Interstate Water Disputes in India ( भारतीय राज्यों में जल विवाद )

Interstate Water Disputes in India


भारतीय राज्यों में जल विवाद 


 

हाल के वर्षों में जल संसाधन के उपयोग को लेकर राज्यों के बीच तनाव में तेजी से वृद्धि हुई है। इस तरह के विवाद राज्यों के आर्थिक विकास, मानव विकास को बाधित करते हैं। यह विवाद परस्पर सहयोग संबंधों में भी कटूता लाते हैं।

भारत एक विशाल भौगोलिक प्रदेश है। इसके भौगोलिक इकाइयों में समानता नहीं है। इस कारण से राज्यों के बीच में जल विवाद उत्पन्न होते रहते हैं।इसके कई कारण है। इन्हें पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक- प्रशासनिक और क्षेत्रवाद के वर्गों में रखा जा सकता है।

जल विवाद के कारण ( Reason of water disputes )


1. पर्यावरणीय ( Environmental )

पर्यावरणीय दृष्टि से भारत में अधिकतर नदिया लंबी है। कई नदियां दो या दो से अधिक राज्यों से गुजरती है। भारत की वह सभी नदिया जिनकी लंबाई 500 किमी से अधिक है वे अंतर राज्य नदिया है। सामान्यतः ऊपरी बेसिन का राज्य पर्वतीय और पठारी है जहां कृषि उपयोग की सीमित संभावनाएं हैं जबकि निम्न बेसिन का राज्य जलोढ मैदानी है। जहां सिंचाई के रूप में नदी जल उपयोग की अधिक संभावना है।

इसलिए ऊपरी नदी बेसिन के राज्य में कृषि का उतना विकास नहीं होता जितना कि नहर उपयोग के द्वारा निम्न बेसिन का राज्य करता है।इसके विपरीत ऊपरी बेसिन में आकस्मिक बाढ़ और मृदा क्षरण जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है। अतः ऊपरी बेसिक का राज्य छोटे छोटे बांधो द्वारा जल उपयोग की नीति अपनाता है तो निम्न बेसिन के सिंचाई विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इससे राज्यों के बीच तनाव उत्पन्न होता है। जैसे कावेरी बेसिन के सिंचाई के लिए मैटूर बांध।

2. आर्थिक कारण ( Commercial Purpose )

इससे भी तनाव में वृद्धि हुई है। स्वतंत्रता के तत्काल बाद ऊपरी और निम्न बेसिन दोनों ही राज्य अविकसित थे। प्रायः दोनों में ही खाद्य समस्या थी लेकिन जब कमांड क्षेत्र नीति अपनाने गई तो इसका सीधा लाभ निम्न बेसिन के राज्य को मिला। निम्न बेसिन में हरित क्रांति जैसी स्थिति उत्पन्न हुई। इसका परिणाम हुआ कि अंतर राज्य आर्थिक विषमता में वृद्धि हो गई।

1970 - 71 तक कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों में खाद्यान्न की भारी कमी थी लेकिन वर्तमान समय में तमिलनाडु में अतिरिक्त खाद्यान्नों उत्पन्न होता है जबकि कर्नाटक को बाहरी राज्यों से खाद्यान्न मंगाना पड़ता है। इस प्रकार बढ़ती विषमता विवाद का महत्वपूर्ण कारण बन गया है।

3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारण ( Socio-Cultural reasons )

भारतीय राज्यों के गठन का आधार ही भाषा है। इससे राज्य आधारित भावनात्मक लगाव में वृद्धि हुई। उप राष्ट्रवाद की भावना संसाधनों के उपयोग के आर्थिक पहलुओं को नजरअंदाज करती है। अक्सर इससे कई बार राज्य में विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है।

4. राजनीतिक- प्रशासनिक कारण ( Political-Administrative Reasons )

संवैधानिक प्रावधान के अनुसार जल संसाधन राज्य सूची का विषय है जबकि भारत की अधिकतर नदियां अंतर राज्य नदियां हैं। राज्य सूची में होने के कारण संसाधनों के उपयोग के प्रति बढ़ती जागरूकता इस विवाद का एक प्रमुख कारण बन चुका है।

5. प्रशासनिक खामियां ( Administrative flaws )

कमांड क्षेत्र नीति बनाने के समय ऊपरी बेसिन के राज्यों के कई हितों का ध्यान नहीं रखा गया। इसी प्रकार बहुउद्देशीय नदी घाटी योजना में भी अधिकतर लाभ निम्न बेसिन राज्यों को मिला। प्रशासनिक स्तर पर क्षतिपूर्ति कार्य को सही ढंग से लागू नहीं किए जाने के कारण भी तनाव बढ़ा है।

6. क्षेत्रवाद ( Regionalism )

भारतीय राज्यों में क्षेत्रवाद भी तेजी से पनपा है जो राज्य और क्षेत्र के हितों को अधिक महत्व देता है। बढ़ते क्षेत्रवाद के कारण ही मैदानी भारत के राज्यों के बीच नदियों के मार्ग परिवर्तन से भूमि को लेकर तथा जल उपयोग को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

भारत के प्रमुख जल विवाद ( Water dispute in India  )



  1. कावेरी नदी के जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच

  2. अलमाटी बांध (कृष्णा नदी) के निर्माण व उसकी ऊंचाई को लेकर कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के बीच

  3. दामोदर घाटी बहुउद्देशीय योजना के खर्च व जल उपयोग को लेकर पश्चिम बंगाल व झारखंड के बीच

  4. मयूराक्षी योजना को लेकर झारखंड व पश्चिम बंगाल के बीच

  5. इंदिरा गांधी नहर में छोडे जा रहे जल को लेकर पंजाब व राजस्थान के बीच

  6. नर्मदा बांध परियोजना को लेकर मध्य प्रदेश व गुजरात के बीच

  7. यमुना नदी के जल उपयोग को लेकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा हरियाणा के बीच

  8. टिहरी बांध को लेकर उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बीच

  9. गोदावरी नदी के जल उपयोग को लेकर आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र के बीच

  10. रावी- व्यास नदियों के जल के उपयोग को लेकर हिमाचल प्रदेश, पंजाब व राजस्थान के बीच

  11. सोन नदी के विवाद को लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के बीच विवाद आदि।


समस्या के समाधान की दिशा में कार्य ( Work towards resolving the problem )


राज्यों के बीच बढ़ते जल विवाद की संभावना संविधान निर्माताओं द्वारा भी व्यक्त की गई थी। अतः संविधान के प्रावधानों में भी समस्या के समाधान की व्यवस्था है।  मुख्य रूप से संविधान की धारा 142 और 263 के अंतर्गत इस समस्या के समाधान की दिशा में कार्य किए जा सकते हैं।

धारा 143 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय के द्वारा न्यायाधिकरण का गठन किया जा सकता है। धारा 263 के अंतर्गत अंतर राज्य परिषद के गठन का प्रावधान है। जल विवाद के समाधान हेतु अभी तक पांच न्यायाधिकरण का गठन किया जा चुका है-

  1. गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण

  2. कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण

  3. नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण

  4. रावी-व्यास जल विवाद न्यायाधिकरण

  5. कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण


इन न्यायाधिकरणों में से एकमात्र गोदावरी जल विवाद का समाधान न्यायाधिकरण की अनुशंसा के अनुरूप किया जा सका है। इससे स्पष्ट है कि सभी राज्य अपने हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं और इससे समस्या समाधान की दिशा में कुछ सकारात्मक कार्य नहीं हो रहा है।

अतः समस्या के समाधान हेतु कई वैकल्पिक कार्य प्रारंभ किए गए हैं। सभी वैकल्पिक कार्यों का मूल उद्देश्य जल संसाधन का समन्वित उपयोग है। कुछ प्रयास महत्वपूर्ण है जैसे अंतर राज्य जल परिवहन के उद्देश्य से नदी और झील को समवर्ती सूची में रखा जा चुका है।

नई राष्ट्रीय जल नीति घोषित करना। इसमें जल संसाधन को समवर्ती सूची में लाने का प्रावधान है।

सिंचाई आयोग (1973) ने अपनी अनुशंसा में स्पष्ट किया है कि जल संसाधन के एकीकृत उपयोग हेतु तथा राज्यों के बीच बढ़ते विवाद को कम करने के उद्देश्य से आवश्यक है कि कमांड क्षेत्र विकास योजना के बदले नदी बेसिन विकास योजना लागू की जाए लेकिन बहुउद्देशीय नदी घाटी योजनाओं मुलतः नदी बेसिन के पूर्ण सफल ना होने के कारण सिंचाई आयोग की अनुशंसा को विशेष महत्व नहीं दिया गया है।

वर्तमान समय में जल संसाधन के उपयोग हेतु दो प्रकार की नीति अपनाई गई है- प्रथम नीति के अंतर्गत लघु स्तर पर जल संसाधन का उपयोग। इस नीति के अंतर्गत ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकल सिंचाई, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वाटरशेड प्रबंधन और छोटे बांधों के द्वारा नहर सिंचाई के विकास को प्राथमिकता दी गई है।

दूसरी नीति के अंतर्गत जलविद्युत योजनाओं को प्राथमिकता दी जा रही है। जलविद्युत योजनाएं उन राज्यों में विकसित की जा रही है जहां प्रथमतः ऊर्जा की कमी है या फिर अंतर राज्य विवाद उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।

भारत एक संघीय देश है और देश के हर भाग को जल संसाधन उपलब्ध कराना आवश्यक है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर 1985 में NWDA द्वारा नदियों के जोड़ने की योजना तैयार की गई थी। अधिकतर विशेषज्ञों के अनुसार नदियों को जोड़ने की योजना सफल होती है तो राज्यों के बीच जल विवाद में कमी आ सकती है। हालांकि इस महत्वाकांक्षी योजना की सफलता पर भी कई प्रश्न चिन्ह है।

उपसंहार ( Epilogue )


मूल आवश्यकताएं यह है कि जल संसाधन को राष्ट्रीय संसाधन घोषित किया जाए और इसके उपयोग की एक वृहद् राष्ट्रीय नीति तैयार हो जिसमें सभी राज्यों के हितों को पर्याप्त महत्व दिया जाये।

 

Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )

P K Nagauri


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