असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement)

असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement)


असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि

  • ऐसे दौर(1919) में जब जनअसंतोष व्यापक रुप धारण कर रहा था और एक प्रभावी नेतृत्व उसे दिशा देने के लिए मंच पर आ गया था 

  • साम्राज्यवादी शासन ने ऐसे कदम उठाए जिन्होंने उसके विरुद्ध संघर्ष करना अनिवार्य कर दिया

  • यह कदम थे खिलाफत के प्रश्न पर मुस्लिम विरोधी रुख, रोलट कानून( जिससे प्रशासन को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और बिना मुकदमे के बंदे क्रम में रखने की अनुमति थी) का पारित किया जाना

  • जलियांवाला बाग( जहां जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर बिना चेतावनी दिए गोली चलाकर सहस्त्रों लोगों को मारा अथवा जख्मी कर दिया) का नृशंस हत्याकांड आदि ने असहयोग आंदोलन को जन्म दिया और असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की


 असहयोगआंदोलन का इतिहास और कार्यक्रम 

महात्मा गांधी ने 1919 की घटनाओं को देखते हुए कांग्रेस के कलकत्ता विशेष अधिवेशन सितंबर 1920 में असहयोग आंदोलन को प्रारंभ करने का निर्णय लिया और इस संबंध में  प्रस्ताव पारित करवाया असहयोग आंदोलन प्रस्ताव के लेखक स्वयं महात्मा गांधी थे असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव सी.आर.दास द्वारा रखा गया दिसंबर 1920 के नागपुर वार्षिक अधिवेशन में पुनः इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई असहयोग आंदोलन को निम्न मुख्य मांगों (असहयोग आंदोलन के कारण) पर बल देने हेतु प्रारंभ किया गया था
1-खिलाफत मुद्दा
2-रोलट एक्ट
3-पंजाब में जलियांवाला बाग और उसके बाद के उत्पीड़न के विरुद्ध न्याय की मांग
4-स्वराज्य प्राप्ति

महात्मा गांधी प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करने के पक्ष में थे लेकिन 1919 में हुई चार मुख्य घटनाओं के बाद महात्मा गांधी का ब्रिटिश सरकार की न्यायप्रियता और इमानदारी में विश्वास खत्म हो गया और उन्होंने असहयोग आंदोलन चलाने का निर्णय लिया इसके लिए महात्मा गांधी ने सितंबर 1920 में कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कोलकाता में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया किस अधिवेशन में गांधी जी ने असहयोग प्रस्ताव पेश करते हुए कहां अंग्रेजी सरकार शेतान है जिसके पास सहयोग संभव नहीं अंग्रेज सरकार को अपनी भूलों पर कोई दुख नहीं है अतः हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि नवीन व्यवस्थापिका है हमारे स्वराज का मार्ग प्रशस्त करेगी अतः हम स्वराज्य प्राप्ति के लिए हमारे द्वारा प्रगतिशील अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनाई जानी चाहिए गांधीजी के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए एनी बेसेंट ने कहा यह प्रस्ताव भारतीय स्वतंत्रता को सबसे बड़ा धक्का है एक मूर्खतापूर्ण विरोध और समाज और सभी जीवन के विरुद्ध संघर्ष की घोषणा है सुरेंद्रनाथ बनर्जी मदन मोहन मालवीय देशबंधु चितरंजन दास विपिन चंद्र पाल मोहम्मद अली जिन्ना शंकरन नायर और सर नारायण चंद्रावरकर ने प्रारंभ में इस प्रस्ताव का विरोध किया फिर भी अली बंधुओं और मोतीलाल नेहरु के समर्थन से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया यही वर्षण था जहां से गांधी युग की शुरुआत हुई

दिसंबर 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव से संबंधित लाला लाजपत राय और चितरंजन दास ने अपना विरोध वापस ले लिया गांधीजी ने नागपुर में कांग्रेस के पुराने लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासन के स्थान पर स्वराज का नया लक्ष्य घोषित किया उन्होंने यह भी कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो स्वराज के लक्ष्य को अंग्रेजी साम्राज्य के बाहर भी प्राप्त किया जा सकता है एनी बेसेंट मोहम्मद अली जिन्नाह विपिन चंद्र पाल जी एस खापर्डे जैसे नेताओं ने गांधी जी के प्रस्ताव से असंतुष्ट होकर कांग्रेस को त्याग दिया नागपुर अधिवेशन का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इसलिए महत्व है क्योंकि यहां पर वैधानिक साधनों के अंतर्गत स्वराज प्राप्ति के लक्ष्य को त्यागकर सरकार का सक्रिय विरोध करने की बात स्वीकार की गई

असहयोग आंदोलन का क्रियान्वयन और प्रगति

  • असहयोग आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी द्वारा अपनी केसर ए हिंद की उपाधि को लौटा कर प्रारंभ किया गया

  • आंदोलन शुरू करने से पहले महात्मा गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रथम विश्व युद्ध में सहयोग के बदले अंग्रेजों द्वारा दी गई केसर ए हिंद की उपाधि को लौटा दिया गया

  • बहुत से अन्य लोगों ने भी गांधीजी का अनुकरण करते हुए अपनी पदवियों और उपाधियों को त्याग दिया

  • जमनालाल बजाज ने अपनी रायबहादुर की उपाधि वापस कर दी

  • असहयोग आंदोलन के दौरान अनेक प्रतिष्ठित वकीलो जिनमें उत्तर प्रदेश के पंडित मोतीलाल नेहरु बंगाल के देशबंधु चितरंजन दास भूलाभाई गुजरात के विट्ठल भाई पटेल और वल्लभभाई पटेल बिहार के राजेंद्र प्रसाद मद्रास के चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और दिल्ली के अरुणा आसफ आदि ने न्यायलय का बहिष्कार कर वकालत छोड़ दी

  • इन सभी ने जगह-जगह विदेशी वस्तुओं की होली जलाई

  • बहुत ही जल्द यह आंदोलन समस्त जनता में फैल गया और देश ने इसमें खुलकर भाग लिया

  • विशेषत: पश्चिमी  भारत बंगाल और उत्तरी भारत में असहयोग आंदोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली

  •  विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएं स्थापित की गई जैसे काशी विद्यापीठ और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (जामिया मिलिया इस्लामिया) जिसे बाद में दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया था की स्थापना की गई

  • गांधीजी ने असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 को आरंभ किया था इस आंदोलन में कई मुस्लिम नेताओं ने भी उनका साथ दिय

  • जिसमें अबुल कलाम आजाद मोहम्मद अली शौकत अली डॉक्टर अंसारी आदि सम्मिलित है

  •  सहयोग आंदोलन चलाने के लिए 1921ई. में  तिलक स्वराज फंड की स्थापना की गई 6 महीने के अंदर ही इसमें एक करोड़ पर एकत्रित हो गए थे

  •  1919 के सुधार अधिनियम के उद्घाटन के लिए ड्यूक ऑफ कॉमन्स के भारत आने पर विरोध और बहिष्कार किया गया

  • 4 मार्च 1921 को ननकाना के गुरुद्वारे में जहां पर शांतिपूर्ण ढंग से सभा का संचालन किया जा रहा था सैनिकों द्वारा गोली चलाने के कारण इस गोलीबारी में करीब 70 लोगों की जान गयी थी

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  • 1921 में लॉर्ड रीडिंग को भारत का वायसराय बनाए जाने पर दमनचक्र और बढ़ गया

  • प्रमुख नेता मोतीलाल नेहरू मोहम्मद अली चितरंजन दास लालालाजपतराय मौलाना अब्दुल कलाम 


  • आजाद राजगोपालाचारी राजेंद्र प्रसाद सरदार वल्लभ भाई पटेल आदि प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए

  •  

  • असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार होने वाले पहले प्रमुख नेता मोहम्मद अली थे

  • नवंबर 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर उनका स्वागत काले झंडे दिखाकर किया गया

  • गांधी जी ने अली बंधुओं की रिहाई न किए जाने के कारण प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन का बहिष्कार किया गया

  • इससे क्रुद्ध होकर सरकार ने कठोर दमन नीति का सहारा लिया परिणाम स्वरुप स्थान स्थान पर लाठीचार्ज मारपीट गोलीकांड जैसी घटनाएं सामान्य बात हो गई और लगभग 60,000 लोगों को इस अवधि में बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया था


असहयोग आंदोलन अब जनता में गहरी जड़ें जमा चुका था असहयोग आंदोलन से प्रेरणा लेकर देश के विभिन्न कोनों में विभिन्न आंदोलन शुरु किए गए

1-संयुक्त प्रांत और बंगाल के हजारों किसानो ने असहयोग के आह्वान का पालन किया
2-पंजाब के गुरुद्वारे पर भ्रष्ट महन्तो का कब्जा समाप्त करने के लिए सिक्ख अकाली आंदोलन नामक एक अहिंसक आंदोलन चला रहे थे
3-असम के चाय बगानों के मजदूरों ने हड़ताल कर दी थी
4-मिदनापुर के किसानों ने यूनियन बोर्ड को कर देने से इंकार कर दिया था
5- उत्तर केरल के मालवा क्षेत्र में मोपला कहे जाने वाले मुस्लिम किसानों ने एक शक्तिशाली जमीदार विरोधी आंदोलन शुरु कर रखा था गांधीजी ने इस आंदोलन  को भी अपना समर्थन दिया

1 फरवरी 1922 को गांधी जी ने घोषणा की अगर 7 दिनों के अंदर राजनीतिक बंदी रिहा नहीं किए जाते और प्रेस पर सरकार का नियंत्रण समाप्त नहीं होता तो वह करो की अदायगी समय सामूहिक रुप से बारदोली में एक सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ देंगे
जब असहयोग आंदोलन अपनी चरम सीमा पर चल रहा था तो उत्तर प्रदेश के चोरा चोरी नामक स्थान पर हुए कांड के कारण गांधी जी को असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा

 चोरा-चोरी कांड( 5 फरवरी 1922) और असहयोग आंदोलन  का स्थगन 

  • असहयोग आंदोलन जब अपनी चरम सीमा पर चल रहा था जिस समय जनता में जोश उबला पढ़ रहा था

  • ठीक उसी वक्त अहिंसावादी गांधी जी ने 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चोरा चोरी नामक  स्थान पर हुए गोलीकांड के कारण इस आंदोलन से पीछे हटने का आदेश दिया

  • 5 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले में चोरा-चोरी नामक स्थान पर किसानों के एक जुलूस पर गोली चलाएगा जाने के कारण क्रोधित भीड़ ने थाने में आग लगा दी

  • जिससे एक थानेदार सहित 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई थी

  • इस घटना से गांधी जी को बहुत दुख पहुंचा और उन्हें भय था कि जन उत्साह और जोश के इस वातावरण में आंदोलन आसानी से एक हिंसक मोड ले सकता है


इस प्रकार असहयोग आंदोलन के हिंसक हो जाने के मद्देनजर गांधीजी ने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक बुलाई जिसमें चोरा चोरी कांड के कारण सामूहिक सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन स्थगित करने का प्रस्ताव पारित किया गया गांधीजी ने कहा कि कड़े आत्म संयम के बिना इस सत्याग्रह का प्रयोग नहीं हो सकता इस प्रस्ताव में उन्होंने लोगों को रचनात्मक कार्य में वह भी रहने के लिए कहा जिसमें कांग्रेस के लिए एक करोड़ सदस्य भर्ती करना चरखी का प्रचार राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना मादक द्रव्य निषेध पंचायती संगठित करना आदि कार्यक्रम सम्मिलित थे

??खिलाफत आंदोलन की समाप्ति??

  •  असहयोग आंदोलन के स्थगित हो जाने के बाद खिलाफत आंदोलन भी अप्रासंगिक बन गया 

  • तुर्की की जनता मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में उठ खड़ी हुई और उसने नंबर 1922 में सुल्तान को सत्ता से वंचित कर दिया

  • कमाल पाशा ने तुर्की के आधुनिकरण के लिए अनेक कदम उठाए और खलीफा का पद समाप्त कर दिया

  •  कमाल पाशा ने 1924 में खिलाफत आंदोलन को समाप्त कर दिया

  • असहयोग आंदोलन की राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही


असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम
1 अगस्त 1920 को आरंभ किए गए असहयोग आंदोलन के उद्देश्य और कार्यक्रम दो प्रकार के थे
रचनात्मक
विरोधात्मक अथवा (नकारात्मक)

1.  रचनात्मक कार्यक्रम के अंतर्गत निम्न कार्य थे जो असहयोग आंदोलन के दौरान किए जाने थे 
1-1करोड रूपए के तिलक फंड की स्थापना
2-एक करोड़ स्वयं सेवकों की भर्ती
3-स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देना
4-बेरोजगारों और अर्ध बेरोजगारों में 20लाख चरखों का वितरण
5-जनता द्वारा सूत कातना और खादी का निर्माण करना
6-अस्पष्टता की समाप्ति के लिए प्रयास करना
7-राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं की स्थापना, राष्ट्रीय विद्यालय और कॉलेजों की स्थापना
8-न्याय के लिए न्यायालय के स्थान पर  पंच फैसला हेतु लोक अदालतों का गठन

असहयोगअसहयोग आंदोलन में नकारात्मक उद्देश्य के तहत निम्न कार्यक्रम थे जिन्हें असहयोग आंदोलन के तहत क्रियांवित किया गया वकीलों द्वारा अदालतों का बहिष्कार सरकारी और सरकार में सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार केंद्रीय विधान सभा और प्रांतीय परिषदों के चुनाव का बहिष्कार सरकारी सम्मान पद्धति और समारोह का भविष्य कार और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार असैनिक श्रमिक  वह कर्मचारी वर्ग मेसोपोटामिया में जाकर नौकरी करने से इंकार करें  अवेतनिक सरकारी पदों को छोड़ दिया जाए  स्थानीय संस्थाओं की सरकारी सदस्यता से इस्तीफा दिया जाए 1919 के अधिनियम के अनुसार होने वाले चुनाव का कांग्रेस द्वारा बहिष्कार किया जाना इस कार्यक्रम को क्रियांवित करने के लिए सत्याग्रह के सिद्धांत को अपनाया गया असहयोग आंदोलन के संदर्भ में सत्याग्रह की व्याख्या करते हुए गांधीजी ने स्पष्ट किया कि सत्य पर अटल रहना ही सत्याग्रह है सत्याग्रह सत्य को सत्य से वह हिंसा को अहिंसा से जीतने का नेतिक शास्त्र है लेकिन हिंसात्मक संघर्ष की बात करते करते समय गांधी मात्र नैतिकता से प्रेरित नहीं थे इस नीति का एक व्यवहारिक पक्ष गीता व्यवहारिक पक्ष को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की जनता के अधिकांश के पास हथियार है ही नहीं और जिनके पास हथियार हैं उनमें से अधिकांश में और उसका इस्तेमाल करने का साहस नहीं है इन स्थितियों में साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक अहिंसक संघर्ष ही चलाया जा सकता था
दिसंबर 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव से संबंधित लाला लाजपत राय और चितरंजन दास ने अपना विरोध वापस ले लिया गांधीजी ने नागपुर में कांग्रेस के पुराने लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासन के स्थान पर स्वराज का नया लक्ष्य घोषित किया उन्होंने यह भी कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो स्वराज के लक्ष्य को अंग्रेजी साम्राज्य के बाहर भी प्राप्त किया जा सकता है एनी बेसेंट मोहम्मद अली जिन्नाह विपिन चंद्र पाल जी एस खापर्डे जैसे नेताओं ने गांधी जी के प्रस्ताव से असंतुष्ट होकर कांग्रेस को त्याग दिया नागपुर अधिवेशन का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इसलिए महत्व है क्योंकि यहां पर वैधानिक साधनों के अंतर्गत स्वराज प्राप्ति के लक्ष्य को त्यागकर सरकार का सक्रिय विरोध करने की बात स्वीकार की गई

  असहयोग आंदोलन स्थगित होने पर प्रतिक्रियाएं

  • इस प्रकार गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक स्थगित कर देने से राष्ट्रवादियों में इसकी मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई

  • कुछ को गांधी जी में श्रद्धा थी और उन्हें विश्वास था कि यह आंदोलन पर यह रोक संघर्ष की गांधीवादी रणनीति का ही एक हिस्सा है

  • दूसरी ओर अनेक राष्ट्रवादियों ने आंदोलन रोके जाने के निर्णय का कड़ा विरोध किया

  •  लाला लाजपत राय जो कि उस समय जेल में थे उन्होंने कहा कि किसी एक स्थान के पाप के कारण सारे देश को दंडित करना कहां तक न्याय संगत है

  • कांग्रेस के सभी नेताओं द्वारा महात्मा गांधी की कड़ी आलोचना की गई उनके इस कार्य को अदूरदर्शितापूर्ण बताया गया

  • उदाहरण के लिए सुभाष चंद्र बोस ने द इंडियन स्ट्रगल में महात्मा गांधी की आलोचना करते हुए लिखा था कि ठीक उस समय जब की जनता का उत्साह चरम उत्कर्ष था वापस लौटने का आदेश राष्ट्रीय दुर्भाग्य से कम नहीं था

  • वी पी मेनन ने कहा था कि यदि  गांधी जी द्वारा इस समय असहयोग आंदोलन समाप्त नहीं कर दिया जाता तो यह शासन के लिए अत्यधिक चिंता का विषय बन रहा था जिससे संभवत सरकार भारतीय जनमत को संतुष्ट करने के लिए कोई कार्य करने को अवश्य बाध्य हो जाती

  • मोतीलाल नेहरू ने कहा कि यदि कन्याकुमारी के एक गांव में अहिंसा का पालन नहीं किया तो इसकी सजा हिमालय के एक गांव को क्यों मिलनी चाहिए

  • जेल में बंद नेताओं की इस प्रकार की प्रतिक्रिया पर गांधीजी ने कहा कैदी नागरिक दृष्टि से मृत होते हैं

  •  

  • केवल जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में गांधीजी का बचाव यह कह कर करने की कोशिश की "ऊपर से हमारा आंदोलन बहुत मजबूत दिखाई देता था और लगता था कि इस आंदोलन को लेकर लोगों में काफी जोश है लेकिन यह आंदोलन अंदर से टुकडे टुकडे"" हो रहा था जवाहरलाल नेहरु की यह सफाई लचर थी

  • जबकि असहयोग आंदोलन की क्षमता और असर का अनुमान वायसराय के 9 फरवरी के उस तार से लगाया जा सकता था जिस में स्वीकार किया गया था कि स्थिति काफी खतरनाक है और सरकार इस बात को बिल्कुल छुपाना नहीं चाहती कि देश की मौजूदा हालत से वह काफी चिंतित है

  • इन सब विरोध के बावजूद जनता और नेता गण दोनों को गांधीजी में आस्था थी और वह सार्वजनिक रूप से उनके आदेश का उल्लंघन नहीं करना चाहते थे अतः गांधीजी के फैसले को थोड़ी बहुत प्रतिक्रिया के बाद सभी ने स्वीकार कर लिया

  • इस तरह पहला असहयोग और नागरिक अवज्ञा आंदोलन समाप्त हो गया


गांधीजी की गिरफ्तारी

  •  इस स्थिति का लाभ उठाते हुए सरकार ने कड़े कदम उठाने का निश्चय किया

  • 10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया 18 मार्च 1920 को अहमदाबाद के सेशन जज ब्रूमफील्ड की अदालत में गांधी जी पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें 6 वर्ष की सजा दी गई

  • लेकिन 5 फरवरी 1924 को बीमारी के कारण गांधीजी को 6 वर्ष पूर्ण होने से पहले छोड़ दिया गया

  • गांधी जी ने कहां की अनिच्छापूर्वक मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं की राजनीति और आर्थिक दृष्टि से भारत पहले जितना असहाय था

  • उससे  कहीं अधिक असहाय ब्रिटेन के साथ संबंध ने बना दिया निहत्थे भारत के पास किसी भी आक्रमण के प्रतिरोध की शक्ति नहीं है


असहयोग आंदोलन का गांधीजी के लिए तात्पर्य 

  • यह आंदोलन हिंसक संघर्ष शांतिपूर्ण और वैधानिक उपायों से स्वराज्य प्राप्त करने के लिए हो रहा था

  • स्वराज्य प्राप्ति की संभावना के संबंध में गांधी जी इतने आशान्वित थे कि उन्होंने घोषणा की थी यदि मेरी योजनाओं को पूरा पूरा समर्थन मिला तो आपको 1 वर्ष में स्वराज्य मिल जाएगा

  • समर्थन के बल पर ही सितंबर 1921 में उन्होंने दौहराया था इस वर्ष के खत्म होने से पहले तक स्वराज्य प्राप्त करने के संबंध में मैं इस हद तक  निश्चिंत हूं कि यदि स्वराज्य नहीं मिला तो 31 दिसंबर के बाद में जीवित होने की कल्पना ही नहीं कर सकता

  • लेकिन इस स्वराज्य का अर्थ क्या था? इस प्रश्न के उत्तर में  अस्पष्टता के अतिरिक्त और कुछ नहीं था

  • अपनी आत्मकथा में स्थिति का विवेचन करते हुए नेहरू ने लिखा है यह बात जाहिर थी कि हमारे अधिकांश नेताओं की निगाह में स्वराज्य का अर्थ स्वतंत्रता से कोई काफी छोटी चीज थी दिलचस्प बात यह है कि गांधीजी खुद भी इस प्रश्न  पर साफ नहीं थे


असहयोग आंदोलन की राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका और महत्व 

  • असहयोग आंदोलन ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त करने के अपने उद्देश्य में असफल रहा लेकिन असहयोग आंदोलन की राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है

  • इस आंदोलन का राष्ट्रीय आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है जिसने राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन का रुप प्रदान किया

  • इस आंदोलन से जनमानस में अंग्रेजी सरकार के प्रति तीव्र विरोधी वातावरण बना इस आंदोलन से महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन को मध्यमवर्गीय आंदोलन से जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया था

  • प्रोफ़ेसर कूपलैण्ड ने इस आंदोलन के महत्व के विषय में लिखा है कि गांधीजी ने वह काम किया जो तिलक नहीं कर सके थे उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को एक क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में परिवर्तित कर दिया इस आंदोलन ने देश को स्वतंत्रता के लक्ष्य की ओर अग्रसर किया"

  • इस आंदोलन ने लोगों में निर्भिकता व उत्साह का संचार किया

  • इस दौरान कांग्रेस अनेक रचनात्मक कार्य करवाने में भी सफल रही जिससे भारत को काफी लाभ हुआ

  • महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि जनप्रिय भी बनाया

  • अभी तक यह आंदोलन नगरों में बुद्धिजीवी वर्ग तक सीमित था लेकिन अब वह गांव की जनता तक भी पहुंच गया था

  • इस आंदोलन से महात्मा गांधी ने भारतीय जनता को लीडर बना दिया था

  • महात्मा गांधी जी के असहयोग आंदोलन का सबसे सफल प्रभाव विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कार्यक्रम था

  • कांग्रेस ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया खादी का प्रयोग और स्वदेशी का प्रचार आगामी आंदोलन का भाग बन गया

  • कांग्रेस अब राष्ट्रव्यापी संस्था बन चुकी थी इस असहयोग आंदोलन के माध्यम से जनता को अपनी वास्तविक शक्ति का आभास हो गया और आगे चलकर ऐसे ही तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकी


सुमित सरकार के अनुसार असहयोग आंदोलन के चरण प्रसिद्ध इतिहासकार सुमित सरकार के अनुसार असहयोग आंदोलन के इतिहास चार चरणों में विभक्त किया जा सकता है 

प्रथम चरण

  • प्रथम चरण जनवरी 1921 से मार्च 1921 तक था

  •  प्रथम चरण में मुख्य जोर शिक्षण संस्थाओं और सरकारी अदालतों के बहिष्कार पर रहा था

  • इसके साथ ही चरखा कार्यक्रम को भी लोकप्रिय बनाया गया

  • यह चरण आरंभ तो धूमधाम के साथ हुआ लेकिन जोश में शीघ्र ही कमी आने लगी

  • इस चरण का आंदोलन मूलतः बुद्धिजीवियों पर केंद्रित आंदोलन था


द्वितीय चरण

  • द्वितीय चरण एक प्रकार से तैयारी का चरण था

  • इसमें मुख्य जोर फंड एकत्रित करने और वालिंटियर भर्ती पर रहा था

  • इस तैयारी के उपरांत जुलाई से तीसरा चरण प्रारंभ हुआ


तृतीय चरण

  • तृतीय चरण का प्रारंभ जुलाई 1921 से हुआ

  • तृतीय चरण में संघर्ष को तीव्र किया गया

  • विदेशी माल का बहिष्कार, प्रिंस ऑफ वेल्स का बहिष्कार, हजारों की संख्या में जेल जाने का गांधी का आह्वान आंदोलन की बढती तीव्रता और व्यापक होते जनाधार दोनों का ही सूचकथा

  •  इससे आंदोलन के चरित्र में परिवर्तन हो रहा था

  • स्वयं रीडिंग ने स्वीकार किया था बुद्धिजीवियों का आह्वान करने के स्थान पर गांधीजी द्वारा अज्ञानी जनसामान्य का आह्वान किया जाने से स्थिति बदल गई है 


चतुर्थ चरण

  • नवंबर 1921 से फरवरी 1922 तक का आंदोलन चतुर्थ अथवा अंतिम चरण का समय है

  • इस दौर में जनाक्रोश अपनी चरमसीमा पर था

  • अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग लेकर प्रस्ताव रखा गया था

  •  सविनय अवज्ञा आरंभ करने के लिए नीचे से दबाव बढ़ने लगा था

  • गुंटूर की जनता ने तो अपनी फसल पर कर न देने का आंदोलन भी शुरू कर दिया

  • इस दबाव के चलते का दिन एक फरवरी के दूसरे सप्ताह में बारदोली में लगान बंदी आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया

  • लेकिन इससे पूर्व 5 फरवरी को पुलिस के उकसावे से क्रुद्ध भीड़ ने थाने में आग लगाकर 22 पुलिस वालों को जिंदा जला दिया

  • इस घटना से गांधी को अत्यंत वेदना हुई और उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया​​


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