द्वितीय विश्वयुद्ध और संवैधानिक गतिरोध व कांग्रेस मंत्रिमंडल का त्याग पत्र
द्वितीय विश्वयुद्ध और संवैधानिक गतिरोध व कांग्रेस मंत्रिमंडल का त्याग पत्
3 सितंबर 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध (Second World War) आरंभ हो गया
मित्र शक्तियों ने कहा कि वह लोग संसार को प्रजातंत्र के लिए सुरक्षित करने की भावना से युद्ध कर रहे हैं
इससे भारतीय राष्ट्रवादियों (Indian nationalists) की आशाएं बंध गई कांग्रेस ने सरकार से अनुरोध किया कि वह अपने युद्ध के उद्देश्यों की स्पष्ट रूप से घोषणा करें
अंग्रेज प्रधानमंत्री (English Prime Minister) ने कहा कि उनका उद्देश्य आत्मिक परिरक्षण है ,एक अन्य मंत्री ने कहा कि हमारा उद्देश्य युद्ध जीतना है
तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने भारतीय विधानमंडलों (Indian Legislatures) की सहमती के बिना भारत को युद्ध में शामिल कर लिया गया, साथ ही देश में आपातकाल की घोषणा कर दी
वायसराय ने भारत रक्षा नियमों के अधीन विशेषाधिकार प्राप्त कर लिया था
कांग्रेस कार्यसमिति ने युद्ध के उद्देश्य की घोषणा की मांग की थी और साथ में युद्ध के बाद भारत को स्वतंत्र कर दिया जाए इसकी मांग रखी थी
लेकिन ब्रिटिश सरकार ( British Government) ने इस मांग की उपेक्षा की, वायसराय ने औपनिवेशिक स्वराज का रटा-रटाया डायलॉग बोल दिया
सरकार की इन घोषणाओं से असंतुष्ट होकर कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने 22 अक्टूबर 1939 को कांग्रेस कार्यसमिति मे एक प्रस्ताव पारित किया
जिसमें ब्रिटिश सरकार के रवैए के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए कांग्रेस मंत्रिमंडलों को इस्तीफा देने के लिए कहा
कांग्रेस कार्यकारिणी के आदेश पर 29 से 30 अक्टूबर 1939 को 8 प्रांतों में कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने इस्तीफा दे दिया
कांग्रेस मंत्रिमंडलों द्वारा त्यागपत्र दे दिए जाने के बाद मुस्लिम लीग ने 22 दिसंबर 1939 को दलित नेता Bhimrao ambedkar के साथ मुक्ति दिवस और धन्यवाद दिवस के रूप में मनाया
जुलाई प्रस्ताव
जुलाई 1940 में कांग्रेस कार्यकारणी द्वारा वर्धा में एक प्रस्ताव पारित किया गया उसे ही जुलाई प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है
इस प्रस्ताव के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे
ब्रिटिश सरकार यह आश्वासन दे की द्वितीय युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी
जब तक द्वितीय महायुद्ध चल रहा है भारत में अंतरिम सरकार ( interim government) का गठन किया जाए
किंतु उपरोक्त जुलाई प्रस्ताव को इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री लार्ड चर्चित द्वारा मानने से इनकार कर दिया गया और उसने घोषणा कि वह इंग्लैंड का प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बना कि ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त कर दिया जाए
अगस्त प्रस्ताव ( 8 अगस्त 1940)
कांग्रेस मंत्रिमंडलों के त्यागपत्र के बाद कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन ( Annual session) मार्च 1940 में रामगढ़ (बिहार) में आयोजित हुआ
इसमें कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से इस शर्त पर सहयोग (द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने )करने का प्रस्ताव रखा कि केंद्र में अंतरिम राष्ट्रीय सरकार गठित की जाए
कांग्रेस के इस प्रस्ताव के प्रत्युत्तर में वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने युद्ध के दौरान कांग्रेस से सहयोग प्राप्त करने के लिए उसके समक्ष प्रस्ताव रखा जिसे सामान्यता अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है
अगस्त प्रस्ताव में कांग्रेस की अंतरिम राष्ट्रीय सरकार गठित करने की मांग को अस्वीकार करते हुए वैकल्पिक प्रस्ताव पेश किया जिसमें डोमिनियन स्टेट की बात कही गई
अगस्त प्रस्ताव में निम्नलिखित बातों का प्रावधान था
1. ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के किसी भी ऐसे राजनीतिक दल (Political party) को सत्ता हस्तांतरित नहीं की जाएगी जिस का विरोध भारत का कोई शक्तिशाली और प्रभावशाली वर्ग अथवा दल कर रहा हो 2. युद्ध के बाद एक प्रतिनिधि मुलक संविधान निर्मात्री संस्था का गठन किया जाएगा जो भारत के लिए संविधान का प्रारूप तैयार करेगी
3. गवर्नर जनरल (Governor General) की परिषद का पुनर्गठन किया जाएगा जिसमें भारतीय सदस्य सम्मिलित किए जाएंगे 4. वर्तमान में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में भारतीयों की संख्या बढ़ा दी जाएगी 5. एक युद्ध सलाहकार समिति का गठन किया जाएगा जिसमें भारतीयों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा 6. उपर्युक्त शर्तों के आधार पर द्वितीय महायुद्ध में भारतीय जनता द्वारा पूर्ण सहयोग किया जाएगा
अगस्त प्रस्ताव अपने उद्देश्य में अथार्थ भारतीय जनता का समर्थन प्राप्त करने में पूर्णतः सफल रहा अगस्त प्रस्ताव को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने अस्वीकार कर दिया Jawahar Lal Nehru ने कहा कि जिस अधिराज्य की स्थिति के समग्र विचार पर यह प्रस्ताव आधारित है वह दरवाजे में जड़ी जंग लगी कील की तरह है
मुस्लिम लीग और कांग्रेस द्वारा अगस्त प्रस्ताव को ठुकराने का कारण
मुस्लिम लीग द्वारा इस आधार पर अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकार किया गया
क्योंकि इस प्रस्ताव में कहीं भी पाकिस्तान के निर्माण की बात सम्मिलित नहीं थी
मुस्लिम लीग भारत विभाजन ( Partition of india) से कम कोई अन्य व्यवस्था स्वीकार करने के पक्ष में नहीं था
कांग्रेस द्वारा इस आधार पर इसे अस्वीकार किया गया क्योंकि इसमें मुस्लिम लीग ( Muslim league) को अनावश्यक रुप से बहुत महत्व दिया गया था
भारत के भावी संवैधानिक विकास में मुस्लिम लीग को अवरोध पैदा करने के लिए एक हथियार प्रदान कर दिया गया
किंतु उपर्युक्त कमी के बावजूद भी प्रोफेसर कुपलैण्ड ने कहा अगस्त प्रस्ताव भारत में वैधानिक समस्या को सुलझाने में अत्यंत महत्वपूर्ण और सराहनीय प्रयत्न था
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