1906 के बादभारतीय राजनीति में कांग्रेस के भीतर दो दलों का उदय हुआ उग्रवादी दल के उदय के साथ साथ देश में क्रांतिकारी उग्रवादी दल का भी उदय हुआ इन दलों के आंदोलन का नेतृत्व चार प्रमुख कांग्रेसी नेताओं बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपत राय,विपिन चंद्र पाल और अरविंद घोषने किया था इन चारों कांग्रेसी नेताओं ने इस दल की नीतियों की परिभाषा कि, इनकी अभिलाषाओं को व्यक्त किया और इनके कार्यों का मार्गदर्शन किया इन नेताओं ने स्वराज्य प्राप्ति को ही अपना प्रमुख लक्ष्य और उद्देश्यबनाया था जहां उदारवादी दल के नेता ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत औपनिवेशिक शासन चाहते थे वही उग्रवादी नेताओं का मानना था कि ब्रिटिश शासन का अंत करके ही हम स्वराज्य या स्वशासन प्राप्त कर सकते हैं यह नेता अहिंसात्मक प्रतिरोध सामूहिक आंदोलन और आत्म बलिदान में विश्वास करते थे
सर हेनरी काटन ने कहा है कि➖ उग्रवादी भारत में सब प्रकार से मुक्त और स्वतंत्र राष्ट्रीय शासन प्रणाली की स्थापना करना चाहते थे बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) ने यह कह कर की स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा इन लोगों को एक नारा दिया
उन्होंने कहा था स्वराज्य अथवा स्वशासन स्वधर्मके लिए आवश्यक है स्वराज्य के बिना कोई सामाजिक सुधार नहीं हो सकते और ना ही कोई औद्योगिक प्रगति ना कोई उपयोगी शिक्षा और नई राष्ट्रीय जीवन की परिपूर्णता यही हम चाहते हैं और इसी के लिए ईश्वर ने मुझे इस संसार में भेजा है
विपिन चंद्र पाल (Bipin chandra pal)ने इस दल की मांगों की निम्न शब्दोंमें व्याख्या की है➖ देश में नया सुधार नहीं बल्कि पुनर्गठन की आवश्यकताहै इंग्लैंड को भारतीय सरकार की नीति निर्माण का अधिकार छोड़ देना चाहिए एक विदेशी सरकार को जो कानून चाहे बना सकने का अथवा अपनी इच्छा से जैसा चाहे शासन करें यह अधिकार त्यागदेना चाहिए उन्हें अपनी इच्छा से कर लगाने और अपनी इच्छा से धन को व्यय करने का अधिकार भी छोड़ देना चाहिए
अरविंद घोष (Arvind Ghosh) स्वराज्य को भारत के प्राचीन जीवन को आधुनिक परिस्थितियों में परिपूर्ण होना और राष्ट्रीय गौरव का सतयुग मानते थे
जिसमें भारत पुनः एक गुरु और मार्गदर्शक के रुप में अपनी भूमिकानिभाएं लोगों की आत्ममुक्ति हो ताकि राजनीतिक जीवन में वेदांत के आदर्शप्राप्त किए जा सके यही भारत के लिए सच्चा स्वराज्यहोगा अरविंद घोष के अनुसार: राजनीतिक स्वतंत्रता एक राष्ट्र का जीवन श्वास है बिना राजनीतिक स्वतंत्रता के सामाजिक और शैक्षणिक सुधार ,औद्योगिक प्रसार ,एक जाति की नैतिक उन्नतिइत्यादि की बात सोचना मूर्खता की चरम सीमा है
लाला लाजपतराय (Lala Lajpat Rai): के अनुसार जेसे दास की आत्मा नहीं होती उसी प्रकार दास जाति के कोई आत्मा नहीं होती और आत्मा के बिना मनुष्य केवल पशु है
इसलिए देश के लिए स्वराज्य परम आवश्यक है और सुधार अथवा उत्तम राज्य इसके विकल्प नहीं हो सकते
कार्य करने का तरीका इन राष्ट्रवादियों के लिए लिए स्वराज्य का अर्थ विदेशी नियंत्रण से पूर्ण स्वतंत्रता था जिसमें अपने राष्ट्र की नीतियों और प्रबंध में पूर्णतया स्वतंत्रताहो उदारवादी दल के लिए स्वराज्य का अर्थ साम्राज्य के अंदर औपनिवेशिक स्वशासथा दोनों दलों के मार्ग और ढंग अलग अलग थे उदारवादी दल संवैधानिक आंदोलन में,अंग्रेजों की न्यायप्रियता में ,वार्षिक सम्मेलनों में,भाषण देने में,प्रस्ताव पारित करने में और इंग्लैंड को शिष्टमंडल भेजने में विश्वासकरता था उग्रवादी दल इन सभी तत्वोंमें विश्वास नहीं करते थे यह लोग अहिंसात्मक प्रतिरोध में,सामूहिक आंदोलन में,आत्म बलिदान के लिए दृढ़ निश्चय में विश्वासकरते थे इन नेताओं ने स्वतंत्रता के लिए तीव्र इच्छा और आत्म बलिदान के लिए प्रस्तुत रहने की भावना उत्पन्न करने का प्रयत्न किया उन्होंने जनता के मन में शासकों की अदम्य शक्ति का भय निकालने का प्रयत्नकिया और अपने आप में विश्वासउत्पन्न किया
विपिन चंद्र पाल ने इनकी नीति का इन शब्दों में वर्णन किया➖ क्योंकि भारतीय लोक चालाक नहीं थे उन्होंने अपने शासकों के शब्दों पर विश्वासकर लिया
उन्हें यह कहा गया था कि भारतीय लोग अपने कामकाज को स्वयं चलाने में समर्थनहीं है यह लोग निशक्त हैं और सरकार शक्तिशाली है,उन्हें यह कहा गया कि भारत मानवता के निम्न स्तर पर है और अंग्रेजी अर्धबर्बर लोगों को सभ्यबनाने आए हैं इन राष्ट्रवादी लोगों ने इन सभी कपटो का भंडाफोड़ कर दिया उन्होंने इस जादू के उल्टे मंत्र पाठ करने आरंभकर दिए लोगों को अपनी शक्ति का आभास होने लगा और लोग गहरी नींद से उठनेलगे और उनके इस कार्य से अपनी संस्कृति में एक नया विश्वास जागृतहुआ
उग्रवादियों का कार्यक्रम उग्रवादी नेताओं ने उदारवादी नेताओं की तरह संवैधानिक दायरे के अंदर अपनी मांगे मनवाने में विश्वास नहीं जताया इन्हे अधिकारों की प्राप्ति हेतु याचना करने या फिर गिडगिडाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी उदारवादी नेताओं की इस प्रवृत्ति को यह राजनीति भिक्षावृत्ति कहाकरते थे
बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि➖ हमारा उद्देश्य आत्मनिर्भरता है भिक्षावृत्ति नहीं विपिन चंद्र पाल ने कहा कि➖ *यदि सरकार मेरे पास आकर कहे कि स्वराज ले लो तो मैं उपहार के लिए धन्यवाद देते हुए कहूंगा कि मैं उस वस्तु को स्वीकार नहीं कर सकता जिसको को प्राप्त करने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है
उग्रवादियों ने विदेशी माल का बहिष्कार और स्वदेशी माल अंगीकार करने को कहा इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय शिक्षा और सत्याग्रह पर भी बलदिया गया विदेशी माल के बहिष्कार और स्वदेशी माल के प्रयोग से भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिला भारतीयों को कार्य तथा सेवाओं के अवसरमिलने थे
लाला लाजपत राय के अनुसार स्वदेशी के प्रचार से अंग्रेजों को वित्तीय हानिहोगी
बंगाल का विभाजन रद्दकरने के लिए दबाव डाला जाएगा शीघ्र ही यह अनुभव किया गया कि बहिष्कार विदेशी शोषण के विरुद्ध और राजनीति आंदोलन के लिए एक शक्तिशाली हथियारहै लोगों से आर्थिक आंदोलन के लिए समर्थन प्राप्त करना अधिक सरल था यही भी विचार था कि नए भारतीय उद्योगपती जिनको इस स्वदेशी के प्रचार सेलाभ होगा
यह कांग्रेस के लिए धन भी देंगे जैसे
लाला लाजपत राय ने बहिष्कार के संदर्भ में कहा कि हम लोगों ने राज निवास से मुख मोड़ कर निर्धनों की झोपड़ी की ओर कर लिया है
इस बहिष्कार आंदोलन की मनोवृति नीति एवं आत्मिक महत्व उग्रवादी नेताओं ने राष्ट्रीय शिक्षा के महत्व को स्वीकार करते हुए इसी में भारतीयों के हित के निहित होने की बात कही
विपिन चंद्र पालने कहा कि➖ राष्ट्रीय शिक्षा वह शिक्षा हे जो राष्ट्रीय रूप रेखाओं के आधार पर चलाई जाए ,जो राष्ट्र के प्रतिनिधियों द्वारा नियंत्रित हो और जो इस प्रकार नियंत्रित और संचालित हो
जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय भाग्य की प्राप्ति हो सरकार नियंत्रित शिक्षा संस्थाओं के स्थान पर एक राष्ट्रीय शिक्षा योजनाबनाई गई उग्रवादी दल की योजना थी कि विद्यार्थियों को देश सेवामें लगाया जाए जब सरकार ने विद्यार्थियों के विरुद्ध अनुशासित कार्यवाही करने की धमकी दी तो, विद्यार्थियों को यह कहा गया कि वे इन विश्वविद्यालय को छोड़ दे सर गुरुदास बनर्जी ने बंगाल में राष्ट्रीय शिक्षा परिषदऔर बाल गंगाधर तिलक ने दक्षिण शिक्षा समाज की स्थापनाकी गयी मद्रास में पछैप्पा राष्ट्रीय कॉलेज स्थापित किया गया पंजाब में डी०ए०वी०आंदोलन ने जोर पकड़ा था बाल गंगाधर तिलक ने असहयोग का सुझावदिया था उन्होंने कहा कि आप स्वयं ही प्रशासनिक मशीन को निर्विध्नता से चलाने में सहायता देते हैं
यद्यपि आप दलित तथा तिरस्कृत है परंतु फिर भी आपको अपनी उस शक्ति का बोध होना चाहिए जिसमें आप यदि चाहे तो प्रशासन को ठप्पकर सकते हैं उग्रवादियों ने सरकारी संगठन को भी बढ़ावा दिया,ग्राम में सफाई,प्रतिबंधक पुलिस कार्य_ मेलों का आयोजन इत्यादि उसके लिए स्वयं सेवी संस्थाएं स्थापितकी गई दीवानी मामलो और हस्तक्षेप के झगड़ो को सुलझाने के लिए पंच निर्णय समितियांबनाई गई इस सरकारी आंदोलन का उद्देश्य विपिन चंद्र पालने इन शब्दों में व्यक्त किया➖ सहकारी संस्थाओं की सहायता से सयुक्त भलाई के लिए जनता में एक शक्तिशाली नागरिक भावना को जगाना और इस प्रकार उन्हें धीरे धीरे स्वतंत्र नागरिक के अधिक लंबे और भारी उत्तर दायित्व के लिए प्रशिक्षण देना फिर समस्त देश में सक्रिय राजनीति संस्थाएं स्थापितकरना है,जिससे कि नेता जनता के सीधे संपर्क मेंआ सकें और समय-समय पर संगठित लोकमत से सरकार पर दबावडाला जा सके जिसके परिणाम स्वरुप जनसाधारण के अधिकारों का धीरे धीरे प्रसार हो सके
0 Comments