Philosophy special(दर्शनशास्त्र विशेष)
दर्शनशास्त्र को अंग्रेजी मे philosophy कहते है
ये दो शब्दो से बना है फिलास (प्रेम ) +सोफिया (ज्ञान) यानि ज्ञान के प्रति प्रेम या अनुराग
दर्शन शब्द संस्कृत के दृश धातु से बना है जिसका अर्थ है :- जिसके द्वारा देखा जाए
भारतीय दर्शन को मोक्ष दर्शन व आत्म दर्शन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका मुख्य लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है
भारतीय दर्शन को व्यावहारिक या आध्यात्मिक दर्शन भी कहा जाता है
Note :- पश्चिमी दर्शन को सैद्धांतिक दर्शन व मानसिक व्यायाम कहा जाता है
भारतीय दर्शन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है (चार्वाक को छोड़कर )
भारतीय दर्शन को दो भागो मे बांटा गया है आस्तिक व नास्तिक
नास्तिक दर्शन :-जैन बौद्ध चार्वाक
आस्तिक दर्शन :- सांख्य योग न्याय
?उपनिषद दर्शन ?
उपनिषद तीन शब्द से मिलकर बना है
उप :- निकट
नी:- निष्ठापूर्वक
सद :- बैठना
अर्थात :- गुरू के समीप निष्ठापूर्वक बैठना
कुल उपनिषद 108 है लेकिन मुख्य उपनिषद् ग्यारह ही है
उपनिषदो को वेदान्ग के नाम से भी जाना जाता है
सबसे प्राचीन उपनिषद छान्दोग्य व वृहादारण्यक है
दाराशिकोह द्वारा 52 उपनिषदो का फारसी भाषा मे अनुवाद किया गया था
ईशावस्य उपनिषद मे आत्महत्या को निन्दनीय बताया गया है
कंठोपनिषद मे यम व नचिकेता की द्वारा भौतिक सुखो को क्षणभंगुर बताया गया है
छान्दोग्य उपनिषद मे उद्दालक श्वेतकेता संवाद द्वारा ब्रह्म व आत्मा की एकता को बताया गया है
उपनाषदो को वेंदाग क्यो कहा जाता है?
1 उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है
2 गुरुकुल मे गुरू विधार्थी को सबसे अंत मे उपनिषदो का अध्ययन कराते थे
3 उपनिषदो की आवश्यकता मनुष्य को सबसे अंतिम आश्रम मे पड़ती थी
उपनिषदो मे कर्मकाण्डो की आलोचना की गई है
उपनिषदो मे ब्रह्मज्ञान या आत्मज्ञान के बारे मे बात कही गई है
उपनिषदो का सार ही गीता है
प्रस्थान त्रयी :- उपनिषद ब्रह्मसूत्र गीता
Note इन तीनो मे प्रमुख स्थान उपनिषदो को दिया गया है
?उपनिषद और आत्मा संबंधी विचार ?
?तैतरिय उपनिषद मे आत्मा के पांच कोश बताये गये है
1 अन्नमय कोश
2 प्राणमय कोश
3 मनोमय कोश
4 विज्ञानमय कोश
5 आन्दमय कोश
Note :- आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को " आन्दमय कोश " मे अनुभव करती है
आत्मा की अवस्थाए ?
मांड़ूक्य उपनिषद के अनुसार आत्मा की चार अवस्थाए होती है
1 जागृत अवस्था
2 स्वप्न अवस्था
3 सुषुप्त अवस्था
4 तुरिय अवस्था
आत्मा की तीन स्थितिया
1 बंध्द :- जन्म मरण के बंधन मे पड़ी हुई हो
2 मुक्त :- जन्म मरण से मुक्त हो
3 मुमुक्षत्व :- इसमे आत्मा इस संसार मे रहते हुए मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयास करती है
उपनिषदो मे माया को अविद्या या अज्ञान के नाम से जाना जाता है
श्वतांबर उपनिषद रूद्र को समर्पित है
मांड़ूक्य उपनिषद मे ब्रह्म को चतुस्पद बताया गया है
वैदिक दर्शन ?
वेदो के प्रमुख भाष्यकार यास्क व सायण माने जाते है
दृष्टा :- वेदो के मंत्रो के रचियता को दृष्टा कहा गया है
ओल्डेनबर्ग के अनुसार :- वेद भारतीय साहित्य एवं धर्म का प्राचीनतम अभिलेख है
मनुस्मृति के अनुसार :- सभी धर्मो का आधार वेद है
वैदिक सूत्र?
सूत्र :- अत्यंत संक्षिप्त व सारगर्भित वाक्यो को सूत्र के नाम से जाना जाता है
श्रोतसूत्र :- इसके अन्तर्गत सार्वजनिक पूजा के नियमो का उल्लेख किया गया है
गृहसूत्र :- इसमे परिवार से संबंधित नियमो का उल्लेख किया गया है
धर्म सूत्र :- इसमे वर्ण एंव आश्रमो के कर्तव्यो का उल्लेख किया गया है
वेद त्रयी :- ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद
Note :- त्रयी शब्द का अर्थ वेदो मे उल्लेखित विद्या से लिया गया है
त्रिविद या त्रिविध :- तीन वेदो के ज्ञाता को त्रिविद या त्रिविध कहा जाता है
ऋतजात :- शुरुआत मे वैदिक काल मे सभी देवताओ को ऋत का संरक्षक माना जाता था इस कारण सभी देवताओ को ऋतजात कहा गया लेकिन कालान्तर मे वरूण देवता को ही ऋत का संरक्षक माना गया व उसे ऋतस्य गोपा कहकर पुकारा गया
ऋत के तीन आयाम या क्षेत्र बताये गये है
1 प्राकृतिक नियम
2 नैतिक नियम
3 कर्मकांड संबंधि नियम
वैदिक धर्म के विकास के नियम
1 बहुदेववाद
2 एक-एक अधिदेववाद (मैक्समूलर द्वारा )
3 एकेश्वरवाद
Note :- एक एक अधिदेववाद को ब्लूमफील्ड ने अवसरवादी सिध्दांत कहा है
एकेश्वरवाद ?
वैदिक धर्म का एकेश्वरवाद या monotheism आगे चलकर एकतत्ववाद monism या अदैतवाद non-Muslims मे परिवर्तित हो गया
एकेश्वरवाद को एकतत्ववाद या अदैतवाद के नाम से भी जाना जाता है
एकेश्वरवाद व एकतत्ववाद मे अंतर ?
एकेश्वरवाद के अनुसार ईश्वर एक है एकतत्ववाद के अनुसार सम्पूर्ण सत्ता एक है जिसे परम तत्व कहा गया है
एकेश्वरवाद मे दो की ध्वनि है उदाहरण :- प्रजा व प्रजापति, विश्व व विश्वकर्मा जबकि एकतत्ववाद मे दो की ध्वनि का उल्लेख नही है
एकतत्ववाद दो रूपो मे मिलता है
1 सर्वेश्वर वाद :- इसके अनुसार सम्पूर्ण सत्ता ही ईश्वर है व ईश्वर ही सम्पूर्ण सता है
Note :- सर्वेश्वर वाद का उल्लेख "अदिति सूक्त " मे मिलता है
2 कूटस्थवाद :- इसके अनुसार परम तत्व एक है जो सम्पूर्ण वानस्पतिक जगत व प्राणी जगत मे विस्तृत है व उसे "तदैकम " कहकर पुकारा गया है जिसका अर्थ है :- वह एक है और इसका उल्लेख नासदिय सूक्त मे मिलता है
रेने डेकार्ट ?
जन्म फ्रांस के तुरेन शहर मे हुआ
इसे बुध्दिवादी व आधुनिक दर्शन का जनक माना जाता है
डेकार्ट बुध्दिवादी, वस्तुवादी, उग्रदैतवादी, सन्देहवादी, ईश्वरवादी, सकल्पस्वत्रंतवादि, अनेकतावादी अन्तक्रियावादी दार्शनिक माना जाता है
डेकार्ट ने कोटेशियन विधी दी
डेकार्ट की प्रणाली को संश्यात्मक प्रणाली के नाम से जाना जाता है
डेकार्ट ने गणित विषय के आधार पर अपने दर्शन का निर्माण किया
डेकार्ट की प्रमुख पुस्तके ?
1 बुध्दि के निर्देश नियम
2 प्रणाली का विमर्श
3 जगत
4 दर्शन के मूलभूत सिध्दांत
5 प्राथमिक दर्शन की साधना
Note :- डेकार्ट की दार्शनिक प्रणाली का उल्लेख " बुध्दि के निर्देश नियम " मे मिलता है
प्रतिमान :- डेकार्ट के अनुसार स्वय सिध्द ज्ञान है व इसे प्रमाणित करने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नही होती है
निगमन :- यह प्रतिमान पर आधारित होता है इस कारण इसे भी प्रमाणित ज्ञान माना जाएगा
डेकार्ट के अनुसार वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए बुध्दि का निभ्रांत व स्वस्थ्य होना जरूरी है अर्थात बुध्दि को सभी प्रकार के पूर्वाग्रहो से रहित होना चाहिए
डेकार्ट ने बुध्दि को पूर्वाग्रहो से मुक्त करने के लिए सुव्यवस्थित संशय की बात कही है
डेकार्ट सन्देहवादी दार्शनिक नही है डेकार्ट ने सन्देश को साधन के रूप मे स्वीकार किया है साध्य के रूप मे नही
प्लेटो के अनुसार ज्ञान की उत्पत्ति आश्चर्य से होती है जबकी डेकार्ट के अनुसार ज्ञान की उत्पत्ति सन्देह से होती है
डेकार्ट की संश्यात्मक प्रणाली का उल्लेख प्रणाली के विमर्श मे मिलता है
डेकार्ट ने चार सूत्र बताये है
1 लक्षण सूत्र
2 संश्लेषण सूत्र
3 विश्लेषण सूत्र
4 समाहार सूत्र
डेकार्ट ने अपनी संश्यात्मक प्रणाली के द्वारा आत्मा के अस्तित्व को साबित करने का प्रयास किया है
डेकार्ट ने आत्मा के अस्तित्व को इस वाक्य द्वारा साबित किया है
Cagito, Ego, sum (चिन्तामय अत:आस्मि (नोट :- यह एक लैटिन शब्द है )
डेकार्ट ने केवल अपनी आत्मा के अस्तित्व को ही स्वीकार नही किया है बल्कि डेकार्ट ने अन्य आत्माओ के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है इस कारण डेकार्ट आध्यात्मिक बहुलवाद का समर्थक है
डेकार्ट ने जन्मजात प्रत्ययो या विज्ञान के आधार पर ईश्वर अस्तित्व को साबित करने का प्रयास किया है
डेकार्ट ने ईश्वर अस्तित्व को साबित करने के लिए कुछ तर्क भी दिये है
1 सतामुलक युक्ति :- इसके आधार पर ईश्वर का अस्तित्व साबित करने का प्रयास किया है
2 आनुभाविक युक्ति :- इसके आधार पर संसार की प्रत्येक घटना का कोई न कोई कारण होता है व कारण कभी भी कार्य से न्युन या छोटा नही हो सकता
3 संसृतिमूलक युक्ति :- डेकार्ट ने इस तर्क मे मानव अस्तित्व के आधार पर ईश्वर की सत्ता को साबित करने का प्रयास किया है
डेकार्ट दर्शन मे द्रव्य गुण व पर्याय क्या है?
द्रव्य :- डेकार्ट के अनुसार द्रव्य वह है जिसका स्वतंत्र अस्तित्व हो और जो अपने चिंतन के लिए किसी अन्य वस्तु की अपेक्षा नही करता हो
डेकार्ट की परिभाषा के अनुसार तो केवल ईश्वर ही एक मात्र द्रव्य होना चाहिए किन्तु इसके बावजूद भी डेकार्ट ने चित व अचित को भी द्रव्य की श्रेणी मे रख दिया
डेकार्ट ने द्रव्य को दो श्रेणी मे विभाजित किया है
1 पर द्रव्य :- इसमे ईश्वर को माना है
2 अपर द्रव्य :- इसमे चित और अचित को शामिल किया है
देकार्ट ने द्रव्य को तीन भागो मे बांटा है
1 ईश्वर
2 चित
3 अचित
गुण :- गुण द्रव्य का वह धर्म है जिसे द्रव्य को नष्ट किये बिना अलग नही किया जा सकता है
Note :- चित का गुण चैतन्य है व अचित का गुण विस्तार है
पर्याय :- डेकार्ट के अनुसार पर्याय द्रव्य का वह धर्म है जो गुण के बिना नही रह सकता व जिसका स्वतंत्र चिंतन भी नही किया जा सकता है
डेकार्ट के अनुसार आत्मा सम्पूर्ण शरीर मे फैली रहती है आत्मा का शरीर से सम्पर्क केवल "पीनियल ग्लैण्ड "(अन्त: स्त्रावी ग्रन्थी ) केवल द्वारा होता है
डेकार्ट ने क्रिया प्रतिक्रिया के द्वारा आत्मा व शरीर मे संबंध स्थापित किया
?प्लेटो और अरस्तू के दर्शन को पढकर हम दार्शनिक नही बन सकते यदि हम स्वतंत्र चिन्तन नही करते :- डेकार्ट
डेकार्ट के चार दार्शनिक नियम
1 किसी चीज को तब तक सत्य नही मानना चाहिए जब तक उनका स्पष्ट एव परिस्षिट ज्ञान न हो जाय
2 समस्या का सरलतम टुकडो मे विश्लेषण करना चाहिए
3 सबसे पहले समस्या के सरल एव मूल तत्वो को ध्यान करते हुए आगे बढना चाहिए
4 निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सर्वांगीण एव परीक्षण आवश्यक है
I think therfore I am ( मै सोचता हूं इसलिए मै हूं ) :- डेकार्ट
डेकार्ट पशुओ -पक्षियो एव मानवेतर प्राणियो को आत्मा रहित मानते है क्योंकि वे चिन्तनशील नही है
यूनानी दर्शन ?
युनानी दर्शन का जन्म छठी शताब्दी ई.पू. मे मिलेटस नगर के दार्शनिको द्वारा हुआ इस कारण इसे मिलेशियन स्कूल का दर्शन कहा जाता है
इस स्कूल का जन्म दाता थेल्स को माना जाता है जो प्रथम युनानी दार्शनिक था
इस स्कूल के अन्य दार्शनिको मे अनिक्सेडर व अनेक्सी मीनस तथा पाईथागोरस व डिमोक्राइटीज थे
डेमोक्राइटीज का सिध्दांत अणु विध्यन्त है
रेखागणित का जन्म दाता पाईथागोरस को माना जाता है
पांचवी शताब्दी ई.पू मे युनान मे प्रोटोगोरस नामक दार्शनिक हुआ था इसके दर्शन का मुख्य चिन्तन मनुष्य था
प्रोटोगोरस के विचारो को आगे चलकर सोफिस्टो ने तोड मरोड़कर पेश किया
सोफिस्टो के कुछ तर्को का विरोध युनान के व्यवस्थित दार्शनिक सुकरात ने किया
सोफिस्ट :- युनान मे सोफिस्ट ज्ञान के शिक्षको के रूप मे माने जाते थे ये लोगो को हर प्रकार का ज्ञान देने की बात करते थे
सद्गुण :- अंग्रेजी का virtue शब्द युनानी भाषा के एरेटे से बना है जिसका अर्थ है उत्कष्टता या श्रेष्ठता है
सद्गुण एक स्थाई मनोवृति है जिसे बार बार अभ्यास पर विकसीत किया जा सकता है
सद्गुण हमारे आचरण से प्रकट होता है
सद्गुण मनुष्य की अनिवार्य व स्वभाविक कृतियो से भिन्न है
सुकरात 469-399 B.C.?
ये युनान के ऐन्थेस का नागरिक था
ये दार्शनिक के अलावा एक शूरवीर सैनिक भी था
इन्होंने प्रश्नोत्तर विधि द्वारा शिक्षा देने का काम किया
सत्य की खोज सुकरात के दर्शन का मूल लक्ष्य था
सुकरात के दर्शन का मूलमंत्र है :- अपने आप को पहचानो
संसार की सारी बातो के लिए सुकरात ने कहा :- मै कुछ नही जानता
सुकरात के विचारो को बताने वाला प्लेटो था
सुकरात युनान का पहला व्यवस्थित दार्शनिक था
सुकरात के अनुसार सद्गुण
सुकरात के अनुसार पहला सद्गुण है ज्ञान परन्तु यहा ज्ञान से तात्पर्य आत्मज्ञान से है अर्थात ऐसा ज्ञान जिसे आत्मा को सन्तुष्टी मिले न की इन्द्रियो को
Note :- अरस्तू के अनुसार सुकरात का सद्गुण संबंधि मत अर्धसत्य है
सदगुणो की एकता का नियम सुकरात ने दिया था
सुकरात ने यद्यपि ज्ञान को प्रमुख सद्गुण माना है परन्तु अन्य सद्गुण " विवेक, साहस, संयम व न्याय " को भी सुकरात ज्ञान के अन्तर्गत ही मानता है यही सदगुणो की एकता का नियम है
Note :- सुकरात ने सद्गुण, सुख, व आनंद को एक ही माना है
युनानी दर्शन की सेरेनक्स व सिनिक्स विचारधारा
सुकरात ने सद्गुण सुख व आनंद के संबंध मे जो विचार व्यक्त किए उसके कारण सिनिक्स व सेरेनिक्स विचारधारा का जन्म हुआ
सिनिक्स विचारधारा :- इस विचारधारा के अनुसार बुध्दि द्वारा मनुष्य को अपनी समस्त भावनाओ व संवेगो का दमन करके सद्गुण युक्त जीवन बिताना चाहिये
सेरेनिक्स विचारधारा :- इस विचारधारा को सुखवादी विचारधारा भी कहा जाता है इसके अनुसार सुख प्राप्त करना ही मनुष्य का चरम लक्ष्य है
Note :- इस विचारधारा को युनान के सिरों नगर के अरिस्टपस ने जन्म दिया था
सुकरात ने शारीरिक सुखो की बजाय बौध्दिक सुखो को ज्यादा महत्वपूर्ण माना था
सेरेनिक्स शारीरिक सुखो को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है इन्होंने गुणात्मक भेद को स्वीकार नही किया उसके अनुसार सुख उत्कृष्ट व निकृष्ट नही होते
Note :- सिनिक्स विचारधारा के प्रर्वतक एन्टीस्थनीज व उसके शिष्य डायोजनिज थे
सिनिक्स विकास मे बौध्दिक व शारीरिक दोनो प्रकार के सुखो का निषेध किया है
सर्वप्रथम सिनिक्स के अनुसार ही विश्व नागरिकतावाद के विचारो को बताया गया
Note :- सुकरात के द्वारा लिखित कोई ग्रंथ उपलब्ध नही है
सुकरात के विषपान के अवसर का उल्लेख प्लेटो ने अपनी पुस्तक एपोलाॅजी मे किया है
सुकरात की दर्शन विधि को परिभाषामूलक कहा गया है
सुकराती विधि को द्धंद्धवादी विधि भी कहा जाता है
सुकरात की दार्शनिक पध्दति बहुआयामी है ( निगमन +आगमन +संशय )
सुकरात ने अपने दार्शनिक विचारो की अभिव्यक्ति के लिए संवादशैली अर्थात सामान्य वार्तालाप Conversation को अपनाया है
सुकरात ने ज्ञान शब्द का प्रयोग विवेक अर्थ मे किया है इस संदर्भ मे उसका प्रसिद्ध कथन है
ज्ञान ही सद्गुण है knowledge is virtue
सुकरात के अनुसार ज्ञानी ही सदगुणी व्यक्ति हो सकता है
सुकरात का यह कथन की " स्वय को जानो " का अर्थ है अपने ज्ञान और बौद्धिक क्षमता की सीमाओ को समझे
मनुष्य प्रत्येक वस्तु का मानदंड है :- प्रोटोगोरस
प्लेटो 427 -347 B. C.?
यह ऐन्थेस का नागरिक था
इसे अफलातून कहा गया है
प्लेटो ने ऐकेडमी नामक विद्यालय की स्थापना की
प्लेटो के तीन ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हुए :- यूटोपिया, रिपब्लिक, व लाॅज
यूटोपिया मे प्लेटो ने आदर्श राज्य रिपब्लिक मे दार्शनिक राज्य व लाॅज मे कानून की बात कही है
प्लेटो के अनुसार राज्य को अपने नागरिको पर नियंत्रण रखना चाहिए
प्लेटो संसार को भौतिक न मानकर आध्यात्मिक बताता है किन्तु उसने जगत को मिथ्या बताया है
प्लेटो स्त्रियो को अधिकार देने की बात भी करता है
प्लेटो का सद्गुण संबंधि मत ?
प्लेटो के अनुसार जिससे आत्मा को श्रेष्ठता प्राप्त होती है वह सद्गुण माने जायेगे
प्लेटो ने आत्मा के तीन पक्ष बताये है
1 विवेक मूलक आत्मा इसमे विवेक सद्गुण पाया जाताहै
2 भावना मूलक आत्मा :- इसमे साहस सद्गुण पाया जाता है
3 इच्छा मूलक आत्मा :- इसमे संयम सद्गुण पाया जाता है
प्लेटो के अनुसार विवेक साहस व संयम तीनो नियंत्रण मे रहे तो आत्मा को एक अतिरिक्त सद्गुण प्राप्त होता है जो न्याय का सद्गुण होगा
प्लेटो के अनुसार प्रधान सद्गुण विवेक साहस संयम व न्याय है
प्लेटो के अनुसार राज्य व समाज ?
प्लेटो के अनुसार राज्य व समाज अलग अलग नही है इसने राज्य को भी तीन श्रेणी मे बांटा है
1 प्लेटो के अनुसार राज्य मे राजा विवेकशील होना चाहिए ऐसे राजा को प्लेटो दार्शनिक राजा कहते है
2 राज्य मे दुसरी श्रेणी के लोग सैनिक होगे जिसमे साहस का सद्गुण होगा
3 राज्य मे तीसरी श्रेणी के लोग व्यापारी व कृषक तथा मजदूर होगे जिसमे संयम का सद्गुण होगा
प्लेटो के अनुसार राज्य मे तीनो वर्ग के लोग अपने निश्चित कार्य को करते रहे तो ऐसे राज्य को एक अतिरिक्त सद्गुण न्याय का सद्गुण प्राप्त होगा
प्लेटो के अनुसार संतुलित जीवन?
प्लेटो के अनुसार शारीरिक व बौध्दिक दोनो पक्षो की संतुष्टि का जीवन ही संतुलित जीवन माना जायेगा
प्लेटो ने शारीरिक सुखो की बजाय बौध्दिक सुखो को महत्वपूर्ण माना है किन्तु उसने शारीरिक सुखो को त्यागने की बात नही की है
प्लेटो ने वस्तुनिष्ठ, प्रत्यवादी, प्रत्ययो का वास्तववाद, प्रयोजनावादी व संवादिता सिध्दांत दिया था
प्लेटो को पूर्ण ग्रीक दार्शनिक की उपाधि दी जाती है
प्लेटो की प्रमुख पुस्तके
1 पार्मेनाइडीज
2 एपोलाॅजी
3 फीडो
4 लाॅज
5 सिम्पोजियम
6 रिपब्लिक
7 मैनो
Note :- प्लेटो के अधिकांश ग्रन्थ संवाद रूप मे है और उसमे मुख्य वक्ता सुकरात
प्लेटो के अनुसार ईश्वर केवल " निमित्त कारण " है ईश्वर जगत का कर्ता है इसलिए प्लेटो ईश्वर को कलाकार भी मानता है इसे विश्वकर्मा भी कह सकते है
प्लेटो आत्मा की अमरता मे विश्वास करता है
प्लेटो पुनर्जन्म मे विश्वास करते थे
प्लेटो शरीर को आत्मा का बन्दीगृह मानते थे
प्लेटो के मत को प्रत्ययो का वास्तववाद कहा जाता है
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