आरंभिक तुर्क सुल्तानों में इल्तुतमिश का महत्वपूर्ण स्थान था इल्तुतमिश को दिल्ली का वास्तविक संस्थापक और प्रथम सुल्तान माना जाता था भारत में तुर्की सत्ता के विकास में इल्तुतमिश का उल्लेखनीय योगदान है उसने मध्य एशियाई राजनीति से नाता तोड़कर दिल्ली सल्तनत को एक स्वतंत्र और वैधानिक स्वरुप प्रदान किया और एक ऐसे राज्य की स्थापना की जो पूर्णत: भारतीय था वह एक साहसी ,सैनिक और योग्य सेनापति होने के साथ साथ एक दूरदर्शी शासक था उसने भारत में नव तुर्की राज्य को शक्तिशाली और संगठित किया और उस पर अपने अपने वंश के अधिकार को सुरक्षित रखा मंगोल आक्रमण के संकट से Delhi Sultanate की रक्षा की और एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण किया इल्तुतमिश ने कहा अब भारत अरब नहीं है इसे दारुल इस्लाम में परिवर्तित करना व्यवहारिक रुप से संभव नहीं है इल्तुतमिश एक न्याय प्रिय शासक था
विभिन्न इतिहासकारों के इल्तुतमिश के बारे में विचार के.ए. निजामी के अनुसार--कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी खाका बनाया था इल्तुतमिश ने उसे एक व्यक्ति ,एक पद, एक प्रेरणा शक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था और एक शासक वर्ग प्रदान किया इब्नबतूता के अनुसार-- उसने महल के सामने संगमरमर की दो शेरों की मूर्तियां स्थापित करवाई थी जिनके गले में घंटीया लटकी हुई थी जिनको बजा कर कोई भी व्यक्ति सुल्तान से न्याय मांग सकता था डॉक्टर ए एल श्रीवास्तव के अनुसार--उसने ऐसे सेनिक राजतंत्र की नींव डाली जो आगे चलकर खिलजीओ के नेतृत्व में निरपेक्षता की पराकाष्ठा पर पहुंचा आर पी त्रिपाठी के अनुसार-- भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्री गणेश उसी से होता है डॉ ईश्वरी प्रसाद के अनुसार-- उसको भारत में गुलाम वंश का वास्तविक संस्थापक बताया गया है
इल्तुतमिश अपने दरबारी पदाधिकारियों के सामने गद्दी पर बैठने से हिचकिचाता था ,जलालुद्दीन खिलजी भी गद्दी पर बैठने से हिचकिचाता था इल्तुतमिश का आरिजे ममालिक इमादुल मुल्क नामक गुलाम था इल्तुतमिश ने इस दास की योग्यता से प्रभावित होकर उसे रावत- ए-अर्ज की उपाधि से सम्मानित किया सुल्तान बलबन के काल में भी उसे यह पद प्राप्त था उसके पथ प्रदर्शन के लिए कोई परंपरा नहीं थी और उसने अपना मार्ग स्वयं चुना था अपने परिश्रम और दूरदर्शिता से वह अपने राज्य को संगठित करने में सफल हुआ उसे मध्यकालीन भारत का श्रेष्ठ शासक माना जाता है इल्तुतमिश ने राज्य की सीमा का निर्धारण कर उसे सुदृढ़ किया उसने राजा का पद और राजत्व सिद्धांत की स्थापना की
उसका शासन दृढ़ था लेकिन बर्बरतापूर्ण नहीं उसने कबीर खाँ अयाज नामक अपने एक दास को जो मुल्तान का राज्यपाल पद पर असफल रहा उसे वहां से हटाकर दंडित नहीं कर उसकी जीविका के लिए पलवल ग्राम प्रधान किया अतः निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश था
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