गांधी जी ने सत्याग्रह का पहला बड़ा प्रयोग 1917 में बिहार के चंपारण जिले में किया था
चंपारण की घटना 20सदी के प्रारंभ में शुरू हुई थी
चंपारण के किसानों का संघर्ष 1917-18 मे चला था
किसानों का यह संघर्ष अंग्रेज नील उत्पादकों के आर्थिक शोषण और उनके कर्मचारियों के उत्पीड़न ओर अत्याचारों के विरुद्ध किसान चेतना का सूचक था
यहां नील के खेतों में काम करने वाले किसानों पर यूरोपीय मालिक बहुत अधिक अत्याचार करते थे
चंपारण के किसान दिर्घकाल से तीन कठिया व्यवस्था का और सामंती करो मे वृद्धि का विरोध करते आ रहे थे
किसानों को अपनी जमीन के कम से कम 3/20 भाग पर नील की खेती करना और उन मालिकों द्वारा तय दामों पर उन्हें बेचना पड़ता था
इस पद्धति को तिनकठिया पद्धति भी कहा जाता है
तीन कठिया पद्धति का अर्थ है भूमि के एक भाग पर अनिवार्य रूप से नील का उत्पादन करना था
19वीं शताब्दी के अंत तक जर्मनी के रासायनिक रंगों ने नील बाजार को लगभग समाप्त कर दिया था
चंपारण के यूरोपीय निलहे अपने कारखाने बंद करने के लिए बाध्य हुए
इस कारण किसान भी नील की खेती से मुक्ति चाहते थे
अंग्रेज निलहो ने इसका फायदा उठाया और उन्हें अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान और अन्य गैरकानूनी करो को बढ़ा दिया
चम्पारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी से 1916 मे लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में भेंट की थी
राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी को चंपारण आने और चंपारण में किसान आंदोलन का नेतृत्व करने का आग्रह किया था
गांधीजी के चंपारण पहुंचने पर वहां के कमिश्नर में तुरंत उन्हें चले जाने को कहा
लेकिन गांधीजी ने उनकी बात नहीं मानी अंततः उन्हें चंपारण गांव जाने की अनुमति दे दी गई थी
चंपारण में चंपारण किसान आंदोलन में नेतृत्व की 2 धाराएं एक साथ सक्रिय थी
जिसमें एक ओर गांधी जी के सहयोगी के रूप मे बाबू राजेंद्र प्रसाद जे०बी० कृपलानी महादेव देसाई मजहरूल हक नरहरि पारिख और ब्रज किशोर थे
दूसरी ओर किसान जनता से ही निकले हरवंश सहाय राजकुमार शुक्ला पीर मोहम्मद जैसे लोग इस आंदोलन में सक्रिय थे
चंपारण आंदोलन में गांधीजी की भूमिका दो कार्यक्रम सीमित थी प्रथम किसान शिकायतों की जुलाई 1917 में खुली जांच करवाना
द्वित्तीय समस्याओं एवं संघर्षों को अखिल भारतीय स्तर पर प्रचार देना
इसलिए सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए एक आयोग गठित किया था गांधी जी को भी उसका सदस्य बनाया गया था
गांधीजी आयोग को यह समझाने में पूर्णतया सफल रहे की तीन कठिया प्रणाली समाप्त होनी चाहिए और जो धन अवैध रूप से वसूल किया गया है उसके लिए हर्जाना दिया जाना चाहिए
यूरोपीय निलहे किसानों की 25% राशि वापस करने के लिए राजी हो गए जिसे गांधी जी ने स्वीकार कर लिया था
इस प्रकार गांधी जी द्वारा चलाया गया पहला सत्याग्रह आंदोलन सफल रहा
इस आंदोलन ने तीन कठिया पद्धति को समाप्त किया और किराया और लगान बद्दी में कमी कराने में सफलता दिलाई
इस आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि इसने कृषक जनता में नई चेतना और साहस को जन्म दिया था
एन०जी०रंगा ने महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह का विरोध किया था
जबकि रविंद्र नाथ टैगोर चंपारण सत्याग्रह में महात्मा की उपाधि दी थी
नोट महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि रविंद्र नाथ टैगोर ने दी थी और रवींद्रनाथ टैगोर को गुरु की उपाधि महात्मा गांधी द्वारा दी गई थी
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चंपारण सत्याग्रह भारत में गांधी जी द्वारा चलाया गया प्रथम आंदोलन था
मेरे दादाजी ने श्री राज कुमार शुक्ल को गांधी जी से मिलने लखनऊ भेजा था और उन्ही ने "मुठिया आंदोलन" की शुरुआत की थी। गांधी जी को कलकत्ता से साथ लेकर आने वाले भी मेरे दादाजी पंडित रामरक्ष उपाध्याय ही थे। मजेदार बात यह है, कि शुक्ल जी को सभी जानते हैं, लेकिन जिन्होंने शुक्ल जी को भेजा था, उन्हें कोई नहीं जानता क्योंकि वह अपने नाम के प्रचार पर विश्वास नहीं करते थे।
मेरे दादाजी ही गांधीजी को कलकत्ता से लेकर चम्पारण आए थे, एक साथ बैठ कर।
किसी को विश्वास न हो, तो मेरे पास सबूत हैं, मेरे दादाजी की डायरियाँ।
3 Comments
Colonel Upadhyay Rothi Raj
1 year ago - Replyमेरे दादाजी ने श्री राज कुमार शुक्ल को गांधी जी से मिलने लखनऊ भेजा था और उन्ही ने "मुठिया आंदोलन" की शुरुआत की थी। गांधी जी को कलकत्ता से साथ लेकर आने वाले भी मेरे दादाजी पंडित रामरक्ष उपाध्याय ही थे। मजेदार बात यह है, कि शुक्ल जी को सभी जानते हैं, लेकिन जिन्होंने शुक्ल जी को भेजा था, उन्हें कोई नहीं जानता क्योंकि वह अपने नाम के प्रचार पर विश्वास नहीं करते थे। मेरे दादाजी ही गांधीजी को कलकत्ता से लेकर चम्पारण आए थे, एक साथ बैठ कर। किसी को विश्वास न हो, तो मेरे पास सबूत हैं, मेरे दादाजी की डायरियाँ।
lokesh kumar
1 year ago - ReplyOk, Dear, We will update it.
Manpreet singh
2 years ago - Replyबहुत बढ़िया 👆