WATERFALL ( जलप्रपात )

WATERFALL ( जलप्रपात )


जलप्रपात शब्द से साधारणत: पानी के संकलित रूप से गिरने का बोध होता है। प्राचीन समय से ही प्रपातों से अनेक लाभ उठाए जा रहे हैं। सर्वप्रथम प्रपातों द्वारा पनचक्कीचलाने का प्रचलन हुआ। पर्वतीय प्रदेशों में पनचक्कियाँ विशेषकर जलप्रपातों द्वारा ही चलती हैं और लोग पनचक्कियों द्वारा ही पिसाई कराते हैं। जब नहरों का निर्माण हुआ तब जलप्रपातों पर पहले पनचक्कियाँ ही स्थापित की गईं, जिससे सिंचाई के अतिरिक्त आटा पीसे जाने की सुविधा हो सके। फिर जब पनबिजली का विकास हुआ तब जलप्रपातों पर पनबिजली बनाने के लिये बड़े बड़े यंत्र लगाए जाने लगे।

जलप्रपातों की उत्पत्ति

जलप्रपातों की उत्पत्ति दो प्रकार से होती है-

  1. प्राकृतिक जल प्रपात

  2. कृत्रिम जल प्रपात



प्राकृतिक जलप्रपात( Natural waterfall)
प्राकृतिक जलप्रपात बहुधा पर्वतीय क्षेत्रों में होते हैं, जहाँ भूतल का उतार चढ़ाव अधिक होता है। वर्षा ऋतु में तो छोटे बड़े जल-प्रपात प्राय: सभी पहाड़ी क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं, कुछ क्षेत्रों में, भू-स्तर तुलनात्मक तौर पर कठोर और नरम होने के कारण, बहते पानी से कटाव द्वारा भूतल में एक ही स्थल पर गिराव पैदा हो जाता है और कहीं-कहीं सामान्य समतल क्षेत्रों में भी जलप्रपात प्राकृतिक रूप से बन जाते हैं। पृथ्वी के गुरुत्व द्वारा प्रेरित होकर पानी का वेग जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे ही उसके भू-स्तर के कटाव की क्षमता बढ़ती जाती है और प्रपात बड़ा होता जाता है। यह क्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि कुछ प्राकृतिक संतुलन न हो जाए, और प्रपात के विस्तार में स्थिरता नहीं आ जाती है।


कृत्रिम जलप्रपात( Artificial waterfall)
कृत्रिम प्रपात बहुधा नहरों पर बनाए जाते हैं। जहाँ नहरें यातायात के लिए बनी होती हैं, वहाँ पानी के वेग को कम करने के लिये प्रपात बनाए जाते हैं और नावों का आवागमन लॉकों द्वारा हुआ करता है। कभी-कभी नदियों में भी ऐसे लॉक बनाए जाते हैं। भू-सिंचाई के लिए बनाई गई नहरों में भी जलप्रपात इसीलिए बनाए जाते हैं कि पानी का वेग कम किया जा सके। ऐसे बहुत से प्रपात उत्तर प्रदेश की गंगा तथा शारदा नहरों पर बनाए गए हैं। अन्य प्रदेशों की नहरों पर भी जलप्रपात बनाए जाते हैं।

विद्युत उत्पादन(Power Generation)
प्रपात के पानी के परिमाण तथा उसके पतन के ऊपर जलप्रपातों से मिलने वाली बिजली की मात्रा निर्भर करती है। साधारणत: इसका अनुमान नीचे लिखे सूत्र से किया जाता है-

ह*द/15= क (H*V/15=K)

यहाँ 'ह' (H) - पतन की ऊँचाई फुटों में 'द' (V) - प्रति सेकंड निसृत जल का परिमाण घनफुटों में 'क' (K) - उत्पन्न पनबिजली किलोवाट में

इसी सूत्र के आधार पर बहुत से जलविद्युत (Hydropower) बिजली घर चलाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा नहर पर स्थित जलप्रपातों पर जो बिजलीघर बने हैं, वे पथरी, मोहम्मदपुर, निर्गाजिनी, सलावा, चिरौरा, सुमेरा और पलड़ा प्रपातों पर स्थित हैं। शारदा नहर पर छोटे बड़े 18 प्रपातों के गिराव को खटीना के समीप 60 फुट के गिराव में संकलित कर लगभग 10 हजार घनफुट प्रति सेकंड पानी के बहाव से जलविद्युत उत्पादन के लिये एक बड़ा बिजली घर निर्मित किया गया। भारत के अन्य प्रदेशों में बहुत से बिजली घर जलप्रपातों पर बनाए जा चुके हैं। कहीं-कहीं बाँधों द्वारा कृत्रिम जलप्रपात बनाकर बिजली उत्पादन की योजनाएँ संपन्न की गई हैं।

भारत में विख्यात जलप्रपात
संसार के सबसे बड़े प्रपातों में अमरीका और कैनाडा (US and Canada) के मध्य स्थित नायगरा प्रपात तथा अफ्रीका में ज़ैंबेज़ी नदी पर विक्टोरिया प्रपात की गणना की जाती है। भारत में सबसे विख्यात प्रपात पश्चिमी घाट में मैसूर प्रदेश का जोग प्रपात है। इसके अतिरिक्त छोटे बड़े प्रपात देश के भिन्न भिन्न भागों में स्थित हैं, जैसे उत्तर प्रदेश में मंसूरी के समीप कैंपटी प्रपात, मिर्जापुर के समीप सिरसी प्रपात और राँची जिले का हुंडरु प्रपात (Hundru falls) है।

उपयोग
प्राकृतिक या कृत्रिम जलप्रपात संसार के प्राय: सभी देशों में हैं। भिन्न-भिन्न देशों में, इनका भिन्न-भिन्न उपयोग होता है। जलप्रपात प्राकृतिक शक्ति (Natural power) के महान्‌ स्त्रोत हैं; जिनको मनुष्य अपनी संपन्नता एवं सुविधा, उद्योगों तथा कृत्रिम साधनों के लिये उपयोग में लाता है। इस प्रकार जलप्रपात मनुष्य के लिये प्रकृति की बहुत बड़ी देन है।

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