गांवों में जीवन बहुत सुविधा संपन्न नहीं होता है, लेकिन वहां पर हरियाली और खुलापन पेड़ों की सुद्ध हवा एवं शांत वातावरण होता है। गांव प्रदूषण से मुक्त होते हैं, वातावरण शांति एवं सौहार्दपूर्ण होता है गांव के लोग सभी मिलजुल कर रहते हैं एवं आपसी भाईचारा सबसे ज्यादा देखने को मिलता है शहरों के मुकाबले लेकिन गांवों में आधारभूत सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, शिक्षा व परिवहन सुविधाएं आदि की कमी महसूस होती है अधिकांश गांवों में पानी कुएं या हेडपंप से भरकर लाना पड़ता है।
बढ़ते औद्योगीकरण वह मशीनीकरण के कारण गांवों में लघु व कुटीर उद्योगों का हास्र चुका है, जिन से गांवों में बेरोजगारी बढ़ने का मुख्य कारण है, कृषि तकनीकी पिछडी अवस्था में होने के कारण आय के साधन भी सीमित है, साथ ही कृषि मुख्यत वर्षा पर निर्भर होने के कारण वर्षा की अनियमितता एवं कमी से कृषि कार्य जीविकोपार्जन का एक लाभदायक साधन नहीं बन पाया है
ख्वाबों में इस सड़क पर परिवहन के अन्य सुविधाओं का भी अभाव पाया जाता है गांव के अवसर सीमित होने व अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण गांव के लोगों में शहरीकरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है प्रकृति का आपने भी लोगों को गांवों से पलायन करने को मजबूर करती है शहरों के सुविधा पूर्ण जिंदगी और शीघ्र पैसा कमाने के लालच में गांव के कुछ अमीर लोग भी शहरों में आकर बस जाते हैं अपने मूल निवास को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर जाकर रहना प्रवजन या प्रवास कहलाता है
वैसे देखा जाए तो भारतीय समाज ही प्राथमिक रूप से ग्रामीण समाज ही है अभी भी भारत की बहुसंख्यक आबादी लगभग 70% गांव में ही रहती है उसका जीवन यापन कृषि अथवा उससे संबंधित व्यवसाय पर आधारित हैं इस कारण यह हुआ कि अधिकांश भारतीयों के लिए भूमि उत्पादन का एक महत्वपूर्ण साधन है भूमि संपति का एक महत्वपूर्ण प्रकार भी है लेकिन भूमि ना तो केवल उत्पादन का साधन है और ना ही केवल संपत्ति का एक प्रकार ना ही केवल कृषि है जो कि उनके जी का एक प्रकार है यह ग्रामीण समाज का जिविका का एक तरीका भी है
हमारी बहुत ही सांस्कृतिक रस में कृषि की पृष्ठभूमि होती है जैसे पोंगल त्योहार, ओणम त्योहार, दीपावली त्यौहार या अक्षय तृतीया आदि
यह त्यौहार फसल काटने के समय मनाए जाते हैं और नए कृषि मौसम के आने की घोषणा करते हैं, हमारे देश में कृषि एवं संस्कृति के बीच एक घनिष्ठ संबंध पाया जाता है बहुत से ऐसे कारीगर या दस्त कार्य से कुम्हार, खाती, जुलाहे, लोहार एवं सुनार भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है अपनी बेसिक काल से ही भेज संख्या में धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं, बहुत से अन्य विशेषज्ञ व दस्त का रहस्य कहानी सुनाने वाले जूते से पुजारी भेजते एवं तेल इत्यादि में ग्रामीण जीवन में लोगों को सहारा देते हैं, ग्रामीण भारत में विषयों की भिन्नता यहां की जाति व्यवस्था में प्रतिबंधित होती है
मेरा मानना है कि आज भी ग्रामीण इलाकों में जातिवाद का प्रभाव देखने को मिलता है बहुत ऐसे लोग हैं जो कसबो में रहते हैं जो नौकरी करते हैं लेकिन उनका परिवेश ग्रामीण है वह कृषि क्लबों के आधारित है, गांवों में भूमि ही आजीविका का एकमात्र बहुत हो पुराण साधन माना जाता है
वास्तव में भूमि का विभाजन घरों के बीच बहुत आसमान रुप से है भारत के कुछ भागों में अधिकांश लोगों के पास कुछ न कुछ भी होते हैं अक्सर सुमित का बहुत छोटा टुकड़ा होता है उस दूसरे भागों में अधिक प्रतिशत परिवारों के पास कोई भूमि नहीं होती है इसका अर्थ यह हुआ कि उनकी जीविका या तो कृषि मजदूरी से या अन्य प्रकार के कार्यों से चलती है इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि पूरे परिवार बहुत अच्छी अवस्था में है ग्रामीण क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग गरीबी की रेखा के ऊपर या नीचे जीवन यापन करते हैं उत्तराधिकार के नियमों और पुत्र बजे नातेदारी व्यवस्था के कारण भारत के अधिकांश भागों में महिला जमीन की मालिक नहीं होती कानून महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी दिलाने में सहायक होता है वास्तव में उनके पास पहुंचा सीमित अधिकार होते हैं और परिवार का हिस्सा होने के नाते भूमि पर अधिकार होता है जिसका की मुखिया एक पुरुष होता है भूमि रखना ही ग्रामीण वृक्षासना को आकार देता है और बड़ी जमीनों के मालिक साधारण कृषि से पर्याप्त अर्जुन ही नहीं होता बल्कि अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं हालांकि यह मानसून पर भी निर्भर करता है लेकिन कृषि मजदूरों को अवश्य निम्रता निर्धारित मूल्य से कम दिया जाता है और बहुत कम कम आते हैं उनकी आमदनी नीम ना होती है उनका रोजगार असुरक्षित होता है अधिकांश कृषि मजदूर योजना दिवाली पर काम करते हैं और भ्रष्ट में बहुत से दिन उनके पास कोई काम नहीं होता अर्थात परवरिश के कई दिन बेरोजगार भी रहते हैं समान रूप से कास्ट का रिया पत्तेदारी कसक कसक जो गोस्वामी से जमीन पट्टे पर लेता है की आमदनी मालिक कों से कम होती है क्योंकि वह जमीन के मालिक को श्रेष्ठ किराया सिखाता है सादर तनल से होने वाली आमदनी का 50 से 70% ग्रामीण क्षेत्रों में जाति और वर्ग बड़ी जटिल होते हैं यह संबंध हमेशा फास्ट वादी नहीं होते हम यह सोचते हैं कि उसी जाति वालों के पास होती कोई और आमदनी होती है और यह किस जाति और वर्ग में पा सकता है उनका संस्करण और नीचे की ओर होता है परंतु हर जगह ऐसा नहीं होता उदाहरण के लिए कई जगह पर सबसे ऊंची जाति ब्राह्मण बड़े गोस्वामी नहीं आता भी कर सकते रचना से भी बाहर हो गई हैं हालांकि वे ग्रामीण समाज के अंग है भारत के अधिकांश क्षेत्रों में गोस्वामी ओं वाले समूह के लोग सुधरी या सत्रीय के हैं प्रत्येक क्षेत्र में सामान्यता एक या दो जातियों के लोग स्वामी होते हैं वे संख्या के आधार पर भी बहुत महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक रूप से यह प्रजाति समूह स्थानीय लोगों पर प्रभाव बनाए रखता है
ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्यता प्रबल भू स्वामियों के इस समूह में मोदी और ऊंची जातियों के लोग आते हैं अधिकांश सीमांत किसान और भूमिहीन लोग निम्न जातियों समूह के होते हैं भारत के कई भागों में पहले अश्वेत अथवा दलित जाति के लोगों को भूमि रखने का अधिकार नहीं था अधिकांश प्रबल जाति के गोस्वामी समूह के लोगों के यहां कृषि मजदूरी करते थे गांवों में सबसे अधिक जमीन और साधन औरतें ज्यादा फास्ट यादव शक्ति है विशेषाधिकार भी उन्हीं के हाथों में थे उत्तरी भारत के कई भाग में अभी भी बेकार और मुक्त मजदूरी जैसी पद्धति प्रचलित है गांव के जिम्मेदार या भूस्वामी यहां निम्न जाति समूह के सदस्य की कमी और भू स्वामियों की आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक सहायता लेने के लिए बहुत से गरीब कामगार पीढ़ियों से निकले अवधवा मजदूरी की तरह काम कर रही है राजस्थान में इस प्रथा को सा गरीब गुजरात में हर पति के नाम से जाना जाता है कर्नाटक में इसे जीता कहते हैं हालांकि कारण इसकी व्यवस्था समाप्त हो गई है लेकिन कई क्षेत्रों में अभी भी चल रही है
अतः हम कह सकते हैं कि ग्रामीण जीवन स्वास्थ्य के लिए एवं शुद्ध वातावरण के लिए सही है लेकिन वर्तमान दृष्टि से देखा जाए तो जो सुख सुविधा शहरों में मिल रही है वह सुविधाएं ग्रामीण इलाकों में हमें देखने में इतनी सुदृष्टि नहीं मिलती है
ग्रामीण क्षेत्र शहरो से काफी पिछड़े हुए हैं लेकिन फिर भी जो सुविधाएं हमें गांवों में मिल रही है वह शहरों में में नहीं मिलती गांवों में हमें ताजे फल सब्जियां ताजा दूध शुद्ध हवा एवं भाई सारा आपसी मेल मिलाप हमें देखने को मिलता है जो कि शहरों में हमें इतना नहीं मिलता
(२) शहरीकरण
जिस प्रकार गांव एवं उनकी सामाजिक संरचना भारतीय सामाजिक जीवन के एक महत्वपूर्ण पक्ष का निर्माण करते हैं ठीक उसी प्रकार शहरी जीवन शैली भारतीय सामाजिक संरचना एवं व्यंजन का महत्वपूर्ण भाग है विश्व कप पहली नगरीकरण सिंधु घाटी सभ्यता में हुआ था भारत में इसके बाद तृतीय नगरी क्रांति महाजनपद काल में पढ़ती थी जो कि नदियों के किनारे पर थी
प्रारंभिक काल में मनुष्य छोटे-छोटे टुकड़ों में रहा करते थे फिर धीरे-धीरे बस्तियां बनाने लग गई ऐतिहासिक तथ्य सीमित थी जो स्थानीय स्तर पर पूर्ण हो जाती थी धीरे-धीरे समाज में विकास होने लगा मानव की आवश्यकता में वृद्धि होने लगी एक स्थान पर उत्पादित वस्तुओं से पूर्ण नहीं हो पाते दिया था व्यापार वाणिज्य को जन्म दिया जिसके माध्यम से एक ही स्थान पर उत्पादित अधिक वस्तुओं को अन्य आवश्यकताओं के स्थान पर पहुंचाया जाना संभव हो पाया जैसे-जैसे व्यापार एवं वाणिज्य का विस्तार हुआ व्यापार एवं वाणिज्य के केंद्र विकसित होने लगी इन केंद्रों और रोजगार के अवसर उपलब्ध होने के कारण मानव बस्तियां लगी और यह शहरों के रूप में विकसित हो गए
भारतीय उपमहाद्वीप में अनेक भागों से प्राथमिक खोजों के कारण हमें निष्कर्ष मिला है कि भारत में शहरी विकास उतना ही पुराना है जितना उसकी सभ्यता का इतिहास अविभाजित भारत में शहरों की प्रारंभिक वृद्धि एवं शहरी क्षेत्रों के विकास पर विचार करते हुए समय लगभग ५००० वर्ष से ६००० वर्ष पूर्व की अवधि तक इस के उद्भव की खोजबीन की जा सकती है
ग्रामीण जनसंख्या में आज सोने से गांवों के संसाधनों का उपयोग नहीं हो पाता और ग्रामीण सेवा का मतलब हो पाती है इससे ग्रामीण इलाकों में जीवन स्तर गिर जाता है नगर का आकार और उसकी जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ भूमि के दाम भी अब आकाश को होने लगते हैं और मकान और दुकानें तथा औद्योगिक इकाइयों को की भारी कीमत चुकानी पड़ती है इससे रायसेन का हुए पड़ जाता है आम आदमी वहां जाने में असमर्थ हो जाता है भूमि का मूल्य बढ़ने से नगर क्षेत्र से दिशा में ना होकर द्वार दिशा में होता है और गगनों मुखी भवनों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है इसे खुले स्थान का अभाव हो जाता है पार्किंग की समस्या पैदा होती है
शहरों में बेरोजगारी की समस्या गांवों से नगरों की ओर जाने वाले अधिकांश लोग कुशल और अकुशल होते हैं जिन्हें घोषित काम नहीं मिलता तभी नींद सैनी का काम करने के लिए विवश हो जाते हैं जब उस घर की खोज करने वाले व्यक्तियों की संख्या रोजगार के अवसरों से अधिक हो जाती है तो बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है चिकित्सा सुविधा की कमी नगरों में खुले वातावरण की कमी बेरोजगारी गरीबी प्रदूषण एवं ओवैसी बस्तियों के विस्तार के कारण नगरों में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रह पाता नगर के विस्तार के साथ साथ भी जाए बीमारियों के सिक्के में पड़ जाती है परंतु उसी ने बाद में चिकित्सा सुविधाओं में भी नहीं होती श्रीकांत के नगरों के बीजों का संतोषजनक इलाज नहीं होता नगरों के अस्पतालों में मरीजों की भीड़ एक आम दृश्य है
नगरों में विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न जाती प्रजाति के धर्मों के लोग एकत्रित होते हैं जिससे आपसी समय वह सद्भाव का अभाव होता है नगरों में बढ़ते हुए भौतिकवाद जीवनवर प्रतिस्पर्धा स्वार्थ भीड़ में अकेलापन तथा सामाजिक आर्थिक विषमताओं में वृद्धि के कारण अपराध को बढ़ावा मिलता है नगर में चोरी डकैती अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराधों में वृद्धि होती है
प्रदूषण नगरी क्षेत्र में तीव्र वृद्धि से नगरों का आकार और उनकी संख्या तेजी से बढ़ती है और नगरों के उद्योग परिवहन का विकास एवं जल के उपयोग में भी तेजी आती है उद्योगों का पर्यावरण के वाहनों बड़ी मात्रा में हानिकारक गैसों पत्र एवं ठोस पदार्थोंका उत्सर्जन करते हैं जिससे नगर की वायु एवं भूमि का प्रदूषण होता है बहुत साल जल गीतों को रोज अगर किसी वर्ग व्यवस्था में प्रयोग किया जाता और पानी प्रदूषित हो जाती है
शहरीकरण-----किसी शहर या कस्बे के रूप में विकसित होने की प्रक्रिया शहरीकरण कहलाती है
सुरेश कुमार मेघवाल जालौर
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