खेड़ा का किसान आंदोलन चरित्र की दृष्टि से चंपारण के आंदोलन से भिन्न था
यह अनाज,तंबाकू और कपास पैदा करने वाले खाते पीते किसानों का आंदोलन था
यह आंदोलन गरीब उत्पीड़ित रेयत का आंदोलन नहीं था
1899 के वर्ष से अकाल व महामारी के एक के बाद दूसरे प्रकोप के कारण किसानों के लिए यह कठिन हो गया था कि वह लगान का भुगतान कर सके
लेकिन सरकार द्वारा लगान व उसकी में वसूली में किसी प्रकार की रियायत नहीं की जा रही थी
1917-18 में किसानों को मूल्य वृद्धि और कृषि उत्पादन में कमी की दोहरी मार का शिकार होना पड़ा था
इन सभी स्थितीयो को देखते हुए मोहनलाल पांडेय देसी किसानों ने नवंबर 1917 में लगान का भुगतान रोकने का फैसला लिया था
22 मार्च 1918 को गांधी जी खेड़ा आंदोलन से जुड़े थे
हार्डीमन के अनुसार खेड़ा (गुजरात) आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में चलाया गया भारत में पहला वास्तविक किसान सत्याग्रह था
गुजरात का खेड़ा सत्याग्रह मुख्य रूप से मुंबई सरकार के विरुद्ध था
1917-18में अल्पवृष्टि के कारण फसल नष्ट हो जाने और सुखा पड़ने के कारण इस प्रदेश के किसानों को बहुत कष्ट हुआ
इन सब परिस्थितियों के बावजूद मुंबई सरकार ने खेड़ा गुजरात के कुनबी-पाटीदार किसानों से लगान की वसूली की जा रही थी
यह भूमि कर नियमों में यह स्पष्ट का गया था कि यदि फसल साधारण से 25% कम हो तो भूमि करने पूर्णतया छूट मिलेगी लेकिन मुंबई सरकार छूट देने को तैयार नहीं थी सरकारी अफसरों को यह अधिकार नहीं था कि फसल 25% कम है
साथ ही कुनबी पाटीदारों के साथ बरइया नामक निम्न जाति के खेतीहर मजदूर की बढ़ती कीमतों की वजह से त्रस्त थे
इन सब परिस्थितियों को देखते हुए महात्मा गांधी ने मार्च 1918 में खेड़ा आंदोलन का नेतृत्व सम्भाला
महात्मा गांधी खेड़ा गुजरात में सर्वेंट ऑफ इंडिया के सदस्य विट्ठल भाई पटेल के साथ आए थे
यहां आकर गांधी जी ने किसानों को संगठित किया और सभी वर्ग के लोगों का समर्थन प्राप्त किया
गांधी जी के नेतृत्व में कृषकों की बहुत बड़ी संख्या ने सत्याग्रह किया और जेल में गये
गांधी जी ने किसानों को राय दी कि जब तक लगान मे छूट नहीं मिलती है वह लगान देना बंद कर दे और इस आंदोलन को लगातार जारी रखें
खेड़ा आंदोलन जून 1918 तक चलता रहा और अंत में सरकार को गांधी जी की मांग स्वीकार करनी पड़ी
सरकार ने यह आदेश दिया की लगाम उन्हीं किसानों से वसूला जाए जो वास्तव में इस का भुगतान कर सकते हैं
सरकार के इस आदेश के बाद गांधी जी ने संघर्ष वापस ले लिया था
खेड़ा आंदोलन के गांधी जी का प्रभाव गुजरात में फेल गया था
गॉधीजी के अहिंसा के सिद्धांत और वैष्णव भक्ति के कारण पाटीदार किसानों ने ही महात्मा गांधी जी का सदैव समर्थन किया
स्वदेश वापसी के पश्चात महात्मा गांधी जी का दूसरा महत्वपूर्ण आंदोलन गुजरात के खेड़ा क्षेत्र के किसानों की समस्याओं के निपटारे हेतु किया गया सत्याग्रह था
चंपारण और खेड़ा के आंदोलन नें न केवल गांधी जी को जनता का नेता बना दिया बल्कि कृषको मे आत्मविश्वास भी जागा कि यदि वह मिल कर कार्य करें तो सफल अवश्य होंगे
खेड़ा आंदोलन में इंदुलाल याग्निक ने गांधीजी का पूर्ण सहयोग किया था
खेड़ा आंदोलन में गांधीजी के साथ वल्लभ भाई पटेल इंदुलाल याग्निक और अन्य युवा लोगों ने गांव का दौरा किया था
इन सभी अनुभवों ने गांधीजी को जनता के घनिष्ठ संपर्क में ला दिया और वह जीवन भर उनके हितों की सक्रिय रुप से रक्षा करते रहे
वे वास्तव में भारत के पहले ऐसे राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने अपने जीवन और जीवन पद्धति को साधारण जनता के जीवन से एकीकृत कर लिया था
जल्दी ही वे गरीब भारत राष्ट्रवादी भारत और विरोधी भारत के प्रतीक बन गए थे
गांधीजी के तीन दूसरे लक्ष्य दी थी जो उन्हे जान से प्यारे थे
इनमें पहला लक्ष्य था हिंदू मुस्लिम एकता
दूसरा लक्ष्य था छुआछूत विरोधी संघर्ष
तीसरा लक्ष्य था देश की स्त्रियो की सामाजिक स्थिति को सुधारना
अपनी राजनीति के प्रारंभिक दिनों में गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के संविधानिक सुधारों की प्रक्रिया की प्रशंसा की थी
लेकिन 1919 में जलियांवाला कांड के बाद काली जी का पूरा दृष्टिकोण सरकार के संदर्भ में बदल गया था
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