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Comprehensive study materials and practice resources for Law Concept ( विधि की अवधारणा )
सामान्य अर्थ में किसी भी नियम को विधि कहा जा सकता है। उत्पत्ति की दृष्टि से 'विधि' का अंग्रेजी पर्याय 'लॉ' ट्यूटोनिक धातु 'लैग' से निकला है जिसका अर्थ है कोई ऐसी वस्तु जो एकसार हो अर्थात बंधी हुई हो।
हूकर के अनुसार - ऐसे नियम अथवा उपनियम जिनके द्वारा मनुष्य के कार्य संचालित होते हैं, विधि कहलाते हैं।
हेनरी सिडविक के अनुसार - विधि शब्द का प्रयोग किसी ऐसे सामान्य नियम के लिए किया जा सकता है जो किसी कार्य को करने अथवा न करने का आदेश देता है और जिसकी अवज्ञा करने पर दोषी व्यक्ति को दंड भोगना पड़ा। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश शब्दकोश में 'विधि' को राज्य द्वारा लागू किया गया आचरण संबंधी नियम कहा गया है।
हॉलैंड के अनुसार - विधि से आशय मानवीय कृत्यों के उन सामान्य नियमों से हैं जिनकी अभिव्यक्ति मनुष्य के बाह्य आचरण द्वारा होती है और जो किसी सुनिश्चित प्राधिकारी द्वारा लागू किए जाते हैं। यह प्राधिकारी कोई ऐसा व्यक्ति होता है जिससे उन मानवीय प्राधिकारियों में से चुना जाता है जो राजनीतिक समाज में सर्वशक्तिमान होते हैं।
सामण्ड के अनुसार- सामान्य अर्थ में विधि के अंतर्गत सभी कार्यों संबंधी नियमों का समावेश है। उनका कथन है कि विशिष्ट अर्थ में विधि से तात्पर्य नागरिक विधि से हैं जो किसी देश के नागरिकों के प्रति लागू होती है। उनके अनुसार वास्तव में विधिशास्त्रीय विधि वही है जो न्याय की स्थापना के लिए न्यायालयों द्वारा लागू की जाती है। ऑस्टिन ने विधि को "प्रभुताधारी या राजनीतिक दृष्टि से उच्चतर व्यक्तियों द्वारा शासित व्यक्तियों पर अधिरोपित किए गए नियमों का समूह" निरूपित किया है। इसे ऑस्टिन ने 'पॉजिटिव लॉ' कहा है। केल्सन ने विधि को 'अमनोवैज्ञानित समादेश' कहा है। केल्सन के अनुसार विधि समाज को संगठित करने की तकनीक है जो स्वयं में साक्ष्य ना होकर लोगों को नीतिशास्त्र के नियमों को अनुगमन करने के लिए बाध्य करती है।
1. औपचारित स्रोत (Formalized Source) - सामण्ड के अनुसार विधि के कुछ ऐसे स्रोत है जिनसे विधि अपने शक्ति या वैधता प्राप्त करती है। इन स्रोतों को औपचारित स्रोत कहा जाता है। इनका तात्पर्य राज्य की इच्छा और शक्ति से है, जो राज्य के न्यायालयों द्वारा निर्णयों के माध्यम से अभिव्यक्त की जाती है।
2. भौतिक स्रोत (Physical source)- विधि का भौतिक या तात्विक स्रोत वह है जिसे विधि विषयक सामग्री प्राप्त होती है। सामण्ड ने विधि के भौतिक स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया है -
ऐतिहासिक स्रोत (Historical source) - विधि के ऐतिहासिक स्रोत विधि के विकास को प्रभावित करते हैं तथा विधि निर्माण के लिए सामग्री जुटाते हैं। ऐतिहासिक स्रोतों का संबंध विधिक इतिहास से है ध कि विधिक सिद्धांतों से। अतः इन स्रोतों के पीछे विधिक मान्यता नहीं होती है। ये स्रोत परोक्षतः विधि के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।
वैधानिक स्रोत (Statutory sources)- यह विधि के ऐसे स्रोत है जिन्हें विधि द्वारा मान्यता दी गई है। वैधानिक स्रोत निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं--
अतिलघुतरात्मक (15 से 20 शब्द)
प्र 1. विधि को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- मानव समाज में व्यक्तियों के संव्यवहारों के औचित्य या अनौचित्य को निर्धारित करने के लिए राज्य द्वारा बनाए गए नियम ही विधि कहलाते हैं।
प्र 2. नागरिक विधि क्या है?
उत्तर- किसी देश में प्रचलित विधि उस देश की सिविल विधि या नागरिक विधि कहलाती है।
प्र 3. नैतिक एवं विधिक अधिकार में अंतर बताइए।
उत्तर- नैतिक अधिकार प्रा कृतिक न्याय के नियमों से उद्भूत होते हैं। इनके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान नहीं है जबकि विधिक अधिकार राज्य की विधि से उद्भूत होते हैं, जिनके उल्लंघन पर राज्य या न्यायालय द्वारा दंड दिया जाता है।
प्र 4. 'जस एड रेम' क्या है?
उत्तर- किसी अधिकार से उत्पन्न अधिकार को जस एड रेम कहते हैं।
प्र 5. कब्जे के आवश्यक तत्व बताइए।
उत्तर- 1. किसी वस्तु पर वास्तविक कब्जा। 2. कब्जे को धारण किए रहने की मानसिक इच्छा।
लघूतरात्मक (50 से 60 शब्द)
प्र 6. शास्तिक दायित्व का सिद्धांत क्या है? स्पष्ट करे।
उत्तर- किसी व्यक्ति पर शास्तिक दायित्व तभी होता है जब वह विधि द्वारा वर्जित कोई कृत्य करता है तथा उस कृत्य को करने में उसकी आपराधिक मनःस्थिति रही हो। इस प्रकार विधि के अंतर्गत शास्तिक दायित्व के लिए दो शर्तें आवश्यक है- 1. किसी भौतिक कृत्य का होना। 2. उस कृत्य को करने का दुराशय होना। PCSइसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति का आशय चाहे जितना भी दोषपूर्ण क्यों न हो उसे तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक उसका आशय किसी ऐसे कृत्य का रूप धारण नहीं कर लेता, जो विधि द्वारा निषिद्ध है। शास्तिक दायित्व के लिए प्रथम आवश्यक तत्व यह कि व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा बाह्य कृत्य किया गया हो, जो विधि द्वारा वर्जित हो।
प्र 7. विधिक व्यक्तित्व में निगमों की स्थिति पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- विधि के अंतर्गत निगम की रचना अधिनियम के अधीन होती है। सामण्ड के विचार से निगम व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो विधिक कल्पना द्वारा विधिक व्यक्ति के रूप में मान्य किया गया है। निगमों की रचना मनुष्यों के वर्गों या श्रेणियों के मानवीकरण से होती है। इस विधिक व्यक्ति की काय वे व्यक्ति होते हैं जो इसके सदस्य कहलाते हैं। विधि के अंतर्गत निगमों को दो वर्गों में रखा जा सकता है।
1. समाहृत निगम- सह विद्यमान व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठित होता है। लिमिटेड कंपनियां समाहृत निगम का सर्वोत्तम उदाहरण है।
2. एकल निगम- एकल निगम क्रमवर्ती व्यक्तियों की निगमित श्रंखला है। एकल निगम में एक समय एक ही व्यक्ति होता है एकल निगम एक के बाद एक आने वाले व्यक्तियों की ऐसी निगम श्रंखला है। जिसमें एक समय केवल एक ही व्यक्ति होता है।
प्र 8. स्वामित्व और कब्जे में क्या अंतर है?
उत्तर- स्वामित्व में स्वामी और संपत्ति का संबंध विधितः होता है जबकि कब्जे में कब्जाधारी और संपत्ति का संबंध वस्तुतः होता है अर्थात कब्जा वास्तविक होता है। उदाहरण के लिए किराए पर दिए मकान पर उसके मालिक का स्वामित्व विधितः होता है लेकिन किराएदार का कब्जा वास्तविक होता है। कोई व्यक्ति किसी वस्तु का स्वामी तभी होता है, जब उस वस्तु पर कब्जा उस व्यक्ति की स्वाग्रही र इच्छा से कायम रहता है। इस प्रकार स्वामित्व विधि की प्रत्याभूति है, जबकि कब्जा तथ्यों की प्रत्याभूति है। स्वामित्व के अधिकार में संपत्ति का स्वामी होने का अधिकार, संपत्ति के उपयोग, अंतरण तथा उसे नष्ट करने का अधिकार समाविष्ट है। हो सकता है यह सब अधिकार एक ही समय विद्यमान ना हो। कब्जे के अधिकार द्वारा स्वामित्व का अधिकार प्राप्त किया जाना संभव है। अनेक विधिवेताओं के अनुसार स्वामित्व और कब्जे में वही संबंध है जो आत्मा और शरीर में है।
प्र 9. आधिपत्य अर्जित करने के विभिन्न तरीकों को समझाइए।
उत्तर- आधिपत्य अर्जित करने के 3 तरीके है-
प्र 10. हाफील्ड के अधिकारों के वर्गीकरण को समझाइए। (80 शब्द)
उत्तर- विधिशास्त्र में हाफील्ड के विधिक अधिकारों के वर्गीकरण का महत्वपूर्ण स्थान है। हाफील्ड ने अधिकार, स्वतंत्रता, शक्ति और उन्मुक्ति की सहवर्ती तथा प्रतिकूल अवधारणाओं को निम्नलिखित तालिकाओं द्वारा स्पष्ट किया है-
अधिकार. <-------> .स्वतंत्रता | °. . ° | | . ° . | कर्तव्य ° <------->° अधिकार शून्यता शक्ति . <----------->. उन्मूक्ति | °. . ° | | ° . ° | अधीनता°<-------->° निर्योग्यता
उपरोक्त तालिका से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती है कि 1. अधिकार का सहवर्ती कर्तव्य है। 2. स्वतंत्रता का सहवर्ती अधिकार शून्यता है। 3. शक्ति का सहवर्ती अधीनता या दायित्व है तथा 4. उन्मुक्ति का सहवर्ती निर्योग्यता है। इसी प्रकार अधिकार शून्यता का अर्थ है अधिकार का ना होना। कर्तव्य का अर्थ है स्वतंत्रता का ना होना। निर्योग्यता का अर्थ शक्ति का ना होना। अधीनता का अर्थ उन्मुक्ति का ना होना।
Specially thanks to Post Author - P K Nagauri