत प्राचीन कवियों की पदावलियों को हारमोनियम तथा तबला वाद्य यंत्रों के साथ सगत के रूप में गाया जाता है। वर्तमान में यह पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय है।
प्रधान केन्द्र नाथद्वारा (राजसमंद) है। औरंगजेब के समय बंद कमरों में विकसित गायन शैली।
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