गियासुद्दीन तुगलक(Ghiyasuddin Tughlaq)

गियासुद्दीन तुगलक(Ghiyasuddin Tughlaq)


गियासुद्दीन तुगलक( 1320 से 1325ईस्वी )का प्रारंभिक जीवन 

ग्यासुद्दीन तुगलक तुगलक वंश का संस्थापक था उसका प्रारंभिक नाम गाजी तुगलक अथवा गाजीबेग तुगलक था

गयासुद्दीन तुगलक ने 1320 ईस्वी में नासिरुद्दीन खुसरव शाह को पराजित कर तुगलक वंश की स्थापना की थी इससे पूर्व व उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत दिपालपुर पंजाब का गवर्नर था

1320 ईस्वी में सिंहासन पर अधिकार करने के पश्चात उसने गयासुद्दीन तुगलक शाह की पदवी धारण की थी

वह जन्म से भारतीय था उसकी माता पंजाब की एक जाट (हिंदू )महिला थी और पिता बलबन (Balban) का तुर्की दास था

गाजी मलिक के चरित्र में 2 जातियों के मुख्य गुणो-ं हिंदुओं की विनम्रता और कोमलता तथा तुर्कों का पुरुषार्थ और उत्साह का मिश्रण था।

उसने अपना जीवन एक सैनिक के रूप में शुरू किया और अपनी योग्यता और वीरता के कारण दिल्ली के सिंहासन तक पहुंचा

गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली का प्रथम शासक था जिसने गाजी (काफिरों का घातक) की उपाधि धारण की थी

अफीफ और इब्नबतूता के अनुसार--ग्यासुद्दीन तुगलक अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में भारत आया था

लेकिन आमिर खुसरो (Amir Khusro) ने- अपने तुगलकनामा में स्पष्ट किया है कि वह जीविका की खोज में जलालुद्दीन खिलजी (Jalaluddin Khilji) के अंगरक्षक के रूप में भर्ती हुआ था

सर्वप्रथम उलूग खां के नेतृत्व में रणथंबोर के घेरे के समय अपनी योग्यता का परिचय दिया

जब उलूग खां की मृत्यु हुई तो वह अलाउद्दीन की सेवा में आया।अलाउद्दीन खिलजी (Allauddin Khilji) के शासनकाल में ही उसकी पद और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई

उसकी सैनीक योग्यता और समर्पण की भावना से प्रेरित होकर अलाउद्दीन ने उसे सीमा रक्षक का पद प्रदान कया

इस पद पर रहते हुए वह इकबालमंदा के नेतृत्व में मंगोल आक्रमणों के विरुद्ध सफलता प्राप्त की और मंगोल की सीमा के अंतर्गत क्षेत्रों से राजस्व वसूला

सफलता के बाद उसे अलाउद्दीन खिलजी ने अभियानों का अध्यक्ष और दीपालपुर का राज्यपाल नियुक्त किया

सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के राज्यकाल में उसे उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत का सूबेदार नियुक्त किया था

इस कार्य को उसने बड़ी योग्यता से अंजाम दिया और मंगोलों के विरुद्ध सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा प्रदान की

समकालीन स्त्रोतों के अनुसार-- उसने मंगोलों के विरुद्ध 29 बार विजय प्राप्त की थी

लेकिन अमीर खुसरो के अनुसार-- 18 और
बरनी के अनुसार- 20 विजय का वर्णन किया गया है

मंगलो को पराजित करने के कारण वह मलिक-उल- गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ

सिंहासनारोहण

गियासुद्दीन तुगलक संपूर्ण मध्यकालीन भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम सर्वसम्मति से सुल्तान बनने वाला पहला शासक था

उसने शासक का प्रथम प्रतीक (शाही छत्र) खोखर सरदार गुलचंद्र से प्राप्त किया

नासिरुद्दीन खुसरो शाह की हत्या करने के बाद अमीरों के आग्रह पर वह गद्दी पर बैठा था

इस संबंध में प्रोफ़ेसर हबीब ने लिखा है कि--वह उसका हाथ पकड़कर ले गए और सिंहासन पर बैठा कर गयासुद्दीन के खिताब सहित उसे सुल्तान घोषित किया।

अपने राज्य रोहन के समय उसने कहा उसकी (अलाउद्दीन की )कृपा के कारण मैंने यह पद प्राप्त किया है जहां तुम मुझे देख रहे हो

प्रशासनिक पुनर्गठन

सत्ता ग्रहण करने के बाद गयासुद्दीन तुगलक ने खुसरो शाह के सहायकों का निष्कासन कर दिया और अपने मित्रों संबंधियों और समर्थकों को प्रशासनिक ढांचे में सम्मिलित कर उसे पुनर्गठित किया

अपने भतीजे मलिक असदुद्दीन को नायब बारबक और मलिक बहाउद्दीन को अर्ज ममालिक नियुक्त किया गया।, मलिक जफर नायब ए अर्ज बना

सुल्तान का जमाता मलिक शादी दीवान ए वजारत (वित्त मंत्रालय) का निरीक्षक नियुक्त हुआ

काजी कमालुद्दीन को काजी उलकज्जात (सद्र जहां )की उपाधि प्रदान की गई और शमशुद्दीन को दिल्ली का कजी नियुक्त किया गया

बलबन की भांति ग्यासुद्दीन ने भी अपने पुत्रों को उपाधि प्रदान कर उनके प्रतिष्ठा में वृद्धि करने का प्रयास किया।

जेष्ट पुत्र मलिक फखउद्दीन जूना खां को उलूग खां की उपाधि दी गई,शेष चार पुत्रों बहराम खॉ, जफर खां नुसरत खॉ और महमूद खां को भी उपाधि से विभूषित किया गया

बहराम आएबा को किश्लु खां की उपाधि दी गई

गयासुद्दीन तुगलक की आरंभिक कठिनाइयां 

जिस समय गयासुद्दीन तुगलक सुल्तान बना,उसके समक्ष अनेक राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक समस्याएं थी

अलाउद्दीन खिलजी द्वारा स्थापित सुल्तान के पद की गरिमा को मुबारक खिलजी और खुसरो शाह ने नष्ट कर दिया था

गयासुद्दीन के सामने सबसे पहली समस्या सुल्तान के पद की गरिमा को पुनः स्थापित करना था

साम्राज्य की सीमाएं दूर-दूर तक फैले होने के कारण उन पर केंद्रीय नियंत्रण का अभाव था

इस कारण प्रांतों में बार-बार विद्रोह हो रहा था,सिंध पर नाम मात्र का नियंत्रण रह गया था, यहां का सूबेदार अमर ने थट्टा और निचले सिंध पर अधिकार कर एक स्वतंत्र शासक की भांति व्यवहार करने लगा था

आई- नूल- मुल्क की अनुपस्थिति में गुजरात में भी विद्रोह प्रारंभ हो गया था।

राजपूताना, चित्तौड़ ,नागौर और जालौर में राजपूतों ने अपनी शक्ति दृढ़ कर ली थी

पूर्व में बंगाल प्रांत की स्वामी भक्ति भी संदेहपूर्ण थी,तिरहुत और जाजनगर अभी शक्तिशाली हिंदू रायों और जमीदारों के अधिकार में था

उत्तर भारत की भांति दक्षिण की स्थिति भी स्थिर नहीं थी

दिल्ली की राजनीतिक उथल पुथल का लाभ उठाकर तेलंगाना का प्रताप रुद्रदेव ने भी का सल्तनत के प्रति अपनी राज भक्ति की भावना को त्याग दिया था

इस प्रकार माबर और होयसल प्रदेश के वीर बल्लाल भी अपने को स्वतंत्र कर लिए थे

राजनीतिक उथल पुथल के साथ साथ साम्राज्य की आर्थिक स्थिति दयनीय थी,क्योंकि कुतुबुद्दीन मुबारक और खुसरो खां ने अपनी स्थिति सुदृढ़ बनाने और सैनिकों व अमीरों को संतुष्ट रखने के लिए अत्यधिक धन व्यय किया जिसे राजकोष पूर्णतः खाली हो गया था

अलाउद्दीन की राजस्व प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी जिसके परिणाम स्वरुप प्रांतों में कर की वसूली नहीं हो पाती थी और कृषि ,उद्योग और व्यापार वाणिज्य पूरी तरह नष्ट हो गए थे

इन विषम परिस्थितियों में गयासुद्दीन ने सत्ता संभाली थी

यद्यपि वह एक सेनानी था लेकिन शीघ्र ही परिस्थितियों को आंका और शासन व्यवस्था को सामान्य स्तर पर लेकर आया

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