अभिलेख ( Part 01)

?पुरातात्विक स्रोतों के अंतर्गत महत्वपूर्ण स्त्रोत अभिलेख है इसका मुख्य कारण उनका तिथियुक्त और समसामयिक होना है
?इनमें वंशावली,तिथियां, विजय,दान ,उपाधियॉ,शासकीय नियम,उपनियम,सामाजिक नियमावली अथवा आचार संहिता विशेष घटना आदि का विवरण करवाया जाता रहा है
?प्रारंभिक अभिलेखों की भाषा संस्कृत है जबकि मध्यकालीन अभिलेखों की भाषा संस्कृत फारसी उर्दू राजस्थानी रही है
?अभिलेखों में शिलालेख,स्तम्भ लेख,गुहालेख,मूर्ति लेख,पट्टलेख आदी आते हैं अथार्थ पत्थर,धातु आदि पर उकेरे गए लेख सम्मिलित है
?भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक मौर्य के हैं जो प्राकृत मागधी भाषा और मुख्यतः ब्राह्मी लिपि(अन्य लिपिया खरोष्ठी अरेमाइक और यूनानी) में लिखे गए हैं
?शक शासक रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख भारत में पहला संस्कृत का अभिलेख है
?राजस्थान के अभिलेखों की मुख्य भाषा संस्कृत और राजस्थानी है,
?उनकी शैली गद्य-पद्य है और उनकी लिपि महाजन और हर्ष कालीन है
?लेकिन नागरी लिपि को विशेष रूप से काम में लाया गया है
?अभिलेख से हमारा तात्पर्य है उन लेखों से है जो या तो शिलाखंडों पर उत्कीर्ण रुप में मिले है या प्राचीन दुर्ग प्रसादों में प्रशस्ति के रुप में मिले हैं
?इनके अलावा यंत्र तंत्र निर्मित जलाशय बावड़ियां व  तीनों पर उनके निर्माणकर्ताओं के नाम पर गढे प्रस्तरों पर लिखे मिले हैं
?स्वर्गीय नरेशों और उनकी रानियों के स्मारकों पर लिखे अभिलेख इसी श्रेणी में आते हैं
?इन अभिलेखों के विषय विभिन्न हैं-जिनमें वंश-विजय, तत्कालीन घटनाएं ,धर्म व सांस्कृतिक प्रवृत्ति के संदर्भ में जानकारी दी गई है
?इन अभिलेखों के माध्यम से तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं, सामाजिक और आर्थिक प्रगतीयों,
पर अच्छा प्रकाश पड़ा है
?जिन शिलालेखों में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों की यशोगाथा होती है उन्हें प्रशस्ति भी कहते हैं
?महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति और महाराणा राजसिंह की राज प्रशस्ति विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है
?तिथिक्रम,वंशावली और तत्कालीन समाज की राजनीतिक, धार्मिक,आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति का ब्यौरा देने वाले उत्कीर्णत लेखों को अभिलेख करते हैं
?उत्कीर्ण अभिलेखो अथार्थ खुदे हुए  अभिलेखों के अध्ययन को एपीग्राफी कहा जाता है
?इनकी संख्या सहस्त्रों में है लेकिन अभिलेखों का स्त्रोत के रूप में महत्व समझाने हेतु हम यहां कतिपय प्रमुख अभिलेखों का वर्णन करना आवश्यक है          


 ⚜??बिजोलिया शिलालेख??⚜ 
बिजोलिया के पाश्वर्नाथ जैन मंदिर के पास एक चट्टान पर उत्कीर्ण 1170ई. के इस शिलालेख को जैन श्रावक लोलाक द्वारा मंदिर के निर्माण की स्मृति में बनवाया गया था
? इस लेख का रचयिता गुणभद्र था
? इस लेख में सांभर और अजमेर के चौहानो को वत्सगोत्र के ब्राह्मण बताते हुए उनकी वंशावली के साथ साथ उस समय की भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का विवेचन मिलता है
? इस लेख के अनुसार चौहानों के आदि पुरुष वासुदेव चहमन ने 551ई. में शाकंभरी में चहमान (चौहान) राज्य की स्थापना की थी और सांभर झील का निर्माण करवाया था
?उसने अहीच्छत्रपुर (नागौर)को अपनी राजधानी बनाया
?इस लेख में उस समय  के क्षेत्रों के प्राचीन नाम भी मिलते हैं-जैसे एक जबालीपुर(जालौर) नड्डूल (नाडोल) शाकंभरी(सांभर)दिल्लिका (दिल्ली) श्रीमाल(भीनमाल) मंडलकर (मांडलगढ़)विंध्यवल्ली(बिजोलिया) नागहृद(नागदा)आदी
?इस लेख में उस समय दिए गए भूमि अनुदान का वर्णन डोहली नाम से किया गया है
?बिजोलिया के आसपास के पठारी भाग को उत्तमाद्री के नाम से संबोधित किया गया
?जिसे वर्तमान में उपरमाल के नाम से जाना जाता है
?यह अभिलेख संस्कृत भाषा में है और इसमें 13पद्य है यह लेख दिगंबर लेख है
?गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 12 वीं सदी के जनजीवन ,धार्मिक अवस्था और भोगोलिक और राजनीति अवस्था जानने हेतु यह लेख बड़े महत्व का है
?इस शिलालेख से कुटीला नदी के पास अनेक शैव व जैन तीर्थ स्थलों का पता चलता है
?राजस्थान की पृष्ठभूमि प्रस्तुत करने में यह अभिलेख अति सहायक सिद्ध हुआ है



 ⚜??घोसुंडी शिलालेख- चित्तौड़गढ़??⚜
?चित्तौड़ जिले के घोसुंडी नामक स्थान से यह शिलालेख प्राप्त हुआ था
?डॉक्टर डी.आर.भंडारकर द्वारा प्रकाशित घोसुंडी शिलालेख राजस्थान में वैष्णव(भागवत) संप्रदाय से संबंधित प्राचीनतम अभिलेख है
?जो द्वितीय सदी ईसा पूर्व का है इसकी भाषा संस्कृत और लिपि ब्राह्मी है
?इसमें गज वंश के शासक सर्व तात द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने और विष्णु मंदिर की चारदीवारी बनवाने का उल्लेख है
?इसमें भागवत की पूजा के निमित्त शीला प्राकार  बनवाये जाने का वर्णन है
?इससे सूचित होता है कि इस समय तक राजस्थान मैं भागवत धर्म लोकप्रिय हो चुका था
?राजस्थान में भागवत धर्म के प्रचलन की जानकारी देने वाला सबसे प्राचीन प्रमाण शिलालेख को माना जाता है
?इस लेख का महत्व प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में भागवत धर्म का प्रचार संकृषण तथा वासुदेव की मान्यता और अश्वमेघ यज्ञ के प्रचलन आदि में है
?इसकी 3 प्रतियां प्राप्त होती हैं
?यह शिलालेख कई टूटे शिलाखंडों में प्राप्त हुआ है
?इनमें से सबसे बड़ा खंड उदयपुर के संग्रहालय में वर्तमान में है
?यह शिलालेख चित्तौड़ के घोसुंडी गांव में पाया गया जो चित्तौड़ से 7 मील दूरी पर स्थित है       



⚜??मान मोरी शिलालेख??⚜ 
?यह लेख मानसरोवर झील (चित्तौड़)के तट पर एक स्तंभ पर उत्कीर्ण हुआ कर्नल टॉड को मिला था
?जिसमें चित्तौड़ की प्राचीन स्थिति और मौर्य वंश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है
?इस लेख को कर्नल टॉड  द्वारा भारी होने के कारण इंग्लैंड जाते समय समुद्र में फेंक दिया था
?इस शिलालेख की प्रतिलिपि कर्नल जेम्स टॉड के ग्रंथ एनल्स एंड एंटिक्विटीज के प्रथम भाग में प्रकाशित है
?यह शिलालेख 713ई.का है
?इस लेख में अमृत मंथन का उल्लेख मिलता है
?जनता पर लगाए जाने वाले कर,उस समय युद्ध में हाथियों का प्रयोग के पता चलता है
?इस लेख पर चार मोर्य राजाओं महेश्वर,मान,भीम व भोज नामक राजाओं का उल्लेख है
?इस अभिलेख का लेखक पुष्य और उत्कीर्णक शिवादित्य था             


   ⚜??चिरवा का शिलालेख??⚜
?1273ई.का यह  शिलालेख उदयपुर जिले के चिरवा गांव के मंदिर के बाहरी द्वार पर लगा हुआ मिला है
?चिरवा गांव उदयपुर से 8 मील की दूरी पर स्थित है
?चिरवा शिलालेख की तिथि कार्तिक शुक्ला पड़वा विक्रमी संवत 1330 है
?यह लेख बागेश्वर और बागेश्वरी की आराधना से आरंभ होता है
?36 पक्तियों एवं देवनागरी लिपि में और संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध 51 श्लोकों का (संस्कृत भाषा) शिलालेख मेवाड़ के गुहिल वंशीय (बप्पा से लेकर) राणाओं की समरसिह के काल तक की जानकारी प्रदान करता है
?इस शिलालेख मे मेवाड़ के पड़ोसी राज्य (गुजरात ,मालवा, मरू और जंगल प्रदेश) का भी राजनीतिक वर्णन उपलब्ध है
?इस शिलालेख से तत्कालीन ग्रामीण धार्मिक और सामाजिक जीवन पर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है
?इसके वर्णन से स्पष्ट होता है कि मेवाड़ का इन शासकों के काल में काफी विस्तार हो गया था और पड़ोसी शत्रु दबा दिए गए थे
?इसके साथ ही विष्णु और शिव मंदिर की स्थापना और मंदिरों के लिए दी गई भूमि का उल्लेख है
? उस काल की प्रशासनिक व्यवस्था में तलारक्षों का कार्य, धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं (जैसे सती प्रथा के प्रचलन)के बारे में जानकारी देता है
?इस लेख में एकलिंग जी के अधिष्ठाता पाशुपात योगियों और मंदिर की व्यवस्था का भी उल्लेख है
?भुवनसिंहसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि ने चित्तौड़ में रहते हुए चिरवा शिलालेख की रचना की थी
?इन के मुख्य शिष्य पार्श्वचंद ने जो बड़े विद्वान थे उसको सुंदर लिपि में लिखा
?पदम सिंह के पुत्र केलिसिह ने उसे खुदा और शिल्पी देल्हण ने उसे दीवार में लगाने का कार्य संपादन किया
?इस शिलालेख में परमार वंशी राजाओं की उपलब्धि के साथ साथ वास्तु पाल और तेजपाल के वंशो का उल्लेख भी मिलता है
?देलवाड़ा के नेमिनाथ मंदिर में यह प्रशस्ति तेजपाल ने लगवाई थी
?इस शिलालेख से टांटेय जाति की उपलब्धियों की जानकारी प्राप्त होती है


⚜??घटियाला शिलालेख (861-जोधपुर)??⚜
?यह लेख चार लेखो के समूह के रूप में जोधपुर के समीप घटियाला में एक स्तंभ पर स्थित है
?यह स्तम्भ एक जैन मंदिर में स्थित है जिसे माता की साल कहा जाता है
?इस शिलालेख का लेखक "मग" था और इसको उत्कीर्णक कृष्णेश्वर ने किया था
?इस अभिलेख को कक्कुक प्रतिहार ने उत्कीर्ण करवाया था
?इन लेखों में "मग" जाति के ब्राह्मणों का वर्णन है इस जाति के लोग मारवाड़ के शाकद्विपीय ब्राह्मण के नाम से भी जाने जाते हैं
?जो ओसवालों के आश्रित रह कर जीवन निर्वाह करते हैं
?जैन मंदिरों में सेवा पूजा के कार्य करने से इन्हें सेवक भी कहा जाता है इन लेखो से तत्कालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है
?इस शिलालेख की भाषा संस्कृत है इससे हमें मारवाड़ जैसलमेर प्रतिहार वंश के संबंध में जानकारी मिलती है

⚜??मंडोर का शिलालेख(685)??⚜
?यह शिलालेख जोधपुर के निकट मंडोर के पहाडी ढाल मे एक बावड़ी में खुदा हुआ है
?इस लेख से ज्ञात होता है कि उस समय विष्णु और शिव की उपासना प्रचलित थी

⚜??कणसावा अभिलेख(738)-कोटा??⚜
?इस अभिलेख में मोर्य वंशी राजा धवल का उल्लेख आया है
?कणवासा व पुठोली (चित्तौड़गढ़)के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि मोर्य का राजस्थान से संबंध था
?कणसवा का शिलालेख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस शिलालेख के बाद किसी भी अन्य शिलालेख मे मौर्य वंशी राजा का राजस्थान में वर्णन नहीं मिलता है       



⚜??कुंभलगढ़ का शिलालेख??⚜ 
?यह शिलालेख 1460 का है इसमें मेवाड़ के महाराणा की वंशावली विशुद्ध रूप से दी गई है
?यह शिलालेख राजसमंद जिले में कुंभलगढ़ दुर्ग के कुम्भश्याम मंदिर में (वर्तमान में मामा देव मंदिर)उत्कीर्ण है
?वर्तमान में यह अभिलेख उदयपुर संग्रहालय में स्थित है
?इस अभिलेख में कुंभा की विजय का सविस्तार वर्णन किया गया है
?कुंभलगढ़ अभिलेख राजस्थान का एकमात्र अभिलेख है जो महाराणा कुंभा के लेखन पर प्रकाश डालता है
?कुंभलगढ़ अभिलेख में हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया है
?यह शिलालेख पांच शिलाओं पर अंकित है इसमें कुल 270 श्लोक हैं
?यह शिलालेख संस्कृत व नागरी लिपि में वर्णित है
?इसमें चित्तौड़ का विशद वर्णन है और मेवाड़ के महाराणा उनकी उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया है
?महाराणा कुंभा के द्वारा सपादलक्ष नराणा बसंतपुर और आबू का विजय वर्णन भी प्राप्त है
?राणा कुंभा की सेनाएं किन मार्गो से गुजरी उसका विवरण भी इस अभिलेख में दिया गया है
?चित्तौड़गढ़ दुर्ग में निर्मित देवालयों,जलाशयो व विभिन्न विद्वानों का भी उल्लेख इसमें है
?तत्कालीन समाज का चित्रण भी इन श्लाको में प्राप्त है
?सामाजिक जीवन के अलावा शिलालेख तत्कालीन भोगोलिक स्थिति जनजीवन और तीर्थ स्थानों पर भी प्रकाश डालता है
?एकलिंग जी के मंदिर और कुटिला नदी का वर्णन स्वाभाविक रूप से इस लेख में किया गया है
?गोरीशंकर हीराचंद ओझा ने इसका लेखक महेश को माना है
?इस कुंभलगढ़ लेख में बप्पा रावल को विप्र वंशीय ब्राह्मण बताया गया है

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