डॉ गोपीनाथ शर्मा ने ख्यात को वंशावली और जीवन की लेखन का विस्तृत रुप बताया है इनमें राजवंशो की पीढ़ियां उनके जन्म मरण की तिथियां और विशेष घटनाओं का वर्णन मिलता है
जिस वंश की ख्यात होती है उस वंश के व्यक्ति विशेष के जीवन संबंधित घटनाओं का इसमें वर्णन होता है, इन ख्यातों में उल्लेखित सोलवीं सदी से जो वर्णन मिलता है वह तथ्यपूर्ण माना गया है, सोलहवीं सदी से पूर्व का वर्णन कल्पित माना जाता है
जब राजपूत नरेशो ने मुगल सम्राटों को अपने जीवन काल की घटनाओं की लिपि बद्ध करवाते देखा तो उन्होंने भी अपने दरबार में ऐसे चारण रखें जो उनके शासनकाल की घटनाओं को ख्यात रूप से लिपिबद्ध करने लगे, चारण बहुधा उन घटनाओं को पद्य में लिखते थे जबकि अन्य कर्मचारियों ने 7गद्य में लिखते थे
ख्यात भी दो प्रकार की मिलती है
प्रथम श्रेणी की ख्यात में किसी भी नरेश व किसी राजवंश का क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध होता है, जबकि दूसरी श्रेणी की ख्यात में अलग-अलग घटनाओं का उल्लेख मिलता है और वह क्रमबद्ध नहीं होता| प्रथम श्रेणी की ख्यात में हम दयालदास री ख्यात ले सकते हैं, जबकि दूसरी श्रेणी में मूहणोत नेनसी और बाकींदास की ख्यात शामिल कर सकते हैं
1. मुंडियार की ख्यात-
यह स्थान नागौर नगर से 10 मील दूर स्थित है यह चरणों का गांव मे है, चारणों को यह ग्राम जोधपुर के राठौड़ नरेशों से दान में मिला था, यह ख्यात चरणों की ही रचनाएं इसलिए इस ख्यात को राठौड़ों की ख्यात भी कहा जाता है
ख्यात के लेखक और रचना काल के विषय में निश्चित जानकारी नहीं मिलती है, उन्होंने यह जोधपुर नरेश जसवंत सिंह के समय लिखी थी, ऐसी संभावना है क्योंकि इसमें राव सिंह से लेकर जसवंत सिंह की मृत्यु तक का ही विवरण प्राप्त है, इस ख्यात में मारवाड़ के प्रत्येक राजा का जन्म उस का राज्यभिषेक और उसके स्वर्गवास का तिथिक्रम दिया गया है
2. दयाल दास री ख्यात-
दयालदास बीकानेर नरेश रतन सिंह के अति विश्वसनीय दरबारी कवि थे, उन्होंने महाराजा के आदेश पर ख्यात लिखना आरंभ किया था, ख्यात लिखने से पूर्व उन्होंने उपलब्ध वंशावलीयों पट्टे बहियों व शाही फरमानों का अध्ययन किया था
दयालदास की ख्यात दो भागों में विभक्त है प्रथम भाग में बीकानेर के राठौरों का प्रारंभ से लेकर बिकानेर नरेश महाराजा सरदार सिह जी के राज्यभिषेक तक का वर्णन है, इस प्रकार यह ख्याल बीकानेर के राठौड़ शासकों की उपलब्धियों की यशगाथा है, लेकिन इसमें प्रसंग वंश जोधपुर के राठौरों का भी उल्लेख आ गया है
विद्वानों की धारणा है कि दयालदास नें अपनी ख्यात में प्रमाणित घटनाओं का वर्णन किया है. मुहणोत नैंसी और बाकी दास की ख्यात के विपरीत यह ख्यात सलग्न अथवा लगातार इतिहास है, बीकानेर के इतिहास निर्माण में यह ख्याल अति लाभदायक सिद्ध हुई है
3. बांकीदास री ख्यात-
बाकी दास का जन्म 1771 में भांडिया ग्राम में हुआ था, अपनी विद्धता के कारण वे जोधपुर नरेश मानसिंह के संपर्क में आए, महाराजा ने उनको अपना भाषा गुरु बनाया, राजा के व्यवहार से बांकीदास इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अन्य किसी नरेश का आश्रय न लेने का प्रण ले लिया था, उन्होंने कई ग्रंथ लिखे लेकिन राजस्थानी गद्य में रचित इन की ख्यात अधिक लोकप्रिय और ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हुई
बांकीदास एक महान कवि और इतिहासकार थे, अपनी काव्य प्रतिभा से ही इन्होंने एक निर्धन चारण कुल में जन्म लेकर जोधपुर नरेश मानसिंह के दरबार में सर्वोच्च सम्मान पाया
राजस्थान के पराक्रमहीन नरेशों ने जब बिना युद्ध के ही अंग्रेजों की दास्तां स्वीकार कर ली तो बांकीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्हें पर्याप्त प्रताड़ित किया
इस ख्यात में लगभग 2000 बातों का संग्रह है, ख्यात की बातें अधिकतर राजपूतों के इतिहास से संबंधित है, लेकिन इन बातों का संग्रह क्रमबद्ध नहीं है, इन की ख्यात का संपादन करने का प्रयास नरोत्तम दास स्वामी ने किया लेकिन उन्हें भी इस में पूर्ण सफलता नहीं मिली इस पर भी इस ख्यात का ऐतिहासिक महत्व कम नहीं हुआ
इस ख्यात के संदर्भ में डॉक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने लिखा है ग्रंथ क्या है इतिहास का खजाना, राजपूताने के बहुधा प्रत्येक राज्य के राजाओं सरदारो, मुत्सद्दीयो आदि के संबंध में अनेक ऐसी बातें लिखी है जिनका अन्यंत्र मिलना कठिन है उसमें मुसलमानों, जैनियों आदि के संबंध में भी बहुत सी बातें हैं
इस ख्यात के ऐतिहासिक महत्व को स्वीकार करते हुए विख्यात पुरातत्व शास्त्री मुनि विजय भी लिखते हैं, राजस्थान का क्रमिक इतिहास तैयार करने में यह रचना एक आधार ग्रंथ के रूप में सहायक सिद्ध हो सकती है, इस ग्रंथ को अति विश्वसनीय मानते हुए डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं-लेखक के घटनाओं के समकालीन होने के कारण इस पर अधिक विश्वास किया जा सकता है
Specially thanks to Post Author - Mamta Sharma
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