28फरवरी 1928 में दिल्ली में एम.ए. अंसारी की अध्यक्षता में सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन नेहरू कमेटी का गठन करने के लिए किया गया था सर्वदलीय सम्मेलन( 11 मई 1928 मुंबई मैं दुबारा सम्मेलन आयोजित किया)में भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए पंडित मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया इसके अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु थे इस कारण इसे नेहरू समिति कहा गया जाता है नेहरू कमेटी की रिपोर्ट
नेहरू कमेटी के द्वारा( 10 अगस्त 1928 को )भारत के संविधान का जो प्रारूप तैयार किया गया उसे ही नेहरू रिपोर्ट कहा जाता है
भारत में जब कांग्रेस ने साइमन आयोग का बहिष्कार करने का आह्वान किया तो लार्ड बर्केनहैड ने भारतीयों को इस आयोग में सम्मिलित न करने का कारण यह बताया कि
विभिन्न राजनीतिक दलो में अत्याधिक भेद है और कहा कि यदि सभी दल मिलकर एक संविधान प्रस्तुत करें तो अंग्रेजी संसद इस पर विचार कर सकती है
अथार्थ लार्ड बर्केनहेड का कहना था की भारतीय स्वंय तो संविधान का निर्माण करने में सक्षम नहीं है और साइमन कमीशन का बहिष्कार करके अच्छा नहीं किया
लार्ड बर्केनहेड ने 24 नवंबर 1927 को भारतीयों के सामने यह चुनौती रखी कि वह एक ऐसे संविधान का निर्माण कर ब्रिटिश संसद के समक्ष पेश करें जिससे सभी दलों का समर्थन और सहमति प्राप्त होता
कांग्रेस ने इस चुनौती को स्वीकार किया और 28 फरवरी 1928 को दिल्ली में सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया
इसमें 29 संस्थाओं ने भाग लिया कुछ मौलिक बातों को निश्चित करने के बाद इस की बैठक स्थगित हो गई
10 मई 1928 को डॉक्टर अंसारी की अध्यक्षता में मुंबई में इसकी दोबारा बैठक आयोजित की गई जहां पर भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 9 व्यक्ति की एक कमेटी नियुक्त की गई इसे नेहरू कमेटी कहा गया
इस कमेटी के अध्यक्ष पंडित मोतीलाल नेहरु को बनाया गया इसलिए इस कमेटी ने जो भी रिपोर्ट तैयार कि वह नेहरू रिपोर्ट कहलायी
इस कमेटी के अध्यक्ष के अतिरिक्त 9 सदस्य इस कमेटी के सदस्य थे जिनमें अली इमाम,शुएब कुरेशीं(मुस्लिम), एम.एस.अणे,एम.आर. जयकर (हिंदू महासभा) मंगल सिंह(सिख), तेज बहादुर सप्रू(लिबरल),एन.एम. जोशी(लेबर),G.P.प्रधान(नान- ब्राह्मण)और सुभाष चंद्र बोस (कांग्रेस )आदि सदस्य सम्मिलित थे
पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रारूपित भारत के संविधान का 1928 की कलकत्ता कांग्रेस ने भारतीय राजनीतिक और संप्रदायिक समस्याओं के समाधान की दिशा में महान योगदान के रूप में स्वागत किया पंडित मोतीलाल नेहरू ने 10 अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की
नेहरू रिपोर्ट की सिफारिश अथवा मुख्य बातें
10 अगस्त 1928 को नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी उसमें निम्न सिफारिश की गई थी
1नेहरू रिपोर्ट का आधार अधिराज्य का दर्जा (डोमिनियन पद) था 2भारत को औपनिवेशक राज्य स्वराज्य दिया जाए 3केंद्र और प्रांत दोनों में पूर्ण उत्तरदायी सरकार का गठन किया जाए 4केंद्रीय व्यवस्थापिका के दो सदन होने चाहिए, निम्न सदन और उच्च सदन हो 5केवल विदेशी मामलों और सुरक्षा को ब्रिटिश नियंत्रण में रखा गया 6सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली को समाप्त किया जाए 7एक उच्चतम न्यायलय की स्थापना की जाए 8गवर्नर जनरल की स्थिति संवैधानिक मुखिया की रहेगी 9नागरिकता को परिभाषित करते हुए मूल अधिकारों को( भाषण देने समाचार पत्र निकालने सफाई करने संगठन बनाने आदि की स्वतंत्रता )प्रतिपादित किया गया 10भारत एक संघ होगा, जिसके नियंत्रण में केंद्र में द्विसदनीय विधानमंडल होगा, मंत्रिमंडल संसद के प्रति उत्तरदायी होगा
गांधी जी के प्रस्ताव के अनुसार सरकार को 1 वर्ष का समय दिया गया और चेतावनी दी गई थी यदि 1 वर्ष के भीतर नेहरू रिपोर्ट में प्रस्तावित संवैधानिक योजनाओं को स्वीकार कर डोमेनियन स्टेट का दर्जा नहीं दिया गया तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज से कम किसी भी प्रस्ताव पर समझौता नहीं करेगी
नेहरू रिपोर्ट पर सांप्रदायिकता का असर
पंडित मोतीलाल नेहरू ने 10अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी इस रिपोर्ट को लखनऊ के सर्वदलीय सम्मेलन में सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया था
लेकिन 22 दिसंबर 1928 को जब कलकत्ता सम्मेलन सर्वदलीय सम्मेलन जिसकी अध्यक्षता डॉक्टर अंसारी कर रहे थे के समक्ष पुनर्विचार हेतु रखी गई तो वहॉ साम्प्रदायिकता ने अपना प्रभाव दिखाया
मुस्लिम लीग ,हिंदू महासभा और सिख लीग के सांप्रदायिक रूझान वाले नेताओं ने इसे लेकर आपत्तियां कि
इस तरह सांप्रदायिक दलो ने राष्ट्रीय एकता का दरवाजा बंद कर दिया इसके बाद लगातार सांप्रदायिक भावना विकसित होती गई
सुभाष चंद्र बोस ,पंडित जवाहरलाल नेहरू, सत्यमूर्ति और अनेक अन्य युवा राष्ट्रवादी भी नेहरू रिपोर्ट से पूर्णतया सहमत नहीं थे
यह लोग औपनिवेशिक शासन के विपरीत पूर्ण स्वाधीनता के पक्ष में थे भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु नवंबर 1928 में इन्होंने ऑल इंडिया इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की
दिसंबर 1928 में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर सका
मोतीलाल नेहरू ने कलकत्ता अधिवेशन में कहा था कि यदि सरकार नेहरू रिपोर्ट को 1 वर्ष के अंदर स्वीकार नहीं करेगी तो कांग्रेस अहिंसक असहयोग आंदोलन शुरु कर देगी
लेकिन सुभाष चंद्र बोस और नेहरु जी के दबाव के कारण इस का समय 1 वर्ष और बढ़ा दिया गया
राष्ट्रवादी मुसलमानों ने रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना, मुस्लिम संप्रदाय के लिए कुछ रियासते चाहते थे
उन्होंने अपनी मांगों के अतिरिक्त केंद्रीय विधान मंडल में एक मुस्लिम प्रतिनिधि की मांग की थी जिसे कांग्रेस ने स्वीकार नहीं किया
परिणाम स्वरूप जिन्ना डॉक्टर मोहब्बत शफी के नेतृत्व वाले रिपोर्ट विरोधी मुस्लिम गुट में सम्मिलित हो गए
मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए मार्च 1929 में 14 सूत्री मांग प्रस्तुत की थी
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