राजा राममोहन राय भारतीय धर्म और समाज सुधार आंदोलन के अग्रणी पुरुष थे। इन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का अग्रदूत भी कहा जाता है। इन्होंने भारतीय समाज और धर्म में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
A. राजा राममोहन राय के धार्मिक सुधार
- धार्मिक सहिष्णुता पर बल देना - राजा राममोहन राय ने धार्मिक सहिष्णुता पर बल दिया। वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे। इसमें न किसी की मूर्ति स्थापित होगी न कोई बलि होगी और न ही किसी धर्म की निंदा की जाएगी। इसमें केवल ऐसे ही उपदेश दिए जाएंगे जिनमें सभी धर्मों के बीच एकता एवं सद्भाव की वृद्धि हो।
- हिंदू धर्म में सुधार करने का प्रयत्न - राजा राममोहन राय हिंदू धर्म की बुराइयों को दूर करके उसे प्रगतिशील बनाना चाहते थे उन्होंने मूर्तिपूजा,अवतारवाद, बहुदेववाद,तीर्थ यात्रा आदि का विरोध किया और एकेश्वरवाद का प्रचार किया।
B. राजा राममोहन राय के सामाजिक सुधार (Social Reform of Raja Rammohan Rai)
- सती प्रथा का विरोध - राजा राममोहन राय सती प्रथा के प्रबल विरोधी थे उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप 1829 ईस्वी में भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।
- सामाजिक कुरीतियों का विरोध - राजा राममोहन राय ने बाल विवाह बहु विवाह सती प्रथा पर्दा प्रथा दहेज प्रथा आदि कुरीतियों का घोर विरोध किया और स्त्री शिक्षा तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।
- स्त्रियों की दशा सुधारने पर बल - राजा राममोहन राय ने स्त्रियों की दशा सुधारने पर विशेष बल दिया। उन्होंने स्त्रियों को संपत्ति में उचित भाग दिए जाने पर बल दिया।
- जाति प्रथा तथा छुआछूत का विरोध - राजा राममोहन राय ने जाति प्रथा छुआछूत ऊंच-नीच के भेदभाव का घोर विरोध किया और सामाजिक समानता पर बल दिया
C. शिक्षा के क्षेत्र में सुधार
- राजा राममोहन राय पाश्चात्य ज्ञान और शिक्षा के अध्ययन को भी भारत के विकास और प्रगति के लिए आवश्यक मानते थे। अतः उन्होंने अंग्रेजी भाषा के अध्ययन पर बल दिया।
- अनेक स्कूलों की स्थापना - राजा राममोहन राय ने कोलकाता में वेदांत कॉलेज इंग्लिश कॉलेज और हिंदू कॉलेज की स्थापना की।
- समाचार पत्रों का प्रकाशन - उन्होंने बंगाल में "संवादकौमुदी",फारसी में "मिरातुले अखबार" तथा अंग्रेजी भाषा में 'ब्रह्मीकल' पत्रिकाऐं प्रकाशित की।
D. राजनीतिक क्षेत्र में सुधार
- स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक - राजा राममोहन राय स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे। विपिनचंद्र पाल का कथन है, कि, "राजा राममोहन राय पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता का संदेश दिया वे चाहते थे कि भारत में प्रजातंत्रात्मक शासन की स्थापना हो और विश्व के अन्य स्वतंत्र राष्ट्रों के समक्ष खड़ा हो सकें। उन्होंने अनिश्चित काल तक के लिए भारत की पराधीनता की कभी कल्पना नहीं की।"
- प्रेस का समर्थन करना - राजा राममोहन राय प्रेस तथा भाषण की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने प्रशासन में सुधार करने के लिए अनेक सुझाव दिए
Specially thanks to Post Author - दिनेश मीना झालरा टोंक
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