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भारतीय जलवायु मानसूनी प्रकार की जलवायु है मानसून शब्द अरबी भाषा का है जिसका शाब्दिक अर्थ मौसम या ऋत्विक अनुसार परिवर्तन अथार्थ वै पवने जो वर्ष में दो बार अपना मार्ग रितुओं के अनुसार परिवर्तित कर लेती है मानसून पवने कहलाती है भारतीय मानसून को दो भागो में रखा जा सकता है-
सूर्य के उत्तरायण होने पर सूर्य उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों में कर्क रेखा पर लंबवत (21 जून) चमकता है, जिसके कारण एशिया के तिब्बत के पठार एवं भारत के उत्तरी पश्चिमी भाग पर निम्न वायुदाब का केंद्र विकसित हो जाता हैं इसी समय दक्षिणी गोलार्ध में कम तापमान के कारण हिंद महासागर पर उच्च वायुदाब का केंद्र बन जाता है
इसके कारण दक्षिण गोलार्द की दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक हवाएं ↖↖ गर्म एवं आद्र भूमध्य रेखा को पार करके फेरल के नियम के अनुसार दाहिनी ओर मुड़ जाती है एवं उनकी दिशा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पुर्व ↗↗ हो जाती है यही दक्षिण पश्चिमी हवाऐ मानसूनी हवाएं कहलाती है इसे ही ग्रीष्मकालीन मानसून कहा जाता है
दक्षिणी पश्चिमी मानसून हवाएं प्रायदिपिय भारत से टकरा कर दो भागों में बंट जाती है जो निम्नअनुसार है-
भारत में दक्षिणी पश्चिमी पवने अरब सागर शाखा की रूप में सर्वप्रथम केरल के मालाबार तट पर 1 से 5 जून के मध्य प्रवेश करती है, अरब सागर शाखा वाली पवने पवने तिर्व वेग वाली होती है। जो पश्चिमी घाट (पर्वत) से टकरा कर घनघोर वर्षा करती है प्रथम घनघोर वर्षा को मानसून का फटना अथवा Brust of Mansun कहलाती है
इस शाखा से पश्चिमी तटवर्ती मैदान में लगभग 200 सेंटीमीटर वर्षा होती है तथा इस शाखा से पश्चिमी घाट के पश्चिमी डालों पवनोन्मुखी तट पर लगभग 500 सेंटीमीटर वर्षा होती है यह हवायें जैसे ही पश्चिमी घाट के पूर्वी डालो पवनविमुखी ढाल पर उतरती है तो शुष्क व ग्रम रह जाती है इसलिये इस प्रदेश में स्थित विर्दभ (M.H), व तैलंगाना मे हर वर्ष सूखा और अकाल पड़ता है क्योंकि वे दोनों स्थान पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया प्रदेश में स्थित है
अरब सागर की एक शाखा 9 से 10 जून के मध्य विंध्याचल पर्वत व सतपुड़ा के मध्य स्थित नर्मदा नदी की घाटी से होते हुए यह छोटा नागपुर के पठार तक पहुंच जाती है जहां अरब सागर के मानसून का मिलन बंगाल की खाड़ी के मानसून से होता है और वहाँ लगभग 100 सेंटीमीटर वर्षा हो जाती है
अरब सागर की एक शाखा 15 से 20 जून के मध्य खंभात की खाड़ी, कच्छ, राजस्थान *(झालावाड़ 20 से 25 जून)* पंजाब, हरियाणा होते हुए पश्चिमी हिमालय के भागों में मध्य प्रदेश तक चली जाती है अरब सागर की शाखा राजस्थान के दोनों भागों पूर्व व पश्चिम में वर्षा करते हैं परंतु पूर्व की तुलना में पश्चिम में स्थित भागों में कम वर्षा होने का कारण गर्म लू तथा समंवहनिय धाराएं है। अरब सागर की शाखा से सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान
अरब सागर कि शाखा से न्युतन्तम वर्षा वाले स्थान
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