दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना(Deen Dayal Upadhyaya Antyodaya Yojna)

दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना


(Deen Dayal Upadhyaya Antyodaya Yojna)


कौशल विकास और रोजगार निर्माण एनडीए सरकार के एजेंडा का मुख्य केंद्रबिंदू है। प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना, उस्ताद, स्किल इंडिया जैसे कई कार्यक्रम इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए शुरू किए गए हैं। दीन दयाल अंत्योदय योजना भी ऐसी ही एक योजना है; इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी युवाओं को आजीविका के लिए स्वावलंबी और क्षमतावान बनाना है।

पिछली सरकारों ने शहरों के लिए राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) और ग्रामीण इलाकों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) शुरू किए थे। एनयूएलएम को आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने कार्यान्वित किया जबकि एनआरएलएम को ग्रामीण विकास मंत्रालय ने। इन योजनाओं का उद्देश्य देश के गरीबों को अपने उपक्रम शुरू करने के लिए प्रेरित करना था ताकि वे गरीबी की श्रेणी से उबर सके। उनका जीवन-स्तर सुधर सके। उनके मुख्य उद्देश्य ही थे- स्थायी या टिकाऊ आजीविका का निर्माण व रोजगार के तार्किक अवसर पैदा करना। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लोगों के कौशल और क्षमता पर ध्यान देना और उसे बढ़ाना जरूरी है।

एनडीए सरकार ने दीन दयाल अंत्योदय योजना (डीएवाय) शुरू की। यह राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का समन्वित स्वरूप है। इसके जरिए योजना को ज्यादा स्पष्ट, परिभाषित और केंद्रित किया गया।

डीएवाय के शहरी और ग्रामीण कमपोनेंट्स का नाम भी बदला गया है, जो इस तरह है-

दीन दयाल अंत्योदय योजना (एनयूएलएम), शहरी क्षेत्रों के लिए योजना का कार्यान्वयन आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय कर रहा है; और
दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना ग्रामीण क्षेत्रों के लिए है। इसका कार्यान्वयन ग्रामीण विकास मंत्रालय कर रहा है।

डीएवाय पर फोकस क्यों है?

दो पूर्व से चल रही शहरी आजीविका योजनाओं को काफी कम प्रतिसाद मिला। रोजगार के साथ ही तरक्की के नए अवसरों को तलाशने में यह योजनाएं ज्यादा सफल नहीं हो सकी। ऐसे में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के आधार के तौर पर यह देखा गया कि विकसित देशों के पास कुशल कामगारों की कमी है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि 2020 तक इन देशों को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए 5.7 करोड़ लोगों की जरूरत होगी। ऐसे में भारत के पास एक बेहतरीन मैन्यूफेक्चरिंग हब बनने की प्रचुर संभावना है। मेक इन इंडिया का उद्देश्य भी मैन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री को ताकत प्रदान करना है। इस सपने को पूरा करने के लिए कुशल कामगारों का एक बड़ा पूल तैयार करना जरूरी है। इस समय, डीएवाय इसी काम में लगा है।

शहरी क्षेत्रों के लिए डीएवाय योजना अब तक 4,041 शहरों और कस्बों में शुरू की जा चुकी है। इसका मतलब यह है कि डीएवाय का दायरा देश की समूची शहरी आबादी तक पहुंच गया है। जबकि इससे पहले के शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम महज 790 शहरों और कस्बों तक ही पहुंच सके थे।

डीएवाय की विशेषताएं-

दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना
डीएवाय के ग्रामीण घटक को 2014 में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य तीन साल (2014-2017) के भीतर भारत के गांवों के करीब 10 लाख युवाओं को प्रशिक्षित करना था। उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने के लिए क्षमतावान बनाना था। इस उद्देश्य के लिए युवा की परिभाषा में 15 वर्ष या उससे ज्यादा आयु वाले युवाओं को शामिल किया गया। कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की ओर से शुरू किए गए विशेष केंद्रों पर आयोजित किए गए।

दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना

डीएवाय के शहरी घटक में हर साल शहरी आजीविका केंद्रों में पांच लाख शहरी गरीबों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है। सरकार ने इस प्रशिक्षण के लिए प्रति व्यक्ति 15 हजार रुपए (पूर्वोत्तर के राज्यों और जम्मू-कश्मीर में 18,000 रुपए) का खर्च उठाने का फैसला किया है। इस प्रशिक्षण का मुख्य घटक है बाजार की मांग आधारित प्रशिक्षण। स्वसहायता समूह (एसएचजी) बनाकर प्रशिक्षित सदस्यों के लिए सहयोगी माहौल तैयार किया जाएगा। हर ग्रुप को शुरुआत में 10 हजार रुपए की राशि दी जाएगी, जिससे वे अपने कारोबार को शुरू कर सके। इसके अलावा क्षेत्र के आधार पर पंजीकृत फेडरेशंस को 50,000 रुपए की आर्थिक मदद भी दी जाएगी।

शहरी गरीब के लिए सब्सिडी

रोजगार के अवसर पैदा किए बिना शहरी गरीबों को कौशल सिखाना या कुशल बनाना किसी काम का नहीं है। सरकार ने प्रशिक्षित युवाओं को अपना उपक्रम स्थापित करने के लिए ब्याज में रियायत देने की योजना भी शुरू की है। इसके तहत (दो लाख रुपए तक के) कर्ज पर पांच प्रतिशत ब्याज में छूट दी जा रही है। समूह में उपक्रम शुरू करने पर (10 लाख रुपए तक के) कर्ज पर सात प्रतिशत तक की ब्याज छूट दी जा रही है। सड़कों पर सामान बेचने वाले भी स्किल डेवलपमेंट के जरिए अपने कारोबार को
आगे बढ़ा सकते हैं।
काम और रोजगार तभी संभव है जब परिवार की चिंताओं को हटायाजा सके। इसके लिए, केंद्र सरकार ने देश के शहरी बेघरों के लिए आश्रय स्थल बनाने का फैसला किया है।

कार्यान्वयन और प्रगति

डीएवाय के कार्यान्वयन के लिए, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के साथ करार पर हस्ताक्षर किए हैं। एनएसडीसी को अब हितग्राहियों की पहचान, सिलेबस तय करने और ट्रेनिंग सत्रों के मानदंड तय करने के साथ ही प्रशिक्षित सदस्यों को प्रमाण-पत्र जारी करने की जिम्मेदारी दी गई है। प्रशिक्षण को बाजारोन्मुखी बनाए रखने के लिए एनएसडीसी इस समय सेक्टर स्किल काउंसिल (एसएससी) की मदद ले रही है, जो बाजार की अगुवाई में चलने वाले समूह हैं।

हालिया समाचारों के मुताबिक, करीब 4.54 लाख शहरी गरीबों ने 2014 से 2016 के बीच इस योजना के तहत प्रशिक्षण हासिल किया। प्रशिक्षण हासिल करने वालों में से 22 प्रतिशत को रोजगार मिल गया। कई ने सरकारी काम शुरू किया तो कुछ ने अपने उपक्रम शुरू किए। इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट कहती है कि 73,476 हितग्राहियों को (सूक्ष्म-स्तर के व्यक्तिगत उपक्रम बनाने के लिए) इस अवधि में कुल 551 करोड़ रुपए का कर्ज दिया गया। इसके अतिरिक्त 54 करोड़ रुपए 2,527 ग्रुप उद्यानिकी पर खर्च किए गए। तमिल नाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इस योजना के कार्यान्वयन का नेतृत्व कर रहे हैं।

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