गुलाम वंश का प्रथम शासक- कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम- मोहम्मद गौरी का मूल रूप से निवासी- तुर्किस्तान (Turkestan) का शासक बना-दिल्ली का कुतुबुद्दीन का शासनकाल- केवल 4 वर्ष मृत्यु- 1210 ईस्वी मे मृत्यु स्थान- Lahore मृत्यु का कारण- चौगान (पोलो) के मैदान में घोड़े से गिरने से कुतुबुद्दीन ऐबक को मृत्यु के बाद दफनाया गया- लाहौर में कुतुबुद्दीन ऐबक को नियमपूर्वक दासता से मुक्ति- 1208 ईस्वी में (गयासुद्दीन मोहम्मद से दास्तां मुक्ति पत्र प्राप्त करके ) ऐबक शब्द है- तुर्की शब्द तुर्की शब्द ऐबक का अर्थ है- चंद्रमा का देवता सुरिले स्वर में कुरान पढ़ने के कारण प्रसिद्ध हुए- कुरान ख्वॉ (कुरान का पाठ करने वाला) कुतुबुद्दीन ऐबक का राजनीतिक जीवन- 3 चरणों में सिंहासनारूढ- 25 जून 1206 ईस्वी को कुतुबुद्दीन ने उपाधि ग्रहण की- मलिक व सिपहसालार की आरंभ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजधानी बनाया- लाहौर को भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया गया- तराइन के दूसरे युद्ध के बाद 1192ईस्वी में मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद सत्ता ग्रहण की-लाहौर में( स्थानीय नागरिकों के अनुरोध पर ) कुतुबुद्दीन ऐबक को खरीदा गया-काजी फकरूद्दीन ने (दास के रूप में) उदारता और दानशीलता के कारण नाम दिया गया- लाख बख्श कुरान का सुरीली आवाज में पाठ करने के कारण कहा जाता है- हालिम द्वितीय कुतुबुद्दीन ऐबक ने विवाह किया- ताजुद्दीन यल्दोज की पुत्री से कुतुबुद्दीन ऐबक की पुत्री का विवाह- इल्तुतमिश से कुतुबुद्दीन ऐबक की सबसे बड़ी सफलता- गजनी से संबंध विच्छेद कर भारत को उसके प्रभाव से मुक्त करना वजीर पद का प्रचलन- कुतुबुद्दीन ऐबक के काल में कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद शासक बना- आरामशाह (केवल 8 माह तक शासन)
कुतुबुद्दीन ऐबक का प्रारंभिक जीवन
कुतुबुद्दीन ऐबक नामक तुर्क जनजाति का था कुतुबुद्दीन ऐबक के माता-पिता तुर्किस्तान के तुर्क थे
ऐबक एक तुर्की शब्द था जिसका अर्थ होता है चंद्रमा का देवता
कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था बचपन में ही वह अपने परिवार से बिछड़ गया था
उसे एक व्यापारी द्वारा निशापुर के बाजार में लाया गया जहां काजी फखदुद्दीन अब्दुल अजीज कुकी (जो इमाम अबू हनीफा के वंशज थे) ने खरीद लिया
उस समय तुर्को में अपने गुलामों को योग्य बनाने की परंपरा थी वह अपने गुलामों को साहित्य कला और सैनिक शिक्षा प्रदान करते थे
अतः काजी ने अपने पुत्र की भांति कुतुबुद्दीन ऐबक की परवरिश की और उसके लिए धनुर्विद्या और घुड़सवारी की सुविधाएं उपलब्ध करवाईकुतुबुद्दीन ऐबक बाल्यकाल से ही प्रतिभा का धनी था उसने शीघ्र ही सभी कलाओ में कुशलता प्राप्त कर ली थी
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अत्यंत सुरीले स्वर में कुरान पढ़ना सीख लिया इसीलिए वह कुरान ख्वॉ( कुरान का पाठ करने वाला के )नाम से प्रसिद्ध हुआ
कुछ समय बाद फखरुद्दीन अब्दुल अजीज काजी की मृत्यु हो गई उसके पुत्रों ने कुतुबुद्दीन ऐबक को एक व्यापारी के हाथों बेच दिया
जो उसे गजनी ले आया जहां मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को खरीद लिया और यहीं से कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवन का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ
जिसे अंत में उसे दिल्ली के सिंहासन पर बिठाया और कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश का प्रथम और दिल्ली का प्रथम तुर्क मुस्लिम शासक बना
कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा सल्तनत काल में निर्मित प्रथम मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद है यह मस्जिद भारत में निर्मित इस्लाम पद्धति पर आधारित वाली प्रथम मस्जिद है
कुतुबुद्दीन ऐबक ने Ajmer में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण करवाया,यह स्थान इससे पूर्व संस्कृत विद्यालय ( Sanskrit school) के रूप में जाना जाता था जिससे अजमेर के चौहान सम्राट विग्रहराज चतुर्थ द्वारा बनाया गया था इस पर संस्कृत नाटक हरिकेलि के कुछ अंश अंकित है
कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुब मीनार का निर्माण प्रारंभ करवाया जिसे इल्तुतमिश ने पूरा किया था
कुतुबमीनार का प्रयोग आरंभ में अजान के लिए किया जाता था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने केवल 4 वर्षों तक शासन किया था, कुतुबुद्दीन ऐबक के 1210 ईस्वी में लाहौर में चौगान (पोलो) के मैदान में घोड़े से गिरने से उसकी मृत्यु हो गई
कुतुबुद्दीन ऐबक की दानशीलता और उदारत के कारण उसे लाख बख्श भी कहा जाता था
इसके अलावा कुतुबुद्दीन को पीर बख्श ,हालिम द्वितीय आदि नामों से सम्मानित किया जाता था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की बल्कि मलिक और सिपहसालार की उपाधि ही रखी
उसने अपने नाम का ना खुत्बा पढ़ा और ना ही सिक्के चलाएं इसी कारण उसे दिल्ली का स्वायत सुल्तान नहीं माना जा सकता
मोहम्मद गोरी के उत्तराधिकारी ग्यासुद्दीन महमूद ने उसे सुल्तान स्वीकार किया और 1208ईस्वी में उसे दास्तां मुक्ति पत्र देकर दास्तां से मुक्त किया
अतः भारत का शासक बनने के समय तकनीकी रूप से कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम था
अजमेर ,कन्नौज और कालिंजर को जीतने का श्रेय कुतुबुद्दीन ऐबक को दिया गया है
कुतुबुद्दीन ऐबक का विवाह ताजुद्दीन यल्दोज की पुत्री से हुआ था और उसने अपनी बहन का विवाह नासिरुद्दीन कुबाचा से किया यल्दोज और कुबाचा दोनों मोहम्मद गौरी के गुलाम थे
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश से किया और इल्तुतमिश को "सर-ए- जानदां और अमीर-ए-शिकार का पद दिया गया
1197 ईस्वी में अन्हिलवाडा के युद्ध के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इल्तुतमिश को खरीदा था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में किला राय पिथौरा के निकट शहर बसाया यह मध्य काल में निर्मित दिल्ली के सात शहरों में प्रथम था
मोहम्मद गौरी के सहायक के रूप में कुतुबुद्दीन ऐबक
कुतुबुद्दीन ऐबक में समस्त प्रशंसनीय गुण और प्रभावित करने वाले तत्व विद्यमान थे
मोहम्मद गौरी के दास परिवार में सम्मिलित होने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी बुद्धिमानी साहस और उदार प्रकृति से स्वामी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था
कुतुबुद्दीन ऐबक की भक्ति परायण उदारता और साहस से प्रभावित होकर मोहम्मद गोरी ने उसे अमीर-ए-आखूर (शाही अश्वशाला का अधिकारी) बनाया जो उस समय का एक महत्वपूर्ण पद था
इस पद पर रहते हुए कुतुबुद्दीन ऐबक ने गोर, बामियन और गजनी के युद्ध में सुल्तान की सेवा की
1192 ईस्वी में तराइन के द्वितीय युद्ध में (मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य) कुशलतापूर्वक भाग लिया जिसमें मोहम्मद गोरी विजय हुआ था
तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद ही मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत के विजित प्रदेशों का प्रबंधक नियुक्त किया।
विजित प्रदेशों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली के निकट इंद्रप्रस्थ को अपना मुख्यालय बनाया
मोहम्मद गौरी के वापस गजनी जाने के बाद 1192 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर और मेरठ के एक विद्रोह का दमन किया।,1194 ईस्वी में उसने अजमेर के दूसरे विद्रोह का दमन किया
इसी वर्ष 1194 ईस्वी में मोहम्मद गौरी और जयचंद के बीच हुए कन्नौज के युद्ध में अपने स्वामी की ओर से कुतुबुद्दीन ऐबक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
इसके पश्चात 1197 ईस्वी में गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ा को लूटा और वहां के शासक भीमदेव को दंडित किया
1202 ईस्वी में बुंदेलखंड ( Bundelkhand) के राजा परमार्दी देव को परास्त किया और कालिंजर महोबा और खजुराहो पर अधिकार किया
1205 ईस्वी मे खोखरो के विरुद्ध मोहम्मद गौरी का हाथ बटाया
वस्तुत: मोहम्मद गौरी की sainik योजनाओं को मूर्त रूप कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही दिया था वह एक अत्युत्तम सेनानी था
उत्तरी भारत की विजय में उसकी निरंतर सतर्कता उतनी ही महत्वपूर्ण थी जितनी मोहम्मद गौरी का दृढ़ संकल्प
मोहम्मद गोरी योजना तैयार कर उसका निर्देशन करता था और कुतुबुद्दीन ऐबक उसे कार्यान्वित करता था
ऐसे समय में जब मधार एशिया के अभियान बार-बार मोहम्मद गौरी के कार्य में बाधक सिद्ध हो रहे थे कुतुबुद्दीन ऐबक ही था जिसने भारत में अपने स्वामी की प्रसार वादी नीति चलाई थी
इस प्रकार कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने स्वामी मोहम्मद गौरी को न केवल भारत के विभिन्न प्रदेशों को जीतने में सहायता की बल्कि समय समय पर उस की अनुपस्थिति में विजित प्रदेशों को तुर्कों के आधिपत्य में रखा और राज्य विस्तार किया
कुतुबुद्दीन ऐबक शासक के रूप में मोहम्मद गौरी का कोई भी पुत्र नहीं था उसने अपने कुटुंब के किसी व्यक्ति या गोर के किसी जनजातीय सरदार पर विश्वास नहीं किया था इसीलिए अपनी सल्तनत की रक्षा करने के लिए वह अपने दासो पर विश्वास करता था
मिनहाज उल सिराज के अनुसार मोहम्मद गोरी ने कहा था कि अन्य सुल्तानों के एक बेटा हो सकता है ,या दो ,मेरे अनेक हजार बेटे हैं अथार्त मेरे तुर्की गुलाम जो मेरे राज्यों के उत्तराधिकारी होंगे और जो मेरे बाद उन राज्यों के खुत्बे में मेरा नाम सुरक्षित रखेंगे
मोहम्मद गौरी के तीन प्रमुख विश्वासपात्र दास थे 1- ताजुद्दीन यल्दोज 2- नासिरुद्दीन कुबाचा और 3- कुतुबुद्दीन ऐबक
1206 ईस्वी में मोहम्मद गौरी की अकस्मात मृत्यु हो गई मोहम्मद गौरी के कोई भी संतान नहीं होने की स्थिति में उसने किसी को अपना उत्तराधिकारी नहीं चुना था
उस समय उसके तीन विश्वासपात्र दासो अथार्थ ताजुद्दीन यल्दोज, नासिरुद्दीन कुबाचा और कुतुबुद्दीन ऐबक की स्थिति एक समान थी
अत: तीनों दासो ने मोहम्मद गौरी के साम्राज्य को आपस में बांट लिया
इस बंटवारे में---- 1- यल्दोज को- गजनी, 2- कुबाचा को- सिंध और मुलतान और तीसरा सदस्य
3- कुतुबुद्दीन ऐबक जो गोरी के समय में उत्तरी भारत में उसके प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत था-- को उत्तरी भारत के प्रांत प्राप्त हुए यह एक विस्तृत क्षेत्र था जिसमें सिंध और मुलतान को छोड़कर गोरी के भारतीय साम्राज्य का समस्त क्षेत्र शामिल था
इसमें सियालकोट ,लाहौर, अजमेर, झांसी ,दिल्ली-मेरठ ,कोल( अलीगढ़ ),कन्नौज, बनारस ,बिहार और लखनौती के क्षेत्र शामिल थे
लेकिन राजपूताना के कुछ क्षेत्रों जैसे कालिंजर ,थंगनीर आदि में राजपूतों का विरोध आरंभ हो चुका था
इन क्षेत्रों में तुर्की सत्ता को पुनः संगठित करना अनिवार्य था अतः कुतुबुद्दीन ऐबक ने साम्राज्य विस्तार से ज्यादा राज्य की सुरक्षा की ओर ध्यान दिया
भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक की राजनीतिक जीवन के चरण कुतुबुद्दीन ऐबक की राजनीतिक जीवन ( Political life) के चरणों को को तीन चरणों में बांटा जा सकता है 1. 1192 से 1206 ईस्वी तक- मुईजुद्दीन के प्रतिनिधि के रूप में उत्तरी भारत के कुछ भागों का शासक 2. 1206 से 1208ईस्वी तक-मोहम्मद गौरी की भारतीय सल्तनत का मालिक या सिपहसालार था 3. 1208 से 1210 ईस्वी-एक स्वतंत्र भारतीय राज्य का सत्ताधारी रहा
तीन चरणों में 1- प्रथम सैनिक गतिविधियों में व्यतीत हुई 2- दूसरी राजनीतिक कार्यों में और 3- तीसरी दिल्ली साम्राज्य का मानचित्र निर्मित करने में कुतुबुद्दीन ऐबक की राजनीतिक जीवन व्यतीत हुआ
सिंहासनारूढ़
औपचारिक रुप से कुतुबुद्दीन ऐबक 25 जून 2006 को गद्दी पर बैठा था
किंतु उसकी सत्ता को औपचारिक मान्यता और संभवता नियुक्ति पत्र 2 वर्ष बाद अथार्थ 1208ईस्वी में मोहम्मद गोरी के उत्तराधिकारी ग्यासुद्दीन मोहम्मद (मोइनुद्दीन का वेद उत्तराधिकारी और गजनी का शासक )ने कुतुबुद्दीन ऐबक को सुल्तान स्वीकार किया और उसे दासता से मुक्ति पत्र देकर मुक्त किया
गयासुद्दीन महमूद ने कुतुबुद्दीन ऐबक के पास सिन्हासन ,छत्र ,दूरबाश, पताका और नक्कारा भेजकर सुल्तान की पदवी से विभूषित किय
इस प्रकार भारत में Delhi Sultanate की स्वतंत्र सत्ता की स्थापना हुई
सिंहासनारोहण के समय कुतुबुद्दीन ऐबक ने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की थी बल्कि मालिक और सिपहसालार की पदवी से ही अपने को संतुष्ट रखा
यह पदवी उसे अपने स्वामी मोहम्मद गौरी से प्राप्त हुई थी इसी कारण कुतुबुद्दीन ऐबक ने ना तो अपने नाम के सिक्के चलाएं और ना ही अपने नाम का खुत्बा पढ़वाया
आरंभ में उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था
कुतुबुद्दीन ऐबक की कठिनाइयां
जिस समय कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली का सुल्तान बना उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा
उस समय उसके अधीन भारत में अनेक क्षेत्र थे जिस का विस्तार उत्तर पश्चिम सीमा से लेकर मध्य भारत तक था
पूर्वी भारत में बिहार और बंगाल भी तुर्की राज्य में शामिल था बंगाल पर तुर्कों का अधिकार था लेकिन तुर्कों की शक्ति शिथिल पड़ती जा रही थी
कुतुबुद्दीन एबक के प्रतिद्वंदी यल्दोज, कुबाचा और बंगाल, बिहार के खिलजी सरदारों ने अपनी शक्ति और प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे
कलिंजर और ग्वालियर स्वतंत्र हो गए थे मोहम्मद गौरी के राज्य पर अधिकार कर लेने के कारण मुइज्जी और कुतुबी अमीर भी कुतुबुद्दीन ऐबक से खुश नहीं थे
प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी ऐसी स्थिति में कुतुबुद्दीन एबक को दो कार्य करने थे
1. प्रथम- प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करना और 2. दूसरा- अपने प्रतिद्वंद्वियों से निपटना
उसने साम्राज्य विस्तार के बदले अपना पूरा ध्यान विजय क्षेत्रों की सुरक्षा और प्रशासनिक गठन में लगाया
अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए उसने महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया
स्वयं ने ताजुद्दीन यल्दौज की पुत्री से विवाह किया और अपनी बहन का विवाह नासिरुद्दीन कुबाचा से किया और इल्तुतमिश के साथ अपनी पुत्री का विवाह किया
ताजुद्दीन यल्दौज से कुतुबुद्दीन ऐबक का संबंध
शासन के आरंभ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने दोनों प्रतिद्वंदियों अथार्थ यल्दौज और कुबाचा के साथ मित्रता की नीति अपनाई
लेकिन यह स्थिति अधिक दिनों तक नहीं बनी रह सकी। कुतुबुद्दीन ऐबक की भांति यल्दौज भी मोहम्मद गौरी का दास था और अपने आपको मोहम्मद गौरी का उत्तराधिकारी मानता था
उसे भी मोहम्मद गौरी के उत्तराधिकारी ग्यासुद्दीन महमूद ने दास्ता से मुक्त कर गजनी पर शासन करने की अनुमति प्रदान कर दी थी।इससे यल्दौज का मनोबल बढ़ गया
वह अपने आप को मोहम्मद गौरी का वास्तविक उत्तराधिकारी मानने लगा था और पंजाब पर अधिकार करने की योजना बनाने लगा
इस उद्देश्य से वह गजनी से प्रस्थान कर गया और पंजाब पर आक्रमण कर दिया
कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे पराजित कर 1208ई. में गजनी पर भी अधिकार कर लिया लेकिन गजनी पर कुतुबुद्दीन ऐबक का अधिकार कुछ समय तक ही रहा
क्योंकि वहां की प्रजा यल्दौज की समर्थक थी स्थानीय सरदारों के विरोध के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक को गजनी छोड़कर वापस लौटना पड़ा
यल्दौज ने पुन: गजनी पर अधिकार कर लिय। इसके बाद यल्दौज ने कुतुबुद्दीन ऐबक के समय तक पुन:पंजाब पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया
कुतुबुद्दीन ऐबक का कुबाचा से संबंध
कुतुबुद्दीन ऐबक का दूसरा प्रतिद्वंदी नासिरुद्दीन कुबाचा था जो मुल्तान और उच्छ का सूबेदार था
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद एक स्वतंत्र शासक की भाति नासिरुद्दीन व्यवहार करने लगा था
कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसके साथ अपने संबंध निश्चित किए ।यल्दौज के विपरीत कुबाचा के साथ कुतुबुद्दीन ऐबक ने मैत्रीपूर्ण और कूटनीतिक चाल चली
उसने अपनी बहन का विवाह नासिरुद्दीन कुबाचा के साथ कर दिया जिससे दोनों की कटुता समाप्त हो गई
कुबाचा ने कुतुबुद्दीन ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली थी इस प्रकार अपने कूटनीतिक चाल से उसने अपने प्रबल प्रतिद्वंदियों को शांत कर दिया
ख्वारिज्म शाह
कुतुबुद्दीन ऐबक की कठिनाई केवल यल्दौज और कुबाचा तक ही सीमित नहीं थी
बल्कि ख्वारिज्म शाह की बढ़ती हुई शक्ति भी उसके लिए एक खतरा थी ख्वारिज्म शाह की नजर गजनी पर थी
यल्दौज उसकी शक्ति का मुकाबला करने में असमर्थ था ऐसी स्थिति में यदि गजनी पर ख्वारिज्म शाह का अधिकार हो जाता तो वह दिल्ली पर भी अपना दावा कर सकता था
इसीलिए कुतुबुद्दीन ऐबक की मुख्य कठिनाई भारत को मध्य एशिया की राजनीति से पृथक करना भी था
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